कोरोना संकट में मानसिक स्वास्थ्य प्रबंधन,मिट्टीस्पर्श से सकारात्मक प्रभाव

High Light # कोरोना वायरस की एक प्रजाति है, जिसका बाह्य आवरण कांटों के मुकुट जैसा दिखाई पड़ता है। मुकुट को अंग्रेजी में *क्रॉउन* तथा लैटिन भाषा में *कोरोना* कहते हैं अतः इसका नाम कोरोना पड़ा # व्यक्ति को संक्रमित करने के बाद यह अपनी संख्या बहुत तेजी से बढ़ाने लगता है, जिससे बीमार व्यक्ति के खांसने ,छींकने के माध्यम से उसके शरीर से निकले हुए वायरस से दूसरे व्यक्ति या वस्तुएं भी संक्रमित हो जाती है # आजकल सोशल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया, अनवरत कोरोना संक्रमण संबंधी सूचनाएं प्रसारित कर रहे हैं। उनमें कई समाचार फर्जी भी होते हैं # मिट्टी का  स्पर्श फूल और पौधे मनुष्य के मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालते है।

# डॉ कामिनी वर्मा एसोसिएट प्रोफेसर ;Kaminigyan19@gmail.com

31 दिसंबर 1999 में चीन के  वुहान प्रांत में कोविड-19 वायरस के संक्रमण से आरंभ हुआ *कोरोना संकट* आज विश्व के लगभग सभी देशों को संक्रमित करता हुआ *वैश्विक आपदा* का रूप धारण कर चुका है। कोरोना वायरस की एक प्रजाति है, जिसका बाह्य आवरण कांटों के मुकुट जैसा दिखाई पड़ता है। मुकुट को अंग्रेजी में *क्रॉउन* तथा लैटिन भाषा में *कोरोना* कहते हैं अतः इसका नाम कोरोना पड़ा। यह मनुष्य तथा पशुओं में श्वसन संबंधी बीमारी उत्पन्न करता है। पशुओं की प्रतिरोधक क्षमता अपेक्षाकृत अधिक होती है अतः इसके संक्रमण से मानवजाति अधिक प्रभावित होती है । यह व्यक्ति के श्वसन तंत्र पर आक्रमण करके फेफड़ों को घातक रूप से संक्रमित करता है। सर्वप्रथम संक्रमित व्यक्ति के शरीर का तापमान बढ़ता है तत्पश्चात उसे सूखी खांसी होती है और 1 सप्ताह बाद श्वास लेने में परेशानी होने लगती है ।व्यक्ति को संक्रमित करने के बाद यह अपनी संख्या बहुत तेजी से बढ़ाने लगता है, जिससे बीमार व्यक्ति के खांसने ,छींकने के माध्यम से उसके शरीर से निकले हुए वायरस से दूसरे व्यक्ति या वस्तुएं भी संक्रमित हो जाती है ।संक्रमित वस्तुओं के सानिध्य में आने या जानवरों के संपर्क में अधिक समय तक रहने वाला अथवा कच्चा मांस खाने से भी इस इस वायरस को विस्तार मिलता है।

      संक्रमित व्यक्ति के नाक, आंख व मुंह के स्राव से गुणात्मक दर से फैलने वाली, अचानक अस्तित्व में आई यह एक ऐसी महामारी है, जिसके विषय में पहले ना देखा गया ना सुना गया था । और जिसके विषय में आज भी अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है।  न तो इससे बचाव का अभी तक कोई वैक्सीन ही बन सका है ना ही कोई कारगर दवा। सामाजिक दूरी और जागरूकता ही इससे बचने का उपाय है। क्योंकि संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से इस बीमारी को विस्तार मिलता है, अतः अपनी जनता को संक्रमण से बचाने के लिए अधिकांश देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने अपने देशों में लॉकडाउन की नीति अपनाई है।

