जी रया जागि रया- आकाश जस उच्च, धरती जस चाकव है जया
कूर्माचल परिषद देहरादून ने कर्क संक्रांति को मनाये जाने वाले कुर्माचल के प्रमुख त्यौहार हरेला की शुभकामना देते हुए कहा हैै कि सिल पिसी भात खाया जाँठि टेकि भैर जया; दूब जस फैलि जया… कूर्माचल परिषद के केन्द्रीय अध्यक्ष आरएस परिहार, केन्द्रीय महासचिव- चन्द्रशेखर जोशी, कार्यकारी अध्यक्ष गिरीश भटट, कोषाध्यक्ष- वीरेन्द्र काण्डपाल, उमेश कापडी, शेखर चन्द्र जोशी, लक्ष्मी रजवार, कमल रजवार, उत्तम अधिकारी, राजेश पाण्डे, वन्दना बिष्ट, प्रकाश लोशाली, गोविन्द पाण्डे, जीवन सिंह बिष्ट, हरीश चन्द्र शाह, उमा जोशी, सोबन सिंह, सीपी जोशी, कमल पाण्डे, बबिता लोहनी, सुषमा मनराल, सरोज पोखरियाल, ललित जोशी आदि तमाम पदाधिकारियों ने हरेला की शुभकामनायें प्रदेशवासियों, देशवासियों को दी है, वही
मुख्यमंत्री हरीश रावत ने प्रदेशवासियों को हरेला पर्व की बधाई दी है। उन्होने कहा कि हरेला के अवसर पर अधिक से अधिक वृक्षारोपण कर हम पर्यावरण को संरक्षित करने में मददगार हो सकते है। इस वर्ष प्रदेश में एक माह तक हरेला, झूमेलो व घी संग्रांद का पर्व आयोजित किया जायेगा। इससे प्रकृति व पर्यावरण को बचाने तथा हमारे स्थानीय खाद्यानों को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी। उन्होने कहा कि हरेला व झूमेलो के माध्यम से प्रकृति के अभिनन्दन की परम्परा को हम आगे बढ़ा रहे है ताकि हमारी भावी पीढ़ी अपनी परम्पराओं से जुड़ी रहे। उन्होने कहा कि उत्तराखण्ड की लोक संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन की दिशा में हमारा प्रयास निरन्तर जारी है। राज्य के लोक उत्सवो व लोक कलाओं के संर्वधन की दिशा में भी प्रभावी कदम उठाये जा रहे हैं।
मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि हमारे पुरखों ने बरसों पहले कष्टों के बीच भी प्रकृति की वंदना के पर्व मनाने की परम्परा प्रारम्भ की। वृक्षारोपण के प्रति राज्य सरकार की पहल को लोगों ने खुद अभियान के रूप में लिया है। जो सराहनीय है। मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि हमारा यह अभियान केवल पेड़ लगाने का ही नहीं है बल्कि इसका आर्थिक व स्वास्थ्य पक्ष भी है। ‘मेरा पेड़ मेरा धन’ योजना में हम उन पेड़ों को लगाने के लिए प्रोत्साहन राशि दे रहे हैं जो कि लोगों की आजीविका से जुड़े हों। हम चारा प्रजाति व फल वाले वृक्ष लगाए जाने पर जोर दे रहे हैं, ताकि वे आर्थिकी के भी आधार बन सके।(File photo) www.himalayauk.org (Newsportal)
कमल रजवार जी पूर्व महासचिव ने हरेला के बारे में विस्तार से बताया कि-
उत्तराखंड में मनाये जाने वाले त्यौहारों में एक प्रमुख त्यौहार है हरेला यह कर्क संक्रांति को मनाया जाता है। वैसे यह त्यौहार हर वर्ष सोलह जुलाई को होता है।पर कभी कभी इसमें एक दिन का अंतर हो जाता है। इस पर्व के लिये आठ दस दिन पहले घरों में पूजा स्थान में किसी जगह या छोटी डलियों में मिट्टी बिछा कर सात प्रकार के बीज जैसे- गेंहूँ, जौ, मूँग, उरद, भुट्टा, गहत, सरसों आदि बोते हैं और नौ दिनों तक उसमें जल आदि डालते हैं। बीज अंकुरित हो बढ़ने लगते हैं। हर दिन सांकेतिक रूप से इनकी गुड़ाई भी की जाती है हरेले के दिन कटाई। यह सब घर के बड़े बुज़ुर्ग या पंडित करते हैं। पूजा नैवेद्य आरती का विधान भी होता है। कई तरह के पकवान बनते हैं। इन हरे-पीले रंग के तिनकों को देवताओं को अर्पित करने के बाद घर के सभी लोगों के सर पर या कान के ऊपर रखा जाता है घर के दरवाजों के दोनों ओर या ऊपर भी गोबर से इन तिनकों को सजाया जाता है। कुँवारी बेटियां बड़े लोगो को पिठ्या (रोली) अक्षत से टीका करती हैं और भेंट स्वरुप कुछ रुपये पाती हैं। बड़े लोग अपने से छोटे लोगों को इस प्रकार आशीर्वाद देते हैं।
जी रया जागि रया
आकाश जस उच्च, धरती जस चाकव है जया
स्यावै क जस बुद्धि, सूरज जस तराण है जौ
सिल पिसी भात खाया जाँठि टेकि भैर जया
दूब जस फैलि जया…
दीर्घायु, बुद्धिमान और शक्तिमान होने का आशीर्वाद और शुभकामना से ओतप्रोत इस गीत का अर्थ है- जीते रहो जागृत रहो। आकाश जैसी ऊँचाई, धरती जैसा विस्तार, सियार की सी बुद्धि, सूर्य जैसी शक्ति प्राप्त करो। आयु इतनी दीर्घ हो कि चावल भी सिल में पीस के खाएँ और बाहर जाने को लाठी का सहारा लो,दूब की तरह फैलो. हरेले के दिन पंडित भी अपने यजमानों के घरों में पूजा आदि करते हैं और सभी लोगो के सर पर हरेले के तिनकों को रखकर आशीर्वाद देते हैं। लोग परिवार के उन लोगों को जो दूर गए हैं या रोज़गार के कारण दूरस्थ हो गए हैं उन्हें भी पत्रद्वारा हरेले का आशीष भेजते हैं.