लोकसभा चुनाव 2019 ;उलटी गिनती शुरू- ओपिनियन पोल के मुताबिक़ …
लोकसभा चुनाव 2019 में अब मुश्किल से ढाई महीने का समय बचा है और राजनीतिक दलों ने सीटों के बँटवारे को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है।
इंडिया टीवी-सीएनएक्स ओपिनियन पोल के मुताबिक़ यदि शनिवार को लोकसभा चुनाव हुए तो बीजेपी को सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में काफ़ी नुक़सान उठाना पड़ सकता है। यदि विपक्षी दलों के बीच ‘महागठबंधन’ नहीं हो तो भी बीजेपी को सिर्फ़ 40 सीटें मिल सकती हैं जो पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में 33 सीटें कम हैं। यानी विपक्षी दलों के बीच ‘महागठबंधन’ होने पर बीजेपी की स्थिति कहीं ज़्यादा ख़राब हो सकती है।इंडिया टीवी-सीएनएक्स की ओर से कराए गए ओपिनियन पोल के मुताबिक़, उत्तर प्रदेश में बीजेपी को लोकसभा चुनाव मे 40 सीटें मिल सकती हैं। इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी को 15 और समाजवादी पार्टी को 20 मिल सकती हैं, जबकि कांग्रेस को सिर्फ़ 2 सीटें मिलती दिखाई गई हैं। अन्य दलों को कुल मिला कर 3 सीटें मिल सकती हैं।
देश के सबसे बड़े राज्य में बीजेपी को 37 प्रतिशत वोट मिल सकते हैं जबकि बीएसपी को 19 और सपा को 23 फ़ीसदी वोट मिलने की संभावना है। यहां कांग्रेस को सिर्फ़ 10 प्रतिशत वोटरों का समर्थन मिलने की संभावना है। इस ओपिनियन पोल के अनुसार, यदि आज शनिवार को लोकसभाा चुनाव हों तो बिहार में एनडीए को 27 सीटें और यूपीए को महज 13 सीटें हासिल होंगी। इनमें बीजेपी को 13 और जनता दल यूनाइटेड को 11 सीटों पर कामयाबी मिल सकती है। पिछले चुनाव में बिहार में बीजेपी को 22 और उसके सहयोगी दल लोक जनशक्ति पार्टी को 6 सीटें मिली थीं। जदयू इस बार बीजेपी के साथ मिल कर चुनाव लड़ रही है, पर पिछली बार उसने बीजेपी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ा था। एनडीए क़रार के मुताबिक बीजेपी सिर्फ़ 20 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इस लिहाज़ से बिहार में भी उसकी स्थिति पहले से बदतर ही होने की संभावना है। दूसरी ओर, राष्ट्रीय जनता दल को 10 और कांग्रेस को सिर्फ़ 2 सीटों पर कामयाबी हासिल होगी, जबकि अन्य दलों के खाते में 4 सीटें जाएंगी।
इसी तरह बीजेपी का वोट शेयर 22 फ़ीसद और जदयू का वोट शेयर 20 प्रतिशत हो सकता है जबकि वोटों में राजद की हिस्सेदारी 25 फ़ीसद और कांग्रेस की 8 प्रतिशत हो सकती है। बाकी के दलों को 25 प्रतिशत वोट मिल सकते हैं। इंडिया टीवी-सीएनएक्स सर्वे पर भरोसा किया जाए तो आज शनिवार को चुनाव होने पर महाराष्ट्र में भी बीजेपी को एक सीट कम यानी 22 सीटें मिल सकती है। इस राज्य में उसे पिछले बार 23 सीटें मिली थीं। उसके सहयोगी शिवसेना को 8 सीटें मिल सकती हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में शिवसेना को 18 सीटें हासिल हुई थी। दूसरी ओर, कांग्रेस को 9 और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को भी 9 सीटें मिलने की संभावना है।
इंडिया टीवी-सीएनएक्स ओपिनियन पोल के मुताबिक़, यदि लोकसभा चुनाव शनिवार को हों तो झारखंड में भी इसकी स्थिति दूसरे दलों से बहतर ही रहेगी। उसे इस राज्य में 7 सीटें मिल सकती हैं, जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा को 4, कांग्रेस को 2 और जेवीएम को 1 सीट मिलने की संभावना है।
इधर गोवा में बी बीजेपी को नुक़सान होने की संभावना जताई गई है। इंडिया टीवी-सीएनएक्स सर्वे के मुताबिक़, आज चुनाव होने पर गोवा की कुल दो सीटों में से बीजेपी और कांग्रेस दोनों को एक-एक सीट मिलने की बात कही गई है। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को दोनों सीटों पर कब्जा किया था।
