हेमकुंट साहिब ;हिमालय दुर्गम क्षेत्र में अदभूत प्रसिद्ध तीर्थ स्थान
अमृत का तालाब भी है यहां- #विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी भी है यहां- भारत और अन्य देशों के वैज्ञानिक इनफूलों और जड़ी बूटियों पर उपयोगी दवाएं बनाने के लिए काम कर रहे है # Execlusive: www.himalayauk.org (Web & print Media)
हेमकुंट साहिब चमोली जिला, उत्तराखंड, भारत में स्थित सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। यह हिमालय में 4632 मीटर (15,200 फुट) की ऊँचाई पर एक बर्फ़ीली झील किनारे सात पहाड़ों के बीच स्थित है। इन सात पहाड़ों पर निशान साहिब झूलते हैं। इस तक ऋषिकेश-बद्रीनाथ साँस-रास्ता पर पड़ते गोबिन्दघाट से केवल पैदल चढ़ाई के द्वारा ही पहुँचा जा सकता है। हेमकुंड संस्कृत (“बर्फ़”) हेम और कुंड (“कटोरा”) से व्युत्पन्न नाम है । हेमकुंट साहिब गुरुद्वारा एक छोटे से स्टार के आकार का है तथा सिखों के अंतिम गुरू, गुरु गोबिंद सिंह जी, को समर्पित है। श्री हेमकुंट साहिब गुरूद्वारा के पास ही एक सरोवर है। इस पवित्र जगह को अमृतसरोवर (अमृत का तालाब) कहा जाता है। यह सरोवर लगभग 400 गज लंबा और 200 गज चौड़ा है। यह चारों तरफ़ से हिमालय की सात चोटियों से घिरा हुआ है। इन चोटियों का रंग वायुमंडलीय स्थितियों के अनुसार अपने आप बदल जाता है। कुछ समय वे बर्फ़ सी सफेद,कुछ समय सुनहरे रंग की, कभी लाल रंग की और कभी-कभी भूरे नीले रंग की दिखती हैं।
यहाँ गुरुद्वारा श्री हेमकुंट साहिब सुशोभित है। इस स्थान का उल्लेख गुरु गोबिंद सिंह द्वारा रचित दसम ग्रंथ में आता है। इस कारण यह उन लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है जो दसम ग्रंथ में विश्वास रखते हैं।
यहाँ पहले एक मंदिर था जिसका निर्माण भगवान राम के अनुज लक्ष्मण ने करवाया था। सिखों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह ने यहाँ पूजा अर्चना की थी। बाद में इसे गुरूद्वारा धोषित कर दिया गया। इस दर्शनीय तीर्थ में चारों ओर से बर्फ़ की ऊँची चोटियों का प्रतिबिम्ब विशालकाय झील में अत्यन्त मनोरम एवं रोमांच से परिपूर्ण लगता है। इसी झील में हाथी पर्वत और सप्त ऋषि पर्वत श्रृंखलाओं से पानी आता है। एक छोटी जलधारा इस झील से निकलती है जिसे हिमगंगा कहते हैं। झील के किनारे स्थित लक्ष्मण मंदिर भी अत्यन्त दर्शनीय है। अत्यधिक ऊँचाई पर होने के कारण वर्ष में लगभग ७ महीने यहाँ झील बर्फ में जम जाती है। फूलों की घाटी यहाँ का निकटतम पर्यटन स्थल है।
बदरीनाथ हाईवे स्थित गोविंदघाट, हेमकुंड साहिब का प्रवेश द्वार है। गोबिंद धाम और हेमकुंड साहिब के बीच दूरी लगभग सात किलोमीटर है।
हेमकुंड साहिब समुद्र स्तर से 4329 मीटर की ऊचाँई पर स्थित है। सिखों के पवित्र तीर्थ, हेमकुंट साहिब और झील चारों तरफ़ बर्फ से ढकी सात पहाड़ियों से घिरे हुए है। झील के चट्टानी किनारे वर्ष के अधिकांश समय बर्फ के साथ ढके रहते है, लेकिन जब बर्फ पिघल जाती है,तोयहाँ पौराणिक पीले व हरे, ब्रह्मा कमल (परमेश्वर के फूल) चट्टानों पर उग आते हैं ।यह स्थान अपनी अदम्य सुंदरता के लिये जाना जाता है और यह सिखों के सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। यह पवित्र स्थल गुरु गोबिंद सिंह जी के यहाँ आने से पहले भी तीर्थ माना गया है।