लम्बी आयु का महत्व नहीं है – जितना महत्व इसकी गहनता है
ईश्वर की तलाश खुद में करें
-ललित गर्ग-
परमात्मा को अनेक रूपों में पूजा जाता है। कोई ईश्वर की आराधना मूर्ति रूप में करता है, कोई अग्नि रूप में तो कोई निराकार! परमात्मा के बारे में सभी की अवधारणाएं भिन्न हैं, लेकिन ईश्वर व्यक्ति के हृदय में शक्ति स्रोत और पथ-प्रदर्शक के रूप में बसा है। जैसे दही मथने से मक्खन निकलता है, उसी तरह मन की गहराई में बार-बार गोते लगाने से स्वयं की प्राप्ति का एहसास होता है और अहं, घृणा, क्रोध, मद, लोभ, द्वेष जैसे भावों से मन विरक्त हो पाता है। हर व्यक्ति अपने भाग्य का निर्माता एवं नियंत्रक खुद ही होता है, जैसाकि विलियम अनस्र्ट हेन्ले ने कहा कि “मैं अपने भाग्य का नियंत्रक हूं, मैं अपनी आत्मा का नियंता हूं।” हर इंसान के भीतर बसे ईश्वर की अनुभूति उसके जीवन की एक अमूल्य धरोहर है, जो इसका साक्षात्कार कर लेता है, उसका जीवन धन्य हो जाता है। राल्फ वाल्डो एमर्सन ने कहा कि “लम्बी आयु का महत्व नहीं है जितना महत्व इसकी गहनता है।”
एंथनी हाॅकिन्स ने कहा भी है कि “मैं जीवन से प्यार करता हूं क्योंकि इसके अलावा और है ही क्या।”
दुनिया का इतिहास ऐसे असंख्य लोगों से भरा पड़ा है, जिन्होंने विकट परिस्थिति और संकटों के बावजूद महान सफलता हासिल की और स्वयं में उस परमात्मा को पा लिया। कई बार व्यक्ति नासमझी के कारण छोटी-सी बात पर राई का पहाड़ बना लेता है, लेकिन यह विवेक ही है, जो गहनता से विचार करने के बाद किए गए कार्य में सफलता दिलाता है। विवेक का अर्थ है- चिंतन और अनुभव पर आधारित सूझ-बूझ। विवेक ऐसा प्रकाश है, जो भय, भ्रम, संशय, चिंता जैसे अंधकार को दूर कर व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है, इसीलिए चिंतन के महत्व को समझकर व्यक्ति को अपने अंदर सत्य की खोज करनी चाहिए। इसी सन्दर्भ में प्लैटो ने कहा कि “स्वयं पर विजय प्राप्त कर लेना सबसे श्रेष्ठ और महानतम विजय होती है।” अनेक संतपुरुषों की गतिविधियों को देखा तो लगा कि किस तरह सत्य व्यक्ति का निर्माण करता है और अकल्पनीय तृप्ति प्रदान करता है। जीवन में सत्य का आचरण व्यक्ति को विनम्र बनाता है। जीवन में सत्य और प्रेम आने से घृणा और भय दूर हो जाते हैं। सत्य और प्रेम का होना साधना के समान होता है, जिसमें धैर्य, साहस और संयम की आवश्यकता होती है। जीवन के किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए इन गुणों की जरूरत होती है। मैंने अपने जीवन में अनेक संतों, आचार्यों एवं महापुरुषों का सान्निध्य पाया, मैंने अनुभव किया कि उनका विशिष्ट व्यक्तित्व इन्हीं मूल्यों का समवाय है जो अहं से अनछुआ, स्फटिक के समान पारदर्शी एवं स्वच्छ है। एंथनी हाॅकिन्स ने कहा भी है कि “मैं जीवन से प्यार करता हूं क्योंकि इसके अलावा और है ही क्या।”
विश्व में तीन प्रकार के व्यक्ति होते हैं- आत्मद्रष्टा, युगद्रष्टा और भविष्यद्रष्टा। आत्मद्रष्टा की समग्र गतिविधियाँ आत्म केंद्रित होती है, युगद्रष्टा वह व्यक्ति होता है जिसकी युग को देखने व परखने वाली आँख ही अलग तरह की होती है। उस आँख का उपयोग करने वाला व्यक्ति ही युगद्रष्टा कहलाता है। युग की नब्ज को पहचानकर समस्याओं को समाहित करने वाला ही युगद्रष्टा कहलाता है। भविष्यद्रष्टा-दूरगामी सोच रखते हैं एवं दूरदर्शी होते हैं। कोई युगद्रष्टा होता है, आत्मद्रष्टा नहीं होता है। पॉल वैलेरी ने कहा कि “अपने सपनों को साकार करने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है कि आप जाग जाएं।”
