संकट से उबारती हैं मां पीतांबरा- बगलामुखी -अवतरण दिवस 12 May
शास्त्रों के अनुसार वैशाखमास की शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को देवी बगलामुखी का अवतरण दिवस माना जाता है. देवी बगलामुखी मां दुर्गा का ही एक स्वरूप हैं. दस महाविद्याओं में से मां बगलामुखी आठवां स्वरूप है. इनका स्वरूप सोने के समान अर्थात पीला है, जिसके कारण इन्हें पीतांबरा भी कहा जाता है. मां बगलामुखी अपने भक्तों की शत्रुओं तथा बुरी नजर और हर नकारात्मक शक्ति से रक्षा करती हैं. देवी बगलामुखी की पूजा-अर्चना में विशेष तौर पर पीले रंग की पूजा सामग्री, पीले वस्त्रों और पीले ही मिष्ठान का प्रयोग किया जाता है. दस महाविद्याओं में से मां बगलामुखी आठवां स्वरूप है. इनका स्वरूप सोने के समान अर्थात पीला है, जिसके कारण इन्हें पीतांबरा भी कहा जाता है. मां बगलामुखी अपने भक्तों की शत्रुओं तथा बुरी नजर और हर नकारात्मक शक्ति से रक्षा करती हैं.
12 मई 2019, बुधवार को बगलामुखी जयंती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मां बगलामुखी देवी प्रकट हुईं थीं। जिस कारण इस तिथि को बगलामुखी जयंती के रुप में मनाया जाता है। मां बगुलामुखी दस महाविद्याओं में से एक हैं। ग्रंथों मे इनका रंग पीला बताया गया है और इन्हें पीला रंग पसंद है इसलिए इनका एक नाम पितांबरा भी है। माता बगलामुखी की कृपा से शत्रु का नाश होता है और हर तरह की परेशानी दूर होती है।
देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को चमत्कार दिखाया था- # माता साधना हवन पूजन करते ही तुरंत जाग्रत हो जाती है-
1962 में भारत-चीन युद्ध हुआ तब फौजी अधिकारियों एवं तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने देश की रक्षा के लिए 11 दिन तक मां बगलामुखी का महायज्ञ कराया था। इसके प्रभाव से 11वें दिन अंतिम आहुति के साथ ही चीन ने अपनी सेनाएं वापस बुला ली थीं। ये यज्ञ मध्यप्रदेश के दतिया में बगलामुखी शक्ति पीठ में हुआ था। वो यज्ञशाला आज भी मौजूद है। पितांबरा पीठ में इस घटना का उल्लेख है। इसके अलावा जब-जब देश पर विपत्ति आती है तब-तब गोपनीय रूप से मां बगलामुखी की साधना व यज्ञ किया जाता है।
