जितना ज्यादा झूठ सफाई -उतनी ही वोटों की कमाई जलपुरुष राजेंद्र सिंह

राजनीतिक दल देश की सत्ता हथियाने में जुटे हैं. किसी भी राजनैतिक दल का घोषणा पत्र पानी, पर्यावरण या जलवायु परिवर्तन के संकट पर कुछ भी नहीं बोलता है. यह केवल वोट जुटाने की तिकड़म लगाते रहते हैं. वोट देने वाले भी भ्रमित हैं. आज सत्ता समाज को भ्रमित करने में जुटा है.





2018 के चुनाव में किसान कर्ज मुक्ति नहीं बल्कि कर्ज माफी मुद्दा बना रहा. 2019 का चुनाव भी ऐसा ही होगा. पर्यावरण बिगाड़ने वाले वोट खरीदेंगे. पानी व हवा को दूषित करने वाले वोट खरीदने वाले का काम करेंगे. जलवायु बिगड़ने से बेमौसम बरसात से मिट्टी कटकर बहती रहेगी. यही प्रभाव हमारी धरती पर बाढ़-सुखाड़ लेकर आता रहेगा. बाढ़-अकाल-राहत के नाम पर भारत का खजाना खाली होता रहेगा.

राजनेताओं के चहेते राहतकोष, जलप्रबंधन व जलवायु प्रबंधन योजना बनाने के नाम पर अपनी जेब भरते रहेंगे. ‘नमामि गंगे’ जैसी भ्रष्टाचारी प्रदूषण नियंत्रण योजनाएं बनाते रहेंगे. राजनैतिक दलों के घोषणापत्र दिखावा करके वोट लेने वाला भ्रमजाल फैलाते रहेंगे. जो जितना या ज्यादा झूठ सफाई से बोलेगा वही उतनी ही वोटों की कमाई अपने लिए कर लेगा. आज तो भारत में ‘सत्यमेव जयते’ को ‘झूठ में जयते’ में बदल दिया गया है. ऐसा काम राजनेता ही करने में सफल होता है.

किसी भी राजनैतिक दलों में भविष्य रक्षा हेतु पर्यावरण की चिंता नहीं है. संस्कृति रक्षा की दुहाई देने वाले दल ने तो नंगा नाच करके दिखाया. भारतीय आस्था-संस्कृति और प्रकृति रक्षा की दुहाई देने वाले सत्ताधारी दल ने गंगा जी की अविरलता हेतु गंगा सत्याग्रह कर रहे थे, उन्हें जान से मरवा दिया है. एक को गुम करवा दिया है. एक अन्य संत पिछले 67 दिन से आमरण उपवास पर है. उनकी गुहार सुनी नहीं जा रही है. विपक्ष ने भी गंगाजी पर मौन धारण कर रखा है.

पर्यावरण रक्षा के लिए ऐतिहासिक विरासत वाली पार्टी भी चुनाव में पर्यावरणीय चेतना से अपनी जीत का रास्ता नहीं खोलती है. बल्कि केवल भ्रष्टाचार कर्जमाफी को प्रसिद्धि मान लेती है. माफी से गलती करके माफ करने की आदत डालता है. कर्जदार बनकर ‘घी पीना’ भारत में अच्छा नहीं मानते थे. आज कर्ज लेकर घी पीने के हम आदी बन रहे हैं. अब इससे मुक्ति का विचार करने वाला दल ही राजकर्ता बना है. भारत का किसान कर्जदार नहीं बने. ऐसी प्रणाली बनाएं. कर्ज मुक्त तंत्र खड़ा किया जाए.

राजनैतिक दलों को भारतीय आस्था बचाए रखना संवैधानिक तौर पर जरूरी लगती हो तो भी साझे भविष्य की पर्यावरण रक्षा बिना यह सब नहीं करना चाहिए. भारतीय आस्था पर्यावरण हेतु शुभ की चेतना जगाती है. आज के राजनैतिक दल केवल लाभ कि रणनीति और चुनावी राजनीति बनाते हैं. इसीलिए इन के एजेंडे में लालची विकास के नारे हैं. स्थाई विकास कहीं नहीं दिखता.

भारत के लालची विकास ने विस्थापन और प्रकृति विनाश ही किया है. विकास और समृद्धि के बीच अंतर है. यह इन्हें समझ नहीं आता है. लालची सपनों का भारत बनाने में जुटे हैं. पर परिणाम यह है प्रदूषण रात-दिन बढ़ रहा है. हमारे देश की सभी राजधानी उन विकास के विनाश की शिकार हैं.

राजनैतिक राजधानी अब धुए से दूषित हो गई है. आर्थिक राजधानी की पांचों नदियां मीठी, दहिसर, पहुंसर और उल्लास बालधूनी सभी शेष नदियां भी नाले बन गई हैं. ज्ञान की राजधानी काशी ने भारत की पहली पहचान गंगा को भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा दिया है. कहते माई हैं, लेकिन मैला ढोने वाली खच्चर गाड़ी में बदल दिया है. अब हमारी माई को भी राजनेताओं ने कमाई का साधन बना दिया है.

