कालभैरव शिव का एक जानलेवा रूप
जब विनाश की मुद्रा अपना ली – कालभैरव शिव का एक मारक या जानलेवा रूप है – जब उन्होंने समय के विनाश की मुद्रा अपना ली थी। सभी भौतिक हकीकतें समय के भीतर मौजूद होती हैं। शिव भैरवी-यातना को पैदा करने के लिए उपयुक्त वस्त्र धारण करके कालभैरव बन गए। ‘यातना’ का मतलब है, घोर पीड़ा। जब मृत्यु का पल आता है, तो बहुत से जीवनकाल पूरी तीव्रता में सामने आ जाते हैं, आपके साथ जो भी पीड़ा और कष्ट होना है, वह एक माइक्रोसेकेंड में घटित हो जाएगा। उसके बाद, अतीत का कुछ भी आपके अंदर नहीं रह जाएगा। अपने ‘सॉफ्टवेयर’ को नष्ट करना कष्टदायक है। मगर मृत्यु के समय ऐसा होता है, इसलिए आपके पास कोई चारा नहीं होता। लेकिन वह इसे जितना हो सके, छोटा बना देते हैं। कष्ट को जल्दी से खत्म होना होता है। ऐसा तभी होगा, जब हम इसे अत्यंत तीव्र बना देंगे। अगर वह हल्का होगा, तो हमेशा चलता ही रहेगा।
योगिक परंपरा में शिव की पूजा ईश्वर के रूप में नहीं की जाती है। वह आदियोगी, यानि पहले योगी और आदिगुरु, यानि पहले गुरु हैं, जिनसे योगिक विज्ञान जन्मा। दक्षिणायन की पहली पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा होती है, जब आदियोगी ने इस विज्ञान को अपने पहले सात शिष्यों, सप्तऋषियों को सौंपना शुरू किया।
यह किसी भी धर्म से पहले की बात है। इंसान ने मानवता को तोड़ने-फोड़ने के विभाजनकारी तरीके ढूंढे, उससे पहले मानव चेतना को बढ़ाने के लिए जरूरी और सबसे शक्तिशाली साधनों को पहचाना और प्रचारित किया गया। उसकी गूढ़ता आश्चर्यजनक है। उस समय लोग इतने प्रबुद्ध थे या नहीं, इस सवाल का कोई मतलब नहीं है क्योंकि यह किसी खास सभ्यता या विचार प्रक्रिया से नहीं जन्मा था। यह एक आंतरिक ज्ञान से उपजा था। उन्होंने बस अपने आप को उड़ेल दिया। आप आज भी एक चीज तक नहीं बदल सकते क्योंकि जो कुछ भी कहा जा सकता है, उन्होंने वह सब बहुत ही सुंदर और समझदारी भरे रूपों में कहा। आप बस उसे समझने की कोशिश में अपना पूरा जीवन बिता सकते हैं।
हिंदू संस्कृति में पुराणों की चर्चा खूब मिलती है। इन्हीं पुराणों में से एक है – शिव पुराण। तो क्या है इस पुराण में – सिर्फ कहानियां या कहानियों के जरिए कुछ और बताने की कोशिश की गई है?
जिस विशाल खालीपन को हम शिव कहते हैं, वह सीमाहीन है, शाश्वत है। मगर चूंकि इंसानी बोध रूप और आकार तक सीमित होता है, इसलिए हमारी संस्कृति में शिव के लिए बहुत तरह के रूपों की कल्पना की गई। गूढ़, समझ से परे ईश्वर, मंगलकारी शंभो, बहुत नादान भोले, वेदों, शास्त्रों और तंत्रों के महान गुरु और शिक्षक,दक्षिणमूर्ति, आसानी से माफ कर देने वाले आशुतोष, स्रष्टा के ही रक्त से रंगे भैरव, संपूर्ण रूप से स्थिर अचलेश्वर, सबसे जादुई नर्तक नटराज, आदि। यानी जीवन के जितने पहलू हैं, उतने ही पहलू शिव के बताए गए हैं।
आम तौर पर दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में, जिस चीज को लोग दैवी या ईश्वरीय मानते हैं, उसे अच्छा ही दर्शाया जाता है। लेकिन अगर आप शिव पुराण को ध्यान से पढ़ें, तो आप शिव की पहचान अच्छे या बुरे के रूप में नहीं कर सकते। वह सब कुछ हैं – वह सबसे बदसूरत हैं, वह सबसे खूबसूरत भी हैं। वह सबसे अच्छे और सबसे बुरे हैं, वह सबसे अनुशासित भी हैं, मगर पियक्कड़ भी। उनकी पूजा देवता, दानव और दुनिया के हर तरह के प्राणी करते हैं। हमारी तथाकथित सभ्यता ने अपनी सुविधा के लिए इन हजम न होने वाली कहानियों को नष्ट भी किया, मगर शिव का सार दरअसल इसी में है।
शिव की शख्सियत जीवन के पूरी तरह विरोधाभासी या विरोधी पहलुओं से बनी है। अस्तित्व के सभी गुणों का एक जटिल संगम एक ही इंसान के अंदर डाल दिया गया है क्योंकि अगर आप इस एक प्राणी को स्वीकार कर सकते हैं, तो समझ लीजिए आप पूरे जीवन से गुजर चुके हैं। जीवन के साथ हमारा सारा संघर्ष यही है कि हम हमेशा यह चुनने की कोशिश करते हैं कि क्या सुंदर है और क्या नहीं, क्या अच्छा है और क्या बुरा। लेकिन अगर आप इस एक शख्स, जो जीवन की हर चीज का एक जटिल संगम है, को स्वीकार कर सकते हैं, तो आपको किसी चीज से कोई समस्या नहीं होगी।
