निशंक के भागीरथी प्रयास- कुंभ मेला यूनेस्को की सूची में शामिल
निशंक के प्रयासो से यूनेस्को की सांस्कृतिक धरोहर की सूची में शामिल कुंभ मेला# विश्व शांति का नोबल पुरस्कार के हकदार है निशंक #यूनेस्को की सांस्कृितक धरोहर की सूची में शामिल कुंभ मेला. #कुंभ मेला को ‘मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर’ के तौर पर मान्यता मिली # निशंक के भागीरथी प्रयास से कुंभ मेला.यूनेस्को की सांस्कृतिक धरोहर की सूची में शामिल #
2021 में होने जा रहे महाकुंभ को लेकर हरिद्वार के सांसद के रूप में डा0 रमेश पोखरियाल निशंक अभी से हरकत में आ गये है, इससे उनकी व्यापक सोच का अंदाजा लगाया जा सकता है,
डा0 रमेश पोखरियाल निशंक ने 2021 में हरिद्वार में लगने वाले महाकुम्भ मेले को लेकर तैयारी शुरू कर दी है। इस बार महाकुम्भ को खास बनाने के लिए हरिद्वार सांसद डा0 निशंक ने प्रदेश के मुख्य अफसरों के साथ बैठक कर जरूरी दिशा निर्देश दिए। पूर्व में संपन्न हुए कुम्भ मेले के आधार पर कुछ अलग और अच्छी व्यवस्थाएं करने के निर्देश दिए है।
हिमालयायूके न्यूज पोर्टल के लिए चन्द्रशेखर जोशी की एक्सक्लूसिव स्टोरी
कुंभ मेला को अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता प्रदान करने की सिफारिश करते हुए विशेषज्ञ समिति ने कहा था कि यह पृथ्वी पर तीर्थयात्रियों का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण जमावड़ा है.
भारत में लगने वाले कुंभ मेले को यूनेस्को ने अपनी ‘मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची’ में शामिल किया है। यूनेस्को संगठन ने ट्विटर पर यह जानकारी दी है। बता दें कि संयुक्त राष्ट्र के सांस्कृतिक निकाय की विश्व धरोहर समिति ने दक्षिण कोरिया के जेजू द्वीप पर हुए अपने 12वें सत्र में कुंभ मेला को इस सूची में रखने की मंजूरी दी। यहां गौर करने वाली बात है कि स्पेन की फ्लेमेंको नृत्य से लेकर इंडोनेशिया की बाटिक कला तक 350 से अधिक परंपराएं और कलारूप आदि इस सूची में पहले से शामिल हैं।
गौरतलब है कि यूनेस्को की सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में तुर्की की तेल कुश्ती और मंगोलिया की ऊंटों के लिए मनाई जाने वाली रस्म को भी इसमें जगह दी गई है। बता दें कि 12 सालों में एक बार लगने वाला महाकुंभ मेला हिन्दुओं के लिए एक खास मौका होता है। ऐसी मान्यता है कि देवासुर संग्राम के दौरान अमृतकलश से अमृत की कुछ बूंदें छलक गई थीं और वे बूंदें पृथ्वी पर प्रयाग (इलाहाबाद), नासिकन उज्जैन और हरिद्वार पर गिरी थीं। अमृत गिरने के कारण यहां हर चार साल पर कुंभ मेला लगता है।
संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को ने कुंभ मेले को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (इनटैन्जिबल कल्चरल हेरिटेज) का दर्जा दिया है। कुंभ को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिली यह पहचान योग और नवरोज के बाद किसी भारतीय परंपरा को मिला लगातार तीसरा खिताब है। यूनेस्को की विशेषज्ञ समिति के अनुसार कुंभ मेला धरती पर होने वाला सबसे बड़ा शांतिपूर्ण धार्मिक सम्मेलन है, जिसमें विभिन्न वर्गों के लोग बिना किसी भेदभाव के भाग लेते हैं। एक धार्मिक आयोजन के तौर पर कुंभ में जैसी सहिष्णुता और समायोजन नजर आता है, वह पूरी दुनिया के लिए एक उदाहरण है।
यूनेस्को की विशेषज्ञ समिति के अनुसार कुंभ मेला धरती पर होने वाला सबसा बड़ा शांतिपूर्ण धार्मिक सम्मेलन है, जिसमें विभिन्न वर्गों के लोग बिना किसी भेदभाव के भाग लेते हैं। भारत में योग और नवरोज के बाद कुंभ मेला को मिला यह तीसरा खिताब है।
