कैग की रिपोर्ट ने कठघरे मे खडा कर दिया
कठघरे मे UK CONGRESS GOVT.; भारतीय जनता जऩता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष, श्री अमित शाह ने 22 नव0 अल्मोड़ा, उत्तराखण्ड में उत्तराखण्ड की भ्रष्टाचारी कांग्रेस सरकार को जड़ से उखाड़ कर फेंकने की अपील कर रहे थे, उससे एक दिन पहले कैग की रिपोर्ट ने उत्तराखण्ड की कांग्रेस सरकार को और कठघरे मे खडा कर दिया- हिमालयायूकेे न्यूज पोर्टल की एक्सक्लूसिव प्रस्तुति-*
हालिया कैग की रिपोर्ट में न सिर्फ सरकारी महकमों की कारगुजारियों पर सवाल उठे हैं बल्कि सरकारी धन से करोडों रूपये के नुकसान की बात भी सामने आई है. इस रिपोर्ट में सिडकुल, कृषि, नागरिक उडयन, पॉवर कॉरपोरेशन, पीडब्लूडी और संस्कृति समेत अन्य विभाग शामिल हैं. खास बात यह है कि कैग रिपोर्ट में कुछ अनियमितताएं पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार के कार्यकाल से भी जुड़ी हैं.
सरकार चाहे मौजूदा कांग्रेस की हो या फिर पहली बीजेपी की रही हो, कैग की रिपोर्ट में भारी अनियमितताएं उजागर हुई हैं. गैरसैंण में विधानसभा सत्र के दौरान पेश हुई उसकी रिपोर्ट में सरकारी कामकाज पर गंभीर सवाल उठे हैं. इस कड़ी में सिडकुल, कृषि, नागरिक उड्डयन, पावर कारपोरेशन, पीडब्लूडी और संस्कृति समेत अन्य कईं विभागों की अनियमितताएं सामने आई हैं.
सबसे पहली बात सिडकुल यानि स्टेट इंफ्रास्ट्रक्चर एवं इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन जिसने साल 2006 में पंतनगर में दो कंपनियों को भूखंड आबंटित किए. संबंधित निजी कंपनियों ने सरकारी योजना का फायदा तो ले लिया, लेकिन वहां उत्पादन ही नहीं किया. गजब ये है कि कांग्रेस और बीजेपी के बीच सरकार की अदला बदली हो गई, लेकिन भूखंड अब तक निरस्त नहीं हुए हैं.
कैग रिपोर्ट के मुताबिक सिडकुल प्रबंधन की इस दरियादिली से 4.30 करोड के राजस्व का नुकसान हुआ. इसी तरह कैग के मुताबिक उत्तराखंड पॉवर कारपोरेशन ने साल 2011-12 और 2014-15 के बीच शॉर्टटर्म एग्रीमेंट के तहत बिजली खरीदी. लेकिन बगैर बाजार में रजिस्ट्रेशन के बिजली खरीद और बेचने से यूपीसीएल को 4.68 करोड के राजस्व का नुकसान हुआ. यानि मौजूदा कांग्रेस और पूववर्ती बीजेपी के निजाम में पावर कारपोरेशन की कार्यशैली सवालों के घेरे में है.
कैग की रिपोर्ट ने उत्तराखंड में नागरिक उड्डयन विभाग की कारगुजारियों पर सवाल खड़े किए हैं. साल 2006-07 और 2012-13 के दौरान उत्तराखंड में 6 हैलीपैड के निर्माण के लिए 5.60 करोड की रकम जारी हुई. दिलचस्प ये है कि कार्यदायी संस्था के खाते में पैसा चला गया, लेकिन जमीन मुहैया नहीं हो पाने के चलते अभी तक हैलीपेड नहीं बने हैं.
इसी कड़ी में साल 2011 में तत्कालीन सरकार ने पहले 1 लाख 5 हजार रूपये प्रतिघंटा किराये के हिसाब से डबल इंजन हेलीकॉप्टर लिया. फिर उसे मरम्मत के नाम पर हटा दिया और 1 लाख 45 हजार के किराये पर हैलीकाप्टर लिया.
जबकि शासनादेश में इसे 1 लाख 25 हजार तक रखा गया है. यानि निजी कंपनियों को 20 हजार प्रतिघंटे ज्यादा किराया दिया गया, जिससे राज्य सरकार को 10.45 करोड की चपत लगी.
