युग युग से है अपने पथ पर; देखो कैसा खड़ा हिमालय!
हिमालय एक पर्वत तन्त्र है जो भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया और तिब्बत से अलग करता है। यह पर्वत तन्त्र मुख्य रूप से तीन समानांतर श्रेणियों- महान हिमालय, मध्य हिमालय और शिवालिक से मिलकर बना है जो पश्चिम से पूर्व की ओर एक चाप की आकृति में लगभग 2400 कि॰मी॰ की लम्बाई में फैली हैं। इस चाप का उभार दक्षिण की ओर अर्थात उत्तरी भारत के मैदान की ओर है और केन्द्र तिब्बत के पठार की ओर। इन तीन मुख्य श्रेणियों के आलावा चौथी और सबसे उत्तरी श्रेणी को परा हिमालय या ट्रांस हिमालय कहा जाता है जिसमें कराकोरम तथा कैलाश श्रेणियाँ शामिल है। हिमालय पर्वत पाँच देशों की सीमाओं में फैला हैं। ये देश हैं- पाकिस्तान, भारत, नेपाल, भूटान और चीन।
इस रिपोर्ट के बाद दूसरी रिपोर्ट-
हिमालयायूके न्यूज पोर्टल के लिए मेरी विशेष रिपोर्ट- देवात्मा हिमालय का धार्मिक महत्व- चन्द्रशेखर जोशी सम्पादक
हिमालयन दिवस-2017 की तैयारियों को लेकर मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने सचिवालय में अधिकारियों के साथ बैठक की। देहरादून में होने वाले दो दिवसीय हिमालयी राज्यों के सम्मेलन में पलायन, जलवायु परिवर्तन एवं ग्रीन इंजीनियरिंग, बायोइकोनाॅमी, पर्यावरणीय सेवाएं तथा ग्रीन बोनस, केन्द्रीय योजनाओं का हिमालयी अनुकूलन एवं हिमालयी राज्यों में सहयोग आदि विषयों पर चर्चा होगी। इस सम्मेलन में हिमालयी राज्यों के मुख्यमंत्री, केन्द्रीय मंत्री एवं विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल होंगे। इस सम्मेलन में सभी हिमालयी राज्य एकजुट होंगे। सभी हिमालयी राज्यों की सामान्य समस्यायें उजागर होंगी। जिसे भारत सरकार के सामने रखा जायेगा। ताकि इन समस्याओं के समाधान के लिए ठोस नीति बन सके। सम्मेलन का उद्देश्य पर्वतीय क्षेत्रों के विकास को नई धारा से जोड़ना है जो हिमालयी पारिस्थितिकी के अनुरूप हो। क्लाइमेट चेंज के प्रभावों से मुक्त हो और पर्वतीय जनमानस के अनुकूल हो। उत्तराखण्ड जैसे हिमालयी राज्य जो पूरे देश को पर्यावरणीय सेवाएं देता है को कोई प्रतिकर मिले। बैठक में सभी राज्यों से विचार-विमर्श कर शीघ्र ही तिथि निर्धारित करते हुए आयोजन सम्बन्धी अन्य पहलुओं पर अन्तिम निर्णय लेने की बात हुई।
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हिमालय संस्कृत के हिम तथा आलय दो शब्दों से मिल कर बना है, जिसका शब्दार्थ बर्फ का घर होता है। यह ध्रुवीय क्षेत्रों के बाद पृथ्वी पर सबसे बड़ा हिमआवरण वाला क्षेत्र है। हिमालय और विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को भी कई नामों से जाना जाता है। नेपाल में इसे सगरमाथा (आकाश या स्वर्ग का भाल), संस्कृत में देवगिरी और तिब्बती में चोमोलुंगमा (पर्वतों की रानी) कहते हैं। हिमालय पर्वत की एक चोटी का नाम ‘बन्दरपुंछ’ है। यह चोटी उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल ज़िले में स्थित है। इसकी ऊँचाई 13,731 फुट है। इसे सुमेरु भी कहते हैं।
युग युग से है अपने पथ पर
देखो कैसा खड़ा हिमालय!
डिगता कभी न अपने प्रण से
रहता प्रण पर अड़ा हिमालय!
जो जो भी बाधाएँ आईं
उन सब से ही लड़ा हिमालय,
इसीलिए तो दुनिया भर में
हुआ सभी से बड़ा हिमालय!
