संसार के किसी पर्वत की जीवन कथा इतनी रहस्यमय न होगी जितनी हिमालय की
नेहरू जी ने यूपी के मुख्यमंत्री को कण्वाश्रम की खोज करने को कहा तो हैरत में पड गये थे वहां की जानकारी जब सामने आयी-:महादेवी वर्मा ने कहा है कि संसार के किसी पर्वत की जीवन कथा इतनी रहस्यमय न होगी जितनी हिमालय की है। उसकी हर चोटी, हर घाटी हमारे धर्म, दर्शन, काव्य से ही नहीं हमारे जीवन के सम्पूर्ण निश्रेयस से जुडी हुई है। हिमालय दिवस पर चन्द्रशेखर जोशी की विशेष प्रस्तुति- www.himalayauk.org (UK Leading Digial Newsportal & Daily Newspaper)
रेडिएशन से उच्च हिमालय क्षेत्र में तापमान बढ रहा है जिससे ग्लेशियर जोन सिमट रहे हैं। सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद् डॉ० चंडी प्रसाद भट्ट का कहना है कि ग्लेशियर प्वाइंटों के घटने का सबसे बुरा प्रभाव मानव जीवन पर पडा है। ग्लोबल वार्मिग के साथ ही आम आदमी ही इसके लिए जिम्मेदार भी है। पर्यटक श्रद्धालु मौसम के बदलते रुख पर हैरान है। कोटद्वार के समीप ऐतिहासिक स्थल कण्डवाश्रम से दुर्लभ प्रजाति की वनस्पति भी समाप्त हो गयी है। संस्कृतविदों का कहना है कि कण्डवाश्रम क्षेत्र से करीब दो दर्जन से अधिक दुर्लभ वनस्पति समय के साथ समाप्त हो गयी है।
आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने जब अपनी रुख यात्रा के दौरान कालीदास के चर्चित नाटक अभिज्ञान शाकुंतलम का मंचन देखा तब उन्हें पता लगा कि यह ऐतिहासिल स्थल भारत में ही है। तब उन्होंनें यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री सम्पूर्णानंद को कण्वाश्रम की खोज करने को कहा। उन्होंने ग्रंथों आदि का अध्ययन कर यह पता लगाया कि यह स्थल कोटद्वार से कुछ ही दूरी पर मालन नदी के तट पर स्थित है। महान ऋषि कण्व की इस तपस्थली पर शकुंलता और दुष्यंत का मिलन हुआ था और उनके प्रतापी पुत्र भरत की यह जन्मस्थली भी रहा है। कण्डवाश्रम में यहां कभी बेशकीमती वनस्पति का खजाना हुआ करता था जो संरक्षण के अभाव में लुप्त हो गयी।
संस्कृतविद् पूर्व प्राचार्य डा० लक्ष्मीचंद्र शास्त्री का कहना है कि कण्डवाश्रम में पायी जाने वाली करीब दो दर्जन से अधिक वनस्पति लुप्त हो गयी हैं। कण्डवाश्रम में सप्तपर्ण, माधवीलता मंडक, वन ज्योत्सना, पाटल, कमलनी, हिंगोटा समेत कई दुर्लभ प्रजातियों का भंडार था जिसका जिक्र अभिज्ञान शाकुंतलम में है। बहुत कम लोगों को पता होगा कि लोकसभा की नई अध्यक्ष मीरा कुमार की प्रिय पुस्तक महाकवि कालिदास की अभिज्ञान शाकुंतलम है। महादेवी वर्मा ने कहा है कि संसार के किसी पर्वत की जीवन कथा इतनी रहस्यमय न होगी जितनी हिमालय की है। उसकी हर चोटी, हर घाटी हमारे धर्म, दर्शन, काव्य से ही नहीं हमारे जीवन के सम्पूर्ण निश्रेयस से जुडी हुई है।
वहीं विख्यात पर्यावरणविद् सुंदर लाल बहुगुणा ने विस्तार से लिखा है कि वैश्विक तापमान वृद्धि का हिमालय पर पडने वाला प्रभाव स्पष्ट दिखाइ्रर् देने लगा है। हिमालय के पारिस्थितिकी तंत्र विशेषज्ञों की भविष्यवाणी है कि बर्फ २०३० में गोमुख ग्लेशियर पूर्णतया लुप्त हो जाएगा। दुनियां भर के लिए चिंता का सबक ग्लोबल वार्मिग उच्च हिमालयी क्षेत्र के लिए भी खतरा बना हुआ है। पिछले कुछ साल से हिमालय की ऊॅची चोटियों के इलाके में भी चढते पारे का असर दिखने लगा है। इसके चलते भूगर्भवेत्ताओं की पेशानी पर बल पड गये हैं। उनका मानना है कि अगर यही हाल रहा तो जलवायु चक्र के बदलाव के गंभीर परिणाम भुगतने पड सकते हैं। मौसम के बदलते रूख ने उत्तराखण्ड के पर्वतीय अंचलों की तस्वीर ही बदल कर रख दी है। अंतर्राष्ट्रीय सीमा रेखा से जुडे सीमान्त जनपद चमोली को ग्लेशियर जोन के नाम से जाना जाता है लेकिन इसकी यह पहचान धीरे-धीरे खोती जा रही है। क्षेत्र के अलकापुरी बांख, पिण्डारी ग्लेशियर, बदरी धाम से सटे नर और नारायण पर्वत श्रृंखलाओं में दिखने वाले ग्लेशियर विलुप्ति की कगार पर हैं। जनपद के उच्च हिमालयी इन दर्रो में ग्लेशियरों के सिमटने की गति तेजी से बढ रही है। इसके चलते सदानीरा रहने वाली नदियों पर भी बुरा असर पड रहा है। भूगर्भवेत्ता भी उच्च हिमालयी जोन में लगातार घटते ग्लेशियरों को चिंताजनक मानते हैं। उनका मानना है कि अगर हिमालय में यूं ही ग्लेशियर घटते रहे तो इसके दूरगामी परिणाम मानव जीवन को प्रभावित करने वाले होगें।