महाराष्ट्र में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के बीच सीट बँटवारे को लेकर 45 सीटों पर सहमति बन गई है। इसके अलावा एनसीपी अपने कोटे में से एक सीट राजू शेट्टी की स्वाभिमानी शेतकारी संगठन को देगी जबकि कांग्रेस अपने हिस्से में से वामदलों को कुछ सीट देगी। एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार की लोकसभा चुनाव में सीट बँटवारे के मुद्दे पर हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी के साथ बंद कमरे में बातचीत हुई थी। महाराष्ट्र में लोकसभा की कुल 48 सीटें हैं।
न्यूज़ 18 को दिए गए इंटरव्यू में पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद पवार ने कहा, ‘कांग्रेस के साथ सीटों का बँटवारा लगभग पूरा हो चुका है, बस 2-3 सीटों को लेकर बातचीत चल रही है। हमारी कोशिश है कि इसमें से जिस पार्टी की 1 या 2 सीटें जीतने की बेहतर संभावनाएँ हैं, उसे इन सीटों से चुनाव लड़ना चाहिए।’ एनसीपी अध्यक्ष ने कहा, ‘दोनों दल इस बारे में बातचीत कर रहे हैं, वरना अब तक हम सीट बँटवारे को लेकर घोषणा कर चुके होते।’ पवार ने आगे कहा, ‘हम राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के साथ किसी भी तरह का चुनावी गठबंधन नहीं कर रहे हैं।’
महाराष्ट्र में एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन में और दलों को शामिल किए जाने के बारे में पवार ने कहा कि हम इस बारे में राज्य के एक या दो छोटे दलों से बातचीत करेंगे। उन्होंने कहा कि स्वाभिमानी शेतकारी संगठन को हम कोल्हापुर की हातकणंगले सीट दे रहे हैं।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि केंद्र मौजूदा मोदी सरकार से कुछ भी अच्छा होने की उम्मीद नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव 2019 (Lok Sabha Elections 2019) की उअअलटी गिनती शुरू हो चुकी है।
पी चिदंबरम ने कहा कि मोदी सरकार अगले 60 दिनों में ऐसा कुछ नहीं कर सकती जो अर्थव्यवस्था की स्थिति को बदल सकता हो। पी चिदंबरम ने चिंता जताते हुए कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति बेहद खतरनाक है, हर संकेत चिंताजनक दिखाई दे रहा है।
लोकसभा चुनाव 2019 (Lok Sabha Elections 2019) से पहले कोलकाता में होने वाली तृणमूल कांग्रेस की महारैली को समर्थन देने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सीएम ममता बनर्जी को एक खत लिखा है। ममता बनर्जी की ये महारैली 19 जनवरी 2019 को होने जा रही है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी को टीएमसी की महारैली के लिए समर्थन देते हुए लिखा कि पूरा विपक्ष एकजुट है …. मैं एकता और आशा के इस शो पर ममता दीदी को अपना समर्थन देता हूं और आशा करता हूं कि हम एक साथ एकजुट होकर एक शक्तिशाली भारत का संदेश देंगे। ममता बनर्जी को लिखे खत में राहुल गांधी ने उनकी महारैली को समर्थन देते हुए लिखा कि जनता में मोदी सरकार द्वारा किए गए झूठे वादों से लोग त्रस्त हो चुके है। राहुल ने अपने खत में मोदी सरकार पर लोकतंत्र, सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता को खत्म करने का आरोप लगाया है। राहुल गांधी ने कहा कि जल्द ही एक नया सवेरा होगा जिसमे धर्म, जाती, संप्रदाय, और लिंग का भेद किए बिना महिला, पुरुष, बच्चे बूढ़े सभी आवाज को सुना जाएगा।
सीएम ममता बनर्जी ने टीएमसी की इस महारैली में शामिल होने के लिए कई विपक्षी पार्टियों को न्योता भेजा है। कर्नाटक के सीएम एचडी कुमारस्वामी ममता की महा रैली में शामिल होने के लिए आज कोलकाता पहुंचेंगे। ममता बनर्जी की इस महारैली में भाजपा नेता शत्रुघ्न सिन्हा भी शामिल होंगे। शत्रुघ्न सिन्हा ने गुरुवार को बताया कि वह ‘राष्ट्र मंच’ के प्रतिनिधि के तौर पर ममता की महा रैली में हिस्सा लेंगे। अभिनेता और नेता शत्रुघ्न सिन्हा केंद्र की भाजपा सरकार के कई निर्णयों को लेकर उसका विरोध करते रहे हैं जिसमें नोटबंदी भी शामिल है। वह इन निर्णयों को ‘वन मैन शो’ बताते रहे हैं।
तृणमूल कांग्रेस की निगाहें इस वक्त दिल्ली पर हैं और पार्टी शनिवार को कोलकाता में होने वाली ‘‘संयुक्त विपक्षी रैली’’ के लिए तैयार है. तृणमूल प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि यह रैली लोकसभा चुनावों से पहले बीजेपी के लिए ‘‘मृत्यु-नाद’’ की मुनादी होगी.
