वकीलो का 22 जनवरी को दिल्ली हाई कोर्ट से जुलूस,1,200 वकीलों की मुख्य न्यायाधीश को चिट्ठी
HIGH LIGHT# वकीलों ने तय किया है कि वे 22 जनवरी को दिल्ली हाई कोर्ट से एक जुलूस लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जाएँगे # बंबई हाई कोर्ट के पूर्व जज बी. जी. कोलसे पाटिल ने कहा कि दिल्ली पुलिस ने एक कथित ई-मेल को बरामद करने के लिए 200 पुलिस कर्मियों को तैनात कर दिया था और 15 घंटे तक तलाशी लेती रही।
यह सवाल उठा था कि यदि किसी मामले में फँसे आरोपियों की पैरवी करने वाले वकीलों के ख़िलाफ़ ही केस दर्ज कर दिया जाए तो क्या वकील वैसे आरोपियों की पैरवी करने से हतोत्साहित नहीं होंगे? और यदि किसी आरोपी की तरफ़ से कोर्ट में पैरवी करने वाले वकील ही नहीं होंगे तो क्या यह न्याय के मूलभूत सिद्धांतों के ख़िलाफ़ नहीं होगा? न्याय का मूलभूत सिद्धांत कहता है कि आरोपी को बिना किसी डर के अपना पक्ष रखने की पूरी छूट होनी चाहिए।
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दिल्ली दंगों के मुसलिम अभियुक्तों के मुक़दमे लड़ने वाले महमूद प्राचा के दफ़्तर पर हुई छापामारी के ख़िलाफ़ देश के वकील एकजुट हो रहे हैं। मशहूर वकील प्रशांत भूषण समेत लगभग 1,200 वकीलों ने मुख्य न्यायाधीश एस. ए. बोबडे के नाम एक चिट्ठी लिखी है, जिसमें इसे न सिर्फ आपराधिक न्याय प्रणाली बल्कि अभियुक्तों के अधिकार पर हमला बताया गया है। इसके साथ ही छापे से जुड़े पुलिस अफ़सरों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई करने की माँग भी की गई है।
इन वकीलों ने तय किया है कि वे 22 जनवरी को दिल्ली हाई कोर्ट से एक जुलूस लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जाएँगे और मुख्य न्यायाधीश एस. ए. बोबडे से मिल कर उन्हें वह चिट्ठी सौंपेगे।
प्राचा के कार्यालय पर जो छापा मारा गया है वह मामला दरअसल अगस्त महीने में एक मुक़दमे से जुड़ा है। दिल्ली की एक अदालत ने 22 अगस्त को प्राचा के ख़िलाफ़ उन आरोपों की जाँच के आदेश दिए थे, जिनमें उनपर धोखाधड़ी के आरोप लगाए गए थे। इसके बाद उनके ख़िलाफ़ धोखाधड़ी और जालसाजी की एफ़आईआर दर्ज की गई थी। इस मामले की जाँच दिल्ली पुलिस द्वारा की जा रही है। और इसी संदर्भ में यह तलाशी की कार्रवाई की गई है।
रिपोर्ट के अनुसार, पूर्वी निज़ामुद्दीन में प्राचा के कार्यालय में जब तलाशी ली जा रही थी तो पुलिसकर्मियों ने प्रवेश पर रोक लगा दी थी। प्राचा ने कहा था, ‘मेरा फ़ोन जब्त कर लिया गया है। मुझे धमकी दी जा रही है। मैंने उन्हें बताया था कि “वे मेरे कंप्यूटर से, मेरे कार्यालय से और यहाँ तक कि मेरे घर से भी चीजें ले जा सकते हैं। आख़िरकार संविधान जीतेगा। यह इतना कमज़ोर नहीं है… हम सुनिश्चित करेंगे कि हर दंगा पीड़ित को न्याय मिले।”
वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा था, “उन वकीलों पर निशाना साधा जा रहा है जो ऐसे लोगों का बचाव कर रहे हैं जिन्हें फँसाया गया है। यह उस साज़िश में अगला क़दम है जिसमें प्रदर्शन करने वालों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और उनके वकीलों को जाँच की आड़ में फँसाया जाए।” प्रशांत भूषण ने कहा था कि प्राचा के यहाँ छापा मारने के बजाय पुलिस उन्हें बुला कर वे चीजें पेश करने को कह रही थीं, जिसकी तलाश में उसने छापा मारा था।
इस मशहूर वकील ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा है कि पुलिस का मक़सद प्राचा और उनके मुवक्किलों को डराना था। भूषण ने यह भी कहा कि पुलिस छापेमारी के दौरान रिकॉर्ड किए गए वीडियो साझा नहीं कर रही है क्योंकि यह पता लगेगा कि उसमें गृह मंत्री का नाम लिया जा रहा है।
बंबई हाई कोर्ट के पूर्व जज बी. जी. कोलसे पाटिल ने कहा कि दिल्ली पुलिस ने एक कथित ई-मेल को बरामद करने के लिए 200 पुलिस कर्मियों को तैनात कर दिया था और 15 घंटे तक तलाशी लेती रही।
यह सवाल उठा था कि यदि किसी मामले में फँसे आरोपियों की पैरवी करने वाले वकीलों के ख़िलाफ़ ही केस दर्ज कर दिया जाए तो क्या वकील वैसे आरोपियों की पैरवी करने से हतोत्साहित नहीं होंगे? और यदि किसी आरोपी की तरफ़ से कोर्ट में पैरवी करने वाले वकील ही नहीं होंगे तो क्या यह न्याय के मूलभूत सिद्धांतों के ख़िलाफ़ नहीं होगा? न्याय का मूलभूत सिद्धांत कहता है कि आरोपी को बिना किसी डर के अपना पक्ष रखने की पूरी छूट होनी चाहिए।