Happy National Doctors Day 1 July : & Top National News

आजीवन अविवाहित रहने वाले डॉ. रॉय ने साबित किया कि किस तरह डॉक्टर भगवान का रूप है। भारत में बेशक डॉक्टर्स-डे एक जुलाई को मनाया जाता है लेकिन अमेरिका में यह 30 मार्च को मनाया जाता है। अन्य देशों में भी यह अलग-अलग दिवस पर मनाया जाता है। Execlusive Article: Presented by www.himalayauk.org (Leading Web & Print Media) by CHANDRA SHEKHAR JOSHI- EDITOR IN CHIEF publish at Dehradun & Haridwar

राष्ट्रीय डॉक्टरों का दिन चिकित्सकों के व्यक्तिगत जीवन और समुदायों में योगदान को मान्यता देने के लिए मनाया जाता है। दिन को चिह्नित करने के लिए उपयोग की जाने वाली स्मरणोत्सव की घटना के आधार पर तिथि राष्ट्र से राष्ट्र में भिन्न हो सकती है। कुछ देशों में दिन को छुट्टी के रूप में चिह्नित किया जाता है। डॉक्टर्स डे क्यों मनाया जाता है और क्यों डॉक्टर को मानते हैं भगवान National Doctors Day 2019 India (डॉक्टर्स डे 2019) : डॉक्टर्स डे कब है 2019 में (When Is Doctor’s Day 2019) अगर आप नहीं जानते तो बता दें कि हर साल 1 जुलाई (1 July) को पूरे भारत में डॉक्टर्स डे मनाया जाता है। जरा एक पल ठहर कर इस बात की कल्पना कीजिए कि देश में किसी भी बीमारी का इलाज करने के लिए कोई डॉक्टर नहीं है, तब क्या होगा? सिर्फ इस बात की कल्पना से ही आप यह सोचकर भयभीत हो जाएंगे कि आपकी छोटी या बड़ी किसी भी बीमारी का अब कोई इलाज नहीं हो सकता। इस एक बात से ही डॉक्टर्स की इम्पोर्टेंस का पता चलता है। 

र साल 1 जुलाई (1 July) को पूरे भारत में डॉक्टर्स डे मनाया जाता है। ऐसा कोई भी इंसान नहीं होगा, जो डॉक्टर के पास कभी नहीं गया हो। कभी अपने रोग का उपचार तो कभी अपनों के जीवन को बचाने के लिए हम डॉक्टर की शरण में जाते ही हैं। वे भी भगवान का प्रतिरूप बनकर हमारा जीवन बचाने में पूरी शिद्दत से जुट जाते हैं। इसलिए केवल कुछ अप्रिय घटनाओं के आधार पर डॉक्टर की महत्ता को कमतर नहीं आंका जा सकता है। जरा एक पल ठहर कर इस बात की कल्पना कीजिए कि देश में किसी भी बीमारी का इलाज करने के लिए कोई डॉक्टर नहीं है, तब क्या होगा? सिर्फ इस बात की कल्पना से ही आप यह सोचकर भयभीत हो जाएंगे कि आपकी छोटी या बड़ी किसी भी बीमारी का अब कोई इलाज नहीं हो सकता। इस एक बात से ही डॉक्टर्स की इम्पोर्टेंस का पता चलता है।

डॉक्टर के ईश्वरी रूप को सम्मान देने के लिए वर्ष 1991 में भारत सरकार ने डॉक्टर्स-डे मनाने की शुरुआत की। जिस शख्स के नाम पर यह दिवस मनाया जाता है, वह भारत के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. विधानचंद्र रॉय थे। यह भी एक अनोखा संयोग है कि डॉ. विधान का जन्म एक जुलाई 1882 को बांकीपोरी, पटना में हुआ और एक जुलाई, 1962 को कोलकाता में उनका निधन हो गया। उन्हें सम्मान और श्रद्धांजलि देने कि लिए ही हम डॉक्टर्स डे मनाते हैं।