अगर आप शिव पुराण की कहानियों पर ध्यान दें, तो आप देखेंगे कि इनमें सापेक्षता के सिद्धांत, क्वांटम मैकेनिक्स के सिद्धांत – पूरी आधुनिक भौतिकी – को बहुत खूबसूरती से कहानियों के जरिये अभिव्यक्त किया गया है। यह एक तार्किक संस्कृति है, इसमें विज्ञान को कहानियों के जरिये व्यक्त किया गया था। हर चीज को साकार रूप दिया गया था। मगर बाद में जाकर लोगों ने विज्ञान को छोड़ दिया और बस कहानियों को ढोते रहे। उन कहानियों को पीढ़ी दर पीढ़ी इस तरह बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता रहा, कि वे पूरी तरह मूर्खतापूर्ण लगने लगीं। अगर आप उन कहानियों में फिर से विज्ञान को ले आएं, तो यह विज्ञान को अभिव्यक्त करने का एक खूबसूरत तरीका है।
शिव पुराण मानव प्रकृति को चेतना के चरम तक ले जाने का सर्वोच्च विज्ञान है, जिसे बहुत सुंदर कहानियों द्वारा किया गया है। योग को एक विज्ञान के रूप में व्यक्त किया गया है, जिसमें कहानियां नहीं हैं, लेकिन अगर आप गहन अर्थों में उस पर ध्यान दें, तो योग और शिव पुराण को अलग नहीं किया जा सकता। एक उनके लिए है, जो कहानियां पसंद करते हैं तो दूसरा उनके लिए है, जो हर चीज को विज्ञान की नजर से देखना चाहते हैं, मगर दोनों के लिए मूलभूत तत्व एक ही हैं।
आजकल, वैज्ञानिक आधुनिक शिक्षा की प्रकृति पर बहुत शोध कर रहे हैं। एक चीज यह कही जा रही है कि अगर कोई बच्चा 20 साल की औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद व्यावहारिक दुनिया में प्रवेश करता है, तो उसकी बुद्धि का एक बड़ा हिस्सा नष्ट हो जाता है, जिसे वापस ठीक नहीं किया जा सकता। इसका मतलब है कि वह बहुत ज्ञानी मूर्ख में बदल जाता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि शिक्षा देने का एक बेहतर तरीका है, उसे कहानियों या नाटक के रूप में प्रदान करना। इस दिशा में थोड़ी-बहुत कोशिश की गई है, मगर दुनिया में ज्यादातर शिक्षा काफी हद तक निषेधात्मक रही है। जानकारी का विशाल भंडार आपकी बुद्धि को दबा देता है, जब तक कि वह एक खास रूप में आपको न दिया जाए। कहानी के रूप में शिक्षा प्रदान करना बेहतरीन तरीका होगा। इस संस्कृति में यही किया गया था। विज्ञान के सर्वोच्च आयामों को बहुत बढ़िया कहानियों के रूप में दूसरे लोगों को सौंपा गया।
शिव को हमेशा त्रयंबक कहा गया है क्योंकि उनकी एक तीसरी आंख है। तीसरी आंख का मतलब यह नहीं है कि माथे में कोई दरार है। इसका मतलब बस यह है कि उनका बोध या अनुभव अपनी चरम संभावना पर पहुंच गया है। तीसरी आंख अंतर्दृष्टि की आंख है। दोनों भौतिक आंखें सिर्फ आपकी इंद्रियां हैं। वे आपके मन को हर तरह की फालतू बातों से भरती हैं क्योंक आप जो देखते हैं, वह सत्य नहीं है। आप किसी इंसान को देखकर उसके बारे में कुछ अंदाजा लगाते हैं, मगर आप उसके अंदर शिव को नहीं देख पाते। इसलिए एक और आंख को खोलना जरूरी है, जो और गहराई में देख सके।
कितना भी सोचने से या दार्शनिक चिंतन से कभी आपके मन को स्पष्टता नहीं मिल पाएगी। कोई भी आपकी तार्किक स्पष्टता को बिगाड़ सकता है, मुश्किल हालात उसे पूरी तरह अस्त-व्यस्त कर सकते हैं। जब आपकी भीतरी दृष्टि खुल जाती है, जब आपके पास एक आंतरिक दृष्टि होती है, तभी आपको पूर्ण स्पष्टता मिलती है।
जिसे हम शिव कहते हैं, वह और कुछ नहीं, बस चरम बोध का साकार रूप है। ईशा योग केंद्र में इसी संदर्भ में महाशिवरात्रि मनाई जाती है। यह हर किसी के लिए अपने बोध को कम से कम एक स्तर बढ़ाने का एक मौका और संभावना है। शिव और योग का मतलब यही है। यह धर्म नहीं है, यह आंतरिक विकास का विज्ञान है।
महाशिवरात्रि की यह रात आपके लिए सिर्फ जागरण की रात बन कर न रह जाए, बल्कि इसे अपने लिए तीव्र जीवंतता और जागरूकता की रात बना दें। मेरी कामना और आशीर्वाद है कि आप इस अद्भुत उपहार का लाभ उठाएं, जो प्रकृति इस दिन हमें प्रदान करती है। मैं आशा करता हूं कि आप सभी इस लहर पर सवार हों और ‘शिव’ की सुंदरता और आनंद को जान पाएं।
साभार ;
HIMALAYA GAURAV UTTRAKHAND (www.himalayauk.org)
Leading Web & Daily Newspaper; publish at Dehradun & Haridwar; Mail; himalayauk@gmail.com
Mob. 9412932030