जी.एस.टी. लागू करने की कार्यवाही में खर्च पौने तीन करोड

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उत्तराखंड में जी.एस.टी. एक्ट विधानसभा में पास होन से पहले ही वाणिज्यकर विभाग द्वारा जी.एस.टी. लागू करने हेतु की गयी कार्यवाहियों पर ३१ मार्च २०१७ तक दो करोड ७४ लाख ७८ हजार ७६७ रूपये की भारी भरकम रकम खर्च कर दी गयी है। यह खुलासा सूचना अधिकार के अन्तर्गत उपलब्ध सूचना से हुआ। (www.himalayauk.org) Leading Web & Print Media 

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उत्तराखंड विधानसभा में आज राज्य माल और सेवाकर एसजीएसटी विधेयक पेश कर दिया गया। विधेयक को राज्य विधानसभा में वित्त मंत्री प्रकाश पंत ने पेश किया। पूरे देश में जीएसटी के तहत एक समान कर प्रणाली लागू करने के लिये एक जुलाई से जीएसटी लागू किये जाने के मद्देनजर यह विधेयक पेश किया गया। वर्तमान में राज्य सरकार माल के विक्रय और क्रय पर मूल्यवर्धित कर, प्रवेश कर, मनोरंजन कर, उपकर आदि लगाती है लेकिन नये विधेयक में केन्द्र तथा राज्य सरकारों के स्तर पर लगने वाले अप्रत्यक्ष करों को जीएसटी में समाहित कर दिया जायेगा। जीएसटी में शामिल होने वाले केन्द्र के स्तर पर लगने वाले अप्रत्यक्ष करों में उत्पाद शुल्क, सेवाकर तथा कुछ विशेष शुल्क जीएसटी में समाहित हो जायेंगे जबकि राज्यों के स्तर पर लगने वाले मूल्य वर्धित कर :वैट: तथा कई अन्य कर जीएसटी में शामिल हो जायेंगे। इन सभी के स्थान पर केवल जीएसटी लगेगा। देश में जीएसटी प्रणाली लागू किये जाने के दृष्टिगत जीएसटी काउंसिल की संस्तुति पर सभी राज्यों को जीएसटी विधेयक को राज्य विधानसभाओं में पारित कराना है। राज्यों में पारित होने के बाद ही एक जुलाई से जीएसटी व्यवस्था को अमल में लाया जा सकेगा।
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वही दूसरी ओर भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में प्रदेश के विभिन्न विभागों में 461.81 करोड़ रुपये की वित्तीय अनियमितता का खुलासा किया गया है। यह अनियमितता लापरवाही के चलते विभिन्न योजनाओं की लागत बढ़ने, निष्प्रभावी व्यय आदि के रूप में है। इसके अलावा विभिन्न योजनाओं की कमियों व राज्य की राजस्व स्थिति का भी रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है। इसके अलावा जिस आपातकालीन 108 सेवा की खूबियों के बखान करते हुए प्रदेश में कई चुनाव लड़े जा चुके हैं, उसका चयन ही पारदर्शी नहीं रहा। भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (कैग) की जांच रिपोर्ट में पाया गया कि आपातकालीन सेवा के लिए जीवीके आपातकालीन प्रबंधन एवं अनुसंधान संस्थान का चयन वर्ष 2008 में बिना उचित मानदंडों और योग्यता के परीक्षण के बिना ही कर दिया गया। इसके साथ ही कैग ने 108 सेवा को विभिन्न नियमों की कसौटी पर भी परखा और इसके लिए उत्तर प्रदेश के एमओयू को आधार बनाया गया। इस स्तर पर भी कैग ने नियमों की भारी अनदेखी पाई।
महालेखाकार (लेखापरीक्षा) सौरभ नारायण के अनुसार उत्तराखंड में 108 सेवा की संचालक कंपनी का चयन महज इस आधार पर किया गया कि उत्तर प्रदेश व अन्य राज्यों में भी यही कंपनी सेवा का संचालन कर रही है। हालांकि उत्तर प्रदेश ने कंपनी के साथ किए गए एमओयू में तमाम शर्तों को जोड़ा है, जबकि उत्तराखंड में कंपनी के साथ ऐसी कोई शर्त नहीं जोड़ी गई।
हालांकि राज्य सरकार और कंपनी के बीच किए गए एमओयू में यह भी उल्लेख था कि सेवा के संचालन में जो भी खर्च आएगा, उसकी पांच फीसद राशि कंपनी वहन करेगी। इस नियम का अनुपालन कराने में भी राज्य सरकार असफल साबित हुई।