उन्हें सम्मान देने की पर्याप्त वजहें भी मौजूद हैं। वह चिकित्सक होने के साथ-साथ, शिक्षाशास्त्री, स्वतंत्रता सेनानी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेता और आजाद भारत में पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री भी रहे। पटना विश्वविद्यालय से गणित में स्नातक परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने कोलकाता मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लिया। 1911 में उन्होंने भारत में चिकित्सकीय जीवन की शुरुआत की। इसके बाद वह कोलकाता मेडिकल कॉलेज में व्याख्याता बन गए। वहां से वह कैंपबैल मेडिकल स्कूल और फिर कारमिकेल मेडिकल कॉलेज गए। डॉ. रॉय के बारे में कहा जाता था कि वह रोगी का चेहरा देखकर ही रोग और उसका उपचार बता देते थे। अपनी योग्यताओं के चलते ही 1909 में वह रॉयल सोसायटी ऑफ मेडिसिन, 1925 में रॉयल सोसायटी ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन और 1940 में अमेरिकन सोसायटी ऑफ चेस्ट फिजिशियन के फैलो चुने गए।

चिकित्सक के रूप में उन्होंने पर्याप्त धन और यश अर्जित किया और जनहित कार्यों में उसे खर्च किया। उनके मुख्य कामों में आम आदमियों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं का मुहैया कराना, कोलकाता में मेडिकल कॉलेज की स्थापना, जाधवपुर टीबी हॉस्पिटल, चितरंजन सेवा सदन, कमला नेहरू हॉस्पिटल, विक्टोरिया इंस्टीट्यूशन और चितरंजन कैंसर अस्पताल की स्थापना प्रमुख हैं। उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया। आजीवन अविवाहित रहने वाले डॉ. रॉय ने साबित किया कि किस तरह डॉक्टर भगवान का रूप है। भारत में बेशक डॉक्टर्स-डे एक जुलाई को मनाया जाता है लेकिन अमेरिका में यह 30 मार्च को मनाया जाता है। अन्य देशों में भी यह अलग-अलग दिवस पर मनाया जाता है। इसलिए मानते हैं भगवान अगर डॉक्टरों को भगवान का दर्जा दिया जाता है तो यह भी अकारण नहीं है। स्वस्थ मस्तिष्क से अब जरा यह सोचिए कि जीवन में कब-कब डॉक्टरों ने आपको, आपके परिजनों को, बच्चों को, माता-पिता को बीमारियों से बचाया और आपने डॉक्टर में भगवान देखा। शायद ही कोई ऐसा शख्स होगा, जिसके पास डॉक्टरों के इस रूप की कोई याद न हो। यानी आपके अब तक के जीवन में कोई न कोई ऐसी घटना जरूर घटी होगी, जब आपको लगा होगा कि अगर डॉक्टर न होता तो आप भी न होते। दरअसल, यह डॉक्टरों और समाज का आपसी रिश्ता है, विश्वास का रिश्ता, उम्मीद का रिश्ता। जब आपके घर के किसी शख्स को डॉक्टर ऑपरेशन थिएटर में ले जा रहे होते हैं, आईसीयू में ले जा रहे होते हैं या डिलीवरी रूम में किसी महिला को ले जा रहे होते हैं तो आप ईश्वर के साथ-साथ डॉक्टर को उम्मीद से देखते हैं। अधिकांश मामलों में डॉक्टर अपने काम में सफल लौटते हैं। निजी रूप से चल रहे क्लीनिक्स में भी आप सुबह शाम डॉक्टरों के ही पास जाते हैं और वहां से स्वस्थ होकर लौटते हैं। डगमगाया थोड़ा विश्वास बीमारी की स्थिति में यदि पांच मिनट भी आपको डॉक्टर न मिले तो आपकी बेचैनी बढ़ जाती है। लेकिन इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि पिछले कुछ सालों में अनेक ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिन्होंने आम आदमी का डॉक्टरों पर से विश्वास थोड़ा डगमगाया है। आपको लगा है कि अब डॉक्टरों पर पहले की तरह विश्वास नहीं किया जा सकता, अब डॉक्टरों में ईमानदारी नहीं रही, वे पूरी तरह व्यावसायिक हो गए हैं, अब वह सब कुछ अधिक से अधिक पैसा कमाने के लिए करते हैं। यह बात कुछ हद तक सच भी हो सकती है। लेकिन इस पूरे सच को समझने के लिए हमें समाज में उन मूल्यों की ओर देखना होगा, जो