#मां पीतांबरा राजसत्ता की देवी # मुराद जरूर पूरी होती है# शत्रु नाश की अधिष्ठात्री देवी # राजसत्ता का सुख जरूर मिलता है # माता साधना हवन पूजन करते ही तुरंत जाग्रत # जब-जब देश के ऊपर विपत्तियां आती हैं तब-तब कोई न कोई न कोई गोपनीय रूप से मां बगलामुखी की साधना व यज्ञ-हवन अवश्य ही कराते हैं# मुकदमे आदि के मामले में पीताम्बरा देवी का अनुष्ठान सफलता प्राप्त करने वाला माना जाता है# नेहरू जी को चमत्कार दिखाया था माई ने # पीताम्बरा देवी की मूर्ति के हाथों में मुदगर, पाश, वज्र एवं शत्रुजिव्हा# यह शत्रुओं की जीभ को कीलित कर देती हैं# मुकदमे आदि में इनका अनुष्ठान सफलता प्राप्त करने वाला # इनकी आराधना करने से साधक को विजय प्राप्त होती है# शुत्र पूरी तरह पराजित हो जाते हैं# माई के साधकों के अनुसार- जो राज्य आतंकवाद व नक्सलवाद से प्रभावित हैं, वह माँ पीताम्बरा की साधना व अनुष्ठान कराएँ, तो उन्हें इस समस्या से निजात मिल सकती है#इस शक्ति के सूत्र विज्ञान से हजारों मील दूर बैठे व्यक्ति का आकर्षण किया जा सकता है#माँ पीताम्बरा बगलामुखी शक्तिपीठ का भूमि पूजन पहली बार देहरादून में- # मॉई- की प्रेरणा से- बंजारावाला में राणा परिवार ने माई के धाम के लिए भूमि दान दी- # माई का भवन आप के सहयोग से जल्द से जन्द तैयार हो- इस अपेक्षा के साथ- आपका चन्द्रशेखर जोशी- उपासक
शक्तिपीठ- संकट से उबारती हैं मां पीतांबरा
मा यहां दिन में तीन बार रूप बदलती है, मॉ के दर्शन छोटी सी खिडकी से ही होते हैं, मॉ को राजसत्ता की देवी माना जाता है मध्य प्रदेश के दतिया शहर में स्थित है पीतांबरा पीठ। इसे शक्ति की देवी दुर्गा के सिद्ध पीठ में गिना जाता है। खासतौर पर पीतांबरा पीठ के बारे में कहा जाता है कि आप अगर किसी केस मुकदमें में फंसे हैं तो मां की साधना से आपको मुक्ति मिलती है। इसलिए देश के कोने कोने से लोग मां के चरणों में हाजिरी लगाने आते हैं। खास तौर पर राजनेताओं की पीतांबरा पीठ में बड़ी आस्था है। वसुंधरा राजे के संकट मॉ ने कई बार दूर किये, जिससे उन्होंने यहां हवन कराया, यूपी चुनाव में अमित शाह ने यहां मनौती मांगी थी,
बगलामुखी रहस्य ; बगलाशक्ति का मूल सूत्र है ‘अथर्वा प्राण सूत्र’ इस शक्ति के सूत्र विज्ञान से हजारों मील दूर बैठे व्यक्ति का आकर्षण किया जा सकता है। जैसे किसी आने वाले व्यक्ति का ज्ञान हमे नहीं होता लेकिन काक ( कौए ) को हो जाता है , उसी प्रकार जिस अथर्वा सूत्र को हम नहीं पहचानते उसे कुत्ता ज़मीन को सूंघता है और चोर को पहचान लेता है। जिस मार्ग से चोर जाता है उस मार्ग में उसका अथर्वा प्राण वासना रूप से मिटटी में मिल जाता है। वस्त्र , नाख़ून और बाल में वह प्राण वासना रूप से प्रतिष्ठित रहता है। अथर्वा सूत्ररूपा इसी महाशक्ति का नाम बल्गामुखी या बगलामुखी है !
देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को चमत्कार दिखाया था-
माँ पीताम्बरा बगलामुखी का स्वरूप रक्षात्मक है। पीताम्बरा पीठ मन्दिर के साथ एक ऐतिहासिक सत्य भी जुड़ा हुआ है। सन् 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर दिया था। उस समय देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू थे। भारत के मित्र देशों रूस तथा मिस्र ने भी सहयोग देने से मना कर दिया था। तभी किसी योगी ने पंडित जवाहर लाल नेहरू से स्वामी महाराज से मिलने को कहा। उस समय नेहरू दतिया आए और स्वामीजी से मिले। स्वामी महाराज ने राष्ट्रहित में एक यज्ञ करने की बात कही। यज्ञ में सिद्ध पंडितों, तांत्रिकों व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को यज्ञ का यजमान बनाकर यज्ञ प्रारंभ किया गया। यज्ञ के नौंवे दिन जब यज्ञ का समापन होने वाला था तथा पूर्णाहुति डाली जा रही थी, उसी समय ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ का नेहरू जी को संदेश मिला कि चीन ने आक्रमण रोक दिया है। मन्दिर प्रांगण में वह यज्ञशाला आज भी बनी हुई है।
वही प्राचीन तंत्र ग्रंथों में दस महाविद्याओं का उल्लेख मिलता है। उनमें से एक है बगलामुखी। माँ भगवती बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है। विश्व में इनके सिर्फ तीन ही महत्वपूर्ण प्राचीन मंदिर हैं, जिन्हें सिद्धपीठ कहा जाता है। उनमें से एक है नलखेड़ा में। माँ भगवती बगलामुखी को पीताम्बनरी देवी भी कहा जाता है, मान्यता है कि जिस नगर में मा बगलामुखी का मंदिर होता है, किसी भी तरह का संकट उस स्थान से दूर रहता है
विश्व की रक्षा करने वाली हैं,साथ जीव की जो रक्षा करती हैं,वही बगलामुखी हैं।स्तम्भन शक्ति केसाथ ये त्रिशक्ति भी हैं।अभाव को दूर कर,शत्रु से अपने भक्त की हमेशा जो रक्षा करती हैं।दुष्टजन,ग्रह,भूत पिशाच सभी को ये तत्क्षण रोक देती हैं।आकाश को जो पी जाती हैं,ये विष्णुद्वारा उपासिता श्री महा त्रिपुर सुन्दरी हैं। ये पीत वस्त्र वाली,अमृत के सागर मे दिव्य रत्न जड़ित सिंहासन पर विराजमान हैं।ये शिवमृत्युञ्जय की शक्ति हैं।ये अपने भक्तों के कष्ट पहुँचाने वाले को बाँध देती हैं,रोक देती है।ये उग्रशक्ति के साथ,बहुत भक्त वत्सला भी हैं,परम करूणा के साथ भक्त के प्रत्यक्ष या गुप्त शत्रु कोरोक देती हैं।ये वैष्णवी शक्ति हैं,ये शीघ्र प्रभाव दिखाती है,इस लिए इन्हें सिद्ध विद्या भी कहाजाता हैं।गुरू,शिव जब कृपा करते है तो ही इनकी साधना करने का सौभाग्य प्राप्त हो पाता हैं।वाम,दक्षिण दोनो आचार से इनकी पूजा होती हैं परन्तु दक्षिण मार्ग से इनकी पूजा शीघ्रफलीभूत होती हैं।ये काली,श्यामा के ही सुन्दरी,ललिता की एक दिव्य मूर्ति हैं।इनकी उपासनामें अनुशासन,शुद्धता,के साथ गुरू की कृपा ही सर्वोपरि हैं।इनकी उपासना से साधकत्रिकालदर्शी होकर भोग के साथ मोक्ष भी प्राप्त कर लेता है,इनके कई मंत्र के जप के बाद मूलमंत्र का जप किया जाता है,कवच,न्यास,स्तोत्र पाठ के साथ अर्चन भी किया जाता हैं,इनका ३६अक्षर मंत्र ही मूल मंत्र कहलाता हैं।इनकी साधना के अंग पूजा में प्रथमगुरू,गणेश,गायत्री,शिव,वटुक के साथ विडालिका यक्षिणी,योगिनी का पूजा अनिवार्य मानाजाता हैं।ये विश्व की वह शक्ति हैं,जिनके कृपा से,चराचर जगत स्थिर रहता हैं। ये ब्रह्म विद्या है इनकी साधना में शुद्धता के साथ जप,ध्यान के साथ गुरू कृपा मुख्य हैं।