सीएम यूपी बन कर कुमायूं पर विशेष ध्यान रखा शेरे गढवाल ने; जयंती पर विशेष
देहरादून से चन्द्रशेखर जोशी की विशेष रिपोर्ट ; शेरे गढवाल हेमवती नंदन बहुगुणा ; बहुगुणा ने यह सिद्व किया कि उनकी राजनीति किसी की बैसाखी की मोहताज नहीं
हेमवती नन्दन का जन्म 25 अप्रैल 1919 को अपने पैतृक गांव बुधाणी मे हुआ था #उन्होंने पद या चुनाव के लिए राजनीति नहीं की और न निजी फायदे के लिए कभी राजनीतिक लाभ उठाया।# उनमें अजब सांगठनिक क्षमता थी। # हेमवती नंदन बहुगुणा की इंदिरा गॉधी से कभी नही बनी # राजनीतिक वैशाखी कभी इस्तेमलज नही की अपनी लोकप्रियता से राजनीति के सवोच्च शिखर पर पहुुंचे # इसी कारण बहुगुणा की विजय हुई और वे इंदिरा गॉधी के उम्मीदवार को हराकर शेरे गढवाल के नाम से जाने गये # बहुगुणा ने यह सिद्व किया कि उनकी राजनीति किसी की बैसाखी की मोहताज नहीं # वे राजनीति में किसी के रहमोकरम या बलबूते पर नही वरन अपनी हैसियत के कारण– बहुगुणा # बहुगुणा ने इंदिरा गॉधी पर निरंकुशता का आरोप# गढवाल उपचुनाव में लोकतंत्र बनाम निरंकुशता का भीषण संग्राम # चुनाव प्रचार तथा मतदान के दौरान बहुगुणा को पराजित करने के लिए जम कर धांधली किये जाने का आरोप # इंदिरा गॉधी पर आरोपलगाये थे #१९८४ में इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र से राजीव गॉधी द्वारा अपने मित्र अमिताभ बच्चन को चुनाव मैदान में उतारा गया, जिसमें बहुगुणा हार गये#बहुगुणा इंदिरा गॉधी तथा राजीव गॉधी से भिडते रहे
सत्तर के दशक में हेमवती नंदन बहुगुणा जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उस वक्त पूरा राज्य आंदोलनों की आग से झुलस रहा था। छात्र, कर्मचारी, शिक्षक प्रचंड आंदोलन चला रहे थे। स्वर्गीय बहुगुणा ने इन आंदोलनों को दबाने के लिए पुलिस का जरा भी इस्तेमाल नहीं किया, बल्कि उन्होंने साफ निर्देश दिये कि जो भी आंदोलनकारी संगठन उनके समक्ष जुलूस लेकर आना चाहता है उसे बेरोक–टोक आने दिया जाए। रास्ते में कहीं भी पुलिस इंतजाम न किये जाएं। अधिकारियों ने उन्हें राय दी कि छात्रों के जुलूस में शरारती तत्व हो सकते हैं कम से कम उन्हें रोकने के लिए तो पुलिस व्यवस्था की जाए। इस पर उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि चाहे छात्र मेरी हत्या कर दें। लेकिन उनके जुलूस को रोकने के लिए कहीं भी पुलिस नहीं होनी चाहिए।
दरअसल बहुगुणा जननेता थे उन्हें अपने प्रदेश की जनता से कोई खौफ नहीं था। उनकी नीयत भी साफ थी कि आंदोलनकारियों की समस्याओं का हल निकालना चाहिए। उन्होंने अपने विवेक से आंदोलनकारी छात्रों, कर्मचारियों और शिक्षकों को संतुष्ट भी किया। लेकिन समझ में नहीं आता है कि उनके सुपुत्र विजय बहुगुणा उत्तराखण्ड राज्य में सांसद रहने और अब मुख्यमंत्री बन जाने के बावजूद जनता के प्रति अपने स्वर्गीय पिता जैसा रवैया क्यों नहीं अपना रहे हैं।
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उत्तराखण्ड कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकान्त धस्माना ने अपने एक आलेख में लिखा है कि आपातकाल के दौरान हेमवती नंदन बहुगुणा व इंदिरा गॉधी में सैद्वांतिक मतभेद हुए और वह कांग्रेस से अलग हो गये, चौधरी चरण सिंह के कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने, जिसमें बहुगुणा वित्त मंत्री बने, चन्द दिनों में इंदिरा गॉधी ने समर्थन वापस लेकर सरकार गिरा दी, 1980 में मध्यावधि चुनाव हुए, इंदिरा गॉधी ने हेमवती नंदन बहुगुणा को कांग्रेस में आने का निमंत्रण दिया तथा उनको प्रमुख महासचिव बनाया, 1980 में मध्यावधि चुनाव में बहुगुणा ने पूरी शक्ति के साथ चुनाव अभियान को संचालित किया, बहुगुणा गढवाल से लडे व जीते, इदिरा गॉधी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद बहुगुणा को सरकार में नहीं लिया, जिस पर छह माह बाद मई 1980 में हेमवती नंदन बहुगुणा ने कांग्रेस पार्टी ही नहीं लोकसभा की सदस्यता से त्याग पत्र देदिया,
| सामान्य नागरिक के पत्रों को गम्भीरता से लेने और बाकायदा उसका ससम्मान उत्तर देने के मामले में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और उत्तराखंड के जननायक श्री हेमवती नंदन बहुगुणा जी का कोई जबाब नहीं था | पहाड़ का कोई भी सामान्य आदमी उन्हें पत्र भेजता तो उसे श्री बहुगुणा जी की ओर से यथोचित उत्तर अवश्य मिलता था |बात आज से तीस साल पहले की है | हम साप्ताहिक ” उत्तराखंड नवनीत ” के प्रकाशन से पूर्व एक अर्ध वार्षिक पत्रिका निकलने का विचार कर रहे थे | इस वास्ते हमने पहाड़ के कई राजनेताओं और बुद्धिजीवियों को पत्र भेजे |इसी क्रम में श्री हेमवती नंदन बहुगुणा जी को भी पत्र भेजा गया | श्री बहुगुणा जी ने न केवल उस पत्र का उत्तर दिया , बल्कि हमारा उत्साह भी बढाया | आज पुराने प्रपत्रों को खोजते हुए श्री हेमवती नंदन बहुगुणा जी द्वारा ८ जनवरी १९८३ को मुझे भेजा गया यह पत्र मिल गया | रातों – रात प्रांतीय और राष्ट्रीय नेता बनाने का ख्वाब पालने वाले हमारे आज कल के सार्टकट मार नेताओं को श्री हेमवती नंदन बहुगुणा जी जैसे नेताओं से सबक लेना चाहिए |याद रखिये – नारों – स्लोगनों और अतिश्योक्तिपूर्ण उपमाओं से कोई नेता महान नहीं बनता है | महान बनने के लिए खुद महान होना पड़ता है – श्री हेमवती नंदन बहुगुणा जी की तरह |