108 आपातकालीन सेवा के संचालन में कंपनी को किए गए भुगतान पर भी कैग ने सवाल खड़े गए हैं। इसके अलावा चिकित्सा सामग्रियों की उच्च दरों पर आपूर्ति, प्रतिक्रिया समय में विलंब, एंबुलेंस का क्रियाशील न रहने जैसे महत्वपूर्ण बिंदुओं पर कैग रिपोर्ट में कड़ी टिप्पणी की गई है।
वही दूसरी ओर सूचना अधिकार कार्यकर्ता नदीम उददीन ने वाणिज्य कर मुख्यालय से जी.एस.टी. लागू करने को की गयी कार्यवाहियों तथा उस पर खर्च की सूचना मांगी है। इसके उत्तर में वाणिज्य कर मुख्यालय की लोक सूचना अधिकारी/डिप्टी कमिश्नर मुख्यालय देहरादून नीलम ध्यानी ने पत्रांक १२८ दिनांक ११ अप्रैल २०१७ के साथ यशपाल सिंह, डिप्टी कमिश्नर (जी.एस.टी. अनुभाग) द्वारा उपलब्ध करायी गयी कार्यवाहियों संबंधी सूचना तथा डिप्टी कमिश्नर, मुख्यालय जगदीश सिंह द्वारा उपलब्ध करायी खर्च की सूचना के विवरण उपलब्ध कराये हैं।
विवरण के अनुसार जी.एस.टी. लागू करने की कार्यवाहियों में ३१ मार्च २०१७ तक ६ मदों में कुल २ करोड ७४ लाख ७८ हजार ७६७ रूपये की धनराशि खर्च की गयी है। इसमें मदों का पूर्ण विवरण उपलब्ध नहीं कराया गया है। केवल मद संख्या का उल्लेख किया गया है। सर्वाधिक २ करोड ५१ लाख ६५ हजार ७८५ रू. की धनराशि मद सं० ४२ में खर्च की गयी है जबकि सबसे कम रू. ५८५१ रू. मद संख्या ८ में खर्च किये गये है। अन्य मदों में मद सं० ४ में १ लाख २२ हजार ४७१, मद सं० ११ म १ लाख २७ हजार ५१४, मद सं० १९ म १ लाख १५ हजार १५८ तथा मद सं० ४४ म ९ लाख ६ हजार ९८८ रूपये खर्च दर्शाये गये है।
जी.एस.टी. लागू करने की कार्यवाहियों की सूचना भी विभाग द्वारा अस्पष्ट व अपूर्ण दी गयी है। डिप्टी कमिश्नर (जी.एस.टी. अनुभाग) यशपाल सिंह द्वारा उपलब्ध कराये गये विवरण के अनुसार की गयी कार्यवाहियों से क्या आशय है स्पष्ट नहीं है। जी.एस.टी. लागू करने हेतु की गयी कार्यवाहियों के विवरण के नाम से कोई पृथक अभिलेख न तो रखा गया है और न ही रखा जाना अपेक्षित है।
जी.एस.टी. लागू करने हेतु की गयी कार्यवाहियां अत्यन्त व्यापक है तथा प्रशिक्षण प्राप्त करने, विधि व नियम निर्माण कार्यों में व अन्य कार्यों में जी.एस.टी. परिषद की बैठक की बैठकों व विचार-विमर्श में प्रतिभाग व प्रतिपुष्टियां प्रेषित करने, जी.एस.टी. हेतु व्यापारियों के नामांकन] कम्प्यूटरीकरण व नेटवर्किग के आद्यतनोकरण तक विस्तृत है।
विभाग द्वारा अस्पष्ट व अपूर्ण सूचना उपलब्ध कराने पर श्री नदीम द्वारा विभागीय अपीलीय अधिकारी अपर आयक्त कर को प्रथम अपील की गयी है।
अनुदान के नाम पर 348 करोड़ रुपये के बंदरबांट की बू आ रही है। यह अनुदान की वह राशि है, जिसके प्रमाण पत्र राज्य सरकार ने कैग को उपलब्ध ही नहीं कराए। इस तरह के प्रमाण पत्रों की संख्या 293 है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि प्रमाण पत्र प्राप्त न होने से यह सुनिश्चित नहीं किया जा सकता कि अनुदान का उपयोग वहीं, किया गया है, जहां के लिए उन्हें स्वीकृति प्रदान की गई थी।
वैसे तो 31 मार्च 2016 तक 656.87 करोड़ रुपये के 542 उपयोगिता प्रमाण पत्र लंबित थे, लेकिन इनमें से 307.95 करोड़ रुपये के 249 उपयोगिता प्रमाण पत्रों को प्रस्तुत करने की तिथि 31 मार्च 2017 तक थी। जबकि यह रिपोर्ट 31 मार्च 2016 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष के लिए तैयार की गई। इस आधार पर कैग ने इस अवधि के ही 348 करोड़ रुपये के अनुदान के उपयोगिता प्रमाण पत्रों को तलब किया। रिपोर्ट में खास तौर पर यह भी उल्लेख किया गया कि 171 प्रमाण पत्र न सिर्फ दो सालों से अधिक अवधि से लंबित चल रहे हैं, बल्कि 10 लाख या उससे अधिक राशि के अनुदान/ऋण को लेकर प्राप्तकर्ता संस्था से किसी भी विभागाध्यक्ष ने उपयोगिता प्रमाण पत्र प्राप्त नहीं किया। इसके परिणामस्वरूप अनुदान उपयोगिता की प्रवृत्ति, उपयोगिता व दुरुपयोग का पता नहीं लगाया जा सकता।

