सदी की सबसे भयंकर बाढ़ – भयानक हालात देखने पड़ सकते हैं
केरल में सदी की सबसे भयंकर बाढ़ ने राज्य को अस्त व्यस्त कर दिया है. इसके चलते 13 लाख लोगों को अपने घर छोड़ने पड़े और वे राहत कैंप में जाने को मजबूर हो गए. हालांकि मौसम वैज्ञानिकों ने इस तरह की आपदा की पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी.
वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर ग्लोबल वार्मिंग को नहीं रोका गया तो और भयानक हालात देखने पड़ सकते हैं. भारतीय मौसम विभाग के अनुसार केरल में पिछले एक सप्ताह में सामान्य से दो-तिहाई ज्यादा बारिश हुई. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मिटियोरॉलॉजी के मौसम वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल का कहना है कि केरल जैसी बाढ़ के लिए बदलती जलवायु को दोष देना मुश्किल है.
उन्होंने कहा, ‘हमारी रिसर्च बताती है कि 1950 से 2017 के बीच व्यापक स्तर पर जबरदस्त बारिश हुई है, जिसके चलते बाढ़ आई है.’ पिछले साल विज्ञान पत्रिका ‘नेचर कम्युनिकेशंस’ में छपा था कि पिछले 68 साल में मॉनसून के दौरान भारी बारिश की वजह से आई बाढ़ में 69 हजार लोग मारे गए और 1.70 करोड़ लोग बेघर हो गए.केरल में 10 अगस्त तक राज्य के सभी बांध पानी से लबालब हो गए. इसके चलते उनके गेट खोलने पड़े. इनमें इडुक्की गेट के दरवाजे 26 साल में पहली बार खोले गए थे. कोल ने समझाया कि अरब सागर और इसके पास में तेजी से बढ़ती गर्मी के चलते मानसूनी हवाओं में तीन-चार दिन के लिए उतार चढ़ाव देखने को मिला है. इस दौरान अरब सागर की नमी पानी के रूप में जमीन पर बरसती है.
बाढ़ सभी धर्मों के लोगों को एक साथ ले आई
इस भयानक बाढ़ से अब तक 265 लोगों की मौत हो चुकी है. शनिवर को थिरू ओणम का त्योहार है जिसका इंतजार केरल के लोग बड़ी बेसब्री से करते हैं. स्कूलों, कॉलेजों, कन्वेंशन हाल, मस्जिदों और गिरिजाघरों में ओणम त्योहार की तैयारी की गई थी जो अब विभिन्न जिलों में राहत शिविरों के रूप में बदल चुके हैं. बाढ़ प्रभावित लोगों के चिंतित दिमाग को शांत करने के लिए भी पुक्कलम बनाई गई है. सबसे अधिक प्रभावित अलापुझा जिले में एक मस्जिद में ‘ओणम’ का त्योहार मनाया गया. यह मस्जिद एक राहत शिविर में बदल चुकी है. मस्जिद समिति के एक अधिकारी ने कहा कि 18 अगस्त को सभी धर्मों के लोगों को आश्रय देने के लिए मस्जिद के दरवाजे खोले गए थे.
उन्होंने कहा, ‘हमने कई मकानों को तबाह और लोगों को विस्थापित होते हुए देखा है, हमने ‘नमाज’ अदा करने के लिए इस्तेमाल होने वाले अपने हॉल को विस्थापितों के लिए खोला है.’ उन्होंने कहा, ‘यह सचमुच धार्मिक सद्भाव है. बाढ़ सभी धर्मों के लोगों को एक साथ ले आई है.’ हाल में बकरीद का जश्न भी यहां इसी भावना के साथ मनाया गया था. ओणम शनिवार को मनाया जा रहा है और शिविर में लोगों ने इसे मनाने की तैयारी की है. चेंगान्नूर में एक राहत शिविर में रह रहे एक व्यक्ति ने कहा कि ओणम का जश्न बेशक इस बार फीका है लेकिन हम अगले साल निश्चित रूप से इस पर्व को अपने घरों में मनाएंगे. कई शिविरों में इस त्योहार को मनाने के लिए महिलाएं सब्जियां काटने में व्यस्त हैं और पुरूष बिना किसी झिझक के उनकी मदद के लिए खड़े हैं. केरल में ओणम का पर्व बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है लेकिन इस बार उत्सव के समय लोगों के दिमाग में यह बात है कि वे इस विपदा से बाहर कैसे निकलेंगे. राज्य सरकार ने भी इस बार ओणम त्योहार के जश्न रद्द कर दिए हैं.
मानसून विशेषज्ञ एलेना सुरोव्यात्किना ने बताया, ‘पिछले 10 सालों में जलवायु परिवर्तन की वजह से जमीन पर गर्मी बढ़ी है जिससे कि मध्य व दक्षिण भारत में मानसूनी बारिश में बढ़ोत्तरी हुई है.’ अभी तक धरती के औसत तापमान में औद्योगिक क्रांति के बाद से एक डिग्री सेल्शियस की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है. वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट ‘साउथ एशिया हॉटस्पॉट’ में कहा गया है कि वर्तमान हालात जारी रहे तो भारत का औसत वार्षिक तापमान डेढ़ से तीन डिग्री तक बढ़ सकता है.
इस रिपोर्ट के अनुसार, ‘यदि सही कदम नहीं उठाए गए तो बारिश के बदलते तरीके और बढ़ते तापमान से भारत की जीडीपी को 2.8 प्रतिशत का नुकसान होगा और 2050 तक देश की आधी आबादी पर बुरा असर पड़ेगा.’ भारत के लिए केवल बाढ़ ही समस्या नहीं है. देश की जनसंख्या को वैश्विक तापमान का दंश झेलना होगा. इसके तहत जानकारों का कहना है कि भारत में गर्मी के समय ज्यादा गर्मी होगी और बारिश में ज्यादा बारिश होगी.
हालिया रिसर्च में कहा गया है कि यदि कार्बन उत्सर्जन पर काबू नहीं पाया गया तो गर्मी और नमी के चलते उत्तरपूर्वी भारत के कुछ हिस्से इस शताब्दी के अंत तक रहने लायक नहीं बचेंगे. वहीं तटीय शहर समंदर के बढ़ते स्तर की चपेट में आ जाएंगे.
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