अगर न करता काम कभी कुछ
रहता हरदम पड़ा हिमालय
तो भारत के शीश चमकता
नहीं मुकुट-सा जड़ा हिमालय!
खड़ा हिमालय बता रहा है
डरो न आँधी पानी में,
खड़े रहो अपने पथ पर
सब कठिनाई तूफ़ानी में!
डिगो न अपने प्रण से तो —
सब कुछ पा सकते हो प्यारे!
तुम भी ऊँचे हो सकते हो
छू सकते नभ के तारे!!
अचल रहा जो अपने पथ पर
लाख मुसीबत आने में,
मिली सफलता जग में उसको
जीने में मर जाने में!
सोहनलाल द्विवेदी
संसार की अधिकांश ऊँची पर्वत चोटियाँ हिमालय में ही स्थित हैं। विश्व के 100 सर्वोच्च शिखरों में हिमालय की अनेक चोटियाँ हैं। विश्व का सर्वोच्च शिखर माउंट एवरेस्ट हिमालय का ही एक शिखर है। हिमालय में 100 से ज्यादा पर्वत शिखर हैं जो 7200 मीटर से ऊँचे हैं। हिमालय के कुछ प्रमुख शिखरों में सबसे महत्वपूर्ण सागरमाथा हिमाल, अन्नपूर्णा, गणेय, लांगतंग, मानसलू, रॊलवालिंग, जुगल, गौरीशंकर, कुंभू, धौलागिरी और कंचनजंघा है।
हिमालय श्रेणी में 15 हजार से ज्यादा हिमनद हैं जो 12 हजार वर्ग किलॊमीटर में फैले हुए है। 72 किलोमीटर लंबा सियाचिन हिमनद विश्व का दूसरा सबसे लंबा हिमनद है। हिमालय की कुछ प्रमुख नदियों में शामिल हैं – सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र और यांगतेज।
भूनिर्माण के सिद्धांतों के अनुसार यह भारत-आस्ट्र प्लेटों के एशियाई प्लेट में टकराने से बना है। हिमालय के निर्माण में प्रथम उत्थान 650 लाख वर्ष पूर्व हुआ था और मध्य हिमालय का उत्थान 450 लाख वर्ष पूर्व[2]
हिमालय में कुछ महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल भी है। इनमें हरिद्वार, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गोमुख, देव प्रयाग, ऋषिकेश, कैलाश, मानसरोवर तथा अमरनाथ प्रमुख हैं। भारतीय ग्रंथ गीता में भी इसका उल्लेख मिलता है (गीता:10.25)।
हिमालय की उत्पत्ति की व्याख्या कोबर के भूसन्नति सिद्धांत और प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत द्वारा की जाती है। पहले भारतीय प्लेट और इस पर स्थित भारतीय भूखण्ड गोंडवानालैण्ड नामक विशाल महाद्वीप का हिस्सा था और अफ्रीका से सता हुआ था जिसके विभाजन के बाद भारतीय प्लेट की गति के परिणामस्वरूप भारतीय प्रायद्वीपीय पठार का भूखण्ड उत्तर की ओर बढ़ा ऊपरी क्रीटैशियस काल में (840 लाख वर्ष पूर्व) भारतीय प्लेट ने तेजी से उत्तर की ओर गति प्रारंभ की और तकरीबन 6000 कि॰मी॰ की दूरी तय की। यूरेशियाई और भारतीय प्लेटों के बीच यह टकराव समुद्री प्लेट के निमज्जित हो जाने के बाद यह समुदी-समुद्री टकराव अब महाद्वीपीय-महाद्वीपीय टकराव में बदल गया और (650 लाख वर्ष पूर्व) केन्द्रीय हिमालय की रचना हुई। तब से लेकर अब तक तकरीबन 2500 किमी की भूपर्पटीय लघुकरण की घटना हो चुकी है। साथ ही भारतीय प्लेट का उत्तरी पूर्वी हिस्सा 45 अंश के आसपास घड़ी की सुइयों के विपरीत दिशा में घूम चुका है।
इस टकराव के कारण हिमालय की तीन श्रेणियों की रचना अलग-अलग काल में हुई जिसका क्रम उत्तर से दक्षिण की ओर है। अर्थात पहले महान हिमालय, फिर मध्य हिमालय और सबसे अंत में शिवालिक की रचना हुई।
