लॉकडाउन: चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है- हमको वो ज़माना याद है
कोरोना वायरस की वजह से पूरे देश में 21 दिन का लॉकडाउन हो गया आगे भी कितने दिन चलेगा, कब सामान्य दिन आयेगे- कहा नही जा सकता. इस लॉकडाउन ने एक संकट से बचाने के लिए दूसरा संकट खड़ा कर दिया. दिल्ली-NCR तथा पूरे देश में रोज कमाने-खाने वाले हजारों प्रवासी मजदूर सड़कों पर आ गए. भुखमरी जैसी हालात से बचने के लिए वो परिवार सहित पैदल ही निकल पड़े सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने गांव. सिर पर बोरिया-बिस्तर, गोद में बच्चे और आंखों में मदद की उम्मीद. भूख-प्यास से जूझते, सड़क किनारे सुस्ताते और फिर हिम्मत जुटाकर आगे निकल पड़ते ; हर आंखों में सवाल जरूर है. कब हटेगा ये लॉकडाउन. कब सड़क पर सवारी आयेगी :काम बंद होने से सैकड़ों लोगों की नौकरी भी चली गई है.
# कोरोना जीत रहा है कि नागरिक? # हमें बताया गया है कि हम इस समय महाभारत जैसे ही युद्ध में हैं और उसे तीन सप्ताह में जीत कर दिखाना है। # जब भी ‘बंदीगृहों’ से बाहर निकलने की इजाज़त मिले तो सब कुछ बदला-बदला सा तो नहीं मिलने वाला है? # जिन्दा रहने की जददोजहत जिन्दगी को और कठोर बना देगी # लॉकडाउन बढ़ाने को लेकर लिए जाने वाले फ़ैसलों को हमारी मौन स्वीकृति कहीं केवल इसलिए तो नहीं है कि हमें जो कुछ भी सोचना चाहिए उसके बारे में सोचकर भी घबरा रहे हैं? श्रवण गर्ग
प्रधानमंत्री ने कहा कि कोरोना से पहले का जीवन और बाद का जीवन एक जैसा नहीं होगा। मोदी ने कहा कि कोरोना के बाद के जीवन में कई बड़े व्यावहारिक, सामाजिक और व्यक्तिगत बदलाव आयेंगे।
लॉकडाउन को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को सभी दलों के नेताओं के साथ वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के जरिये बातचीत की। बताया जाता है कि प्रधानमंत्री ने इस दौरान कहा कि 14 अप्रैल को लॉकडाउन को खोलना संभव नहीं होगा क्योंकि बीते दिनों में इस वायरस के संक्रमण के मामले तेजी से बढ़े हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि वह इस बारे में मुख्यमंत्रियों से भी बातचीत करेंगे। वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के दौरान प्रधानमंत्री ने कहा कि कोरोना से पहले का जीवन और बाद का जीवन एक जैसा नहीं होगा। मोदी ने कहा कि कोरोना के बाद के जीवन में कई बड़े व्यावहारिक, सामाजिक और व्यक्तिगत बदलाव आयेंगे। वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग में लगभग सभी दलों के नेता उपस्थित रहे। प्रधानमंत्री ने कहा था कि विश्व स्तर पर स्थिति ठीक नहीं है और यह वायरस फिर से लौट सकता है। उन्होंने कहा था कि लॉकडाउन समाप्त होने के बाद जब लोग बाहर निकलेंगे, उसे लेकर केंद्र और राज्यों को रणनीति बनानी होगी। उन्होंने राज्य सरकारों से इस बारे में सोच-विचारकर सुझाव देने के लिये कहा था।
अपने शरीरों को ज़िंदा रखने की चिंता में ही इतने नहीं खप जाएँ कि हमारी व्यक्तिगत और सामूहिक आत्माएँ और आस्थाएँ ही मर जाएँ और हमें आभास तक न हो। ऐसा होना सम्भव है। महायुद्धों की विभीषिकाओं के बाद लोग या तो हर तरह से कठोर हो जाते हैं या फिर पूरी तरह से टूट जाते हैं। हमें बताया गया है कि हम इस समय महाभारत जैसे ही युद्ध में हैं और उसे तीन सप्ताह में जीत कर दिखाना है। हमने चुनौती स्वीकार भी कर ली थी। तीन सप्ताह का समय भी अब ख़त्म होने को है।