उत्तराखण्ड में जीएसटी लागू होने से राज्य को इजाफा होना लगभग तय माना जा रहा है। वाणिज्य कर में वर्तमान आय का अनुसार 7100 करोड़ की आय का अनुमान है। जीएसटी लागू होने के बाद यह धनराशि लगभग 8000 करोड़ तक हो जाएगी। बताया जा रहा है कि राज्य में वस्तु एवं सेवा कर लागू होने से राज्य के कर राजस्व में 1000 करोड़ का इजाफा होगा। अभी कर राजस्व में और अधिकर इजाफे की वृद्धि की उम्मीदों को लेकर राज्य सरकार की करों को लेकर सुस्ती भारी पड़ी है। करों को लेकर बीते वर्षों में उदार रवैये का असर जीएसटी से होने वाली आमदनी पर दिखाई पड़ सकता है। वस्तु एवं सेवा कर में होने वाले लाभ का दायरा बढ़ सकता था, लेकिन बीते कई वर्षों में कर राजस्व को बढ़ाने की दिशा में प्रसास ही नहीं किए गए हैं। राज्य के कर राजस्व के आकलन को जीएसटी में आधार वर्ष 2015-16 रखा गया है। नतीजतन इस अवधि के बाद बढ़ने वाले राजस्व का फायदा राज्य को शायद ही मिले। अप्रत्यक्ष कर सुधारों की दिशा में महत्वपूर्ण कदम के तौर पर आंके जा रहे जीएसटी को उत्तराखंड के लिए खास फायदेमंद माना जा रहा है।  उत्तराखण्ड राज्य उपभोक्ता हैसियत वाला राज्य है। यहां पर उत्पादन की तुलता में वास्तुओं क आपूर्ति और अधिक है। इसलिए जीसटी में कर गंतव्य आधारित है। इसीलिए कर राजस्व भी उसी राज्य को ज्यादा मिलेगा जिस राज्य में वस्तुओं की खपत ज्यादा होगी। हालांकि, मदिरा, पांच पेट्रोलियम पदार्थों में क्रूड, पेट्रोल, डीजल, प्राकृतिक गैस व एटीएफ को छोड़कर सभी वस्तुओं पर कर जीएसटी की परिधि में है, लेकिन जीएसटी के क्रियान्वयन के शुरुआती वर्षों में मानवीय उपयोग की उक्त वस्तुओं को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है। आबकारी, पेट्रोल-डीजल से मिलने वाले कर का राज्य के कुल राजस्व में बड़ी हिस्सेदारी है। इस वजह से राज्य को राहत मिलने की उम्मीदें कायम हैं। खनन में उपखनिजों का अधिकतर राज्य के बाहर उपयोग होने से कर राजस्व में इजाफा होने के आसार नहीं हैं। इस वजह से राज्य सरकार इस कोशिश में है कि खनन से प्राप्त होने वाली रायल्टी पर भी जीएसटी से छूट हासिल की जाए।