पिछले कुछ सालों में लगातार तेजी से फैले हैं। समाज में पैसे का महत्व बढ़ा है, इंसान के आचरण का ग्राफ नीचे की ओर जा रहा है, आपसी रिश्ते नातों में भी पहले जैसी आत्मीयता नहीं रही, लगभग हर पेशे में बेइमानियां बढ़ रही हैं। क्या अब आपको पहले जैसे अध्यापक मिलेंगे, क्या वकील, जज और राजनेताओं का व्यवहार नैतिक रह गया है? क्या ये सब पैसे के लिए ही कुछ भी करने को तैयार नहीं रहते? जब समाज में हर पेशे और हर वर्ग में मूल्यों का ह्रास हो रहा है तो यह कैसे संभव है कि डॉक्टर इन से बचा रहे। जाहिर है इस सारी नकारात्मकता का थोड़ा बहुत असर डॉक्टरों पर भी पड़ा होगा। बावजूद इसके डॉक्टरों के मूल चरित्र में कहीं कोई कमी नहीं आई है। डॉक्टरों पर है अत्यधिक दबाव डॉक्टरों पर काम का कितना दबाव रहता है, इसे समझना भी जरूरी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय मानकों के अनुसार प्रति एक हजार व्यक्तियों पर एक डॉक्टर होना चाहिए। जबकि देश में 10,189 लोगों पर एक सरकारी डॉक्टर है। इस तरह भारत में छह लाख डॉक्टरों की कमी है और लगभग 20 लाख नर्सों की कमी है। बिहार जैसे राज्यों में तो स्थिति और भी खराब है, यहां 28,391 लोगों पर एक एलौपैथिक डॉक्टर उपलब्ध है। उत्तर प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में भी हालात अच्छे नहीं हैं। इस पर विडंबना यह है कि स्वच्छ पेयजल का अभाव, बढ़ता प्रदूषण और आधुनिक जीवनशैली लगातार बीमारियों में इजाफा कर रही है। कैंसर, मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों के रोगी हर साल तेजी से बढ़ रहे हैं। सुधरे स्वास्थ्य व्यवस्था 21वीं सदी के दो दशक गुजरने के बाद भी देश में झोलाछाप डॉक्टरों की संख्या बढ़ रही है। आज भी हम रोटी कपड़ा और मकान जैसी बुनियादी जरूरतों पर ही अटके हैं। ऐसे में स्वास्थ्य हमारी प्राथमिकता में आज भी बहुत नीचे है और शायद यह भी एक बड़ी वजह है कि हम स्वास्थ्य पर अपनी आय का बहुत कम प्रतिशत खर्च करते हैं। इसलिए हमें सारी खामियां डॉक्टरों में ही दिखाई देती हैं। जबकि मूल बात यह है कि हमारा स्वास्थ्य सुविधाओं को मूल ढांचा ही बेहद कमजोर है। सारा बोझ घूम फिर कर डॉक्टरों पर ही डाल दिया जाता है। सरकारों को स्वास्थ्य सेवाओं के लिए बुनियादी ढांचे में बदलाव करना चाहिए, तभी डॉक्टर भी अच्छे ढंग से अपना कार्य कर सकेंगे। डॉ. विधानचंद्र रॉय और डॉ. कोटनिस जैसे डॉक्टरों को पैदा करने वाली यहां की मिट्टी इतनी बंजर नहीं हो सकती कि वह प्रतिबद्ध डॉक्टर न पैदा कर सके। एक जुलाई को हम डॉक्टर्स दिवस मनाते हैं। यह दिन याद दिलाता है कि हम धरती पर भगवान का दर्जा पाने वाले डॉक्टरों को सम्मान की नजर से देखें और उनके प्रति दरक रहे विश्वास को पुनः बहाल करें। और गर्व से कह सकें कि हमने ईश्वर को नहीं देखा हां, एक अच्छे डॉक्टर को अवश्य देखा है।

National Doctors’ Day is a day celebrated to recognize the contributions of physicians to individual lives and communities. The date may vary from nation to nation depending on the event of commemoration used to mark the day. In some nations the day is marked as a holiday. Although supposed to be celebrated by patients in and benefactors of the healthcare industry it is usually celebrated by health care organizations. Staff may organize a lunch for doctors to present the physicians with tokens of recognition. Historically, a card or red carnation may be sent to physicians and their spouses, along with a flower being placed on the graves of deceased physicians.

