भारत, 2027 तक जापान और जर्मनी को पीछे छोड़ने को तैयार
एक महाशक्ति के रूप में भारत के उभरने की संभावनाएं – लक्ष्मी पुरी
वुल्फ भारत की अनूठी शक्तियों और बुनियादी सिद्धांतों को भी पूरी तरह से ध्यान में नहीं रखते हैं। पीपीपी के संदर्भ में पहले ही दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका भारत, 2027 तक जापान और जर्मनी को पीछे छोड़ने को तैयार है। दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाले इस देश के पास ऐतिहासिक रूप से सबसे बड़ा युवा समूह है, जो संभावित रूप से मानव संसाधन का एक मजबूत भंडार और मध्यम वर्ग के विस्तार के साथ महत्वपूर्ण एवं बढ़ती क्रय शक्ति से लैस है। प्रजनन दर में गिरावट और युवकों व युवतियों को सोच-समझकर तथा निरंतर शिक्षा एवं कौशल प्रदान करते हुए, यह देश एक बड़ा जनसांख्यिकीय लाभ हासिल करने और पर्याप्त रूप से मान्यता प्राप्त अपनी तुलनात्मक खूबियों का लाभ उठाने के लिए तैयार है।
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स्थिरता का कारक
वुल्फ उन आंतरिक एवं बाहरी परिस्थितिजन्य व नीतिगत कमियों की ओर भी इशारा करते हैं, जो लक्ष्य तक पहुंचने की भारत की राह में बाधक हो सकते हैं। उनका यह सही मानना है कि भारत को “स्थिरता को बनाए रखने”; शिक्षा में सुधार; कानून के शासन की रक्षा करने; बुनियादी ढांचे का उन्नयन; निवेश के लिए सर्वोत्तम श्रेणी का वातावरण प्रदान करने; आवक निवेश को प्रोत्साहित करने; और स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में अपने बदलाव को तेज करने जैसी विभिन्न ‘आंतरिक चुनौतियों’ पर काबू पाने की जरूरत है”। सौभाग्य से, मोदी के भारत ने इन पहलुओं पर उल्लेखनीय एवं कुछ मामलों में तो जबरदस्त सुधार दिखाया है और इन सुधारों को आगे भी जारी रखना चाहिए।
दक्षिण एशिया में हमारे चारों ओर घटित हो रही घटनाओं के आलोक में, स्थिरता का अनुपात वास्तव में जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही अहम क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने, नागरिक राष्ट्रवाद का निर्माण करने और हमारे उदार लोकतंत्र एवं आवश्यक सुधारों को अस्थिरता, अराजकता एवं आतंकवाद के उभार और स्वयं जी-7 ने जिसके खिलाफ लड़ने की कसम खाई है- सभी स्रोतों से दूसरे देशों द्वारा सूचनाओं में हेरफेर एवं हस्तक्षेप (एफआईएमआई)- से मुक्त रखने की हमारी क्षमता भी है।
महत्वपूर्ण रूप से अब जबकि प्रधानमंत्री ने अपना ऐतिहासिक तीसरा कार्यकाल शुरू किया है, यह याद करना प्रासंगिक है कि एशले टेलिस ने अपनी यादगार पुस्तक “ग्रास्पिंग ग्रेटनेस: मेकिंग इंडिया ए ग्रेट पावर” में वैसी निरंतर राजनीतिक इच्छाशक्ति, फोकस और आत्मविश्वास की आवश्यकता की ओर इशारा किया है, जिसे अकेले पीएम मोदी ने भारत की महानता की कल्पना करने और उसे आगे बढ़ाने में दिखाया है। यह पुस्तक घरेलू वीटो धारकों और विशेष हितों वाले विवादास्पद लोकतंत्र, अदूरदर्शी विपक्ष और महत्वपूर्ण सुधारों को अवरुद्ध करने वाले क्षेत्रीय नेताओं के बारे में भी चिंता व्यक्त करती है।
मार्टिन वुल्फ की यह रूढ़िवादी सलाह कि भाजपा सरकार को “भारत के अपने सांस्कृतिक संघर्षों के बजाय अर्थव्यवस्था एवं कल्याण से संबंधित अपने प्रयासों को फिर से व्यवस्थित करना चाहिए” अनुचित है। मोदी सरकार के ‘सबका विकास’ का फोकस हमेशा सबके लिए, सबका, सबके द्वारा और सबके साथ आर्थिक विकास एवं कल्याण पर रहा है।
वर्ष 2014 के बाद से, इस सरकार ने आजाद भारत के इतिहास में किसी भी पिछली सरकार की तुलना में ज्यादा कल्याणकारी लाभ प्रदान करने की दिशा में काम किया है। कुल 800 मिलियन लोगों को मुफ्त भोजन प्रदान करने से लेकर रियायती आवास, स्वच्छता, स्वास्थ्य बीमा, शिक्षा एवं कौशल, ऊर्जा सुलभता एवं वित्तीय व डिजिटल समावेशन संबंधी सामर्थ्य, आजीविका, रोजगार और ग्रामीण विकास तक, कल्याण के क्षेत्र में मोदी के भारत ने नए मानक स्थापित किए हैं।
बड़े आर्थिक सुधार
जीएसटी का कार्यान्वयन; दिवाला एवं बैंकिंग कोड (आईबीसी); परिसंपत्ति मुद्रीकरण; श्रम कानून सुधार; स्टार्ट-अप इंडिया; तथा उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (पीएलआई) जैसे बड़े आर्थिक सुधार भारत की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने और नवाचार को बढ़ावा देने की दिशा में परिवर्तनकारी साबित हुए हैं। निवेश के प्रति अनुकूल रूख रखने वाली मोदी सरकार ने 25,000 अनावश्यक अनुपालनों को समाप्त कर दिया है तथा 1,400 से अधिक पुराने कानूनों को निरस्त कर दिया है, जो व्यापार, उद्योग और एफडीआई के लिए एक अनुकूल नीतिगत वातावरण का संकेत है।