भारत में कुंभ मेले का आयोजन उत्तर प्रदेश के प्रयाग में, उत्तराखंड के हरिद्वार में, मध्यप्रदेश के उज्जैन में क्षिप्रा नदी के किनारे और महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी नदी के किनारे हर 12 वर्ष के अंतराल में आयोजित होता है।
इसमें देश-विदेश के करोड़ो श्रध्दालु एकत्र होकर नदियों में डुबकी लगाते हैं और धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। यह अपने आप में ही एक अद्भुत और अविश्वसनीय नजारा होता है जब 24 घंटे में ही करोड़ से डेढ़ करोड़ लोग एक जगह में इकट्ठे होते हैं ।
वर्ष 2003 में यूनेस्को ने अमूर्त सांस्कृतिक धरोहरों को भी संरक्षण देने का निर्णय लिया, हालांकि इस पर अमल 2006 से शुरू हो सका। ऐसी धरोहरों के तहत समाज में प्रचलित पर्व, रीति रिवाज, प्रदर्शनकारी कलाएँ और पारंपरिक शिल्प आते हैं।
भारत में कुंभ मेले को लेकर काफी आस्था देखी जाती है. इसी की महत्ता को देखते हुए यूनेस्को ने भारत के कुंभ मेले को ‘मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर’ के तौर पर मान्यता दी है. अंतरराष्ट्रीय संगठन ने गुरुवार ट्विटर पर यह जानकारी दी. यूनेस्को के अधीनस्थ संगठन इंटरगर्वनमेंटल कमिटी फोर द सेफगार्डिंग ऑफ इन्टेंजिबल कल्चरल हेरीटेज ने दक्षिण कोरिया के जेजू में हुए अपने 12वें सत्र में कुंभ मेले को ‘मावनता के अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की प्रतिनिधि सूची’ में शामिल किया. दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला माना जाने वाला कुंभ मेला को सूची में बोत्सवाना, कोलंबिया, वेनेजुएला, मंगोलिया, मोरक्को, तुर्की और संयुक्त अरब अमीरात की चीजों के साथ शामिल किया गया है.
उत्तराखण्ड के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. निशंक बधाई के पात्र- देश एवं दुनियां से डा0 निशंक को सराहना एवं बधाई मिली थी- कुम्भ का सफल आयोजन उत्तराखण्ड सरकार की बड़ी उपलब्धि है। इस बार के कुम्भ मेले में दो अदभुत कार्य हुए एक विष्व हिन्दु कोश धर्म का विमोचन तथा दूसरा गंगा स्पर्श अभियान का शुभारम्भ।’ यह बात गंगोत्री में पूर्व उप-पधानमंत्री एवं भाजपा के वरिश्” नेता लालकृश्ण आडवाणी ने उत्तराखण्ड सरकार द्वारा आयोजित निर्मल गंगा-स्पर्श गंगा कार्पाम के शुभारम्भ अवसर पर कही थी। पूर्व उप पधानमंत्री आडवाणी ने कहा था कि दो साल पहले मैंने अपने जीवन के बारे में पुस्तक लिखी थी जिसमें गंगा, धरती मुझे बहुत अच्छी लगती है और मैं इससे अभिभूत हूँ। गंगोत्री दर्शन करने की मेरी पबल इच्छा थी, जो आज पूरी हुई है। इस कार्यक्रम को शुरू करने के लिए उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री डॉ. निशंक बधाई के पात्र है। कुम्भ के अवसर पर यह कार्यक्रम शुरू हुआ था जिसे आगे बढ़ाया जा रहा है। आज दुनिया में लोग उत्तराखण्ड को चारधाम यात्रा और कुम्भ के लिए जानते हैं। कुम्भ का सफल आयोजन उत्तराखण्ड सरकार की बड़ी उपलब्धि है। दुनिया में किसी धर्म और सम्पदाय का इतना बड़ा समागम नहीं होता है, जहां पर बिना पचार के लाखों लोग आते हैं। बीबीसी के पत्रकार मार्क टली में अपनी पुस्तक में लिखा है, कि कुम्भ का आयोजन एक अदभुत और दिव्य आयोजन है। जहां पर इतनी बड़ी संख्या में लोग बिना बुलाये पहुंचते हैं। इस बार मैंने डॉ. निशंक को कहा था कि पिछली बार कुम्भ में 70 लाख लोगों के स्नान करने का अनुमान लगाया गया था। इस बार इसके लिए वैज्ञानिक अध्ययन