ज्योतिष के अनुसार करवा चौथ के दिन ……
करवा चौथ के दिन पत्नी कौन से रंग के कपड़े पहनें और पति अपनी पत्नी को क्या उपहार दें-
कब और कैसे मानेगा करवा चौथ वर्ष 2016 में —
हिमालयायूके न्यूज पोर्टल तथा प्रिन्ट मीडिया के लिए विशेष आलेख- पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री,(ज्योतिष-वास्तु सलाहकार)
करवा चौथ का त्यौहार महिलाओं द्वारा पूरे भारत के साथ-साथ विदेशों में भी बुधवार, 19 अक्टूबर 2016 को मनाया जाएगा। इस दिन चन्द्रमा वृषभ राशि में और रोहिणी नक्षत्र रहेगा | दरअसल करवा चौथ मन के मिलन का पर्व है. इस पर्व पर महिलाएं दिनभर निर्जल उपवास रखती हैं और चंद्रोदय में गणेश जी की पूजा-अर्चना के बाद अर्घ्य देकर व्रत तोड़ती हैं। सोलह श्रृंगार में सजी-धजी सुहागिनें करवा चौथ पर चांद की आभा लिए होंगी। आकरवा चौथ के दिन उन्हें अपने-अपने ‘चांद’ का बेसब्री से इंतजार रहेगा। इसलिए नहीं कि वे आज निर्जल हैं बल्कि इसलिए कि चंद्रदेव के दर्शन कर व अर्घ्य देकर अपने पति यानी चांद के दीर्घायु जीवन की कामना कर अखंड सौभाग्य का वर प्राप्त करना है।
व्रत तोड़ने से पूर्व चलनी में दीपक रखकर, उसकी ओट से पति की छवि को निहारने की परंपरा भी करवा चौथ पर्व की है। । इस दिन बहुएं अपनी सास को चीनी के करवे, साड़ी व श्रृंगार सामग्री प्रदान करती हैं। पति की ओर से पत्नी को तोहफा देने का चलन भी इस त्यौहार में है।
इस व्रत में महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और दांपत्य जीवन में प्रेम तथा सामंजस्य के लिए पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं। करवाचौथ व्रत, वटसावित्री एवं हारितालिका तीज के समान ही दांपत्य जीवन के लिए शुभफादायी होता है।
सभी विवाहित (सुहागिन) महिलाओं के लिये करवा चौथ बहुत महत्वपूर्ण त्यौहार हैं। ये एक दिन का त्यौहार प्रत्येक वर्ष मुख्यतः उत्तरी भारत की विवाहित (सुहागिन) महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। इस दिन विवाहित (सुहागिन) महिलाएँ पूरे दिन का उपवास रखती हैं जो जल्दी सुबह सूर्योदय के साथ शुरु होता है और देर शाम या कभी कभी देर रात को चन्द्रोदय के बाद खत्म होता है। वे अपने पति की सुरक्षित और लम्बी उम्र के लिये बिना पानी और बिना भोजन के पूरे दिन बहुत कठिन व्रत रखती हैं। पहले ये एक पारंपरिक त्यौहार था जो विशेष रूप से भारतीय राज्यों राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश के कुछ भागों, हरियाणा और पंजाब में मनाया जाता था हालांकि, आज कल ये भारत के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में सभी महिलाओं द्वारा मनाया जाता है।
हिन्दू चन्द्र-सौर (ल्यूनिसौलर) कैलेंड़र के अनुसार, करवा चौथ का त्यौहार पूर्णिमा के दिन से 4 दिन बाद (अक्टूबर या नवंबर में) कार्तिक महीने में होता है। करवा चौथ का व्रत कुछ अविवाहित महिलाओं द्वारा भी उनकी रीति और परंपरा के अनुसार उनके मंगेतरों की लंबी उम्र या भविष्य में वांछित पति पाने के लिए रखा जाता है।
विधि-विधान से करें करवा चौथ व्रत —
