भगवान शिव की वास्तु नगरी काशी को नष्ट कर क्योटो बनाने की योजना
काशी को भगवान शिव की सबसे प्रिय नगरी कहा जाता है। और काशी विश्वनाथ मंदिर होने के कारण आज ये पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है, जिसका वर्णन कई ग्रंथो, पुराणों में किया गया है, और लोगो का तो ये भी मानना है की जिसकी मृत्यु काशी में होती है उसे सीधे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। त्रिशूल पर टिकी है काशी: कई ग्रंथों में काशी को शिव की नगरी के नाम से भी पुकारा गया है। प्रलय के समय भगवान शिव ने अपना त्रिशूल टिका कर इस नगर की रक्षा की थी। दरसल काशी विश्वनाथ मंदिर का पुननिर्माण इन्दौर की रानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा करवाया गया था। ऐसा मानना है की 18वीं सदी में स्वयं भगवान शिव ने अहिल्या बाई के सपने में आकर इस जगह उनका मंदिर बनवाने को कहा था। #काशी बना वाराणसी: यहाँ गंगा जैसी पावन नदी के अलावा वरुणा और अस्सी नदी बहने के कारण यह शहर वाराणसी के नाम से प्रसिद्ध है।
भाजपा सरकार काशी को तोड कर उसे क्वाटा बनाना चाहती है- इससे धार्मिक गलियारो में प्रचण्ड नाराजगी है- जिसे अभी तक नजरअंदाज किया जा रहा है-
HIGH LIGHT; जो पार्टी मंदिर बनाने के नाम पर सत्ता में आई थी, वो सैकडो मंदिरों को तोडने जा रही है? #राम मंदिर से भी बड़ा है मुद्दा #चिन्हित में करीब 50 प्राचीन मंदिर व मठ शामिल # हम जनता का आह्वान भी करेंगे- स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद #काशी को क्योटो बनाने के इसी क्रम में बनारस के ललिता घाट से विश्वनाथ मंदिर तक 200 से ज्यादा भवन चिन्हित किए गए हैं, जिन पर बुलडोजर चलाया जा रहा है, या तोड़ा जा रहा है। चिन्हित में करीब 50 प्राचीन मंदिर व मठ शामिल हैं। बता दें कि प्राचीन मंदिर व मठ विश्वनाथ कॉरिडोर की ज़द में आने वाले मंदिर हैं#भगवान शिव की वास्तु नगरी काशी के नष्ट होने का खतरा # काशी विश्वनाथ और गंगा नदी से छेड़छाड़ करने वाले का सर्वनाश- शंकराचार्य
प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में गंगा प्रोजेक्ट के तहत तोड़े जाने वाले अवैध निर्माण पर भी शंकराचार्य ने नाराजगी जताई है. उन्होंने कहा कि वाराणसी में गंगा और काशी विश्वनाथ मंदिर के बीच गंगा पाथ वे बनाने का प्रोजेक्ट विनाशकारी है. शंकराचार्य ने कहा कि उन्होंने इसके खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर प्रोजेक्ट को तुरंत रोकने की अपील की है. स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा कि अगर यह प्रोजेक्ट नहीं रोका गया तो हम कोर्ट जाएंगे. उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि काशी विश्वनाथ और गंगा नदी से छेड़छाड़ करने वाले का सर्वनाश निश्चित है.
नरेंद्र मोदी अपने संसदीय क्षेत्र काशी को चमकाने के लिए क्योटो बनाने की बात कह चुके हैं। इसके बाद बुद्धिजीवी लोगों के ज़ेहन में यह सवाल बार-बार उठ रहा है कि इतिहास से भी पुरानी नगरी काशी को कोई 600 साल पुराने इतिहास वाले क्योटो के समान क्यों बनाया जा रहा है? देश के अलग-अलग हिस्सों से पुराणों/ग्रंथों में पढ़कर लोग अपने आराध्य देवी-देवताओं के दर्शन करने काशी आते हैं. ऐसे में जब वे काशी आएंगे तब जरूर पूछेंगे कि उनके देवी देवता कहां गए?
