आचार्य श्री महाश्रमणजी को जोधपुर पधारने का निवेदन – आप आपरौ गिलो करै, ते आप आपरो मंत।सुणज्यो रे शहर रा लाका, ऐ तेरापंथी तंत॥
हिमालयायूके न्यूजपोर्टल एवं दैनिक समाचार पत्र के लिए मोनिका की रिपोर्ट
भीलवाड़ा, तेरापंथ समाज जोधपुर के लिए हर्ष की घोषणा समाज के प्रमुख संगठनों से तेरापंथ सभा तेरापंथ महिला मंडल तेरापंथ युवक परिषद के प्रमुख कार्यकर्ताओं का एक प्रतिनिधिमंडल समस्त समाज की तरफ़ से आचार्य श्री महाश्रमणजी को जोधपुर पधारने का निवेदन करने के लिये भीलवाड़ा गया
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गुरुदेव ने जोधपुर समाज की माँग को पर्याप्त समय देकर गंभीरता से सुना और बाद में यह आश्वासन दिया 2022 छापर चतुर्मास के पश्चात जोधपुर को स्पर्स करेंगे । गुरुदेव 2013 में जोधपुर पधारे थे ।
इस दल में तेरापन्थी महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विजयराजजी तेरापंथ क्षेत्रिय सभा सरदारपुरा के अध्यक्ष माणकजी तातेड मंत्री महावीरजी चौपड़ा सभा के पुर्व अध्यक्ष पन्नालालजी कागोत शांतिलालजी चोपड़ा तेरापंथ महिला मण्डल मंत्री चन्द्राजी जीरावला पुर्व अध्यक्ष विमलाजी बैद ,उपाध्यक्ष मोनिका चौरडिया तेरापंथ युवक परिसद् अध्यक्ष महावीरजी चौधरी मन्त्री कैलाशजी तातेड पुर्व अध्यक्ष रतनजी चौपड़ा सतीशजी बाफना सुनिलजी बैद एंव वरिष्ठ सोहनराजी तातेड मर्यादाकुमारजी कोठारी अशोकजी तातेड एवं सभा , महिला मण्डल युवक परिसद् के अनेक कार्यकर्ता सम्मिलित थे ।
सभा अध्यक्ष माणकजी तातेड ने गुरुदेव की घोषणा के लिए गुरुदेव के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की ।
श्वेताम्बर तेरापन्थ, जैन धर्म में श्वेताम्बर संघ की एक शाखा का नाम है। इसका उद्भव विक्रम संवत् 1817 (सन् 1760) में हुआ। इसका प्रवर्तन मुनि भीखण (भिक्षु स्वामी) ने किया था जो कालान्तर में आचार्य भिक्षु कहलाये। वे मूलतः स्थानकवासी संघ के सदस्य और आचार्य रघुनाथ जी के शिष्य थे।
आचार्य संत भीखण जी ने जब आत्मकल्याण की भावना से प्रेरित होकर शिथिलता का बहिष्कार किया था, तब उनके सामने नया संघ स्थापित करने की बात नहीं थी। परंतु जैनधर्म के मूल तत्वों का प्रचार एवं साधुसंघ में आई हुई शिथिलता को दूर करना था। उस ध्येय मे वे कष्टों की परवाह न करते हुए अपने मार्ग पर अडिग रहे। संस्था के नामकरण के बारे में भी उन्होंने कभी नहीं सोचा था, फिर भी संस्था का नाम तेरापंथ हो ही गया। इसका कारण निम्नोक्त घटना है।
जोधपुर में एक बार आचार्य भिक्षु के सिद्धांतों को माननेवाले 13 श्रावक एक दूकान में बैठकर सामायिक कर रहे थे। उधर से वहाँ के तत्कालीन दीवान फतेहसिंह जी सिंधी गुजरे तो देखा, श्रावक यहाँ सामायिक क्यों कर रहे हैं। उन्होंने इसका कारण पूछा। उत्तर में श्रावकों ने बताया श्रीमन् हमारे संत भीखण जी ने स्थानकों को छोड़ दिया है। वे कहते हैं, एक घर को छोड़कर गाँव गाँव में स्थानक बनवाना साधुओं के लिये उचित नहीं है। हम भी उनके विचारों से सहमत हैं। इसलिये यहाँ सामायिक कर रहे हैं। दीवान जी के आग्रह पर उन्होंने सारा विवरण सुनाया, उस समय वहाँ एक सेवक जाति का कवि खड़ा सारी घटना सुन रहा था। उसने तत्काल 13 की संख्या को ध्यान में लेकर एक दोहा कह डाला–
आप आपरौ गिलो करै, ते आप आपरो मंत।सुणज्यो रे शहर रा लाका, ऐ तेरापंथी तंत॥
बस यही घटना तेरापंथ के नाम का कारण बनी। जब स्वामी जी को इस बात का पता चला कि हमारा नाम तेरापंथी पड़ गया है तो उन्होंने तत्काल आसन छोड़कर भगवान को नमस्कार करते हुए इस शब्द का अर्थ किया — हे भगवान यह तेरा पंथ है।
हमने तेरा अर्थात् तुम्हारा पंथ स्वीकार किया है। अत: तेरा पंथी है।
तेरापन्थ मे १० आचार्यो की गौरवशाली परम्परा है। आचार्य श्री भिक्षु२आचार्य श्री भारीमाल आचार्य श्री रायचन्द आचार्य श्री जीतमल आचार्य श्री मघराज आचार्य श्री माणकलाल आचार्य श्री डालचन्द आचार्य श्री कालूराम९आचार्य श्री तुलसी आचार्य श्री महाप्रज्ञ आचार्य श्री महाश्रमण
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