पति की दीर्घायु के लिए सुहागिन महिलाओं का प्रिय पर्व करवा चौथ का व्रत में महिलाएँ आज दिन भर निर्जल रहकर विधि-विधान से करेंगी। विधि-विधान से किया गया व्रत बहुत ही फलदाई होता है। इसमें व्रत की कथा सुनने का भी बहुत महत्व है।
व्रत का विधि-विधान :-
करवा चौथ के व्रत के दिन शाम को लकड़ी के पटिए पर लाल वस्त्र बिछाएँ। इसके बाद पटिए पर भगवान शिव, माता पार्वती, कार्तिकेय, गणेशजी की प्रतिमा स्थापित करें। वहीं एक लोटे पर श्रीफल रखकर उसे कलावे से बाँधकर वरुण देवता की स्थापना करें। तत्पश्चात मिट्टी के करवे में गेहूँ, शक्कर व नकद रुपया रखकर कलावा बाँधे।
इसके बाद धूप, दीप, अक्षत व पुष्प चढ़ाकर भगवान का पूजन करें। पूजन के समय करवे पर 13 बार टीका कर उसे सात बार पटिए के चारों ओर घुमाएँ। हाथ में गेहूँ के 13 दाने लेकर करवा चौथ की कथा का श्रवण करें। पूजन के दौरान ही सुहाग का सारा सामान चूड़ी, बिछिया, सिंदूर, मेंहदी, महावर आदि करवा माता पर चढ़ाकर अपनी सास या ननद को दें। फिर चाँद को अर्घ्य देकर अपने पति के हाथों से पहला निवाला खाकर व्रत खोलें।
व्रत की पौराणिक कथा :-
यह व्रत कार्तिक माह की चतुर्थी को मनाया जाता है, इसलिए इसे करवा चौथ कहते हैं। व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक द्विज नामक ब्राह्मण के सात बेटे व वीरावती नाम की एक कन्या थी। वीरावती ने पहली बार मायके में करवा चौथ का व्रत रखा। निर्जला व्रत होने के कारण वीरावती भूख के मारे परेशान हो रही थी तो उसके भाइयों से रहा न गया। उन्होंने नगर के बाहर वट के वृक्ष पर एक लालटेन जला दी व अपनी बहन को चंदा मामा को अर्घ्य देने के लिए कहा।
वीरावती जैसे ही अर्घ्य देकर भोजन करने के लिए बैठी तो पहले कौर में बाल निकला, दूसरे कौर में छींक आई। वहीं तीसरे कौर में ससुराल से बुलावा आ गया। वीरावती जैसे ही ससुराल पहुँची तो वहाँ पर उसका पति मृत्यु हो चुकी थी। पति को देखकर वीरावती विलाप करने लगी। तभी इंद्राणी आईं और वीरावती को बारह माह की चौथ व करवा चौथ का व्रत करने को कहा।
वीरावती ने पूर्ण श्रद्धाभक्ति से बारह माह की चौथ व करवा चौथ का व्रत रखा, जिसके प्रताप से उसके पति को पुन: जीवन मिल गया। अतः पति की दीर्घायु के लिए ही महिलाएँ पुरातनकाल से करवा चौथ का व्रत करती चली आ रही हैं।
शास्त्रों में है वर्णित :-
शास्त्रों के अनुसार इस व्रत के समान फलदायक व सौभाग्यदायक व्रत कोई दूसरा नहीं है। यह व्रत सौभाग्यवती स्त्रियों द्वारा 12 वर्ष व 16 वर्ष तक लगातार हर वर्ष किया जाता है। व्रत की अवधि पूरी होने के पश्चात महिलाएँ इसका उद्यापन करती हैं। जो स्त्रियाँ इसे आजीवन रखना चाहें, वे जीवन भर इस व्रत को रख सकती हैं। व्रत का यह विधान काफी प्राचीन है।
द्रौपदी और पार्वती ने भी किया व्रत:-
कहा जाता है कि पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भी करवा चौथ का व्रत किया था। जब अर्जुन नीलगिरि पर्वत पर तप करने गए थे, तब द्रौपदी बेहद परेशान हो गई थीं। भगवान श्रीकृष्ण की सलाह से द्रौपदी ने यह व्रत कर चंद्र को अर्घ्य दिया था। वहीं माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए यह व्रत किया था।
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जानिए 2016 में करवा चौथ पूजा का मूर्हूत—