हेमवती नंदन बहुगुणा की इंदिरा गॉधी से कभी नही बनी। १९७१ के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गॉधी के नेतृत्व में कांग्रेस दो तिहाई बहुमत से विजयी होकर सत्ता में आयी, इस चुनाव में विपक्ष के नामी गिरामी सूरमा चारो खाने चित्त हो गये। इस अभूतपूर्व सफलता में बहुगुणा का योगदान था, जिस कारण देश में चर्चा थी कि उन्हें महत्वपूर्ण मंत्रालय सौंपा जाएगा, परन्तु इंदिरा गॉधी ने उन्हें केवल संचार राज्यमंत्री बनाकर कर उन्हें अपमानित किया गया। इस पर कहा गया कि इंदिरा गॉधी ने उनके कद को छोटा करने की नीयत से ऐसा किया था, जिस कारण वे किसी भी समर्थ नेता से खतरा महसूस करती थी।
बहुगुणा के पूर्वज गौड देश से सम्बद्व थे परन्तु कालांतर में यूपी के पर्वतांचल गढवाल में बस गये। हेमवती नंदन बहुगुणा का जन्म २५ अप्रैल १९१९ को श्रीनगर पौडी गढवाल से १६ किलोमीटर दूर बुधाणी गांव में हुआ था। देवलगढ से ५वीं कक्षा उत्तीर्ण कर खिरसू स्कूल पढने गये। हेमवती नंदन बहुगुणा द्वारा दो चुनाव ऐतिहासिक माने जाते हैं, १९८१ में पौडी गढवाल तथा १९८४ से इलाहाबाद का चुनाव। गढवाल का चुनाव ऐतिहासिक इस मामले में था कि उन्होंने १९ मई १९८० को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गॉधी की कांग्रेस और लोकसभा से इस्तीफा देकर दोबारा गढवाल से ही चुनाव लडने का फैसला किया था। वही इंदिरा गॉधी ने इस चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया था और पूरा प्रयास किया था कि बहुगुणा चुनाव हार जाए, इसके लिए उन्होंने सारे दांव पेच इस्तेमाल किये। इस चुनाव में बहुगुणा की विजय हुई और वे इंदिरा गॉधी के उम्मीदवार को हराकर शेरे गढवाल के नाम से जाने गये। वही इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र का चुनाव इस मामले में ऐतिहासिक है क्योंकि पूर्व अनुभव से कांग्रेस पार्टी के नेता यह समझ गये थे कि बहुगुणा को चुनाव में पराजित करना असम्भव है। अतः इस चुनाव में फिल्मी जगत के सितारे अमिताभ बच्चन को राजीव गॉधी ने चुनाव मैदान में उतारा। बहुगुणा ने इंदिरा गॉधी तथा राजीव गॉधी के सामने यह सिद्व किया कि उनकी राजनीति किसी की बैसाखी की मोहताज नहीं है। वे राजनीति में किसी के रहमोकरम या बलबूते पर नही वरन अपनी हैसियत के कारण है।
गढवाल उपचुनाव में लोकतंत्र बनाम निरंकुशता का जो भीषण संग्राम हुआ, इन चुनावों ने पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा। बहुगुणा ने इंदिरा गॉधी पर निरंकुशता का आरोप लगाया।
बहुगुणा जनवरी १९८० के आम चुनाव में पौडी गढवाल से कांग्रेस के टिकट पर चुने गये थे परन्तु इंदिरा गॉधी से उनकी बिगड गयी, उन्होंने छह माह के भीतर ही कांग्रेस तथा लोकसभा की सीट से इस्तीफा दे दिया। चन्द्रमोहन सिंह नेगी कांग्रेस-इ से चुनाव मैदान में उतारे गये, चुनाव प्रचार तथा मतदान के दौरान बहुगुणा को पराजित करने के लिए जम कर धांधली किये जाने का आरोप लगाया जाता है, जिसकी शिकायत बहुगुणा ने चुनाव आयोग से की। भारतीय चुनाव में यह पहला अवसर था जब आयोग ने मतगणना से पूर्व उच्च स्तरीय जांच के बाद चुनाव को रद्द कर दोबारा चुनाव कराने का फैसला किया। चुनाव आयोग ने दोबारा चुनाव के लिए ३० सित० १९८१ की तिथि निर्धारित की, पर कांग्रेस प्रत्याशी नेगी ने १९ सित० १९८१ को चुनाव की तिथि टालने को कहा, फलस्वरूप २९ सित० १९८१ को एक दूसरी अधिसूचना जारी कर आयोग ने २२ नव. १९८१ की तिथि निर्धारित कर दी, तत्पश्चात तकनीकी गडबडियों के कारण १७ अप्रैल १९८२ को तीसरी एवं अंतिम अधिसूचना जारी कर १९ मई १९८२ की तिथि निर्धारित की, इतनी लम्बी अवधि तक चुनाव की तिथि क्यो टलवायी गयी, इसके पीछे इंदिरा गॉधी पर आरोप लगाये जाते हैं। १९ मई को मतदान, २२ मई को मतगणना तथा २३ मई १९८२ को परिणाम की घोषणा संबंधी अधिसूचना जारी कर दी गयी और बहुगुणा २९०२४ मतो से विजयी घोषित हुए।
१९८२ में लोकतंात्रित समाजवादी से हेमवती नंदन चुनाव लड कर दोबारा चुने गये परन्तु १९८४ में इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र से राजीव गॉधी द्वारा अपने मित्र अमिताभ बच्चन को चुनाव मैदान में उतारा गया, जिसमें बहुगुणा हार गये।
