गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री पटेल का चुनाव लडने से इंकार; होगा दूरगामी असर
Big Breaking # गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल ने इस बार विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगी #अमित शाह को चिट्ठी लिखी # गुजरात मे लगातार प्रतिकूल होती परिस्थिति आनंंदी बेन पटेल के चुुुुनाव लडने से इंंकार का होगा दूरगामी असर
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विजयदश्मी के मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत के भाषण से भाजपा की सत्ता परेशान हो गयी थी. भागवत ने अपने भाषण में रोजगार का जिक्र किया था, छोटे व्यपारियों की तकलीफों के तरफ ध्यान दिलाया था और कुल मिलाकर अंसतोष की बात कही थी.
इसी को आगे बढाते हुए सपाट स्वर में राहुल कहते हैं कि कांग्रेस रोजगार नहीं दे सकी तो लोगों ने मोदी को रोजगार के लिए चुना और अब अगर वह भी नहीं दे पा रहे हैं तो जनता उनका भी वही हश्र करेगी जो कांग्रेस का किया था. यह एक ऐसा बयान है जो सीधा सपाट होते हुए भी राजनीति की उलटबांसियों से युक्त था.
वही दूसरी ओर गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल ने इस बार विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगी. इस बात की जानकारी आनंदी बेन पटेल ने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को चिट्ठी लिखकर दी है. गुजरात मे लगातार प्रतिकूल होती परिस्थिति आनंंदी बेन पटेल के चुुुुनाव लडने से इंंकार का होगा दूरगामी असर
हालांकि आनंदी पटेल बहाना बनाते हुए बढती उम्र का हवाला देती है, पर उनके गुजरात के राजनीतिक महाभारत में न होने का सीधा सीधा नुकसान भाजपा को होना तय है, पटेल वर्ग में आक्रोश बढना तय है-
आनंदी पटेल ने अपनी बढ़ती उम्र का हवाला देते हुए चुनाव लड़ने से इनकार किया है साल 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद आनंदी बेन पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया था. लेकिन पिछले साल उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद विजय रूपाणी को गुजरात की कमान सौंपी गई थी. फिलहाल आनंदी बेन पटेल गुजरात में घटलोडिया विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं. आनंदी बने पटेल साल 1998 से विधायक हैं.
कुछ दिन पहली ही बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने आनंदी बेन पटेल को सीएम उम्मीदवार बनाने की मांग की थी. उन्होंने एक ट्वीट में लिखा था, ‘’ “पूर्व सीएम आनंदीबेन पटेल की लोकप्रियता गुजरात में तेजी से बढ़ रही है. मुझे लगता है कि बीजेपी की आसान जीत के लिए हमें उन्हें सीएम उम्मीदवार बनाना चाहिए.”
आनंदी बेन पटेल साल 1987 से बीजेपी से जुड़ी हैं और गुजरात सरकार में सड़क और भवन निर्माण, राजस्व, शहरी विकास और शहरी आवास, आपदा प्रबंधन और वित्त आदि महत्वपूर्ण विभाग संभाल चुकी हैं.
इस साल गुजरात में और हिमाचल में विधानसभा चुनाव है. अगले साल कर्नाटक और फिर राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य हैं.
इस को देखते हुए रणनीति के तहत पेट्रोल डीजल पर दो रुपये की छूट पहला फैसला था और जीएसटी में छोटे व्यपारियों को राहत देना दूसरा फैसला है लेकिन अब जीएसटी में राहत देकर सरकार ने टैक्स के दायरे से बचने वालों के आंसु पोंछने की कोशिश की है. ऐसा मोदी शासन में होता नहीं था. पिछले तीन सालों में ऐसा होना सुना देखा नहीं था. इससे भी बड़ा बदलाव मोदी सरकार ने अपने ही फैसले को उलट कर किया है. आर्थिक सलाहकार परिषद को मोदी ने खत्म कर दिया था, लेकिन अब इसका गठन किया गया है. यह बात हालांकि समझ के परे हैं कि नीति आयोग के ही एक सदस्य को परिषद की कमान क्यों सौंप दी गई?.