करवा चौथ का मूर्हूत वह सटीक समय होता है जिसके भीतर ही पूजा करनी होती है। 19 अक्टूबर को करवा चौथ पूजा के लिए पूरी अवधि एक घंटे और 13 मिनट है।
करवा चौथ पूजा का समय शाम 6:00 पर शुरू होगा।
शाम 7:14 पर करवा चौथ पूजा करने का समय खत्म होगा।
जानिए करवा चौथ 2016 को चंद्रोदय का समय—
करवा चौथ के दिन चंद्रोदय का समय शाम 09:21 मिनट होगा। करवा चौथ के दिन चंद्रमा उदय होने का समय सभी महिलाओं के लिए बहुत महत्व का है क्योंकि वे अपने पति की लम्बी उम्र के लिये पूरे दिन (बिना पानी के) व्रत रखती हैं। वे केवल उगते हुये पूरे चाँद को देखने के बाद ही पानी पी सकती हैं। ये माना जाता है कि, चाँद देखे बिना व्रत अधूरा है और कोई महिला न कुछ भी खा सकती हैं और न पानी पी सकती हैं। करवा चौथ व्रत तभी पूरा माना जाता है जब महिला उगते हुये पूरे चाँद को छलनी में घी का दिया रखकर देखती है और चन्द्रमा को अर्घ्य देकर अपने पति के हाथों से पानी पीती है।
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उज्जैन (मध्यप्रदेश) में करवा चौथ पूजा मुहूर्त = १८:०६ से १९:२६
अवधि = १ घण्टा २० मिनट्स
करवा चौथ के दिन चन्द्रोदय = २०:२९
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ = १८/अक्टूबर/२०१६ को १३:१७ बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त = १९/अक्टूबर/२०१६ को १०:०२ बजे
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करवा चौथ की आधुनिक संस्कृति और परंपरा—
आजकल, उत्तर भारतीय समाज में करवा चौथ की संस्कृति और परंपरा को बदल दिया है और एक रोमांटिक त्यौहार के रूप में मना रहा शुरू कर दिया गया है। यह जोड़ी के बीच प्यार और स्नेह का प्रतीक का त्यौहार बन गया है। यह हर जगह फिल्मों के माध्यम से प्रेरित होकर बॉलीवुड शैली में मनाया जा रहा है जैसे दिलवाले रही द्वारा दुल्हनिया ले जाएंगे, कभी खुशी कभी गम आदि। कहीं कहीं, यह अविवाहित महिलाओ द्वारा भी अपने मंगेतर और अपने भविष्य में होने वाले पति के लिये अपना प्यार और स्नेह दिखाने के लिये रखा जाता है। यह भावनात्मक और रोमांटिक लगाव के माध्यम से दंपती के रिश्ते की अच्छी अवस्था में लाने का त्यौहार बन गया है। त्यौहार की तारीख के पास आते ही, बाजार में अपना कारोबार बढ़ाने के लिए बहुत सारे विज्ञापन अभियान टीवी, रेडियो, आदि पर दिखाना शुरू हो जाता है।
करवा चौथ पर, सभी जैसे बच्चें और पति विशेष रूप से उपवास वाली महिलाओं सहित अच्छी तरह से नए कपड़े पहनते है और एक साथ में त्यौहार मनाते है। यह प्रसिद्ध परिवारिक समारोह बन गया है और प्रत्येक चंद्रोदय तक आनंद मनाते है। चंद्रोदय समारोह के बाद अपनी व्यस्त दैनिक दिनचर्या में कुछ परिवर्तन लाने के लिए अपने बच्चों के साथ कुछ जोड़े बजाय घर पर खाने के स्वादिष्ट खाना खाने के लिए रेस्तरां और होटल में जाते है।