प्रधानमंत्री की कुर्सी उनकी हथेली पर थी पर दुर्भाग्य किसी को नहीं छोड़ता
बहुगुणा दिल्ली से लगभग पांच दशक तक हिन्दुस्तान की राजनीति में एक दैदीप्तमान नक्षत्र बन कर चमकते रहे। वे सत्ता मे रहे हो या विपक्ष मे रहे हो कभी किसी से हार नहि मानी और बड़ी से बड़ी ताकत को झकझोर दिया। सिद्वान्तो के साथ समझौता करने के बजाय मिटना स्वीकार किया। राजनीतिक अवर वादिता व सत्ता की राजनीतिक के वे प्रबल विरोधी थे। उनके नाम से विपक्षियो के दिलो मे दहसत फैल जाती थी। बहुगुणा एक सच्चा इंसान था। एक सच्चा दोस्त था देष के लिए मर मिटने वाला एक सच्चा सिपाही था। प्रधानमंत्री कि कुर्सी उनकी हथेली पर थी पर दुर्भाग्य किसी को नहीं छोड़ता राजनीति द्वन्द्व के झटके लगते गए और वतन की माटी से जुदा होने की तिथी नजदीक आती गयी।
बहुगुणा के पूर्वज गौड़ देष से सम्बन्ध थे। पारन्तु कालांतर मे उत्तर प्रदेष के पूर्वाचल गढ़वाल में बस गये। हेमवती नन्दन बहुगुणा के इन संस्मरणो से स्पश्ट है कि उनके जीवन पर अपने माता पिता तथा पारिवारिक वातावरण का विषेश प्रभाव पड़ा है। न्याय के प्रति निश्ठावान बनने की प्रेरणा उन्हे अपने पिता के जीवन से तो दूसरो की भलाई करने की सीख उन्हे अपनी माॅं से मिली थी। हेमवती नन्दन का जन्म 25 अप्रैल 1919 को अपने पैतृक गांव बुधाणी मे हुआ था। बुधाणी श्रीनगर पौड़ी गढ़वाल से 16 किलोमीटर दूर है। आज बुधाणी तक सर्पाकार अध्कच्ची मोटर रोड़ जाती है। इस छोटे से गांव की आज भी जनसंख्या 300 है। यहां से नन्दा देवी दिखाई देती है गांव मे उतरते ही एक पक्का चबुतरा है। जिसे कंभी बहुगुणा ने बनवाया था। 1919 मे गांव का सबसे अच्छा घर एवं सम्पन्न परिवार रेवती नन्दन बहुगुणा का ही था। काफी मान मनौती के बाद एक पुत्र पैदा होने के कारण उसके लालन पालन पर पूरा ध्यान दिया गया।ं उसके दीर्घायु की कामना के लिए वर्शो तक उसके प्रत्येक जन्मदिन पर तुलादान किया जाता था। हिन्दु रीति रिवाज के अनुसार पूर्णिमा के तेल मे बालक की छाया दिखाकर छाया दान किया जाता था। कक्षा पांच मे उन्होने बच्चो की ग्राम सुधार समीती बनाई जो कि सफाई एवं साफ पेयजल की व्यवस्था करती थी। बचपन से ही उसमे नेतृत्व करने के लक्षण दिखाई देने लगे। देवलगढ़ से पाॅंचवी कक्षा उत्तीर्ण कर वे खिरसु स्कूल मे पढ़ने के लिए गए यह स्कूल आठवीं तक था। उस समय उनकी आयु ग्याारह वर्श की थी। हेमवती नन्दन का दाखिला डी.ए.वी. स्कूल मे कराया गया ताकि वे भारतीय संस्कृति के वातावरण मे षिक्षा प्राप्त कर सके। डी.ए.वी. स्कूल से ही हेमवती नन्दन बहुगुणा मे नेता बनने के लक्षण दिखाई देने लगें एक दिन उन्होने गरीब बच्चो से कहा था तुम लोग फीस मत दो उन्होने वायदा किया कि वे अपनी पुस्तके दें देगें। बहुगुणा को घुड़सवारी का बेहद षौक था। एक बार उनके जीजा ने कहा कि वह घोड़े को पानी पिला ले आए जिधर उन्हे जाना था उधर एक अंग्रेज साहब रहते थे। और साफ सुथरी सड़क थी स्वभाव से ही निर्भीक होने के कारण वह बिना किसी मदद के घोड़े पर बैठ गये परन्तु वह उसे काबू मे न रख सके और गिर गए। बाद मे राह चलने वालो ने घोड़ो को पकड़ा हेमवती नन्दन बहुगुणा ने हिम्मत नही हारी और घुड़सवारी का अभ्यास करते रहे कालान्तर मे वे एक अच्छे घुड़सवार बने। साहस एवं दृढ़संकल्प बचपन से ही उनके जीवन का अंग बन चुका था बचपन की ये घटना बताती है। हेमवती कक्षा 8 पास करके देहरादून आ गए और वहीं से उन्होने हाईस्कूल की परिक्षा उत्तीर्ण की। हेमवती मे आजादी का अंकुर भी इसी षहर में पनपा देहरादून गढ़वाल के सामाजिक जीवन का केन्द्र बिन्दु है। देहरादून, हरिद्वार, ऋशिकेष आदि षहरो की पवित्रता यहां की संस्कृति का एक अलग अस्तित्व है उसका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था। एक दिन वह अपने किसी मित्र से अमर सहीद भगत सिह की पुस्तक ले आए उसे पढ़ने के बाद कहा था मैने निर्णय ले लिया हे कि मै भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ूगा। जीवन मे कभी-कभी कोई घटना ऐसे होती है जो पूरी जिन्दगी को बदल देती है। इस पुस्तक ने उनकी समुची चेतना को बदल दिया हेमवती नन्दन के दिलो दिमाग मे देष के लिए दीवानगी का जो अंकुर फूटा आगे चलकर वह एक वटवृक्ष बना। इसके बाद उनकी प्रवृति में इतना बदलाव आ गया कि वे बहन के बच्चो को महान नेताओं की कथायें सुनाने लगे ऊॅंचे चरित्र की बाते करने लगे।
