गुजरात में जीतने की चमक छिनने का डर
बीजेपी अगर गुजरात जीत भी जाती है तो उस जीत की कुछ चमक छिनने का भी डर पैदा हो गया है, बीजेपी के लिए चिंता का सबसे बड़ा कारण गुजरात के युवा वोटरों में लोकप्रियता कम होना है. इसके अलावा बीजेपी के सूरमाओ के मैदान में चित होने का भी खतरा है, वही हार्दिक ने साबित कर दिया कि वे गुजरात में बीजेपी के लिए अकेले बड़ी चुनौती के तौर पर उभरे हैं. महाराष्ट्र के बीजेपी सांसद (राज्यसभा) संजय काकड़े ने हार्दिक पटेल की सेक्स सीडी जारी करने को भी गलत बताया है. उनका मानना है कि इस तरह से हार्दिक से निपटने की कोशिश एक गलत कदम था. बीजेपी इस चुनाव में हार्दिक की चुनौती से पार पाने में कामयाब रही है तो उसकी वजह है गैर पाटीदार समुदायों का उसके समर्थन में एकजुट होना. हार्दिक युवा आक्रोश के प्रतीक के तौर पर उभरे हैं.
एक्सिस-माय-इंडिया चुनाव सर्वेक्षकों ने गुजरात के सभी 182 निर्वाचन क्षेत्रों में जाकर अलग अलग हर क्षेत्र में 200-200 से अधिक प्रतिभागियों से बात की. क्षेत्र-वार विश्लेषण से राज्य में बीजेपी के कुछ बड़े चेहरों के लिए खतरे की घंटी वाले संकेत सामने आए हैं. ये उनकी सीटों के परिणाम का अनुमान नहीं है बल्कि उन सीटों पर लड़ने वाले नेताओं की लोकप्रियता का पैमाना है.
उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल को लोकप्रियता के पैमाने पर प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार जीवाभाई पटेल से पीछे दिखाया गया है. इसी तरह मुख्यमंत्री विजय रुपानी को राजकोट वेस्ट सीट पर विरोधी कांग्रेसी दिग्गज इंद्रनील राज्यगुरु से लोकप्रियता में करीब करीब बराबर दिखाया गया है.
गुजरात बीजेपी अध्यक्ष जीतू वघानी भावनगर वेस्ट सीट पर कांग्रेस के दिलीप सिंह गोहिल से पिछड़ते दिख रहे हैं. वहीं बोटाद में बीजेपी दिग्गज सौरभ पटेल कांग्रेस के डी एम पटेल से कांटे की टक्कर में उलझे हैं. अगर ये बीजेपी के सूरमा मैदान में चित होते हैं तो बीजेपी अगर गुजरात जीत भी जाती है तो उस जीत की कुछ चमक छिन जाएगी.
नरेंद्र मोदी जब 2014 में बीजेपी के पीएम कैंडिडेट बने और चुनाव जीते तो वे संगठन में अमित शाह को ले आए। शाह ने फिर अपनी टीम बनाई और 3 साल में 11 चुनाव जीते। राहुल को भी अमित शाह की तरह अपनी नई टीम चुननी होगी। सोनिया के कार्यकाल के दौरान प्रणब मुखर्जी, मनमोहन सिंह, अहमद पटेल, मोतीलाल वोरा, वीरप्पा मोइली, पी. चिदंबरम, गुलाम नबी आजाद, दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं की टीम थी। राहुल को इन नेताओं से अलग नए चेहरों के साथ टीम चुननी होगी।
बीजेपी के लिए चिंता का सबसे बड़ा कारण गुजरात के युवा वोटरों में लोकप्रियता कम होना है. अन्य राज्यों के हालिया चुनावों में, यहां तक कि 2014 के लोकसभा चुनावों में भी देश के युवाओं, उम्मीदें संजोने वाले मतदाताओं के लिए बीजेपी चुम्बक की तरह साबित हुई थी. लेकिन उन उम्मीदों का पूरा नहीं होना, बीजेपी के लिए जमीनी सुरंग साबित हो सकता है. बशर्ते कि गुजरात में युवा वोटरों ने जो ट्रेंड दिखाया है वो देश के अन्य राज्यों में भी फैलता है. हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी का राहुल गांधी के साथ पूरे तालमेल के साथ काम करने से युवा वोटरों का एक बड़ा हिस्सा बीजेपी से दूर छिटका है. गुजरात में सिर्फ 18 से 25 के आयु वर्ग में ही कांग्रेस वोट शेयर के मामले में बीजेपी को मात देने में कामयाब रही है. युवाओं में 45% ने कांग्रेस के पक्ष में वोट देने का संकेत दिया. वहीं बीजेपी को 44% युवा मतदाताओं का ही समर्थन मिलता दिख रहा है.
गुजरात के छात्रों की बात की जाए तो कांग्रेस लोकप्रियता के मामले में बीजेपी के साथ बराबरी की टक्कर पर हैं. छात्रों में बीजेपी और कांग्रेस, दोनों को ही 43%-43% वोट शेयर मिल रहा है. पिछले चुनावों में छात्रों में बीजेपी को कांग्रेस पर स्पष्ट बढ़त मिलती रही है.
बीजेपी की सबसे ज्यादा लोकप्रियता गुजरात में 60 वर्ष से अधिक आयु वाले वर्ग में बरकरार है. यही वर्ग राज्य में कांग्रेस शासन के दौरान ‘बुरे पुराने दिनों’ को गिनाता है.
इसके अलावा हार्दिक पटेल के खिलाफ राजद्रोह का केस दर्ज किया गया, फिर गुजरात से तड़ी पार किया गया, जेल भेजा गया. जब चुनाव कैम्पेन पूरे उफान पर था तो अनेक सेक्स-सीडी सामने आईं. हार्दिक पर छींटाकशी हुई. राजनीतिक जोड़तोड़ ये था कि हार्दिक ‘एक्सपोज’ होंगे और उनके समर्थन का आधार सिकुड़ेगा. लेकिन एक के बाद एक कई बड़ी रैलियों को संबोधित कर हार्दिक ने साबित कर दिया कि वे गुजरात में बीजेपी के लिए अकेले बड़ी चुनौती के तौर पर उभरे हैं. अगर कांग्रेस हार्दिक को पार्टी का चेहरा बनाती है तो हार्दिक की खुद की अपील और पार्टी मशीनरी 2022 चुनाव में बीजेपी को तगड़ी चुनौती पेश कर सकते हैं.
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