कुछ लोगों द्वारा इसकी आलोचाना भी की गयी है, हालांकि कुछ लोग महिला सशक्ति करण त्यौहार के रुप में भी कहते है क्योकिं आम तौर पर करवा चौथ पर औरत पूरे दिन के लिए और व्यस्त दैनिक जीवन से दूर जीवन जीने के लिए पूरी तरह से उनके घर के कामकाज छोड़ देती है। वे राहत महसूस करती हैं और अपने पति से उपहार प्राप्त करती है जो उन्हें शारीरिक, बौद्धिक और भावनात्मक रूप से खुश करती है। ऐसा माना जाता है कि घर के काम करता है और परिवार के सभी सदस्य की जिम्मेदारियॉ महिला सशक्तीकरण के लिए सबसे बड़ी बाधा हैं।
हालांकि, सिख सिद्धांत उपवास की अवधारणा का अत्यधिक विरोध करता है है कि वे सोचते है कि उपवास का कोई भी आध्यात्मिक या धार्मिक लाभ नहीं है, यह केवल स्वास्थ्य कारणों के लिए रखा जा सकता है।
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जानिए कैसे करें पहला करवा चौथ—
करवा चौथ का त्यौहार नव विवाहित हिन्दू महिलाओं के लिये बहुत महत्व रखता है।यह उसकी शादी के बाद पति के घर पर बहुत बङा अवसर होता है। करवा चौथ के अवसर के कुछ दिन पहले से ही वह और उसके ससुराल वाले बहुत सारी तैयारियॉ करते है। वह सभी नयी वस्तुओं से इस प्रकार तैयार होती है जैसे उसकी उसी पति से दुबारा शादी हो रही हो। सभी ( मित्र, परिवार के सदस्य, रिश्तेदार और पङोसी) एक साथ इकट्ठे होकर इसे त्यौहार की तरह मनाते है। उसे उसके विवाहित जीवन में समृद्धि के लिये अपने पति, मित्रों, परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों और पङोसियों से बहुत सारे आशीर्वाद और उपहार मिलते है।
उसे अपनी पहली करवा चौथ पर अपनी सास से पहली सरगी मिलती है। पहली सरगी में साज सज्जा का सामान, करवा चौथ से एक दिन पहले का खाना और अन्य बहुत सारी वस्तुऍ ढेर सारे प्यार और खुशहाल जीवन के लिये आशीर्वाद शामिल होता है।वह आशीर्वाद पाने के लिये घऱ के बङों और रिश्तेदारों के पैर छूती है।
पहला बाया देने की भी प्रथा है। यह सूखे मेवे, उपहार, मीठी और नमकीन मठरी, मिठाई, कपङे, बर्तन आदि का समूह होता है, लङकी की माँ द्वारा लङकी की सास और परिवार के अन्य सदस्यों के लिये भेजा जाता है। यह एक बेटी के लिये बहुत महत्वपूर्ण होता है जो पहली करवा चौथ पर इसका बेसब्री से इंतजार करती है। करवा चौथ की पूजा के बाद पहला बाया सभी परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों और पङोसियों के बीच बॉटा जाता है।
अंत में, नविवाहित दुल्हन को अपने पति से रात्री भोजन के समय चन्द्रोदय के समारोह के बाद बहुत ही खास उपहार मिलता है। इस दिन उनके बीच प्यार का बंधन मजबूती के साथ बढता है, पति अपनी प्रिय पत्नी के लिये बहुत गर्व महसूस करते है क्योंकि वे उनके लिये बहुत कठिन व्रत रखती है। वे अपनी पत्नी को बहुत सारा प्यार और सम्मान देते है और बहुत सारी देखभाल औऱ करवा चौथ के उपहार द्वारा उन्हें खुश रखते है। इस दिन वे अपनी पत्नी को पूर्ण आनन्द करने और स्वादिष्ट भोजन करने कराने के लिये किसी अच्छी दिलचस्प जगह लेकर जाते है जिस से कि कम से कम साल में उन्हें एक दिन के लिये घर की जिम्मेदारियों से आराम मिलें।
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ऐसे मनाएं चंद्रोदय समारोह—