देहरादून से दसवी कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद हेमवती को उच्च षिक्षा के लिए इलाहाबाद भेजा गया। उनके मन मे एक भावना थी कि गांव के लोग भी षहर के लोगो की तरह साफ सुथरे रहें। वे साबुन ले कर स्वयं गांव के लड़को के साथ झरनो पर पहॅच जाते और वहाॅं अच्छे से कपड़ो की धुलाई करते। गांव के दलितो के प्रति उनके मन में अगाध प्यार था। वे प्रायः दलितो को अपने आंगन मे एकत्र कर भोजन कराते थे। यहां बहुगुणा की छटी माॅं से उत्पन्न भाई हृदय नन्दन की चर्चा भी आवष्यक है क्योकि अपने सभी भाई बहनो मे सबसे प्रिय थे। बारह बरस का संतु अपने भाई के साथ रहकर पढाई करने इलाहाबाद आया और आजीवन उनके साथ रहा। उनके पिता रेवती नन्दन का निधन पच्चासी वर्श की आयु में 1970 में और दो ही वर्श पष्चात 1972 मे छोटी माॅं का स्वर्गवास हो गया।
कर्मभूमि मे प्रवेष उत्तर प्रदेष हमारे राश्टीय आन्दोलन का एक प्रमुख रणस्थली था। इसलिए यहां के युवाजनो मे माॅं भारती के लिये कुछ कर गुजरने की प्रबल भावना थी।
इलाहाबाद उस समय आजादी लड़ाई की धड़कन थी आजादी की अंतिम चरण मे गांधी और जवाहर की ललकार सुनकर माॅं भारती की पुकार पर गढ़वाल की धरती पर पैदा सुपूत आजादी मे कूद पड़ा वह था हेमवती नन्दन बहुगुणा। बहुगुणा देष के उन सेनानियो मे थे जिन्होने बचपन से ही राश्ट्र भक्ति का बाना पहन रखा था। गढवाल मे स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान पहली बगावत 1886 मे लक्ष्मण सिह कठैत ने बेगार प्रथा के विरुद्व आवाज उठा कर की। 20वीं सदी के प्रारम्भ में गढ़वाल मे राजनीतिक एवं सामाजिक चेतना को जागृतकरने मे बैरिस्टर मुकुंदी लाल की अहं भूमिका रही। इसी समय गढवाल मे भी काग्रेष की सक्रियता बढ़ी। 1916 में मुकुंदी लाल एवं अनुसूया प्रसाद बहुगुणा के प्रभाव से कुली बेगार आदोंलन की सफलता मिली। यह गढवाल मे काग्रेस की पहली विजय थी। इलाहाबाद मे आदोंलन की चिंगारी एक लेअे अर्से से धधक रही थी, परन्तु 1857 मे अचानक आग उस समय उठी जब मौलवी लियाकत अली ने क्रान्ति का विगुल बजा कर खुषरू बाग मे भारतीय झंडा लहराया। 1888 मे यहां सर्वप्रथम भारतीय राश्ट्रीय काग्रेस का चैथा अधिवेषन हुआ। जिसके कारण यहाॅं सक्रियता बढ़ी अयोध्या नाथ पं. मदन मोहन मालवीय, राजश्री पुरूशोतम दास टंडन, मोती लाल नेहरू, सर तेल बहादुर, पं. जवाहर लाल नेहरू सरीखे एक के बाद एक आते रहे और युवजनो की राश्ट्रीय आंदोलन से जुड़ते रहे। यह एक हकिकत है कि इलाहाबाद साहित्यकारो, लेखको, पत्रकारो इलाहाबाद विष्वविघालय उच्चन्यालय तथा आनन्द भवन का उल्लेख किया जाय तो राश्ट्रीय आंदोलन का इतिहास अधूरा रह जाएगा। अमर सहीद चन्द्र षेखर आजाद और रोषन सिंह की षहादत आज भी गवाह है कि इलाहाबाद की धरती क्रान्तिकारियो से किस तरह रंगी गयी थी।
1942 मे बगावती दिन आते- आते तो काग्रेस के पैर काफी जम चुके थे। 1931 से 47 तक अखिल भारतीय कमीटी का कार्यकाल इलाहाबाद मे था लाला लाज पतराय, लोकमान्य तिलक, विपिन्न चन्द्रपाल, महात्मा गांधी, सुभाश चन्द्र बोश सहित देष का षायद ही कोई ख्याती प्राप्त नेता रहा हो जो इलाहाबाद न आया हो। उस समय इलाहाबाद राश्ट्रीय चेतना का एसा संगम था जिसमे डुबकी लगाए बिना आजादी का रंग नही होता था। देष के स्वतंन्त्र होने तक इलाहाआद आजादी का केन्द्र बिन्दु बना रहा।
आजादी की लड़ाई का अंतिम चरण था माहौल कफी गर्म था। गांधी और जवाहर की ललकार सुनकर हजारो युवाजन जंगे आजादी मे कूद रहे थे।
एसे ही माहौल मे बहुगुणा ने जुलाई 1938 मे इलाहाबाद के राजकीय इंटर कालेज मे दाखिला कियाअपने समाज और देष के लिए कुछ करने का जो अंकुर उनके दिलो दिमाग मे जो देहरादून मे फूटा था इलाहाबाद आकर वह बिरवे का रूप लेने लगा। बहुगुणा ने स्कूल मे एक छात्र संसद का गठन किया जिसमें इलाहाबाद की छात्र राजनीति मे एक उफान पैदा हो गया। संसद का गठन बहुगुणा के मस्तिश्क की उपज थी। उसके गठन के साथ ही बहुगुणा की आवष्यकता थी एक ऐसे व्यक्ति की जो उसका विधिवत उद्घाटन कर सके। नेहरू जी के अनुरोध को षिरोधार्य कर वे विद्वान नेता रणजीत पं. को उद्घाटन के लिए ले गए। इस संसद बहुगुणा स्वयं प्रधानमंत्री बने तथा संसद की कार्यप्रणाली को सुनिष्चित करने के लिए विपक्ष का गठन किया। बहुगुणा के लिए श्री रणजीत पं. से मिलने का ये पहला अवसर था। इस प्रथम मिलन ने उनके जीवन पर एक अमिट छाप छोड़ दी।
राजकीय इंटर कालेज की परिक्षा पास करने के बाद 1941 मे उन्होने इलाहाबाउ विष्वविघालय मे दाखिला लिया।1941-42 के आस-पास विष्वविघालय का माहौल काफी गर्म था।