   National Doctor’s Day is observed every year on on 1st July in India to honour the legendary physician and the second Chief Minister of West Bengal, Dr. Bidhan Chandra Roy. On this day we acknowledge the contributions of doctor’s humane service to mankind. Why National Doctor’s Day is celebrated on 1st July? What is the hisdtory behind the celebration, its significance and objectives? Let us have a look! legendary physician and the second Chief Minister of West Bengal, Dr. Bidhan Chandra Roy.

National Doctor’s Day: History
National Doctor’s Day is observed to honour the legendary physician and West Bengal’s second Chief Minister, Dr. Bidhan Chandra Roy whose birth and death anniversary coincides in the same day. This day pay tribute to the whole medical profession and to highlight the value of doctors in our lives. In 1991, the National Doctor’s Day was established by the Central Government to be recognised and observed every year on 1 July to pay honour Dr. Bidhan Chandra Roy.

Dr.Bidhan Chandra Roy was born on 1 July, 1882 and also died on the same date in 1962. On 4 February, 1961, he was honoured with the India’s highest civilian award Bharat Ratna. In different countries the Doctor’s Day is observed on different dates. Like in the United States it is observed on 30 March, in Cuba on 3rd December and on 23 August in Iran.

Note: First time the Doctor’s Day was observed in March 1933 in the US state of Georgia. This day was celebrated that time by sending card to the physicians and placing flowers on the graves of dead doctors.


AND OTHER NATIONAL NEWS;

1 JULY 2019 HIGH LIGH; संघ के 6 नेताओं का ट्विटर पर एक्टिव होना एक नई शुरुआत @ बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए पहुंचे श्रद्धालुओं की सुरक्षा के मद्देनजर आईटीबीपी ने अपने 5000 से अधिक जवानों को अमरनाथ यात्रा मार्ग पर तैनात किया # गैस सिलेंडर की कीमतों में तेल कंपनियों की तरफ से बड़ी कमी # पूर्व सांसद जया प्रदा को मंच से तवायफ कहकर संबोधित किया

नई दिल्ली : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर एक्टिव हुए हैं. मोहन भागवत के ट्विटर पर एक्टिव होते ही हजारों लोगों ने उन्हें फोलो करना शुरू कर दिया है.  संघ प्रमुख का ट्विटर हैंडल @DrMohanBhagwat है.

6 लोगों ने ज्वाइन किया ट्विटर
आरएसएस प्रमुख के अलावा संघ के 6 नेताओं ने भी ट्विटर को ज्वाइन किया है. भागवत के अलावा भैयाजी जोशी, सुरेश सोनी, कृष्ण गोपाल, वी भागय्या, अरुण कुमार और अनिरुद्ध देशपांडे ने ट्विटर को ज्वाइन किया है. हालांकि आरएसएस के किसी नेता ने अभी तक कोई ट्वीट नहीं किया है. ट्विटर पर आने के बाद संघ चीफ भागवत केवल RSS को फॉलो कर रहे हैं जबकि करीब 7000 से ज्यादा लोग संघ प्रमुख को फॉलो करने वाले हैं. 

गौरतलब है कि अभी तक RSS के नेता इस तरह के सार्वजनिक प्लेटफॉर्म से दूरी बनाकर रखते आए थे. हालांकि मोहन भागवत समेत संघ के 6 नेताओं का ट्विटर पर एक्टिव होना एक नई शुरुआत के तौर पर देखा जा रहा है.