उत्तराखंड विधानसभा में मंगलवार को सर्वसम्मति से माल एवं सेवा कर जीएसटी बिल पास हो गया। जीएसटी बिल को लेकर बुलाये गये विशेष सत्र के पहले दिन सोमवार को संसदीय कार्यमंत्री प्रकाश पंत ने बिल को सदन पटल पर पेश किया था। जीएसटी लागू होने के साथ ही राज्य में 17 प्रकार के करों की व्यवस्था समाप्त हो जाएगी और इसके एवज में सिर्फ माल एवं सेवा कर वसूला जाएगा। अल्कोहल और पेट्रोलियम पदार्थ समेत छह वस्तुओं को अगले पांच साल तक के लिए जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है। इन सभी पर वैट बरकरार रहेगा। वित्त मंत्री ने कहा कि एकल कर प्रणाली से राज्य के राजस्व में भी बढ़ोतरी संभव हो सकेगी। कर के चार स्लैब प्रस्तावित हैं और किस वस्तु पर कौन सा स्लैब लागू होगा इसका निर्धारण जीएसटी काउंसिल करेगी।

विधेयक में अधिकारियों को बकाया वसूली, निरीक्षण, तलाशी, अभिग्रहण और गिरफ्तारी की शक्तियां देने का कानूनी प्रावधान है। अपीलों की सुनवाई के लिए अपील अधिकरण की स्थापना करने तथा मुनाफाखोरी पर रोक के लिए प्रावधान है। विधेयक में वित्तीय अभिलेख बदलने या उसमें झूठे तथ्य दर्शाने के दोषी को छह महीने तक का कारावास और दोष सिद्ध व्यक्ति के दोबारा दोषी पाए जाने पर पांच की जेल का प्रावधान किया गया है। बाकायदा एक अधिकरण का गठन होगा। 10 लाख रुपये के टर्नओवर वाले व्यापारी एसजीएसटी के दायरे में शामिल होंगे। राज्य में 97,907 डीलर्स हैं जिसमें से अब तक 75478 डीलर्स पंजीकरण करा चुके हैं और यह 78 प्रतिशत है।

आबकारी ड्यूटी में केन्द्र व राज्य के प्रतिशत तय

उत्तराखंड में उद्योगों की दशा बहुत अच्छी नहीं है। औद्योगिक क्षेत्र सिडकुल से तमाम इकाइयां भाग रही थी,लेकिन सरकार ने उनके लिए एक व्यवस्था प्रारंभ की है,जिसका लाभ उद्योगों को मिलेगा। एसजीएसटी लागू होने के बाद सिडकुल के तहत स्थापित निर्माण इकाइयों को आबकारी ड्यूटी तो अदा करनी होगी मगर केंद्र 58 फीसदी और राज्य 42 फीसदी इसे लौटाएंगे। ये सुविधा 2020 तक मिलेगी।

कर वसूली में भी होगी बढ़ोत्तरी

उत्तराखंड जहां अधिकांश वन्य क्षेत्र हैं और भौगोलिक करणों से यहां पर्वतीय क्षेत्रों में बड़े उद्योग नहीं लगाए जा सक ते हैं,लेकिन अब इस हानि पर अंकुश लगेगा। राजस्व हानि की प्रतिपूर्ति के लिए एसजीएसटी में वर्ष 2015-16 को आधार वर्ष निर्धारित किया गया है। इसके तहत 14 प्रतिशत राजस्व वृद्धि के आधार पर राज्यों को प्रतिपूर्ति करने की व्यवस्था है। 2015-16 में राज्य ने 6096.24 करोड़ राजस्व जुटाया था। करीब 17-18 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर से 2016-17 में यह 7143.35 करोड़ रुपये हो गया।

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