बहुगुणा तथा अन्य छात्रो ने भी एक क्लब बनाया था। बहुुगुणा ने छात्रावास मे इस पर आयोजित बहस मे प्रसद्व इतिहासकार डा. बेनी प्रसाद को आमंत्रित किया था। 1941 मे जब बहुगुणा बी.एस.सी. प्रथम वर्श के छात्र थे उन्हे निःषस्त्रीकरण पर बोलने को मिला विज्ञान का छात्र होते हुए भी उनकी विष्वइतिहास और राजनीति मे गहरी विषेश रूचि थी। अपनी प्रतिभा के कारण बहुगुणा इस प्रतियोगिता मे पुरूस्कृत हुये। एक निबन्ध प्रतियोगिता उस समय के अग्रणी क्षात्र हरिहर सरन तथा बहुगुणा के बीच हुयी थी। सरन एम.ए. तथा बहुगुणा बी.एस.सी. प्रथम वर्श के छात्र थे। पिशय प्रलोभन आफ वल्र्ड प्रोग्रेस था। एक सप्ताह तक विशेष परिश्रम के बाद बहुगुणा को प्रतियोगिता मे प्रथम पुरस्कार मिलाा। हरिहर बोला तुमने तो सबको पीट दिया। बहुगुणा बोला मैने प्रतियोगिता नहिं की केवल अपना कर नापने की कोषिष की है।
क्रान्ति से आजादी तक 1942 में अंग्रजी हुकूमत ने बहुगुणा को जिन्दा या मुर्दा पकड़ने या पकड़वाने वाले को 2 हजार रूपये देने का पुरस्कार देने की घोशणा की थी। फलस्वरूप बहुगुणा भूमीगत हो गये परन्तु उनकी क्रान्तिकारी गतिविधियाॅं निरन्तर चलती रही। जेल मे वे जब भी घर के लिए पत्र डालते थे तो वे अपना नाम बदलकर मदन लिखते थे। अपने पत्रो में लिखा करते थे या तो देष को स्वतन्त्र करायेंगे या तो प्राण त्याग देंगे। बम बहादुर जैसे कितने ही लोगो को बहुगुणा ने जंगे आजादी का सिपाही बनाया। इलाहाबाद विष्वविघालय के उस दौर की एक-एक ईंट आजादी की लड़ाई मे विष्वविघालय के विघाथियों की गौरव गाथा कहती है। प्रषिक्षणाथियों की खाना खाने की व्यवस्था दिल्ली क्लाथ मिल मे थी। पुलिस को उसकी तलाष थी उसने किसी तरह कुछ पषिक्षणाथियों को अपनी तरफ मिला कर रहस्य जान लिया और गुप्तकारी के कारण मनुभाई षाह, बहुगुणा तथा बीजू पटनायक पकड़ लिए। मनुभाई षाह बहुगुणा तथा बीजू एक रात इंडिया गेट पर स्थित जार्ज पंचम की मूर्ती की नाक तोड़ने गये वही से पुलिस ने उनका पीछा किया। वे मूर्ती तोड़ने मे विफल रहे लेकिन भागने से पूर्व मूर्ती का चेहरा काले कपड़े से ढ़क दिया। बहुगुणा जामा मस्जिद के पास पकड़े गए बहुगुणा को एक महिने तक हौज खास मे रखा गया। उनकी गिरफतारी फरवरी के महिने मे हुयी थी।
1946 मे बहुगुणा का कमला के साथ विवाह हुआ। 1942 के आंदोलन मे कमला भी सक्रिय रूप से भाग ले रहि थी उनके माता पिता भी आजादी के रंग मे रंगे हुए थे। आजादी की लड़ाई लड़ने वालो को तरह तरह से प्रोतसाहित किया करते थे। इसी का परिणाम था कि कमला राजनीति मे आ गयी थी।
इलाहाबाद की महिलाएॅं 1932 के विदेषी वस्त्र बहिश्कार आंदोलन में सर्वप्रथम निकली थी। कमला नेहरू तथा विजय लक्ष्मी पंडित के नेतृत्व मे उनकी माॅं सुखराज देवी ने भी पी.डी. टंडन पार्क मे आयोजित विदेषी वस्त्रो के बहिश्कार के लिए पिकेटिंग की थी। वह विदेषी जार्जिट की साड़ियाॅं पहना करती थी किन्तु स्वदेषी से प्रभावित होकर अपनी सभी विदेषी साड़ियों की होली जलाईं थी। इंदिरा गाांधी के आहान पर बालिका कमला वानर सेना मे सम्लित होकर पार्क मे नमक बनाने गयी थी। 1946 में बहुगुणा ने कमला से विवाह का प्रस्ताव रखा कमला के लिय विवाह के कई प्रस्ताव थे। उन दिनो बा्रहमण परिवार मे सुषिक्षित और सुन्दर लड़कियाॅं कम थी। प्रो. सराय प्रसाद का षिक्षा जगत मे विषिश्ट स्थान भी था। आजाद ख्याल के पिता चाहते थे कि बेटी की सहमति से ही उनका विवाह हो परन्तु बहुगुणा से विवह मे आपति थी। फिर जब उन्हे अराभाश हुआ की कमला अपना मन बना चुकी है तो उन्होने विवह की अनुमति दे दी। प्रो. को यह भली भोती ज्ञात था कि उनका एक विवाह पहले से हो चुका है। परन्तु वह अपनी पुत्री को निराष न कर सके सम्भवतः इस विवाह सहमति का एक कारण यह भी था कि उस समय के एमाज मे दो विवाह एक आम आत थी। प्रो. त्रिपाठी एक उदार मन व्यक्ति थे। उन्हे अपनी पुत्री के विवेक पर भरोसा था। अतएव वे विवाह के लिए राजी हो गए इस प्रस्ताव के बाद बहुगुणा से कमलने की इच्छा जाहिर की। बहुगुणा के आने पर उन्होने पूछा था तो मै कर दूगा। पर खिलाओगे क्या ? बहुगुणा ने वायदा किया कि वे निराष नहिं करंेगें। फिलहाल विवाह के बाद तो कठिन परिक्षा की घड़ी से गुजरना पड़ा। परन्तु बाद मे उन्होने प्रो. त्रिपाठी को दिए गए वचन का पूरी तरह निर्वाह किया।
17 मई 1946 में कमला से विवाह के आद बहुगुणा सरोजनी नायडु मार्ग स्थित एक किराए के मकान मे रहने लगे। जिस घर वे रह रहे थे वह एक बड़े घर का हिस्सा था उसका किराया 52 रूपया प्रतिमाह था। किराया उस जमाने के हिसाब से काफी था। प्रो. त्रिपाठी ने विवाह के उप्लक्ष मे कपड़े तथा जेवर के अलावा फर्नीचर आदि न देकर नगद पैसे दिए। षायद वे इस बात को जानते थे कि उन्हे पैसे की ज्यादा आवष्यकता है प्रो. त्रिपाठी की दूरदर्षिता के परिणाम स्वरूप बहुगुणा कमला को कुछ समय तक कोई कश्ट नहि हुआ। उन्होने काफी अच्छे से दिन गुजारे कालान्तर मे उन्होने हिन्दु ट्रेडिंग कंपनी के माध्यम से परिवार चलाने के लिए धन अर्जित किया।