भगवा पार्टी के ‘‘कुशासन’’ के खिलाफ संयुक्त लड़ाई का संकल्प जताने के लिए कोलकाता के प्रतिष्ठित ब्रिगेड परेड मैदान में शनिवार को होने वाली इस रैली में 20 से अधिक विपक्षी दलों के शिरकत करने की संभावना है.
तृणमूल को उम्मीद है कि इस रैली से ममता ऐसे नेता के तौर कर उभरकर सामने आयेंगी जो ‘‘अन्य दलों को साथ लेकर’’ चल सकती हैं और आम चुनावों के बाद सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को चुनौती दे सकती हैं. विशाल विपक्षी रैली का आयोजन बनर्जी की सोच का नतीजा है. उन्होंने गुरुवार को कहा था कि लोकसभा चुनावों में क्षेत्रीय पार्टियां निर्णायक कारक साबित होंगी. उन्होंने कहा, ‘‘बीजेपी के कुशासन के खिलाफ यह ‘‘संयुक्त भारत रैली’’ होगी. यह बीजेपी के लिए मृत्युनाद की मुनादी होगी… आम चुनाव में भगवा पार्टी 125 से अधिक सीटें नहीं जीत पाएगी. राज्य की पार्टियों द्वारा जीती गयी सीटों की संख्या भाजपा की तुलना में अधिक होगी.’’ उन्होंने दावा किया, ‘‘संघीय पार्टियां यानी क्षेत्रीय पार्टियां चुनावों के बाद निर्णायक कारक साबित होंगी.’ विशाल रैली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, एच डी कुमारस्वामी, एन. चंद्रबाबू नायडू, पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा, पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और अखिलेश यादव, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता तेजस्वी यादव, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (द्रमुक) के एमके स्टालिन के अलावा भाजपा के असंतुष्ट सांसद शत्रुघ्न सिन्हा शामिल होने वाले हैं. लोकसभा में विपक्ष के नेता एवं कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और पार्टी नेता अभिषेक मनु सिंघवी भी रैली में हिस्सा लेंगे. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुख शरद पवार, राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के अजित सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी, पाटीदार नेता हार्दिक पटेल, दलित नेता जिग्नेश मेवाणी और झारखंड विकास मोर्चा के बाबूलाल मरांडी भी तृणमूल प्रमुख के साथ मंच साझा करते दिखेंगे. अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जेगांग अपांग भी इस रैली में शामिल होंगे. जेगांग ने मंगलवार को ही बीजेपी छोड़ी. हालांकि इस रैली में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की अध्यक्ष सोनिया गांधी और बसपा प्रमुख मायावती नजर नहीं आएंगी.
तृणमूल कांग्रेस की निगाहें इस वक्त दिल्ली पर हैं और पार्टी 19 जनवरी को कोलकाता में होने वाली संयुक्त विपक्षी रैली के लिए तैयार है. तृणमूल प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि यह रैली लोकसभा चुनावों से पहले बीजेपी के लिए ‘मृत्यु-नाद’ की मुनादी होगी. रिपोर्ट्स के मुताबिक ममता की इस रैली में बीजेपी के असंतुष्ट सांसद शत्रुघ्न सिन्हा भी शामिल होने वाले हैं.
बीजेपी सांसद शत्रुघ्न सिन्हा अक्सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते रहते हैं. वहीं सिन्हा का कहना है कि वे बीजेपी में तब शामिल हुए थे जब वह दो सांसदों की पार्टी थी और उन्होंने हमेशा इसे मजबूत करने के लिए काम किया है. ममता की रैली को लेकर सिन्हा का कहना है कि वह इस रैली में अपने सहयोगी यशवंत सिन्हा के साथ हिस्सा लेंगे. यशवंत सिन्हा भी बीजेपी से नाराज हैं.