(2) बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए पहुंचे श्रद्धालुओं की सुरक्षा के मद्देनजर आईटीबीपी ने अपने 5000 से अधिक जवानों को अमरनाथ यात्रा मार्ग पर तैनात किया

नई दिल्‍ली: बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए पहुंचे श्रद्धालुओं की सुरक्षा के मद्देनजर आईटीबीपी ने अपने 5000 से अधिक जवानों को अमरनाथ यात्रा मार्ग पर तैनात किया है. इस बार, श्रद्धालुओं तक मेडिकल हेल्‍प पहुंचाने के लिए आईटीबीपी के सभी जवानों कोबेसिक पैरा मेडिकल ट्रेनिंग दी गई है. इसके अलावा, अमरनाथ यात्रा मार्ग पर तैनात सभी जवानों को मेडिकट किट के साथ एक ऑक्‍सीजन सिलेंडर भी उपलब्‍ध कराया गया है. जिससे पर्वतीय क्षेत्र के अधिक ऊंचाई वाले इलाकों में ऑक्‍सीजन की कमी होने पर श्रद्धालुओं को तत्‍काल मेडिकल हेल्‍प पहुंचाई जा सके. 

आईटीबीपी के वरिष्‍ठ अधिकारी के अनुसार, आईटीबीपी के जवानों को मुख्‍यत: पर्वतीय क्षेत्र के अधिक ऊंचाई वाले स्‍थानों में तैनात किया गया है. उनकी तैनाती बालटाल बेस कैंप से लेकर पवित्र बाबा बर्फानी की गुफा तक की गई है. उन्‍होंने बताया कि यात्रा मार्ग पर तैनात आईटीबीपी के जवानों को मुख्‍यत: तीन जिम्‍मेदारियां दी गई हैं. जिसमें पहली जिम्‍मेदारी यात्रा मार्ग को सुरक्षित करना है. इस जिम्‍मेदारी के तहत, आईटीबीपी की रोड ओपनिंग पार्टी (आरओपी) को यात्रा मार्ग पर तैनात किया गया है. ये आरओपी श्रद्धालुओं के पहुंचने से पहले यात्रा मार्ग की तलाशी लेते हैं. इस तलाशी अभियान के दौरान सड़क के इर्द गिर्द स्थित पहाड़ी स्‍थानों के साल नदी-नालों पर बने पुल की जांच की जा रही है.  उन्‍होंने बताया कि आईटीबीपी को दूसरी बड़ी जिम्‍मेदारी, श्रद्धालुओं को मेडिकल हेल्‍प पहुंचाना है. जिसके तहत,  यात्रा मार्ग पर आईटीबीपी ने एक से दो बेड वाले मेडिकल इंस्‍पेक्‍शन सेंटर बनाए हैं. जहां पर आवश्‍यकता अनुसार, दवाएं, मेडिकल किट सहित अन्‍य स‍हूलियतें उपलब्‍ध कराई गई हैं. इसके अलावा, गंभीर रूप से बीमार होने वाले या हार्ट अटैक से पीडि़त श्रद्धालुओं को हेलीपैड तक पहुंचाने या निकटतम स्‍वास्‍थ्‍य केंद्र तक पहुंचाने की जिम्‍मेदारी आईटीबीपी के जवान निभा रहे हैं. उन्‍होंने बताया कि इस बार आईटीबीपी के जवानों को विशेषतौर पर प्राथ‍मिक चिकित्‍सा के लिए ट्रेंड किया गया है. इन जवानों को प्‍लस साइन वाली ड्रेस के साथ अमरनाथ यात्रा मार्ग में तैनात किया गया है. 

आईटीबीपी के वरिष्‍ठ अधिकारी ने बताया कि बल सदस्‍यों को तीसरी जिम्‍मेदारी किसी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदा से निपटते हुए श्रद्धालुओं को सुरक्षित स्‍थान तक पहुंचाना है. उन्‍होंने बताया कि आईटीबीपी के लगभग सभी जवान पर्वतीय क्षेत्र में उत्‍पन्‍न होने वाली परिस्थितियों के जानकार है, बल्कि उन्‍हें यह भी पता है कि इन परिस्थितियों से कैसे निपटना है. लिहाजा, आईटीबीपी की डिजास्‍टर मैनेजमेंट टीम को किसी भी आपात परिस्थिति से निपटने के लिए यात्रा मार्ग पर तैनात किया गया है. 

(3)

गैस सिलेंडर की कीमतों में तेल कंपनियों की तरफ से बड़ी कमी की गई है. बिना सब्सिडी वाले घरेलू एलपीजी सिलेंडर का दाम 100.50 रुपये प्रति सिलेंडर घट गया है. सिलेंडर की कीमत में यह कटौती 1 जुलाई से प्रभावी होगी.