मजदूरो के बीच सन 1947 मे स्तन्त्रता प्रप्ति के बाद काग्रेस सरकार ने राश्ट्रीय आंदोलन के सेनानियों को कुछ सुविधाए देने का निर्णय लिया उत्तर प्रदेष की प्रान्तीय सरकार ने यह घोशणा की कि कुछ युवाजन सेनानियो को केवल साक्षातकार के आधार पर पुलिस विभाग मे उप अधिक्ष्क के पद पर नियुक्त किया जाएगा बहुगुणा के मित्रो और सहयोगियो ने उन पर दबाव डाला कि वह इन विज्ञापित पदो के लिए अपना जीवन वृत भेंजे। बहुगुणा को लगा एसा करना सर्वथा अनुचित है। उनहोने इस सुजाव का विरोध किया मित्रो और सहयोगियांे के दबाव के कारण उनहोने बड़े अनमने भाव से अपना जीवन वृत भेज दिया।
जब साक्षात्कार के लिए लखनऊ बुलाया गया तो बहुगुणा आना कानी करने लगे उनका कहना था कि उन्हे सक्रिय राजनीति मे जाना है। किसी प्रकार की सरकारी नौकरी या अन्य कोई बन्धन उन्हे सहा नही है। सबके बार-बार आग्रह करने पर बड़ी कठिनाई से वे लखनऊ जाने को तैयार हुए उनके मित्र सी.बी. त्रिपाठी अताते है तीसरे दिन षाम तक लौटने की बात थी मै एक घंटे पहले ही उनके घर पहुॅंच गया। और षुभ समाचार की प्रतिक्षा करने लगा। आज भी वह षाम मेरी आॅंखा के सामने े सजीव है। अभी अंधेरा नही हुआ था कि बहुगुणा जी सहित हम लोग सभी बड़े आषान्वित हो उठे। मैने ही बात षुरू की लगता है आप चुने गए? बहुगुणा जी अपने स्वाभाविक ढ़ंग से अट्हास करते हुए बोले अरे भई उन सब ने पहचान लिया यह तो हमारा भावी मुख्यमंत्री है। उसे पुलिस विभाग का साधारण कर्मचारी कैसे बनाया जाए। हम लोग एक दूसरे का मुॅंह देखते रह गए। अभाव के क्षणों मे भी उनकी महत्वकंाक्षा आत्मविष्वास एवं दृढ संकल्प में किसी प्रकार की कमी न आन पाई।
बहुगुणा की रूची ठेकेदारी मे नही बल्कि राजनीति मे थी। जुलाई 1948 से जुलाई 49 तक उन्होने ठेकेदारी तो केवल पैरो पर खड़ा होने के लिए की थी। बहुगुणा ने सन 1946 मे इलाहाबाद की युवा काग्रेस की डोर अपने हाथ मे लेली थी उस समय युवा काग्रेस के इंचार्ज मोहन लाल गौतम थे। इलाहाबाद के कर्नलगंज निवासी षारदा प्रसाद गुप्त उस समय षहर काग्रेस कमेटी के सदस्य तथा कर्नलगंज वार्ड के काग्रेय के अध्यक्ष थे। उनकी पहल पर वार्ड के सदस्यों ने बहुगुणा को कर्नलवार्ड गंज का सचिव बनाए जाने का निर्णय लिया।
चुनाव जीत जाने के बाद बहुगुणा ने काफी मेहनत की वे प्रतिदिन सुबह अपनी साईकिल से कर्नलगंज पहुॅंच जाया करते थे। और लड़को को इकट्ठा कर प्रभात फेरी निकाला करते थे। यहाॅं तक कि सड़को पर झाड़ू आदि भी स्वयं तथा लड़को से लगवाया करते थे। उनके पास उस समय तो न ही साधन थे और न ही समय। इसलिए षारदा प्रसाद गुप्त ने उन्हे दो पायजामे बनवाकर दिए थे। जिसे वह दूसरे दिन पहना करते थे। काग्रेस पट्री के प्रति अपनी निश्ठा व जन सेवा के कार्यो सेवह धीरे-धीरे इलाहाबाद में काफी लोकप्रिय हो गए। बहुगुणा का व्यक्त्वि काग्रेसी नेता तथा एक मजदूर नेता दोनो के रूप मे ही एक साथ उभरना ही षुरू हो गया। पहाड़ के बेटे की पहचान गंगा यमुना के लाल के रूप मे उभरने लगी। वे समझ गए थे कि काग्रेस की जड़ गरीब जनता खेतीहारो किसानो तथा मजदूरो के बीच है। कुछ समय बाद बहुगुणा जब दुबारा बिजली हार आए तो जे.सी. जोषी तथा अन्य नेताओ ने उन्हे बताया एक पुलिस वाला हम लोगो को लगातार तंग कर रहा है। इस कारण हमारे सभी साथियों में भय एवं आतक व्याप्त है। बहुगुणा ने यह सब सुनकर कहा आप सब कल जवाहर स्क्वायर स्थित काग्रेस कमेंटी मे आ जाए। काग्रेस कमेंटी में उन्होने बकायदे उन्होेने लेबर कक्ष बना रखा था। जहाॅं मजदूरो की समस्याओ पर विचार होता और उनके हल का प्रयास किया जाता। दूसरे दिन जब बिजली क्रमचारी नेता निर्धारित समय पर वहाॅं पहुचे तो उन्होने दो मिनट फाइल देखने के बाद तत्काल कहा कोतवाली चट्रजी धीरे से बोला पुलिस वाला पीछा कर रहा है, तुम कोतवाली का पीछा कर रहे हो कुछ नही होता तुम लोग चलो।
बहुगुणा ने विष्वास के साथ कहा उठे और बड़ी तेजी से कोतवाली पहुॅंचे उनके वहाॅं पहुचते ही तत्कालीन कोतवाल के दीक्षित सहित सारे अधिकारी कुर्सी छोड़कर उठ खड़े हुए।
दीक्षित बोले कहिए बहुगुणा जी ! बहुगुणा बोले देखो दीक्षित एसा है कि यह तीनो षुद्व काग्रेसी है और तुम्हारा कोई पुलिस वाला इन्हे तंग का रहा है। नेताओ ने सिर घुमाकर देखा तो वह पुलिसवाला पीछे खड़ा था। नेताओ ने उसकी ओर इसारा किया। पता चला हक वह पुलिसवाला एक सब इंस्पेक्टर ने घबराते हुए अपनी जेब से एक कागज निकाला और दीक्षित को दिया। दीक्षित पढने के बाद बोला कैसी चिट्ठी है ? मैने तो नही दी। उसने कहा काषीनाथ वर्मा की है। दीक्षित अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा वह तुम्हारा अफसर है कि मै ?