हिमालय पर्वत तन्त्र को तीन मुख्य श्रेणियों के रूप में विभाजित किया जाता है जो पाकिस्तान में सिन्धु नदी के मोड़ से लेकर अरुणाचल के ब्रह्मपुत्र के मोड़ तक एक दूसरे के समानांतर पायी जाती हैं। चौथी गौड़ श्रेणी असतत है और पूरी लम्बाई तक नहीं पायी जाती है। ये चार श्रेणियाँ हैं
- (क) परा-हिमालय,
- (ख) महान हिमालय
- (ग) मध्य हिमालय, और
- (घ) शिवालिक।
परा हिमालय जिसे ट्रांस हिमालय या टेथीज हिमालय भी कहते हैं, हिमालय की सबसे प्राचीन श्रेणी है। यह कराकोरम श्रेणी, लद्दाख श्रेणी और कैलाश श्रेणी के रूप में हिमालय की मुख्य श्रेणियों और तिब्बत के बीच स्थित है। इसका निर्माण टेथीज सागर के अवसादों से हुआ है। इसकी औसत चौड़ाई लगभग 40 किमी है। यह श्रेणी इण्डस-सांपू-शटर-ज़ोन नामक भ्रंश द्वारा तिब्बत के पठार से अलग है।
महान हिमालय जिसे हिमाद्रि भी कहा जाता है हिमालय की सबसे ऊँची श्रेणी है। इसके क्रोड में आग्नेय शैलें पायी जाती है जो ग्रेनाइट तथा गैब्रो नामक चट्टानों के रूप में हैं। पार्श्वों और शिखरों पर अवसादी शैलों का विस्तार है। कश्मीर की जांस्कर श्रेणी भी इसी का हिस्सा मानी जाती है। हिमालय की सर्वोच्च चोटियाँ मकालू, कंचनजंघा, एवरेस्ट, अन्नपूर्ण और नामचा बरवा इत्यादि इसी श्रेणी का हिस्सा हैं। यह श्रेणी मुख्य केन्द्रीय क्षेप द्वारा मध्य हिमालय से अलग है। हालांकि पूर्वी नेपाल में हिमालय की तीनों श्रेणियाँ एक दूसरे से सटी हुई हैं।
मध्य हिमालय महान हिमालय के दक्षिण में स्थित है। महान हिमालय और मध्य हिमालय के बीच दो बड़ी और खुली घाटियाँ पायी जाती है – पश्चिम में काश्मीर घाटी और पूर्व में काठमाण्डू घाटी। जम्मू-कश्मीर में इसे पीर पंजाल, हिमाचल में धौलाधार तथा नेपाल में महाभारत श्रेणी के रूप में जाना जाता है।
शिवालिक श्रेणी को बाह्य हिमालय या उप हिमालय भी कहते हैं। यहाँ सबसे नयी और कम ऊँची चोटी है। पश्चिम बंगाल और भूटान के बीच यह विलुप्त है बाकी पूरे हिमालय के साथ समानांतर पायी जाती है। अरुणाचल में मिरी, मिश्मी और अभोर पहाड़ियां शिवालिक का ही रूप हैं। शिवालिक और मध्य हिमालय के बीच दूनघाटियाँ पायी जाती हैं।
सर सिडनी बुराड ने हिमालय को चार क्षैतिज प्रदेशों में बाँटा है
- कश्मीर हिमालय – सिन्धु नदी से सतलुज नदी के बीच का भाग
- कुमाऊँ हिमालय – सतलुज से काली नदी (सरयू) के बीच का भाग
- नेपाल हिमालय – सरयू नदी से तीस्ता नदी के बीच का भाग
- आसाम हिमालय – तीस्ता नदी से ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ तक का भाग
हिमालय पर्वत विविध प्राकृतिक, आर्थिक और पर्यावरणीय कारणों से महत्वपूर्ण है। हिमालय पर्वत का महत्व न केवल इसके आसपास के देशों के लिये है बल्कि पूरे विश्व के लिये है क्योंकि यह ध्रुवीय क्षेत्रों के बाद पृथ्वी पर सबसे बड़ा हिमाच्छादित क्षेत्र है जो विश्व जलवायु को भी प्रभावित करता है। इसके महत्व को निम्नवत वर्गीकृत किया जा सकता है:
प्राकृतिक महत्व
- उत्तरी भारत का मैदान या सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान हिमालय से लाये गये जलोढ़ निक्षेपों से निर्मित है।