महिलाऍ चंद्रोदय समारोह की रस्म के लिए अपनी पूजा थाली को तैयार करती है। पूजा थाली में घी का दीया, चावल के दाने, पानी भरे बर्तन, माचिस, मिठाई, पानी का एक गिलास और एक छलनी शामिल है। एक बार आकाश में चंद्रमा उगने के बाद, महिलाऍ चाँद देखने के लिए अपने घरों से बाहर आती है। सब से पहले वे चन्द्रमा को अर्घ्य देती है, चाँद की ओर चावल के दाने डालती है, छलनी के अन्दर घी का दिया रखकर चॉद को देखती है। वे अपने पतियों की समृद्धि, सुरक्षा और लंबे जीवन के लिए चंद्रमा से प्रार्थना करती हैं। चाँद की रस्म पूरी करने के बाद, वे अपने पति,सासु मॉ और परिवार अन्य बडों के पैर छू कर सदा सुहागन और खुशहाल जीवन का आशीर्वाद लेती हैं। कहीं कहीं चाँद को सीधे देखने के स्थान पर उसकी परछाई को पानी में देखने का रिवाज है। पैर छूने के बाद, पति अपने हाथों से अपनी पत्नी को मिठाई खिलाकर पानी पिलाता है।
क्या हो करवा चौथ के उपहार—
करवा चौथ के बहुत सारे उपहार पति, माँ, सासु माँ और परिवार के अन्य सदस्यों और मित्रों द्वारा उन महिलाओं को विशेष रुप से दिये जाते है जो अपना पहला करवा चौथ का व्रत रखती है। यह माना जाता है कि करवा चौथ का व्रत बहुत कठिन है,बिना कुछ खाये पीये पूरा दिन व्यतीत करना पडता है। यह हर विवाहित महिला के लिए अपने पति के लिए उपवास रखकर उनसे कुछ खूबसूरत और महंगे तोहफे पाने जैसे आभूषण, चूड़ियाँ, साड़ी, लहंगे, फ्रॉक सूट, नए कपड़े, और मिठाई और अन्य पारंपरिक उपहार पाने का सुनहरा मौका होता है। महिलाऍ बहुत सारे प्यार और स्नेह के साथ अविस्मरणीय उपहार प्राप्त करती है जो खुशी के साथ साथ उनके पति के साथ उनके रिश्ते को मजबूती प्रदान करता है।
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जानिए क्या हैं सरगी—
करवा चौथ में सरगी का काफी महत्व है| सरगी सास की तरफ से अपनी बहू को दी जाती है. इसका सेवन महिलाएं करवाचौथ के दिन सूर्य निकलने से पहले तारों की छांव में करती हैं. सरगी के रूप में सास अपनी बहू को विभिन्न खाद्य पदार्थ एवं वस्त्र इत्यादि देती हैं| सरगी, सौभाग्य और समृद्धि का रूप होती है. सरगी के रूप में खाने की वस्तुओं को जैसे फल, मीठाई आदि को व्रती महिलाएं व्रत वाले दिन सूर्योदय से पूर्व प्रात: काल में तारों की छांव में ग्रहण करती हैं| तत्पश्चात व्रत आरंभ होता है. अपने व्रत को पूर्ण करती हैं |
विशेष- जानिए स्वप्न में करवा चौथ दिखने का फल—
भारतीय समाज में करवा चौथ का बड़ा ही महत्तव है. इस दिन सभी महिलएं सज सवर कर पूजा करती हैं| आप हर रोज अनेक प्रकार के सपने देखते होंगें | सपने में यदि आप करवाचोथ देखें तो इसका अर्थ जानते हैं| सपने में करवा चौथ औरत देखे तो आजीवन सधवा, पुरुष देखे तो धन धान्य सम्पूर्ण होता हैं|
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पंचांगों के अनुसार, करवा चौथ अश्विन माह में पड़ता है, जो कर्क राशि से मेल खाता हुआ मास माना जाता है। हालाँकि यह (कार्तिक) केवल माह का नाम है जो इसे अलग-अलग करता है और सभी राज्यों में करवा चौथ एक ही दिन मनाया जाता है। करवा चौथ का दिन और संकष्टी चतुर्थी, जो कि भगवान गणेश के लिए उपवास करने का दिन होता है, एक ही समय होते हैं। विवाहित महिलाएँ पति की दीर्घ आयु के लिए करवा चौथ का व्रत और इसकी रस्मों को पूरी निष्ठा से करती हैं। विवाहित महिलाएँ भगवान शिव, माता पार्वती और कार्तिकेय के साथ-साथ भगवान गणेश की पूजा करती हैं और अपने व्रत को चन्द्रमा के दर्शन और उनको अर्घ अर्पण करने के बाद ही तोड़ती हैं।