अगर फिर कोई तंग करने गया तो अच्छा नही होगा। कर्मचारी वहाॅं से खुष होकर निकले तुरन्त लेना और उस पर अमल करना बहुगुणा का का ऐसा गुण था। जो लोगो को उनकी ओर खीचता था। मजदूरो से बहुगुणा की पहली मुलाकात होने पर भी वे तीन घंटे तक बड़ी आत्मीयता के साथ बातचीत करते रहे उसके बाद मे सुषील चटर्जी एक दिन हेस्टिगरोड़ स्थित उनके घर गए।
चटर्जी मायूस स्वर मे बोले आप हमारे दोस्त तो बने पर हमारी कोई खबर न ली। बहुगुणा ने अपनी भूल का तुरन्त एहसास किया और उसके बाद उनकी मजदूर राजनीति का सिलसिला षुरू हुआ। वह बिजली घर के नेताओ व मजदूरो के साथ और आत्मीयता से बंध गए।
सत्ता की बागडोर हेमवती नन्दन बहुगुणा आजादी के आंदोलन मे अंतिम सिपाही थे। उन्होने अंग्रेजी हुकुमत को लहराया था। जेल की तनहाइयों को भोगा था। अपने देष व समाज के लिए तैयार थे। जिसने विघार्थी आंदोलन को नई दिषा दी हो जिसने मजदूरो की लड़ाई लड़ कर मालिकान के कारनामो का परदाफाष किया हो उस बहुगुणा के लिए षासन संचालन कोई कठिन कार्य नहीं था। यहि कारण रहा है कि वह जिस परदे पर भी रहे सफल रहे। असफलता भी यदि हाथ लगी तो वह किसी सफलता से कम नहिं थी।
आजादी के आंदोलन का सिफाई विघार्थियों का नायक मजदूरो का रहनुमा तथा काग्रेस के चिंतन को अपनी जीवन षैली मे ढालने वाले बहुगुणा ने 1957 मे सत्ता की बाग डोर ़ सम्भाल ली वे सम्पूर्णानन्द के मंत्रीमंडल मे श्रम एवं उघोग मंत्री के पद पर पहुॅंच चुके थे। संभवतः यह सत्ता की ओर अग्रसर होने राश्ट्रीय स्तर के नेता बनने की दिषा मे यह पहला कदम था। बहुगुणा एक दिन पं. गोविन्द बल्लभ पंत से मिलने गए थे। मुख्यमंत्री कक्ष से बाहर निकलते समय वे काफी देर तक मुख्यमंत्री की कुर्सी की ओर देखते रहे और दोस्तो ने पूछा क्या बात है? आप टकटकी लगाकर उस कुर्सी की ओर क्यो देख रहे हो ? उन्होने कहा था देख रहा हूॅं एक दिन इस कुर्सी पर मुझे भी बैठना है।
बहुगुणा उत्तर प्रदेष की राजनीति मे डा. सम्पूर्णानन्द के सर्मथक थे। वे चन्द्रभानू गुप्त के विरोधी थे। गुप्त जी दक्षिण पंथी विचार धारा के सर्मथक थे। वे किसी भी प्रकार के सामाजिक बदलाव के हिमावती नही थे। बहुगुणा गांधी जी को अपना आर्दष और नेहरू को अपना मार्गदर्षक मानते थे। आचार्य विनोबा भावे जय प्रकाष नारायण द्वितीय पंक्ति के नेताआंे में लाल बहादुर षास्त्री और इंदिरा गांधी का प्रभाव उन पर प्रकट दिखाई देता था।
विघान सभा मे पहुचने के बाद बहुगुणा के कार्य क्षेत्र का बहुआयामी विस्तार हो गया था। विघान समजदूरो की समस्याओ को उठाना उनका प्रमुख उद्देष्य था। क्योकि वह उस क्षेत्र से भली भांति परिचित थे। उन्हे मजदूरो की आवाज को सत्ता के गलियारे तक पहुॅंचने का एक अच्छा खासा अवसर मिला था। 23 मई 1952 को विघान सभा में अपने अभिभाशण के 14वें परिछेद में उत्तर प्रदेष के मजदूरो की स्थिती पर संतोश व्यक्त किया। परन्तु धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलते हुए बहुगुणा ने सरकार को आड़े हाथो लिया और राज्यपाल से कहा आपकी आज्ञा से मै इस सदन तथा आपके मानवीय मंत्रीमंडल से यह कहना चाहता हूॅं कि आज मजदूर भयानक दौर से गुजर रहा है। मजदूर तरह तरह से परेसान है चाहे महगाई की बात हो चाहे छंटनी की परेसानी हो चाहे उत्पादन बढाओ के नाम पर उससे अधिक काम लिया जाता हो बिना पैसा बढाए हुए काम करने की परेसानी हो और चाहे लंबी चैड़ी अदालती कार्यवाही द्वारा मांगे पूरी करने की तजबीज हो। आज मजदूर वर्ग केवल देष प्रेम के कारण महात्मा गांधी के बनाएॅं आदर्ष पर राश्ट्रीय काग्रेस के नेतृत्व के कारण उनकी तरफ आॅंखें लगाा कर सब के साथ देख रहा है वरन मजदूरो की क्रान्ति की लहर मालूम नहीं कितने थपेड़ अब तक प्रान्त को लगा चुकी होती।
उस समय उत्तर प्रदेष तथा देष के मजदूर किस प्रकार से बढती हुई महंगााई से ग्रस्त थे। किस तरह से वह घुट-घुट कर जी रहे थे। इस आषय का चित्र खींचते हुए बहुगुणा ने कहा था बाजारो मे चीज सस्ती नहीं है इसके बावजूद मजदूरो का महगाई भत्ता घटता जा रही है। जिससे यह स्पश्ट होता है कि जीवन स्तर को नापने तथा कास्ट आफ इन्डेक्स बनाने की विधि सही नही है। और उस स्तर पर मजदूर जीवित नहि रह सकते है। बहुगुणा ने इसी दौरान इंडस्टीरियल डिस्प्यूटस सैटिलमैन्ट ट्रिब्यूनल एक्ट के अनुसार बिजली कम्पनी के मालिक मार्टिन बर्न के मुद्दे को उठाते हुए उसके फैसले को बदलने के सम्बन्ध में सूचना जारी करने और 6 दिसम्बर 1948 को षासन द्वारा जरी आदेष के अनुसार पैसा न देने की मांग जोरदार ढंग से उठाया था। बिजली मजदूरो का आबकारा कम करने व कर बढाए जाने उन पर होने वाली ज्यातियों को कम कराने की मांग के साथ मुख्यमंत्री से इस आषय की मांग की थी कि वैयक्तिक मजदूरी तथा मे और महंगाई में एक जो बड़ा हिस्सा है उसे मूल मजदूरी में मिलाने का आदेष दिया जाय।