यूपी की तरह गुजरात जीतना भी मोदी और अमित शाह के लिए बहुत जरुरी है लेकिन यहां जीएसटी से खाखरा को अलग करने का फैसला मोदी सरकार ने कर लिया. जिन 27 चीजों पर से जीएसटी कम किया गया है, उनमें से सात का सीधा रिश्ता गुजरात से जुड़ता है. जाहिर है कि आर्थिक मोर्चे पर सरकार की नाकामी पर कभी अपने रहे बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी के लेख भारी पड़े हैं. शल्य से लेकर भीष्म पितामाह से लेकर दुशासन दुर्योधन जैसी उपमाओं और तुलनाओं से बात आगे बढ़ चुकी है. यह बात मोदी समझ गये हैं.
रिजर्व बैंक आर्थिक हालात की गमगीन तस्वीर पेश करता है उसी दिन मोदी एक सम्मेलन में आंकड़ों के साथ पहुंचते और तालियां बजवाने में भी कामयाब हो जाते हैं लेकिन वह खुद जानते हैं कि आंकड़ों से न नौकरी मिलती है और न ही पेट भरता है. जब मनमोहनसिंह सरकार के समय विकास दर आठ पार कर गयी थी तब विपक्ष में बैठी बीजेपी ही कहा करती थी कि आंकड़ों से पेट नहीं भरता. अब जब वह सत्ता में है तो कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों के साथ साथ बीजेपी के ही दो नेता यही राग अलाप रहे हैं. यह राजनीति है. छवि बनाने और बिगाड़ने की राजनीति है. इस छवि के खेल को मोदी और शाह से ज्यादा और कौन बेहतर ढंग से समझ सकता है. लिहाजा ताबड़तोड़ अंदाज में सारी आलोचना का मुंह तोड़ जवाब देने का फैसला किया लगता है.
वही दूसरी ओर
शिवसेना ने सोमवार को आरोप लगाया कि केंद्र ने गुजरात विधानसभा चुनाव में मतदाताओं को लुभाने के लिए सामान्य इस्तेमाल की कुछ चीजों पर जीएसटी की दरों में कम किया है. पार्टी ने यह भी दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब वह इस समान टैक्स सिस्टम को लागू करने के खिलाफ थे. गुजरात में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होना है.
शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में प्रकाशित एक संपादकीय में कहा गया है, ‘‘ देश की गर्दन पर नोटबंदी की कुल्हाड़ी चलने के बाद से अर्थव्यवस्था कभी उबर नहीं सकी. जीएसटी का हथियार सुस्त अर्थव्यवस्था के खिलाफ इस्तेमाल किया गया और महंगाई बढ़ गई.’’ इसमें कहा गया है, ‘‘ जीएसटी के दरों में कटौती करके सरकार अपने अंहकार को एक तरफ रखकर झुक गई. यह लोगों की जीत है.’’
संपादकीय में कहा गया है, ‘‘ (जीएसटी के लागू होने के बाद) लोगों का गुस्सा आग में तब्दील हो गया. जीएसटी की दरों को कम करने का फैसला इसलिए लिया ताकि गुजरात चुनाव में इसकी भारी कीमत नहीं चुकानी पड़े.’’ एनडीए की सहयोगी ने कहा कि गैर ब्रांडेड खाखरा पर जीएसटी दर 12 से घटाकर पांच प्रतिशत खासतौर पर गुजरात चुनाव को ध्यान में रखते हुए लिया गया है.
शिवसेना ने कहा, ‘‘सूरत, राजकोट और अहमदाबाद में छोटे व्यापारी जीएसटी के खिलाफ सड़कों पर उतर आए जिसने गुजरात में सरकार विरोधी माहौल बना दिया. इस वजह से सरकार को दरों में कटौती करने पर मजबूर होना पड़ा.’’ पार्टी ने दावा किया कि मोदी का शुरू से मानना था कि अगर जीएसटी को लागू किया गया तो मंहगाई बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था सुस्त होगी और गुजरात के मुख्यमंत्री रहते उन्होंने जोरदार तरीके से इस कर व्यवस्था का विरोध किया था.
शिवसेना ने कहा, ‘‘ लेकिन सत्ता में आने के बाद बीजेपी ने जीएसटी को लागू कर दिया. इस प्रकार मोदी अपनी बात से पीछे हटे. नोटबंदी और जीएसटी जैसे फैसलों ने अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया.’’