नई दिल्ली: गैस सिलेंडर की कीमतों में तेल कंपनियों की तरफ से बड़ी कमी की गई है. बिना सब्सिडी वाले घरेलू एलपीजी सिलेंडर का दाम 100.50 रुपये प्रति सिलेंडर घट गया है. सिलेंडर की कीमत में यह कटौती 1 जुलाई से प्रभावी होगी. अब दिल्ली में घरेलू इस्तेमाल का सिलेंडर 637 रुपये में उपलब्ध होगा. तेल कंपनियों की तरफ से यह जानकारी दी गई. बिना सब्सिडी वाले घरेलू सिलेंडर के बाजार मूल्य में कमी आने के साथ ही सब्सिडीयुक्त घरेलू सिलेंडर के लिये भी रिफिल लेते समय 100.50 रुपये कम देने होंगे.

अब 637 रुपये मिलेगी सब्सिडी
सब्सिडीयुक्त सिलेंडर के घरेलू उपभोक्ताओं को एक जुलाई से रिफिल प्राप्त होने पर 737.50 रुपये के बजाय 637 रुपये का भुगतान करना होगा. सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन की तरफ से रविवार को जारी की गई विज्ञप्ति में ही यह जानकारी दी गई. इसमें कहा गया है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम घटने और डॉलर-रुपया विनिमय दर में आये बदलाव के प्रभाव स्वरूप एलपीजी सिलेंडर (14.2 किलो) के दाम में कमी आई है. नई दर 1 जुलाई से प्रभावी होगी.

सब्सिडीयुक्त रसोई गैस सिलेंडर के लिये उपभोक्ताओं को रिफिल लेते समय बाजार मूल्य पर भुगतान करना होता है. उसके बाद सब्सिडी राशि उपभोक्ता के बैंक खाते में डाल दी जाती है. उपभोक्ताओं को एक साल में 12 सिलेंडर सब्सिडी पर मिलते हैं. एलपीजी सिलेंडर के मूल्य में आई ताजा गिरावट के बाद उपभोक्ता को 142.65 रुपये प्रति सिलेंडर की सब्सिडी राशि मिलने पर जुलाई 2019 में सिलेंडर की प्रभावी दर 494.35 रुपये बैठेगी.

(4) (सपा) सांसद एसटी हसन का बयान या प्रदा पर अभद्र टिप्पणी

उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से समाजवादी पार्टी (सपा) सांसद एसटी हसन का विवादित बयान सामने आया है. उन्होंने इशारों इशारों में जया प्रदा पर अभद्र टिप्पणी की है. एसटी हसन ने इशारों में रामपुर की पूर्व सांसद जया प्रदा को मंच से तवायफ कहकर संबोधित किया है. मंच पर रामपुर से सपा सांसद आज़म खान सहित कई सपा विधायक भी थे. मुस्लिम डिग्री कॉलेज में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने यह बात कही.

मुरादाबाद के मुस्लिम कॉलेज में आयोजित एक निजी कार्यक्रम में पहुंचे मुरादाबाद के सांसद एसटी हसन ने सभी मर्यादाओं को तोड़ते हुए रामपुर की पूर्व सांसद और फ़िल्म अभिनेत्री जया प्रदा पर बेहद अशोभनीय और अभद्र टिपणी करते हुए उन्हें ‘तवायफ’ कहकर संबोधित किया.

दरअसल, एसटी हसन रामपुर सांसद आज़म खान की अच्छाईयों का बखान कर रहे थे. मंच पर आजम के बेटे अब्दुल्ला आजम भी मौजूद थे. इसके अलावा यहां सपा के और भी विधायक मौजूद थे.  यहां आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव में जया प्रदा ने बीजेपी से सपा के आजम खान के खिलाफ ताल ठोकी थी. चुनाव प्रचार के दौरान आजम खान ने जया प्रदा को लेकर आपत्तिजनक बयान दिया था. आजम ने जया के आंतरिक कपड़ों पर कमेंट किया था. इसके बाद आजम के बेटे ने भी जया पर अभद्र टिप्पणी की थी.

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