सूर्य भगवान का धाम है उत्तराखंड में, जो विशाल, ऊंचा, अनूठा मंदिर है, मनोकामनाएं पूर्ण करते है सूर्यदेव, मंदिर के दर्शन मात्र से दुख, रोग, शोक संकट का नाश होता है
मन्दिर में स्थापित भगवान आदित्य की मूर्ति पत्थर या धातु की न होकर बड़ के पेड़ की लकड़ी से बनी है… कलयुग का एकमात्र दृश्य देव मंदिर उत्तराखण्ड में अल्मोड़ा जिले के अधेली सुनार नामक गांव में है।
मंदिर के पूर्वामुखी होने के कारण सूर्य की सबसे पहले किरणें इस मुख्य भवन पर पड़ती हैं। यहां सूर्य देव धान मुद्रा में विराजमान हैं।
www.himalayauk.org (Leading Newsportal & Print Media) Publish at Dehradun & Haridwar. By Chandra Shekhar Joshi Editor Mob. 9412932030
अपनी जिंदगी से कुछ फुर्सत के पल निकाल कर शांत, खूबसूरत प्रकृति के बीच चले, हिन्दू धर्म मे प्रकृति के हर रूप को पूजा है, इन्ही में से एक है उत्तराखंड के कुमायूँ मंडल में कटारमल सूर्य देव का धाम जो अल्मोड़ा से 16 किमी दूर है, इस मंदिर में सूर्य की पहली किरण मंदिर में विराजमान शिवलिंग पर पड़ती है, वही सूर्य के उत्तरायण होते ही उगते सूर्य की किरणें मुख्य मंदिर के भीतर सूर्य देव की मूर्ति पर पड़ती है, जो इंद्रधनुष के रूप में दिखाई देती है, प्रकति की खूबसूरत वादियों में विद्यमान इस सूर्यदेव धाम के दर्शन और आशीर्वाद लेने का अलग ही महात्म्य है, भक्ति पूर्वक मांगी गई मनोकामना सूर्यदेव पूर्ण करते है,
उत्तराखंड के कुमायूँ मंडल में प्राचीन मंदिर ‘कटारमल सूर्य मन्दिर’। इस मंदिर को उड़ीसा में स्थित सूर्य देव के प्रसिद्ध कोणार्क मंदिर के बाद दूसरा सूर्य मंदिर माना जाता है। कटारमल मंदिर एक शानदार सूर्य मंदिर है जिसे बारा आदित्य मंदिर भी कहा जाता है।
यह सूर्य मन्दिर न सिर्फ़ समूचे कुमाऊँ मंडल का सबसे विशाल, ऊँचा और अनूठा मन्दिर है, बल्कि उड़ीसा के ‘कोणार्क सूर्य मन्दिर’ के बाद एकमात्र प्राचीन सूर्य मन्दिर भी है। यह मंदिर साल भर खुला रहता है।
कटारमल सूर्य मन्दिर को ‘बड़ आदित्य सूर्य मन्दिर’ के नाम से भी जाना जाता है। इसका कारण है कि इस मन्दिर में स्थापित भगवान आदित्य की मूर्ति पत्थर या धातु की न होकर बड़ के पेड़ की लकड़ी से बनी हुई है। यह मंदिर कोणार्क के विश्वविख्यात सूर्य मंदिर से लगभग दो सौ वर्ष पुराना माना गया हैमुख्य मन्दिर के आस-पास 45 छोटे-बड़े मन्दिरों का समूह भी बेजोड़ है।
पौराणिक कथा के अनुसार सतयुग में उत्तराखण्ड में ऋषि-मुनियों पर एक असुर ने अत्याचार किये थे। इस दौरान द्रोणगिरी, कषायपर्वत व कंजार पर्वत के ऋषि मुनियों ने कौशिकी यानि कोसी नदी के तट पर पहुंचकर सूर्य-देव की आराधना की। इसके बाद प्रसन्न होकर सूर्य-देव ने अपने दिव्य तेज को एक वटशिला में स्थापित किया। इसी वटशिला पर ही तत्कालीन शासक ने सूर्य-मन्दिर का निर्माण करवाया। वही मंदिर आज कटारमल सूर्य-मन्दिर के नाम से पूरे विश्व में प्रसिद्ध है।
देवभूमि उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा में कटारमल नामक स्थान पर भगवान सूर्य देव से संबंधित प्राचीन मंदिर ‘कटारमल सूर्य मन्दिर’ स्थित है। यह मंदिर उत्तराखण्ड में अल्मोड़ा जिले के अधेली सुनार नामक गांव में है। मंदिर के निर्माण के समय को लेकर विद्वान एकमत नहीं हैं।
कुछ जानकारों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण नौवीं या ग्यारहवीं शताब्दी में कटारमल नामक एक शासक द्वारा करवाया गया माना जाता है। वहीं कुछ विद्वान इस मंदिर का निर्माण छठीं से नवीं शताब्दी में हुआ मानते हैं।
यह भी कहा जाता है कि प्राचीन काल में कुमाऊं में कत्यूरी राजवंश का शासन था। इसी वंश के शासकों ने इस मंदिर के निर्माण में अपना योगदान दिया था। लेकिन पुरातत्व विभाग द्वारा मंदिर की वास्तुकला व स्तंभों पर उत्कीर्ण अभिलेखों को लेकर किए गए अध्ययनों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण समय तेरहवीं सदी माना गया है।
इस मंदिर का मुख पूर्व दिशा की ओर है। कटारमल सूर्य मन्दिर का निर्माण एक ऊंचे व वर्गाकार चबूतरे पर किया गया है। मुख्य मन्दिर के आस-पास ही भगवान गणेश, भगवान शिव, माता पार्वती, श्री लक्ष्मीनारायण, भगवान नृसिंह, भगवान कार्तिकेय के साथ ही अन्य देवी-देवताओं से संबंधित 45 के करीब छोटे-बड़े मन्दिर बने हुए हैं।
नागर शैली में बने इस मंदिर की संरचना त्रिरथ है। मन्दिर का ऊंचा शिखर अब खंडित हो चुका है। गर्भगृह का प्रवेश द्वार जो बेजोड़ काष्ठ कला का उत्कृष्ट उदाहरण था, उसके कुछ अवशेषों को नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखा गया है। इस मंदिर की प्राचीनता को देखते हुए भारतीय पुरातत्त्व विभाग द्वारा इसे संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है।
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