महाभारत के युद्ध में 47 लाख से ज़्यादा योद्धाओं ने अनुमानित तौर पर भाग लिया था और धर्मराज युधिष्ठिर सहित केवल 12 लोग ही अंत में बच पाए थे। हमें ज़्यादा पुष्ट जानकारी नहीं है कि लाखों वीर योद्धाओं का अंतिम संस्कार और उनकी अस्थियों का विसर्जन कैसे और कहां हुआ होगा। जो कुरुक्षेत्र अभी दुनियाभर में जारी है उसमें अपने प्रियजनों को दफ़नाने के लिए ज़मीन और कफ़न ढूंढे जा रहे है और प्रतीक्षा में लाशों के ढेर अस्पतालों के मुर्दाघरों में कैद हैं। इसी प्रकार, हमारे यहां भी अस्थि कलश मुक्तिधामों पर नाम पट्टिकाओं के साथ लॉकडाउन में हैं। बहुत सारे लोगों को बहुत सारे काम करना है। ठीक से शोक व्यक्त करना है। पवित्र नदियों की तलाश करना है। अस्थियों का विसर्जन सम्मानपूर्वक करना है। सबसे बढ़कर यह कि जी भर कर रोना है, आंसू बहाना है। हमने ध्यान ही नहीं दिया होगा कि इस बार मारने वालों में स्पेन की राजकुमारी भी हैं, बीमार पड़ने वालों में ब्रिटेन के राजकुमार भी हैं और गहन चिकित्सा इकाई में भर्ती होने वालों में वहां के प्रधानमंत्री भी हैं। महामारी ने सबको बराबर कर दिया है। हम सोच नहीं पा रहे हैं या फिर जान-बूझकर सोचने से कतरा-घबरा रहे हैं कि जब हम सड़कों पर अंततः उतरेंगे तो एक-दूसरे के साथ किस तरह का व्यवहार करेंगे? क्या हम अपने ‘होने’ की ख़ुशी मनाएंगे या फिर वे सब जो हमारे बीच से अनुपस्थित हो गए हैं, उनकी याद में एक नई मोमबत्ती जलाएंगे?
जब भी ‘बंदीगृहों’ से बाहर निकलने की इजाज़त मिले तो सब कुछ बदला-बदला सा तो नहीं मिलने वाला है? मसलन, हम अभी ठीक से ध्यान नहीं दे पा रहे होंगे कि बच्चों की उम्र कुछ ज़्यादा ही तेज़ी से बढ़ रही है और वे भी हमारी ही तरह से चिड़चिड़े या चिंतित होते जा रहे हैं! दूसरी ओर, घर के बुजुर्ग बच्चों की तरह होकर हमारी तरफ़ कुछ ज़्यादा ही देखने लगे हैं!
हमें अभी ठीक से पता नहीं है कि सरकार इस बात के अलावा कि हमारे यहाँ के मृतकों के आँकड़े दूसरे मुल्कों के मुक़ाबले सबसे कम होने चाहिए ताकि अपनी व्यवस्था का परचम दुनिया में लहरा सकें, क्या अपने नागरिकों को और ज़्यादा आज़ादी देने अथवा उन पर और अंकुश लगाने पर विचार कर रही है। हमने इस तरफ़ तो बिलकुल भी नहीं सोचा होगा कि पिछले छह सालों में ‘सरकार’ को भी पहली बार इतना लम्बा ख़ाली वक़्त मिला है कि युद्धक्षेत्र की स्थिति वह खुद देख सके —कोरोना जीत रहा है कि नागरिक?
क्या एक इंसान और दूसरे के बीच आज छह क़दमों का जो फ़ासला है वही क़ायम रहेगा कि लोग आपस में गले भी लगेंगे? क्या समुदाय-समुदाय के बीच इस दौरान पैदा की गईं दूरियाँ टूटेंगी या फिर वे नंगी और बेज़ान दीवारों में तब्दील हो जाएँगी? क्या हम ज़्यादा बेहतर इंसान होकर इस भट्टी से निकलेंगे या कि बार-बार घरों की ओर लौटकर दरवाज़े-खिड़कियाँ फिर से बंद करने के बहाने ईज़ाद करेंगे?
चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है https://www.youtube.com/watch?v=38_AJgdtXm4
हमको अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है
तुझसे मिलते ही वो कुछ बेबाक हो जाना मेरा
और तेरा दाँतों में वो उँगली दबाना याद है
चोरी चोरी हमसे तुम आ कर मिले थे जिस जगह
मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो ठिकाना याद है
दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिये
वो तेरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है
गूगल ने अपने सर्च इंजन में रखा वरियता क्रम में- BY: www.himalayauk.org (Uttrakhand Leading Newsportal & Daily Newspaper) Publish at Dehradun & Hariwar Mail us; himalayauk@gmail.com Mob. 9412932030## Special Report