कैग की रिपोर्ट के मुताबिक संस्कृति विभाग की कारगुजारी से 1.3 करोड की रकम डूब गई दरअसल, हरिद्वार जिले में उस जमीन पर एक ऑडिटोरियम बनवा दिया, जिस पर उसका मालिकाना हक ही नहीं और अधबीच काम रूकवाना पड़ा.
बहरहाल ये तो मौजूदा कांग्रेस और पूववर्ती बीजेपी की सरकार के कार्यकाल में कुछेक महकमों के बडे कारनामे हैं, लेकिन महानियंत्रक लेखा यानि कैग ने लोक निर्माण विभाग, कृषि, शिक्षा समेत अन्य विभागों की कार्यशैली पर आपत्ति जाहिर की है. जिससे ना सिर्फ वित्तीय अनियमितताएं बल्कि कईं दूसरे कारणों के चलते विभिन्न योजनाओं की धनराशि वापस करने का जिक्र है. अब देखना है कि चुनावी मौसम में गैरसैंण में पेश हुई कैग रिपोर्ट पर सियासत क्या रंग दिखाएंगी.
:: हालिया कैग रिपोर्ट में बिजली खरीद फरोख्त पर सवाल उठने के बाद, उत्तराखंड पॉवर कॉरपोरेशन के सामने लांग टर्म परचेज एग्रीमेंट करने की चुनौती है. दरअसल शॉर्ट टर्म बिजली खरीदने की प्रक्रिया में यूपीसीएल को 4.68 करोड का चूना लगने की बात सामने आई है.
विद्युत नियामक आयोग के चेयरमैन का कहना है कि अगले 25 सालों के लिए 4 सौ मेगावाट का करार हो गया है. वहीं प्रबंध निदेशक का कहना है कि आपूर्ति सुचारू रखने के लिए यूपीसीएल को शॉर्ट टर्म बिजली खरीदनी पड़ती है.
कहने की जरूरत नहीं है कि गैरसैंण में विधानसभा सत्र के दौरान पेश हुई कैग रिपोर्ट ने, उत्तराखंड पॉवर कॉरपोरेशन के लघुकालीन करार के आधार पर बिजली खरीदने पर सवाल खड़े किए. वजह ये कि बगैर बाजार में रजिस्ट्रेशन शॉर्ट टर्म एग्रीमेंट के आधार पर बिजली खरीदने में यूपीसीएल को 4.68 करोड रूपये का नुकसान हुआ था.
पूर्व मुख्य सचिव और मौजूदा विद्युत नियामक आयोग के चेयरमैन सुभाष कुमार राज्य में जरूरत के मुकाबले करीब 450 मेगावाट बिजली का उत्पादन कम हो रहा है. कैग की मंशा के मद्देनजर पहले ही अगले 25 सालों के लिए 4 सौ मेगावाट का लांग टर्म करार हो चुका है.
गौरतलब है कि कैग रिपोर्ट के मुताबिक साल 2011-12 और 2014-15 के बीच शॉर्ट टर्म एग्रीमेंट के तहत बिजली खरीदी गई. एनर्जी एक्सचेंज मार्केट में रजिस्ट्रेशन ना होने की वजह से यूपीसीएल को अतिरिक्त रकम अदा करनी पड़ी. उस प्रक्रिया के दौरान यूपीसीएल को 4.68 करोड रूपये अतिरिक्त देने पड़े.
लेकिन प्रभारी प्रबंध निदेशक एमके जैन की दलील है कि हमें नुकसान नहीं हुआ क्योंकि एनर्जी एक्सचेंज में रहते हुए भी इतना खर्च आता. उनके मुताबिक राज्य में सर्दियों के दौरान जल विद्युत उत्पादन गिर जाता है, जिसके मद्देनजर पॉवर कॉरपोरेश को शॉर्ट टर्म पॉवर परचेज करनी पड़ती है.
कैग रिपोर्ट से साफ है कि मौजूदा कांग्रेस और पूववर्ती बीजेपी के निजाम में यूपीसीएल की कार्यशैली सवालों के घेरे में रही है बहरहाल जरूरत इस बात की है कि यूपीसीएल बिजली खरीदत फरोख्त की प्रकिया को पूरी तरह पारदर्शी बनाए और नुकसान से बचने के लिए अधिकाधिक दीर्घकालीन करार करने होंगे