भारतीय ज्योतिष के अनुसार जानिए की सभी सुहागिनों को अपनी राशि के अनुसार कौन से रंग को साड़ी पहने, जो पूजन के लिए अत्यंत शुभ व सौभाग्य के लिए कल्याणकारी हो। ज्योतिष के अनुसार करवा चौथ पर यदि पत्नी विशेष रंग के कपड़े पहनें और पति राशि के अनुसार अपनी पत्नी को उपहार दें तो पति-पत्नी के दांपत्य जीवन में सदैव खुशहाली रहेगी और प्रेम भी बढ़ेगा।
जानिए करवा चौथ के दिन पत्नी कौन से रंग के कपड़े पहनें और पति अपनी पत्नी को क्या उपहार दें-
मेष- मेष राशि वाली महिलाएं गुलाबी रंग की साड़ी पहनें एवं चंद्रमा के पूजन में गुलाब अवश्य चढ़ाएं।इस राशि के लोगों के दांपत्य जीवन का स्वामी शुक्र है। आप अपनी पत्नी को उसकी पसंद के वस्त्र, आभूषण, कार, परफ्यूम के साथ ही गोल्डन ज्वेलरी भी गिफ्ट कर सकते हैं। इससे पति-पत्नी के बीच प्रेम और विश्वास बढ़ेगा। इस राशि का स्वामी मेष है। इस राशि की महिलाओं को राशि अनुसार पार्टनर से प्यार बढ़ाने के लिए पिंक, क्रीम या सफेद रंग के कपड़े पहनने चाहिए।
वृषभ- वृषभ राशि वाली महिलाएं पीले रंग की साड़ी पहनें एवं चन्द्रमा के पूजन में पीला फूल चढ़ाएं। जिन लोगों की राशि वृषभ है, उनके दांपत्य जीवन का स्वामी मंगल है। इस राशि के लोग अपनी पत्नी को लाल रंग की मिठाई, मूंगे से बने आभूषण, अंगूठी व ताम्बे की वस्तुएं उपहार में दे तो शुभ और समृद्धिदायक रहेगा।
इस राशि का स्वामी शुक्र है। इस राशि वाली महिलाएं गहरे लाल, केसरिया और हल्के लाल रंग के कपड़ों का चयन करें तो अच्छा रहेगा।
मिथुन- मिथुन राशि वाली महिलाएं हरे रंग की साड़ी पहनें एवं चंद्रमा के पूजन में आंकड़े के फूल चढ़ाएं।
कर्क- कर्क राशि वाली महिलाएं लहरिया साड़ी पहनें जिसमे हेवी वर्क हो, चंद्रमा के पूजन में सफेद फूल चढ़ाएं।
सिंह- सिंह राशि वाली महिलाएं लाल रंग की साड़ी पहनें एवं चंद्रमा के पूजन में लाल फूल चढ़ाएं।
कन्या- कन्या राशि वाली महिलाएं हरी लाइन वाली साड़ी पहनें एवं पूजन में चावल अवश्य चढ़ाएं।
तुला- तुला राशि वाली महिलाएं गुलाबी रंग की साड़ी (जिसमें सफेद धागे की कढ़ाई हो) पहनें एवं पूजन में सफेद गुलाब चढ़ाएं।
वृश्चिक- वृश्चिक राशि वाली महिलाएं प्लेन साड़ी (जिसमें लाल फूल की बनावट हो) पहनें एवं पूजन में कुंकू का प्रयोग करें।
धनु- धनु राशि वाली महिलाएं हल्की पीली साड़ी पहनें एवं पूजन में पीला व सफेद फूल चढ़ाएं।
मकर- मकर राशि वाली महिलाएं कत्थई रंग की साड़ी पहनें एवं पूजन में आंकड़े एवं गेंदे के फूल चढ़ाएं।
कुंभ- कुंभ राशि वाली महिलाएं मेहरून रंग की साड़ी पहनें एवं पूजन में लाल गुलाब व सफेद फूल चढ़ाएं।
मीन- मीन राशि वाली महिलाएं नीले रंग की साड़ी पहनें एवं पूजन में दुर्वा चढ़ाएं।
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पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री,(ज्योतिष-वास्तु सलाहकार)
राष्ट्रीय महासचिव-भगवान परशुराम राष्ट्रीय पंडित परिषद्
मोब. 09669290067 (मध्य प्रदेश)
वॉटसअप नंबर —09039390067….