किया जाय, जिस पर राज्य सरकार ने इसरो की मद्द से स्नान करने वाले श्रद्धालुओं की संख्या का अध्ययन कराया, जिनके आंकड़ों के अनुसार मुख्य शाही स्नान 14 अपैल 2010 को 1 करोड़ 62 लाख लोगों ने स्नान किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा था कि राज्य सरकार गंगा की स्वच्छता और निर्मलता को बनाये रखने के लिए बचनबद्ध है। गंगा को विश्व धरोहर बनाने के लिए मंत्रिपरिशद द्वारा पस्ताव पारित कर केन्द सरकार को भेजा गया है। इसके साथ ही स्पर्श गंगा अभियान शुरू किया गया है, जिसकी कड़ी में आज गंगोत्री से भी इस अभियान को शुरू किया जा रहा है। उन्होंने कहा था कि इस अभियान के तहत सात संकल्प लिए गये हैं, जिनमें गंगा में प्लास्टिक का पयोग नहीं करेंगें, गंगा में कूड़े को पवाहित नहीं करेंगे, कूड़े को जैविक व अजैविक अलग-अलग रखेंगें, जैविक कूड़े की खाद बनायेंगे, अजैविक कूड़े को पुनरपाण हेतु स्वच्छकों को देंगे, कूड़े के पबन्धन से ऊर्जा के साथ-साथ अन्य संसाधनों की बचत होगी तथा कूड़े को संसाधन के रूप में पयोग करेंगें। उन्होंने कहा था कि आज लिए गये संकल्प का हम सभी को ईमानदारी से पालन करना होगा, तभी गंगा को स्वच्छ व निर्मल बनाया जा सकता है।उन्होंने कहा था कि इस अभियान से जुड़े छात्र-छात्राओं ने सात-आ” किमी. तक पैदल चलकर गंगा से कूड़ा कचरे के लगभग 150 बोरे एकत्रित किये, जो बधाई के पात्र हैं। उन्होंने कहा कि जिस पकार तमाम थपेड़े खाने के बाद भी गंगा अनवरत बह रही है,उसी पकार हमें इस अभियान को सभी क”िनाइयों के बावजूद पूरा करना है। उन्होंने कहा था कि आज हजारों लोगों ने गंगा की निर्मलता के लिए विभिन्न विद्यालयों के छात्र-छात्राओं, महिला मंगल दल, एन.एस.एस सहित विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाएं शामिल है। उन्होंने कहा था कि गंगा की स्वच्छता के लिए स्वयंसेवी संस्थाओं को आगे आना होगा। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने कुम्भ का सफल आयोजन किया गया है, जिसमें 140 देशों के श्रद्धालुओं ने स्नान किया, जो गंगा की महत्ता को स्पश्ट करता है। भाजपा के वरिष्ठ नेता मेजर जनरल (से.नि.) भुवनचन्द खण्डूड़ी ने कहा था कि यह पुण्य का काम शुरू हुआ है, इसे पदेश एवं देश में ही नहीं पूरे विश्व में होना चाहिए। उन्होंने कहा कि गंगा की गुणवत्ता वैज्ञानिकों ने भी शोध करके बताई है और हमारा कर्तव्य है कि हम गंगा को निर्मल और स्वच्छ रखें। मध्य पदेश की पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री उमा भारती ने कहा था कि कार्यक्रम सफलता के लक्ष्य तक पहुंचेगा। गंगा की निर्मलता हमारा धर्म है, हमें गंगा की आवष्यकता है, नदी की तरह हमें लक्ष्य तय करना है, रेल की तरह नहीं।उस अवसर पर सभा सचिव गोपाल रावत, जिला पंचायत अध्यक्ष नारायण सिंह चौहान, चारधाम विकास परिशद के उपाध्यक्ष सूरतराम नौटियाल, भाजपा पदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल, पूर्व सांसद लेट.जन.(से.नि.) टीपीएस रावत, परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद मुनि, आवास विकास परिशद के अध्यक्ष नरेश वंसल सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति एवं श्रद्धालु उपस्थित थे।
विदेश मंत्रालय ने कहा कि यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण संबंधी अंतर सरकारी समिति की बैठक 4 से 9 दिसंबर के बीच हो रही है. योग और नवरोज के बाद पिछले करीब दो वर्षो में इस प्रकार की मान्यता प्राप्त करने वाला कुंभ मेला तीसरा धरोहर है.