- हिमालय का सबसे बड़ा महत्व दक्षिणी एशिया के क्षेत्रों के लिये है जहाँ की जलवायु के लिये यह एक महत्वपूर्ण नियंत्रक कारक के रूप में कार्य करता है। हिमालय की विशाल पर्वत शृंखलायें साइबेरियाई शीतल वायुराशियों को रोक कर भारतीय उपमहाद्वीप को जाड़ों में आधिक ठण्ढा होने से बचाती हैं।
- यह पर्वत श्रेणियाँ मानसूनी पवनों के मार्ग में अवरोध उत्पान करके इस क्षेत्र में पर्वतीय वर्षा कराती हैं जिस पर इस क्षेत्र का पर्यावरण और अर्थव्यवस्था काफ़ी हद तक निर्भर हैं।
- हिमालय की उपस्थिति ही वह कारण है जिसकी वजह से भारतीय उपमहाद्वीप के उन क्षेत्रों में भी उष्ण और उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु पायी जाती है जो कर्क रेखा के उत्तर में स्थित हैं, अन्यथा इन क्षेत्रों में अक्षांशीय स्थिति के अनुसार समशीतोष्ण कटिबंधीय जलवायु मिलनी चाहिए थी।
- हिमालय की वर्ष-पर्यंत हिमाच्छादित श्रेणियाँ और इनके हिमनद सदावाहिनी नदियों के स्रोत हैं जिनसे भारत, पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश को महत्वपूर्ण जल संसाधन उपलब्ध होते हैं।
आर्थिक महत्व
- वन संसाधनों के रूप में शीतोष्ण कटिबंधीय मुलायम लकड़ी वाली वनस्पति और शंक्वाकार वनों के स्रोत के रूप में जिसका काफ़ी आर्थिक महत्व है।
- अन्य विविध वनोपजें जैसे औषधीय पौधे, इत्यादि की प्राप्ति।
- चरागाह के रूप में हिमालय का महत्व है क्योंकि इसकी घाटियों में नर्म घास वाले क्षेत्र पाए जाते हैं। इन्हें पश्चिमी हिमालय में मर्ग और कुमायूँ क्षेत्र में बुग्यालतथा पयाल के नाम से जाना जाता है।
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- विविध खनिजों, जैसे चूना पत्थर, डोलोमाईट, स्लेट, चट्टानी नमक इत्यादि के स्रोत के रूप में।
- फलों की खेती के लिये।
- सिंचाई के स्रोत के रूप में सदावाहिनी नदियों का जलस्रोत।
- पर्यटन उद्योग और बहुत से पर्यटक केन्द्रों के लिये।
- जलविद्युत उत्पादन के लिये।
पर्यावरणीय महत्व
- जैवविविधता भण्डार के रूप में हिमालय पर्वत काफ़ी महत्वपूर्ण है। कुछ जैव विविधता के प्रमुख क्षेत्र के रूप में फूलों की घाटी तथा अरुणाचल का पूर्वी हिमालयक्षेत्र हैं।
- जलवायु पर वैश्विक प्रभाव।
- हिमालय के हिमनदों को आज जलवायु परिवर्तन के प्रमुख संकेतक के रूप में भी देखा जा रहा है।
सामरिक महत्व
- हिमालय क्षेत्र का दक्षिण एशिया के लिये हमेशा से सामरिक महत्व रहा है क्योंकि यह एक प्राकृतिक अवरोध है जो इसके उत्तर से सैन्य आक्रमणों को अल्पसंभाव्य बनाता है।
- वर्तमान समय में कश्मीर तथा सियाचिन विवाद इसी क्षेत्र में अवस्थित हैं। चीन द्वारा हिमालय के शिखरों से बनाई गयी प्राकृतिक सीमा रेखा, मैकमोहन रेखा को मान्यता देने से इनकार करना भी इसी क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूराजनैतिक विवाद है।
- हिमालय की उच्च भूमि ही कारण है कि नेपाल आपनी बफर स्टेट की स्थित को सुरक्षित बनाये हुए है।
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