इस पवित्र स्थल को पहले लोकपाल , जिसका अर्थ है ‘विश्व के रक्षक’ कहा जाता था। इस जगह को रामायण के समय से मौजूद माना गया है। लोकपाल को लक्ष्मण के साथ संबद्ध किया गया है यह कहा जाता है कि लोकपाल वही जगह है जहां श्री लक्ष्मण जी, अपनी पसंदीदाजगह होने के कारण, ध्यान पर बैठ गये थे। इस जगह को सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह के साथ भी संबद्ध किया गया है ऐसा कहा जाता है कि अपने पहले के अवतार में गोविन्द सिंह जी ध्यान के लिए यहॉ आये थे. गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपनी आत्मकथा ‘बिचित्र नाटक’में जगह के बारे में अपने अनुभव का इस तरह से उल्लेख किया है। समुद्र तल से 14210 फुट की ऊंचाई पर स्थित इस अमृत सरोवर की एक झलक पाने के लिए हम हेमकुंट साहिब गुरूद्वारा के पीछे की तरफ़ गये। हिमालय की चोटियों से घिरी झील लगभग पूरी तरह जमी हुई थी सिर्फ़ किनारों के पास ही पानी था और उस पानी के ऊपर भीबर्फ़ तैर रही थी । पुरा द्र्श्य इतना सुन्दर है कि उसे शब्दों में बयान करना बहुत मुश्किल है।
यहां से तीर्थयात्री आठ किमी दूर स्थित भ्यूंडार यात्रा पड़ाव में रात्रि विश्राम के लिए पहुंचते हैं। दूसरे दिन यहां से पुन: 11 किमी की दूरी तय कर हेमकुंड साहिब पहुंचते हैं। गुरुद्वारा गोविंद धाम से श्री हेमकुंट साहिब की ओर तीन किलोमीटर के बाद मुख्य रास्ता दो भागों में बंट जाता है। दांयी तरफ़ वाले रास्ते से आगे हेमकुंड साहिब की ओर चले जाते हैं तो बायीं तरफ़ वाला रास्ता विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटीकी ओर जाता है।
फूलों की घाटी : जब हम गुरुद्वारा गोविंद धाम से श्री हेमकुंट साहिब की ओर तीन किलोमीटर की यात्रा करते हैं तो आगे एक रास्ता बायीं तरफ़ विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी की ओर जाता है। सन 1982 को इसे राष्ट्रिय-उधान के रूप में घोषित किया है ।इस घाटी मेंहजारों किस्मों की और तरह तरह के रंग और खुशबू के फूल उगते हैं । इस दुनिया में ऐसी और कोई जगह नहीं है जहां इतनी ज्यादा विभिन्न किस्मों के फूल स्वाभाविक रूप से विकसित होते हों। इन फूलों का मानवता की सहायता के बिना हो जाना एक सुखद घटना है। इनफूलों का जीवन उनकी प्रजातियों के अनुसार रहता है. कुछ फूल, खिलने के चौबीस घंटे के भीतर ही मुरझा जातें हैं और कुछ महीनों के लिए खिले रहते हैं। यहाँ सिर्फ इन फूलो को देखना चाहिए, छूने की मनाई है, क्योकि जंगली प्रजाति होने के कारण कोई फूल जहरीला भी होसकता है। फूलों की घाटी एक हिमनदों का गलियारा है जो लंबाई में आठ किलोमीटर और चौड़ाई में दो किलोमीटर है. यह समुद्र के स्तर से ऊपर 3,500 मीटर से लगभग 4000 मीटर के ढलानों पर है. अपने नाम के अनुसार ही, घाटी में मानसून के मौसम के दौरान विभिन्न किस्मों केफूलों से कालीन बिछ जाता है. इस अनूठी पारिस्थिति में उगनेवाली कई प्रजातियों में से, हिमालय क्षेत्र की नीली अफीम, मानसून के दौरान खिलने वाली प्रिमुला और आर्किड की असामान्य किस्मे दर्शकों के बीच सबसे लोकप्रिय हैं। भारत और अन्य देशों के वैज्ञानिक इनफूलों और जड़ी बूटियों पर उपयोगी दवाएं बनाने के लिए काम कर रहे है।
इस फूलो की घाटी पर एक विदेशी महिला, मिस जोन्स ,जो लन्दन के शाही बागीचो की पर्यवेक्षक थी एक बार रानीखेत के पादरी की पत्नी मिसेस स्मिथ के साथ सन 1922 में भ्रमण करती हुई पहाड़ी पर चढकर इस घाटी में उतर आई थी , फूलों की इस घाटी पर वो इतनामोहित और मंत्रमुग्ध हो गयी थी कि उसने घाटी में फूलों का अध्ययन करने के लिए यहां रहने मन बना लिया। उसने प्रत्येक फूल का अध्ययन व विश्लेषण किया और सबको एक वनस्पति नाम दिया।उसने सभी फूलों की विशेषताओं का उल्लेख किया और फूलों का एकविश्वकोश तैयार किया। उसकी किताबों ने इस घाटी को विश्व प्रसिद्ध बना दिया। वह छह महीने के लिए इस घाटी में रुकी थी और उसे यह जगह इतनी पसंद आई की वो हर साल यहाँ आती रही । एक दिन उसका पैर यही फिसल गया जिसके कारण उसकी म्रृत्यु हो गई ।आजभी इस महिला की यहाँ समाधि बनी हुई है। उसकी समाधि इस घाटी का एक और अभिन्न अंग बन गयी है।
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