विदेश मंत्रालय ने कहा कि समिति के अनुसार यह महोत्सव व्यापक एवं शांतिपूर्ण है और इसका आयोजन भारत के इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में किया जाता है। इस दौरान भारत में पवित्र नदी के किनारे पूजा अर्चना की जाती है. यह धार्मिक महोत्सव सहिष्णुता और समावेशी प्रकृति को प्रदर्शित करता है और इसमें बिना किसी भेदभाव के लोग हिस्सा लेते हैं इस मौके पर केंद्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने ट्वीट किया कि ‘हमारे लिए बेहद गौरव का क्षण है कि यूनेस्को ने कुंभ मेला को मानवता के अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के तौर पर जगह दी है.’ उन्होंने कहा, ‘कुंभ मेला को धरती पर श्रद्धालुओं का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण जमघट समझा जाता है जिसमें जाति, पंथ या लिंग से इतर लाखों लोग हिस्सा लेते हैं.’
वर्ष 2003 में यूनेस्को ने अमूर्त सांस्कृतिक धरोहरों को भी संरक्षण देने का निर्णय किया हालांकि इस पर अमल 2006 से शुरू हो सका। ऐसी धरोहरों के तहत समाज में प्रचलित पर्व, रीति-रिवाज, वाचिक परंपराएं, प्रदर्शनकारी कलाएं, पारंपरिक शिल्प और अन्य पुरानी विधाएं आती हैं। यूनेस्को उन तमाम लोगों और संगठनों के साथ मिलकर काम करता है जो अपने-अपने देश की अमूर्त सामूहिक धरोहरों के संरक्षण में लगे रहते हैं। इसके तहत उन्हें यूनेस्को के सदस्य देशों द्वारा इकट्ठा किए गए फंड से आर्थिक मदद भी दी जाती है। लेकिन इससे भी बड़ी बात यह है कि यूनेस्को उन्हें अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्रदान करता है जिससे उन पर शोध कार्य बढ़ जाता है, साथ ही उनसे जुड़े स्थलों पर पर्यटन में तेजी आ जाती है।
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कुंभ मेले का आयोजन उत्तर प्रदेश के प्रयाग (इलाहाबाद) में गंगा-यमुना के संगम पर, उत्तराखंड के हरिद्वार में गंगा नदी के किनारे, महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी नदी के किनारे और मध्य प्रदेश के उज्जैन में क्षिप्रा नदी के किनारे होता है। इसमें देश-विदेश के लाखों श्रद्धालु एकत्र होकर पवित्र नदियों में डुबकी लगाते हैं और धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। इसके पीछे देवासुर संग्राम और समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश की पौराणिक मान्यता है। कहा जाता है कि समुद्र मंथन में निकले अमृत का कलश हरिद्वार, इलाहबाद, उज्जैन और नासिक में थोड़ा-थोड़ा छलक गया था। इसकी शुरुआत कब हुई, इसे लेकर मतभेद है। एक मान्यता यह है कि कुंभ की शुरुआत समुद्र मंथन के बाद आदिकाल से ही हो गई थी। कुछ विद्वान गुप्त काल से इसकी शुरुआत मानते हैं। पर इसका जो प्राचीनतम लिखित वर्णन उपलब्ध है, वह सम्राट हर्षवर्धन के समय का है और इसे चीन के प्रसिद्ध तीर्थयात्री ह्वेनसांग ने दर्ज किया है। हालांकि यह भी एक तथ्य है कि आदि शंकराचार्य ने इसे एक व्यवस्थित रूप दिया। कुंभ को विश्व स्तर पर महत्व मिलना भारत के लिए एक उपलब्धि है। सरकारों को ध्यान रखना होगा कि अब कुंभ मेलों पर पूरी दुनिया की नजर है, लिहाजा इनकी व्यवस्था में कोई कसर नहीं छोड़ी जानी चाहिए।