वहीं जब शत्रुघ्न सिन्हा से पूछा गया कि क्या ममता बनर्जी लोकसभा चुनाव के बाद प्रधानमंत्री बन सकती हैं. तो इस सवाल के जवाब में सिन्हा ने कहा, ‘पीएम चुनाव के बाद संख्या के आधार पर पार्टियों के लोगों और नेताओं के जरिए तय किया जाएगा. लेकिन वह निश्चित रूप से सर्वश्रेष्ठ व्यक्तित्व की श्रेणी में हैं.उन्होंने सीएम ममता को राष्ट्रीय नेता भी कहा. उन्होंने कहा, ‘वह केवल एक क्षेत्रीय नेता नहीं बल्कि एक प्रमुख राष्ट्रीय नेता हैं.’
मोदी सरकार के ख़िलाफ़ असम में एकजुट हो रहे हैं लोग
नागरिकता विधेयक को लोकसभा से पास हुए एक हफ़्ते हो जाने के बाद भी असम में इसके ख़िलाफ विरोध जारी है। लोगों में डर बैठ गया है कि असम समझौते के तहत असम और स्थानीय लोगों को जो सुरक्षा मिली हुई थी, वह ख़त्म हो जाएगी और वे लोग अपनी ही जमीन पर अल्पसंख्यक हो जाएँगे। एक दूसरा मुद्दा भी है। एक बार नागरिकता विधेयक क़ानून बन गया तो लोगों को संविधान के विपरीत पहली बार धर्म के आधार पर विदेशियों, ग़ैरक़ानूनी प्रवासियों और नागरिकों में बाँट दिया जाएगा।
लोकसभा में आम सहमति से 8 जनवरी को यह विधेयक पास हो गया है। यह विधेयक बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 के पहले ग़ैर क़ानूनी तरीके से आए हिंदू, सिख, पारसी, ईसाई, जैन और बौद्ध समुदाय के लोगों के सिर से ग़ैरक़ानूनी प्रवासी का दाग हटा देगा और वे भारतीय नागरिकता हासिल करने लायक हो जएँगे।
डरे हुए हैं लोग
मौजूदा सरकार ने बार-बार कहा है कि यह विधेयक सिर्फ़ असम और उत्तर पूर्व के लिए नहीं है, पूरे भारत के लिए है। सरकार ने यह भी साफ़ किया है कि इस विधेयक का मक़सद उन लोगों की मदद करना है जो बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान में धार्मिक आधार पर होने वाली भेदभाव से पीड़ित हैं और भारत में शरण लेने के लिये मजबूर हैं। हालाँकि गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने यह साफ़ किया है कि इस विधेयक का मक़सद भारत की पूर्वी और पश्चिमी सीमा से आने वाले प्रवासियों के लिए है और जो भारत के अलग अलग हिस्सों में रह रहे हैं, और इनको बसाना सिर्फ़ असम की ज़िम्मेदारी नहीं है। इस बयान के बावजूद असम और उत्तर पूर्व के लोगों के मन से डर नहीं निकला है।
असम समझौते के ख़िलाफ़
अखिल असम छात्र संगठन यानी आसू, जो इस आंदोलन की अगुवाई कर रही है, ने तीन बातें कहीं हैं।
- 1. इसकी वजह से बांग्लादेश से असम आने वाले हिंदू प्रवासियों की संख्या बढ़ेगी ओर जल्दी ही अपनी जमीन पर असम और उत्तर पूर्व में स्थानीय निवासी अल्पसंख्यक हो जायेंगे।
- 2. यह विधेयक भारतीय संविधान और असम समझौते की मूल भावना के ख़िलाफ़ है। ये दोनों ही धर्म के आधार पर आने वाले प्रवासियों में फ़र्क़ नहीं करते।
- 3. यह विधेयक हमेशा के लिए असम में सामाजिक सौहार्द बिगाड़ देगा।
असम समझौते की धारा 5 के मुताबिक़, 24 मार्च 1971 के बाद बांग्लादेश से आए लोगों की पहचान कर उनको न केवल चुनाव सूची से अलग किया जाना चाहिए, बल्कि राज्य से बाहर भी कर देना चाहिए। यह धारा धर्म के आधार पर लोगों में कोई भेद नहीं करती। असम समझौते की धारा 6 असम और राज्य के स्थानीय लोगों को संवैधानिक, विधायी और प्रशासनिक सुरक्षा सुनिश्चित करती है।