कर्मचारियों की स्थिति का रेखांकन उस समय बहुगुणा ने इस प्रकार किया था आज 43 साल पुराने मजदूर अस्थाई है। सरकारी कानून के अनुसार छह माह के अंदर हर निजी कारखाने में काम करने वाला मजदूर पक्का हो जाना चाहिए।
संचार मंत्री से मुख्यमुत्री 1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी के नेतृत्व ने काग्रेस दो तिहाई बहुमत से विजयी होकर सत्ता में आई। इस चुनाव मे विपक्ष के नामी गिरामी सुरमा चारो खाने चित्त हो गए। इस अभूत पूर्व सफलता में बहुगुणा ने जिस कुसलता से चुनावो की जिम्मेदारी निभाई थी उसके कारण पूरे देष मे चर्चा थी कि उन्हे अवष्य कोई महत्वपूर्ण मंत्रालय सौपा जाएगा। इसके विपरीत उन्हे केवल राज्य संचार मंत्री का ही दायित्व सौंपा गया। ऐसा किसी राय पर हुआ यह कहना कठिन है। किन्तु षायद उनके कद को छोटा करने की से ही ऐसा किया गया था। संभवतः यह इंदिरा गांधी की उस कार्यषैली का परिणाम था जिसके कारण वे किसी भी समर्थ नेता से स्वयं को खतरा महसूस करती थी। बहुगुणा ने बिन किसी प्रकार की आपत्ति के दो वर्शो तक बड़ी कुषलता से संचार मंत्रालय का कार्य भार संभाला। पद ग्रहण करते ही उन्होने घोशणा कि थी। मै देष का प्रथम डाकिया हूॅं। उनके इस वक्तव्य ने जन मानस का ध्यान सहज ही आर्कशत कर लिया। उस समय संचार मंत्रालय की तुलना में महत्वपूर्ण ने अपने परिश्रम से उसका महत्व बढा दिया। काग्रेस के महासचिव पद पर रहते हुए बहुगुणा ने अपनी संगठनात्मक क्षमता को धाक पूरे देष में जमाली थी और को अक्ष बारी थी प्रषासनिक योग्यता का परिचय देने की। उन्होने संचार विभाग को नवीनतम तकनीको से जोड़ा और संचार व्यवस्था का विस्तारण कर दूर दराज के गाॅंवो तक उसकी सुविधाओं को पहुॅंचाने की योजना बनाई। भारतीय प्रषानिक सेवा का वरिश्ठ अधिकारी इस मंत्रालय का सचिव होता था। किन्तु पहली बार उन्होने कहा था आपका सेवा काल तो तीस वर्शो का है किन्तु एक मंत्री के पास केवल पाॅंच वर्श ही होते है इसलिए मुझे छह गुना तेजी से काम करना होगा उनके कार्यालय में व्यापक स्तर पर डाक घर खोले गए। ग्रामीण एवं षहरी संचार व्यवस्था मे चुस्ती लाने के लिए उन्होने नए तरीके खोजे अधिकरियों द्वारा भेजी गयी रिपोर्टो पर ही आश्रित न रहा करे। उन्होने अपने कार्यालय मे कुछ लोगो को इालिए नियुक्त कर रखा था कि वे प्रतिदिन वेष के किसी भाग मे टेलीफोन कर उस इलाके की झकझोरा फलस्वरूप अधिकारी अधिक चुस्त एवं कार्यषील हुए और संचार सेवाओं में सराहनीय सुधा आ गया। विभाग के संचालन में वे किसी का भी हस्तक्षेप नहिं होने देते थे। मंत्री के रूप मे राश्ट्रीय यतर पर यह उनकी पहली परीक्षा थी। वे पूरी तरह से उसमे सफल हुए। देष में उनकी छवि एक अत्यन्त कुषल संगठनकता एवं योग्य प्रषासक की बन गयी थी। उनकी सफलता इस बात से आंकी जा सकति है कि आज भी संचार मंत्रियों की चर्चा होती है तो बहुगुणा सबसे सफल मंत्री के रूप में याद किए जाते है।
फरवरी 1974 विधान सभा चुनावों में बहुगुणा की लहर थी उस समय चैधरी चरण सिहं के नेतृत्व में समूचा विपक्ष काग्रेस के विरूद्व एकजुट था। काग्रेस विरोधी माहौल में भी बहुगुणा ने चुनाव में बाजी जी ली। चुनाव परीणामों के तहत 425 की विधान सभा में काग्रेस के 213 सदस्य चुन कर पहुॅंचे। सिर्फ एक के बहुमत से सरकार बनाना अत्यधिक कठिन कार्य था फिर भी उन्होने खुले दिल दिमाग से सी.पी. आई और अन्य प्रगतिषील घटको के सर्मथन से 12 सदस्यो का मंत्रिमण्डल बना दिया। प्रदेष के मंत्रीमण्डल में पहली बार सभी समुदायों मजहबो जातियों यहाॅं तक कि सिक्खों को भी प्रतिनिधित्व मिला।
बहुगुणा ने उत्तर प्रदेष की राजनीति में परम्परा एवं परिवर्तन का समन्वय किया 1974 तक उत्तर प्रदेष में हुए मुख्य मंत्रियो मे से वे सबसे युवा मुख्यमंत्री थे।