        लाकडाउन की दीर्घ कालीन अवधि में घरों के अंदर सीमित हो जाने, हजारों की संख्या में घर से दूर रहकर स्वदेश व विदेश में रहकर अध्ययन करने वाले विद्यार्थी व नौकरी पेशा लोग, गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर करने वाले दिहाड़ी मजदूर, बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं सभी अपने-अपने कारणों से तनाव और व्यग्रता की स्थिति से गुजर रहे हैं। जिससे उनका  मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। मानसिक रुग्णता सामान्य तौर पर आंखों से दिखाई नहीं पड़ती अतः उसके संबंध में लोग ध्यान नहीं देते । परंतु समस्या अधिक बढ़ जाने पर यह शारीरिक लक्षणों में प्रकट होने लगता है मानसिक अशांति से  जीवन की सरसता नष्ट होने लगती है, आंतरिक असंतोष व उद्वेग का ज्वर हृदय की कोमलता व मस्तिष्क की उर्वरा शक्ति को क्षीण कर देता है। मानसिक उलझनों से ग्रसित मस्तिष्क दिनों दिन विकृत हो जाते हैं।

    यह दुष्प्रभाव कई बार आक्रामक या  अप्रत्याशित विचित्र व्यवहार के रूप में भी देखने को मिलता है। वैज्ञानिक शब्दावली में इसे *केबिन फीवर* के नाम से संबोधित किया जाता है ।यह दीर्घकाल तक एक सीमित स्थान, क्षेत्र  में रहने से उत्पन्न चिंता, बेबसी और क्रोध है। मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का विचार है निरंतर घर के अंदर रहने की एकरसता और ऊब मनुष्यों के द्वंद्व को बढ़ा सकती है। कोरोनावायरस के संक्रमण से भय के वातावरण में उत्पन्न लाचारी, उदासीनता और निराशा से स्वस्थ लोग भी अवसाद और व्यग्रता  के शिकार हो रहे हैं।

आजकल सोशल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया, अनवरत कोरोना संक्रमण संबंधी सूचनाएं प्रसारित कर रहे हैं। उनमें कई समाचार फर्जी भी होते हैं। जो लोग लगातार इनके संपर्क में रहते हैं उन पर नकारात्मक प्रभाव अधिक पड़ता है। अतः इनसे दूरी बनाकर रहना बेहतर होगा। विश्वसनीय स्रोतों वाले समाचार देखें। आत्मशक्ति और आत्मविश्वास को मजबूत बनाए रखें। मनुष्य में असीम शक्तियां व  संभावनाएं अंतर्निहित होती है। मनोविकारों से ग्रसित व्यक्तियों से वार्तालाप करके इन शक्तियों को उजागर करके इनके विकास में प्रोत्साहित करें। व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक , व चिकित्सीय स्तर पर पीड़ित व्यक्ति का सांवेगिक व भावनात्मक सहयोग प्रदान कर उसके कष्ट को कम करने का प्रयास करें।

         मानव जीवन में सबसे सुंदर वस्तु स्नेह, सद्भाव और आत्मीयता है। एक दूसरे के प्रति जहां इस प्रकार की भावना होती है वहां अभावग्रस्त व बेबसी की स्थिति में भी व्यक्ति मानसिक शांति व संतोष अनुभव करता है मूर्धन्य मनोविश्लेषण *सिगमंड फ्रायड* का वक्तव्य है , “समस्त मानसिक विकृतियों का कारण स्नेह का अभाव है , स्नेह स्वीकार करने तथा देने की तत्परता मानसिक स्वास्थ्य का लक्षण है।” मानसिक अशांति से आवृत व्यक्ति, सामाजिक संबंध स्थापित करने के स्थान पर शराब आदि नशे का सेवन कर के अंतर्द्वंद से निजात पाना चाहता है । पर नशे का प्रभाव समाप्त होते ही उद्वेगों से आच्छादित हो जाता है।

      कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता अत्यधिक क्षीण हो जाने से व्यक्ति इस बीमारी के लक्षणों से होने वाली पीड़ा का सामना नहीं कर पाता। अतः प्रतिरोधक तंत्र को सुदृढ़ बनाने के लिए नियमित गर्म पानी पिए और प्रोटीन युक्त आहार दाल आदि का सेवन करें । स्वस्थ रहने के लिए विटामिन सी बहुत जरूरी होता है इससे शरीर की इम्युनिटी बढ़ती है जिससे प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है। विटामिन सी खट्टे फलों, नीबू, संतरा ,मौसंबी ,आंवला में पर्याप्त रूप से पाया जाता है ।अतः इन्हें आहार में नियमित रूप से शामिल करना चाहिए च्यवनप्राश ,तुलसी , दालचीनी ,कालीमिर्च ,अदरक, मुनक्का से बनी हर्बल चाय श्वसन क्रिया में आराम पहुंचाती है।

     आसन ,प्राणायाम और ध्यान रोग प्रतिरोधक शक्ति में वृद्धि करके कोरोना के संक्रमण से बचाव करने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं। फोर्टिस हेल्थकेयर में मानसिक स्वास्थ्य विभाग के निदेशक डॉ समीर पारेख का विचार है व्यायाम करने से तनाव कम किया जा सकता है। इसलिए जॉगिंग , घर के चारों तरफ वाकिंग, सीढ़ियों से ऊपर जाना ऊपर तथा नीचे आना जैसी शारीरिक गतिविधियां प्रतिदिन 30 से 40 मिनट तक करनी चाहिए। बागवानी करने से भी मानसिक तनाव कम होता है। लोग परेशानियां भूल जाते हैं, डिप्रेशन की समस्या पर भी नियंत्रण किया जा सकता है । चूहों पर किए गए शोध से इस बात की पुष्टि होती है कि मिट्टी का  स्पर्श फूल और पौधे मनुष्य के मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालते है।

       आइसोलेशन में रह रहे लोगों के लिए यह समय भागदौड़ युक्त ,रफ्तार भरी  जिंदगी से भिन्न रचनात्मक कार्य करने का अवसर है। जिसमें अनवरत व्यस्त रहने के कारण जो कार्य ना कर सके हो वह अब कर सकते हैं। संगीत, पेंटिंग, रचनात्मक लेखन, डायरी लेखन, संस्मरण लेखन का कार्य बखूबी किया जा सकता है। अच्छी पुस्तकें पढ़ी जा सकती है। पुस्तके ना सिर्फ इंसान अच्छा इंसान बनाती हैं, बल्कि पुस्तक पढ़ने से मस्तिष्क का अच्छा व्यायाम होता है। इससे दिमाग स्वस्थ रहता है और मानसिक क्षमता में वृद्धि होती है। यह समय शारीरिक दूरी बनाने का है इस समय दूरभाष पर मित्रों ,रिश्तेदारों ,परिचितों से कुशल संवाद करके सामाजिक दायरा बढ़ाते हुए रिश्तो को मजबूती प्रदान करने से भी मानसिक शक्ति मजबूत होती है। और व्यक्ति प्रसन्न रहता है।

इस बात का ध्यान रखना चाहिये एकांत दंड न होकर व्यक्तिगत विकास और आत्म चिंतन का साधन है और विश्व के बहुत से महान कार्य एकांतवास में ही संपन्न हुए हैं।जो लोग परिवार के साथ हैं वह पारिवारिक जनों के साथ गुणवत्ता युक्त समय व्यतीत करें । बच्चों और वृद्धजनों की प्रतिरोधक क्षमता भी कम होती है और उनकी विशेष देश देखरेख की आवश्यकता भी होती है अतः उनके साथ अधिक समय व्यतीत करें, उनसे बात करें,  प्रेरक प्रसंगों पर  उनके साथ चर्चा करे व बुजुर्गों के अनुभवों से सीख लेकर अपने जीवन में शामिल करें। आपसी संवाद से बहुत सी समस्याओं का समाधान अनायास ही हो जाता है और संबंधों को सुदृढ़ता भी मिलती है और आंतरिक खुशी भी। जो निश्चित ही तनाव को खत्म करने में शत-प्रतिशत सहायक होती है।

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