महाकुंभ 2021 के लिए मेला क्षेत्र 130 वर्ग किमी होगा और हरिद्वार, देहरादून, टिहरी और पौड़ी जिलों के भूभाग इसमें शामिल होंगे। महाकुम्भ भारत का एक प्रमुख उत्सव है जो ज्योतिषियों के अनुसार तब आयोजित किया जाता है जब बृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करता है। कुम्भ का अर्थ है घड़ा। यह एक पवित्र हिन्दू उत्सव है। यह भारत में चार स्थानो पर आयोजित किया जाता है: प्रयाग (इलाहाबाद), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। पौराणिक आख्यानों के अनुसार समुद्रमंथन के दौरान निकला अमृतकलश १२ स्थानों पर रखा गया था जहां अमृत की बूंदें छलक गई थीं। इन १२ स्थानों में से आठ ब्रह्मांड में माने जाते हैं और चार धरती पर जहां कुंभ लगता है। हिन्दू धर्म में मान्यता है कि इस मेले में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कुंभ का पहला ब्रिटिश वर्णन 1796 को हरिद्वार में हुए मेले का मिलता है। इस मेले में ब्रिटिश लेखक थॉमस हार्डविक आए थे और एशियाटिक रिसर्च में इस पर विस्तार से लिखा था। उन्होंने इस मेले के विविधतापूर्ण और अव्यवस्थित बतलाया था। उनका कहना था कि मेले में धार्मिक आस्था वाले भी होते हैं, अवसरवादी व्यापारी भी और विभिन्न अखाड़ों के लड़ाकू भी। उन्होंने इसमें नागा साधुओं का भी जिक्र किया था। इस मेले के बारे में उन्होंने अंग्रेज अधिकारी गुसैन से भी बातचीत की थी जिन्होंने यहां आने वाले यात्रियों से कर की वसूली की थी।
इस मेले में उदासी अखाड़े के साधुओं ने हिंसा कर दी थी जिसे कैप्टन मुरी ने सिपाहियों की दो बटालियन के साथ दबाया था। उसने लिखा कि उदासी साधू तलवारे लहराते हुए निकल पड़े थे और रास्ते में जो भी आया वह उनका शिकार बन गया। हार्डविक ने यह भी लिखा है कि मेले में अंग्रेज काफी कम सख्या में थे और गुसैन सबके लिए खलनायक की तरह ही थे। हार्डविक दरअसल सहारनपुर जिले में गए थे जिसमें हरिद्वार आता था। इस जिले को कुछ ही समय पहले ईस्ट इंडिया कंपनी ने मराठों से हासिल किया था।
हरिद्वार के इस कुंभ का यह नाटकीय रूप बाद में कुंभ के बारे में ब्रिटिश सोच का केंद्रीय भाव बन गया। इस घटना का जिक्र सरकारी इतिहासकारों ने गजेटियर में भी किया। सरकर और अखबारों की रपट में तो इसका जिक्र आया ही साथ ही इसे कुंभपर्व महामात्य जैसे ग्रंथ में भी शामिल कर लिया गया।
इसके बाद हरिद्वार कुंभ मेले का जिक्र ईस्ट इंडिया कंपनी के भूगोलशास्त्री कैप्टन फ्रांसिस रैपर ने किया। यह जिक्र भी एशियाटिक रिसर्च में ही छपा था। रैपर ने अपने लेख में लिखा था कि इस बार पूरे इंतजाम हो गए हैं इसलिए 1796 वाली घटना नहीं दोहराई जा सकेगी और 1808 का कुंभ शांति से संपन्न हो जाएगा। इस लेख में रैपर ने 1760 के कुंभ का जिक्र करते हुए बताया कि उस साल शैव और वैष्णव बैरागियों में इससे कहीं भीषण झगड़ा हुआ था और इसमें हजारों वैष्णव मारे गए थे। यह जिक्र भी बताता है कि ब्रिटिशों का कुंभ के बारे में नजरिया क्या बन रहा था। ऐसे किस्सों के सहारे ब्रिटिशर्स की मौजूदगी को भी जायज ठहराया जा रहा था, यह बताया जा रहा था कि अगर ब्रिटिश चले गए तो क्या होगा।
कुंभ मेले जैसे धार्मिक समागमों का प्रबंधन कैसे किया जाए इसे लेकर ईस्ट इंडिया कंपनी हमेशा उलझन में रही, लेकिन भारत जैसी जगह में ऐसे धर्मिक आयोजनों का क्या महत्व है यह उसे अच्छी तरह पता था। यहां तक कि 1812 के कुंभ मेले में एक मिशनरी को गिरफ्तार करके वापस भेज दिया गया था क्योंकि वह वहां उपदेश दे रहा था। जान चैंबरलिन नाम का यह मिशनरी इससे इतना नाराज हो गया था कि उसने गर्वनर मॉरक्वीज़ आफ हेस्टिंग से इसकी शिकायत कर दी लेकिन गर्वनर ने उसे समझा बुझाकर वापस भेज दिया।