पटना, पुणे, मुंबई, चेन्नई सभी बाढ़ की चपेट में चढ़ गये हैं. जम्मू में झेलम ने पहाड़ पर बाढ़ ला कर हमें डरा दिया है. राजनेताओं ने झूठ से डरा कर भ्रमित करके अपना उल्लू सीधा करना सीख लिया है. प्रतिदिन नए राजनैतिक दल बन रहे हैं. नए राजनेता उभर रहे हैं. नए अखाड़े और नए योद्धा तो हम प्रतिदिन पैदा कर रहे हैं लेकिन पुराने दलों में पड़कर कोई सुधार की सूची बनाता नहीं दिखता है, क्योंकि राजनैतिक दलों को राजनेता अपनी बापौती बनाते हैं.

भारत की जनता वोट तो देती है लेकिन यह सत्ता उन्हें झूठ की परख नहीं होने देता. जब तक झूठ का पता चलता है तब तक एक मुश्त राजा अपना राजकाल पूरा कर चला जाता है. हमारी न्यायपालिका भी ऐसे नेताओं से डर कर अपने को अलग करने लगी है. भारतीय न्याय प्रणाली से हमारी आस्था नष्ट हो रही है. यह भी राजनेताओं ने ही कराया है. मैं राजनैतिक दलों पर दोष नहीं मढ रहा हूं. आज तो हमारे नेता और दल ऐसा करके गौरव पा रहे हैं. भय और असत्य का राज है. इससे मुक्ति का कोई उपाय नहीं सोचता है. इसलिए आज का वातावरण, पर्यावरण, जलवायु में प्रदूषण ने, भ्रष्टाचार ने जनता को लाचार बीमार इंसान बना दिया है.

व्यक्ति को प्रदूषण से मारना ज्यादा खतरनाक है. हथियार से मारने के मुकाबले आज प्रदूषण से मारने वाले के खिलाफ सामान्य मुकदमे कर माफ कराने का काम राजनेता कर रहे हैं.

हमें ऐसे लोगों को देश चलाने की जिम्मेदारी देनी चाहिए, जिनका जीवन साझा है. देश का नेता अतिक्रमण-प्रदूषण-शोषण करने वालों को ही सभी प्रकार से बढ़ा रहा है. प्रदूषण भी उसी गति से दिल्ली और भारत के अन्य राज्यों में बढ़ रहा है. अब नए दल बनना बंद हों. जो जलवायु अनुकूलन और उन्मूलन के काम करें, बस उसी को वोट देना चाहिए.

जो चुनाव से पहले गंगा को अविरल बनाने की दुहाई देता है और सत्ता में आने के बाद गंगा मां की अविलता-निर्मलता के लिए काम करने वालों को मारता हो, ऐसे लोगों को नेता ना बनाएं.

जल पुरुष के नाम से प्रसिद्ध ""राजेन्द्र सिंह"" का जन्म 6 अगस्त 1959 को, उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के डौला गाँव में हुआ था | राजेन्द्र सिंह भारत के प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता हैं। वे जल संरक्षण के क्षेत्र में कार्य करने के लिए प्रसिद्ध हैं।उन्होंने तरुण भारत संघ (गैर-सरकारी संगठन) के नाम से एक संस्था बनाई। हाई स्कूल पास करने के बाद राजेन्द्र ने भारतीय ऋषिकुल आयुर्वेदिक महाविद्यालय से आयुर्विज्ञान में डिग्री हासिल की। उनका यह संस्थान बागपत उत्तरप्रदेश में स्थित था। उसके बाद राजेन्द्र सिंह ने जनता की सेवा के भाव से गाँव में प्रेक्टिस करने का इरादा किया। साथ ही उन्हें जयप्रकाश नारायण की पुकार पर राजनीति का जोश चढ़ा और वे छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के साथ जुड़ गए। छात्र बनने के लिए उन्होंने बड़ौत में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से सम्बद्ध एक कॉलेज में एम.ए. हिन्दी में प्रवेश ले लिया |
1981 में उनका विवाह हुए बस डेढ़ बरस हुआ था, उन्होंने नौकरी छोड़ी, घर का सारा सामान बेचा। कुल तेईस हजार रुपए की पूँजी लेकर अपने कार्यक्षेत्र में उतर गए। उन्होंने ठान लिया कि वह पानी की समस्या का कुछ हल निकलेंगे। आठ हजार रुपये बैंक में डालकर शेष पैसा उनके हाथ में इस काम के लिए था।
राजेन्द्र सिंह के साथ चार और साथी आ जुटे थे, यह थे नरेन्द्र, सतेन्द्र, केदार तथा हनुमान। इन पाँचों लोगों ने तरुण भारत संघ के नाम से एक संस्था बनाई जिसे एक गैर-सरकारी संगठन (एन.जी.ओ) का रूप दिया। दरअसल यह संस्था 1978 में जयपुर यूनिवर्सिटी द्वारा बनाई गई थी, लेकिन सो गई थी। राजेन्द्र सिंह ने उसी को जिन्दा किया और अपना लिया। इस तरह तरुण भारत संघ (TBS) उनकी संस्था हो गई। 2015 में उन्होंने स्टॉकहोम जल पुरस्कार जीता, यह  "पानी के लिए नोबेल पुरस्कार" के रूप में जाना जाता है |

(लेखक रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित पर्यावरणविद् और सामाजिक कार्यकर्ता हैं.)

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