यहाँ यह बताना ज़रूरी है कि बांग्लादेश से आए लोगों की वजह से असम का जनसंख्या संतुलन गड़बड़ हो गया है।
1971 की जनगणना के हिसाब से असम में असमवासी कुल जनसंख्या के 60.89 प्रतिशत थे। लेकिन 2011 की जनगणना के मुताबिक़ यह आँकड़ा घट कर 48.38 फ़ीसद हो गया। यानी कुल 12.51% प्रतिशत की कमी आई। इसके विपरीत बांगला बोलने वालों की संख्या 19.70 फ़ीसद से बढ़कर 2011 में 29.91 प्रतिशत हो गई। इसी तरह से मुसलिम आबादी भी 2011 में 24.46% फ़ीसद से बढ़कर 34.22 फ़ीसद हो गई। हालाँकि असम में बांग्लाभाषियों की संख्या इससे कहीं ज़्यादा होगी। एक सचाई यह भी है कि ज़्यादातर बांग्लाभाषी चाहे वो 1971 के पहले आए हो या इसके बाद, सार्वजनिक मौक़ों पर असमिया ही बोलते हैं। ये अपने घरों में बांग्ला में बात करते हैं।
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में नेशनल रजिस्टर आफ सिटिजन्स बनाने का काम भी चल रहा है, जिसके तहत असम में ग़ैर क़ानूनी प्रवासियों की पहचान की जा रही है। अदालत के अनुसार, केवल उन्हीं लोगों को नेशनल रजिस्टर में जगह दी जाएगी जो 24 मार्च 1971 की आधी रात तक असम आए और जो इस बात के सबूत भी दे पाएँगे। जिन लोगों की गणना नेशनल रजिस्टर में नहीं होगी, उनकी अलग लिस्ट बनेगी।
दृष्टिकोण बदला
अतीत की कुछ घटनाओं ने भी असम के लोगों का दृष्टिकोण बदल कर रख दिया है।
- 1.अंग्रेज़ों के अधीन आते ही असम में बांग्ला भाषा को आधिकारिक तौर पर राजभाषा का दर्जा दे दिया गया और 37 साल के लंबे संघर्ष के बाद असम को अपनी भाषा वापस मिली।
- 2.लार्ड कर्ज़न के वायसराय बनने के फ़ौरन बाद असम को पूर्वी बंगाल में मिला दिया गया।
- 3.देश के बंटवारे के लिए जब कैबिनेट मिशन भारत आया तो असम बांग्लादेश का हिस्सा बनते-बनते रह गया। गांधी जी की वजह से वो बाल-बाल बच पाया, अन्यथा नेहरू ने तो हाथ छोड ही दिया था।
- 4. जब चीन ने भारत पर हमला किया तो वो तेज़पुर के काफी क़रीब तक घुस आया था, तब प्रधानमंत्री नेहरू ने रेडियों के अपने भाषण में असम के लोगों को अलविदा कह दिया था।
- 5. जब पूरा असम 1979 से 1985 तक बांग्लादेश से आए बाहरियों की पहचान और उनको वापस भेजने की लड़ाई लड़ रहा था, तब घुसपैठियों को बचाने के लिए 1983 में अवैध प्रवासी क़ानून बना था।
अब जब कि नागरिकता विधेयक को क़ानून बनाने की तैयारी चल रही है, असम और स्थानीय लोगों के मन में यह डर गहराता जा रहा है कि एक तबके के लोगों को नागरिकता देने से हालात पहले से बदतर होंगे।
गै़ैरक़ानूनी प्रवासी कानून 2006 को ख़त्म करते समय सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि असम, बांग्लादेश से बडी संख्या में आए ग़ैरक़ानूनी प्रवासियों की वजह से बाहरी आक्रमण और आंतरिक अव्यवस्था, दोनों झेल रहा है। तब धर्म के आधार पर भेद-भाव नहीं किया गया था। तब मौजूदा मुख्य मंत्री सरबानंद सोनोवाल ने सुप्रीम कोर्ट में याचजिका दायर की थी जो उस वक़्त असम गण परिषद के सांसद थे। अब यह सरकार का उत्तरदायित्व है कि वो असम के लोगों को समझाएँ कि नागरिकता क़ानून से स्थानीय निवासियों को कोई ख़तरा नहीं होगा।
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