लेकिन बाद में जब साधुओं के आपसी झगड़े कुछ कम हुए तो यह एक शांत मेला माना जाने लगा।
इसके बाद तरह तरह के यात्री और पर्यटक कुंभ मेले की ओर आकर्षित होने लगे। इसके बाद इसका जिक्र कई यूरोपीय लेखकों के यात्रा वृतांत में मिलने लगा। इन वृतांतों में मोटी मोटी जानकारियों और निजी अनुभवों का घालमेल था। वृतांत लिखने वाले सैनिक और सरकारी अधिकरी थे, चर्च के लोग या मिशनरी थे, या वे लोग थे किसी तरह से राज की सेवा के लिए यहां आए थे। इनमें कुछ घुमक्कड़ भी थे जो सदिर्या बिताने के लिए भारत आए थे और गर्मी पड़ने के पहले ही यहां से भाग जाना चाहते थे। इन वृतांतों में गजेटियर, स्थानीय अधिकारियों और अखबारों से मिली जानकारियां भरी हुईं हैं।
इनके चलते कुंभ के बारे में तरह तरह की धारणाएं बन गईं थीं। यहीं वजह है कि 1906 में जब प्रिंस आफ वेल्स भारत की यात्रा पर आए तो इलाहाबाद में कुंभ चल रहा था लेकिन इलाहाबाद को उनके इस यात्रा कार्यक्रम में शमिल नहीं किया गया था। इंडियन पीपुल अखबार ने इसका विरोध किया था। उसने लिखा था कि पूरी दुनिया में ऐसा समागम कहीं नहीं जुटता और प्रिंस को इसे जरूर देखना चाहिए था। हालांकि प्रिंस के साथ भारत आए सिडने लो कुंभ मेले में गए थे और उन्होंने इस पर लिखा भी था। इस मेले में मुख्य स्नान के दिन भगदड़ मच गई थी और दस तीर्थ यात्री भगदड़ में कुचल कर मर गए थे।
इस पर इलाहाबाद के अखबार सिटीजन ने लिखा था कि समस्या की वजह ब्रिटिश सरकार द्वारा मेले के तौर तरीके को न समझ पाना है। अखबार ने पूछा था कि क्या ब्रिटिश अधिकारी भारतीय ज्योतिषी गणनाओं को समझ सकते हैं। उसका तर्क था कि किस समय स्नान का सबसे शुभ मुहूर्त है और भारी भीड़ जमा होगी इसे अधिकारी समझ ही नहीं पाए थे। मेले के बारे में ब्रिटिश समझ का यह सबसे अच्छा उदाहरण है।
उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में जब हरिद्वार मेले की सुरक्ष बढ़ाई गई तो इस वजह से और कई दूसरे सामाजिक आर्थिक कारणों से मेले में भीड़ काफी बढ़ने लगी। इससे कई और तरह के खतरे पैदा हुए। भीड़ को संभालना मुश्किल हो गया और हरिद्वार में 1820 के कुंभ मेले में मची भगदड़ में 485 लोगों की जान चली गई। इस पर अपनी रिपोर्ट में वहां मौजूद मजिस्ट्रेट ने लिखा कि यह एक तरह का धार्मिक उन्माद था और सेना या पुलिस की किसी भी संख्या से इसे रोका नहीं जा सकता था।
ऐसी घटनाओं की वजह से कुंभ मेले का भयावह चित्रण भी हुआ। 1840 के कुंभ में जब हैरियेट एशमोर संगम पर गईं तो उन्हें हैरत हुए कि जिस भयानक दृश्य की कल्पना करके वे यहां आईं थी वह कहीं मौजूद ही नहीं था। उन्होंने सुन रखा था कि मेले में डकैती से अपहरण तक कुछ भी हो सकता है। इसी तरह सी एफ गार्डन को वे मगरमच्छ कहीं नहीं दिखाई दिए जो तीर्थयात्रियों को अपना शिकार बनाते थे। उन्होंने इस मेले के दृश्यों पर कईं ड्राइंग भी बनाईं। पिलग्रिमेज़ एंड पॉवर से साभार
हिमालयायूके न्यूज पोर्टल के लिए चन्दशेखर जोशी- मुख्य सम्पादक- राज्य स्तरीय मान्यता प्राप्त- उत्तराख्ण्ड की विशेष रिपोर्ट
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