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद आगे कहते हैं कि यह विषय रामजन्म भूमि से भी बड़ा है. क्योंकि अयोध्या में सिर्फ एक मंदिर की बात है. लेकिन यहां हमारे पुराणों के उपरोक्त परंपरा से पूजित अनेक मंदिरों की बात है. अभी हम शास्त्रों के अनुसार ही विरोध कर रहे हैं. लेकिन यदि सरकार राजनीति से प्रेरित होकर यह अपेक्षा करेगी कि वह जनदबाव से ही मानेगी तब हम जनता का आह्वान भी करेंगे. ऐसे में यह सवाल जरूर उठेगा कि जो पार्टी मंदिर बनाने के नाम पर सत्ता में आई थी, उसने मंदिरों को क्यों तोड़ा?
गंगा पाथवे प्रोजेक्ट का विरोध लगातार तेज होता जा रहा है. इस योजना के तहत गंगा और घाटों की सफाई के मकसद से आस-पास की इमारतों और इलाके का अधिग्रहण किया रहा है. इसमें कई दुकानों पर भी हथोड़ा चलाया जाएगा है. इसके विरोध में स्थानीय दुकानदारों और धर्माचार्य खड़े हो गए हैं. यूपी में बीजेपी सरकार के गठन के बाद काशी विश्वनाश मंदिर से गंगा घाट तक एक कॉरीडोर के निर्माण की योजना बनाई गई है.
काशी में अभी तक अनेकों कार्य किए गए हैं लेकिन अभी तक पौराणिक महत्व रखने वाले धरोहरों पर कोई आंच नहीं आई है। काशी नगरी वर्तमान वाराणसी शहर में स्थित पौराणिक नगरी है। इसे दुनिया के सबसे पुरानी नगरों में माना जाता है।
यहां पर मंदियों और मठों से किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं की गई है लेकिन अब यहां केंद्र सरकार मठ पर कॉरिडोर चलाने की फिराक में है। काशी को क्योटो बनाने के इसी क्रम में बनारस के ललिता घाट से विश्वनाथ मंदिर तक 200 से ज्यादा भवन चिन्हित किए गए हैं, जिन पर बुलडोजर चलाया जा रहा है, या तोड़ा जा रहा है। चिन्हित में करीब 50 प्राचीन मंदिर व मठ शामिल हैं। बता दें कि प्राचीन मंदिर व मठ विश्वनाथ कॉरिडोर की ज़द में आने वाले मंदिर हैं।
केंद्र सरकार के द्वारा काशी को क्योटो बनाने के फैसले के विरोध में इन प्राचीन मंदिरों, देव विग्रहों की रक्षा के लिए आंदोलनरत शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद बारह दिन के उपवास पर बैठे हैं।
सरकार के विरोध में उपवास कर रहे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का कहना है कि काशी का पक्का महाल ऐसे वास्तु विधान से बना है जिसे स्वयं भगवान शिव ने मूर्तरूप दिया था।
सरकार के विरोध में उपवास कर रहे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि पक्का महाल ही काशी का मन, मस्तिष्क और हृदय है। उन्होंने कहा कि पक्का महाल ऐसे वास्तु विधान से बना है जिसे स्वयं भगवान शिव ने मूर्तरूप दिया था। ऐसे में अगर प्राचीन मंदिर व मठ को तोड़ नष्ट किया जएगा तो काशी के नष्ट होने का खतरा है। यह 125 करोड़ देशवासियों की आस्था का प्रश्न है। उन्होंने आगे कहा कि पुराणों-ग्रंथों में पढ़कर देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग यहां देवी-देवताओं के दर्शन करने के लिए आते हैं। अगर प्राचीन मंदिर व मठ नष्ट हो जएगें तो लोग काशी आकर यह जरूर पुछेंगे की उनके देवी देवता कहां गए? स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने इस विषय को रामजन्म भूमि से भी बड़ा बताया है।
हम जनता का आह्वान भी करेंगे- स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद
उन्होंने कहा कि अयोध्या में सिर्फ एक मंदिर की बात है, लेकिन यहां हमारे पुराणों के उपरोक्त परंपरा से पूजित अनेक मंदिरों की बात है। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का कहना है कि हम शास्त्रो के अनुसार विरोध कर रहे हैं।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का कहना है कि यदि केंद्र सरकार राजनीति से प्रेरित होकर यह अपेक्षा करेगी कि वह जनता के दबाव से ही मानेगी तब हम जनता का आह्वान भी करेंगे।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कि हम सरकार की योजनाओं के विरोध में नहीं हैं, हमारे विरोध सिर्फ इतना है कि मंदिरों को अपमानित ना किया जाए, अपूजित ना रखा जाए, उनके स्थान से उन्हें हटाया नहीं जाए। इतना सुरक्षित रखते हुए यदि कॉरिडोर का निर्माण हो तो हमें कोई आपत्ति नहीं।
पक्का महाल की अवधारणा काशी के गंगा तट पर अस्सी से राजघाट तक की है. कहा जाता है कि काशी को जानना समझना हो तो पक्का महाल को समझना ज़रूरी है. यह इलाका खुद में कई संस्कृतियों को समेटे हुए है. देश का ऐसा कोई राज्य नहीं जिसका प्रतिनिधित्व पक्का महाल न करता हो. अलग-अलग राज्यों की रियासतों की प्राचीन इमारत व वहां पूजे जाने वाले पौराणिक मंदिर और देव विग्रह इसी क्षेत्र में स्थित हैं. जिनके दर्शन करने पूरे देश से लोग आते हैं. पक्का महाल में बंगाली, नेपाली, गुजराती, दक्षिण भारतीय समुदायों के अपने अपने मुहल्ले हैं.
काशी में विकास के बहुत से कार्य हुए हैं लेकिन पौराणिक महत्व रखने वाले धरोहरों को कभी नष्ट नहीं किया गया, न ही इन्हे छेड़ा गया. लेकिन आज काशी का यही पक्का महाल विकास की भेंट चढ़ने जा रहा है. हजारों हजार साल पुरानी विरासत को मिटाने की साजिश को विकास जामा पहना दिया गया है. जिससे काशी का हृदय कहे जाने वाला पक्का महाल इन दिनों सहमा सा है. क्योंकि इसके वजूद पर संकट खड़ा हो गया है !
600 वर्ष पुरानी नगरी काशी का अपना इतिहास व धार्मिक महत्त्व है व उतना ही काबिल इस नगर का वास्तु है, जिसके साथ क्योटो बनाने की मुहीम में काशी विश्वनाथ मंदिर के विस्तारीकरण, ललिता घाट से विश्वनाथ मंदिर तक दो सौ से अधिक भवन के बदलाव के साथ छेड़छाड़ किये जाने की बातें चल रही है। 50 प्राचीन मंदिर और मठ तोड़े जाने की कवायद भी किये जाने की समाचार है। काशी के मूल सवरूप को बचाने के लिए शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद 12 दिन के उपवास पर बैठे हैं। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का कहना है कि काशी का पक्का महाल ऐसे वास्तु विधान से बना है जिसे स्वयं ईश्वर शिव ने मूर्तरूप दिया था। ऐसे में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के कारण पक्का महाल के पौराणिक मंदिरों व देव विग्रहों को नष्ट करने से काशी ही नष्ट हो जाएगी।
वही उत्तराखण्ड में भी नाराजगी नजर आ रही है-
प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने कहा कि देश में नमामि गंगे स्पर्श गंगा अभियान और ऑल वेदर रोड जैसे प्रोजेक्ट भ्रष्टाचार के बड़े केंद्र बने हुए हैं इन प्रोजेक्टों के नाम पर अरबों रुपए स्वाहा हो चुके हैं लेकिन नहीं गंगा स्वच्छ हो पाई और ना ही ऑल वेदर रोड के दावे साकार हो पाए सच यह है कि ऑल वेदर रोड नाम से कोई परियोजना ही अस्तित्व में नहीं है अपितु इस परियोजना के नाम पर उत्तराखंड में हजारों पेड़ काट डाले गए जिसके लिए एनजीटी से कोई अनुमति तक नहीं ले गई
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