विश्व में तीन प्रकार के व्यक्ति होते हैं- आत्मद्रष्टा, युगद्रष्टा और भविष्यद्रष्टा। आत्मद्रष्टा की समग्र गतिविधियाँ आत्म केंद्रित होती है, युगद्रष्टा वह व्यक्ति होता है जिसकी युग को देखने व परखने वाली आँख ही अलग तरह की होती है। उस आँख का उपयोग करने वाला व्यक्ति ही युगद्रष्टा कहलाता है। युग की नब्ज को पहचानकर समस्याओं को समाहित करने वाला ही युगद्रष्टा कहलाता है। भविष्यद्रष्टा-दूरगामी सोच रखते हैं एवं दूरदर्शी होते हैं। कोई युगद्रष्टा होता है, आत्मद्रष्टा नहीं होता है। पॉल वैलेरी ने कहा कि “अपने सपनों को साकार करने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है कि आप जाग जाएं।”
आज परिवार संस्था पर आंच आयी हुई है, संयुक्त परिवार बिखर रहे हैं क्योंकि चतुर लोग अपना सारा समय दुनियावी ताम-झाम में लगा देते हैं लेकिन कभी नहीं सोचते कि घर पर बूढ़ी अम्मा, जो इंतजार में बाट जोहे बैठी है, वह कैसी होगी। बच्चे, जो आपके साथ हंसना-खेलना चाहते हैं, वह कभी आपको इस मिजाज में देखते ही नहीं कि कुछ नखरे दिखा सकें। पत्नी, जिसे दुनिया में सबसे अधिक इस बात की परवाह रहती है कि आप कैसे हैं, पर उसे भूल क्यों जाते हैं। जितनी खुशी, जितना प्रेम और आनंद आपको अपने परिवार से मिल सकता है, शायद ही कहीं और से मिले… पर इस बात की अहमियत नहीं समझी जाती, अपना थोड़ा-सा समय भी परिवार और समाज के जरूरतमंद लोगों को देकर देखिए, शायद जिंदगी बदल जाए। लोग मायावी और छद्म आनंद की तलाश में न जाने कहां-कहां भटकते रहते हैं और इस मृग-मरीचिका में सारे रिश्ते उदासीन होते जाते हैं। भला वह गर्मी उन रिश्तों में एकतरफा आए भी तो कहां से, रिश्ते तो हमेशा ही पारस्परिक होते हैं। बाद में जब जिंदगी के सारे भ्रम टूट जाते हैं, पराए-मतलबपरस्त लोग आपको अकेला छोड़कर दूर चले जाते हैं, तब बिल्कुल खाली-खाली से महसूस करते हैं, आप बिल्कुल कैसे ही होते हैं, जैसे कोई पेड़, जिससे परदेसी पंछियों का झुंड उसे अकेला छोड़ कर उड़ गया हो। ऐसे में जब आपको परिवार और दोस्तों से भावनात्मक ऊष्मा की जरूरत पड़ती है, तो आप खुद को अकेला पाते हैं। सब होते हैं आपके आसपास, पर वह अपनापन नहीं होता… और ऐसा नहीं है कि इस तरह का अधूरापन केवल किसी पुरुष की परेशानी है, तथाकथित आधुनिकता की होड़ में सहज मानवीय चेतना से दूर होती जा रही महिलाओं को भी इस तरह का अकेलापन बहुत सालता है। इन सब स्थितियों से इंसान को निजात कैसे मिले, यह वर्तमान की बड़ी अपेक्षा है। कार्ल बार्ड ने कहा कि “हालांकि कोई भी व्यक्ति अतीत में जाकर नई शुरुआत नहीं कर सकता है, लेकिन कोई भी व्यक्ति अभी शुरुआत कर सकता है और एक नया अंत प्राप्त कर सकता है।”
जिस प्रकार फूलों का स्पर्श पाकर चलने वाली समीर पूरे वातावरण को सुवासित कर देती है, उसी प्रकार आपका स्वयं से स्वयं के साक्षात्कार के क्षण कुसुमों से आने वाली वत्सलता की हवा आपके मानस को अपनत्व की परिमल से सुवासित-सुगंधित कर सकती है, जरूरत है उसके लिये एकाग्रता एवं दृढ़ संकल्प की। इसीलिये राल्फ वाल्डो एमर्सन ने कहा कि “पूरा जीवन एक अनुभव है। आप जितने अधिक प्रयोग करते हैं, उतना ही इसे बेहतर बनाते हैं।” प्रेषक
(ललित गर्ग)
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