इनकेजप से कुन्डलिनी शक्ति जाग्रत हो जाती है,इनके साधक कोई भी आसुरी शक्ति एक साथमिलकर भी परास्त नहीं कर सकता,ये अपने भक्तों की सदा रक्षा करती है।विश्व की सारी शक्तिमिलकर भी इनकी बराबरी नहीं कर सकते हैं। कई जन्म के पुण्य प्रभाव से इनकी साधनाकरने का सौभाग्य प्राप्त होता हैं।पुस्तक से देखकर या कही से सुनकर इनका मंत्र जप करने सेकभी कभी जीवन मे उपद्रव शुरू हो जाता है।इसलिए बिना गूरू कृपा के इनकी साधना न करें।भारत में इनके मंदिर तो कितने है,परन्तु इनका विशेष साधना पीठ श्री पीताम्बरा पीठ,दतियामध्य प्रदेश हैं।ये शुद्ध विद्या है,इनकी महिमा जगत में विख्यात हैं।इनकी कृपा से चराचर जगतवश में रहता है,इनकी साधना करने से ये अपने भक्त को सभी प्रकार से देखभाल करती है।येपरम दयामयी तथा करूणा रखती है।
मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित मां पीतांबरा को राजसत्ता की देवी माना जाता है। इसी रूप में भक्त उनकी आराधना करते हैं। राजसत्ता की कामना रखने वाले भक्त यहां आकर गुप्त पूजा अर्चना करते हैं। मां पीतांबरा शत्रु नाश की अधिष्ठात्री देवी है और राजसत्ता प्राप्ति में मां की पूजा का विशेष महत्व होता है।
मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित मां पीतांबरा के मंदिर में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी या अटल बिहारी वाजपेयी हो या फिर राजमाता विजयाराजे सिंधिया ही क्यों न हो, और बात करें फिल्म अभिनेता संजय दत्त की, प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, दिगि्वजय सिंह, उमाभारती की, यह फेहरिस्त बहुतं लंबी है, सब यहां माता के दरबार में पुकार लगा चुके हैं।
मां पीतांबरा देवी अपना दिन में तीन बार अपना रुप बदलती हैं मां के दशर्न से सभी भक्तों की मनोकामना पूरी होती है। राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया काा जब राजनीतिक संकट चल रहा था तब वसुंधरा यहां मां से आर्शीवाद लेने आई थी उन्होंने सकंट कट जाए इसलिए यहां यज्ञ भी करवाया था। इस मंदिर को चमत्कारी धाम भी माना जाता है।
इस सिद्धपीठ की स्थापना 1935 में स्वामीजी के द्वारा की गई। ये चमत्कारी धाम स्वामीजी के जप और तप के कारण ही एक सिद्ध पीठ के रूप में जाना जाता है। भक्तों को मां के दर्शन एक छोटी सी खिड़की से ही होते हैं।
माता साधना हवन पूजन करते ही तुरंत जाग्रत हो जाती है-
बात उन दिनों की है जब भारत और चीन का युद्ध 1962 में प्रारंभ हुआ था। बाबा ने फौजी अधिकारियों एवं तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के अनुरोध पर देश की रक्षा के लिए मां बगलामुखी की प्रेरणा से 51 कुंडीय महायज्ञ कराया था। परिणामस्वरूप 11वें दिन अंतिम आहुति के साथ ही चीन ने अपनी सेनाएं वापस बुला ली थीं। उस समय यज्ञ के लिए बनाई गई यज्ञशाला आज भी है। यहां लगी पट्टिका पर इस घटना का उल्लेख है। जब-जब देश के ऊपर विपत्तियां आती हैं तब-तब कोई न कोई न कोई गोपनीय रूप से मां बगलामुखी की साधना व यज्ञ-हवन अवश्य ही कराते हैं। मां पीतांबरा शक्ति की कृपा से देश पर आने वाली बहुत सी विपत्तियां टल गई हैं। इसी प्रकार सन् 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में मां बगलामुखी ने देश की रक्षा की। सन् 2000 में कारगिल में भारत-पाकिस्तान के बीच पुनः युद्ध हुआ, किंतु हमारे देश के कुछ विशिष्ट साधकों ने मां बगलामुखी की गुप्त रूप से पुनः साधनाएं एवं यज्ञ किए जिससे दुश्मनों को मुंह की खानी पड़ी। ऐसा कहा जाता है कि यह यज्ञ तात्कालीन प्रधानमंत्री अटल बीहारी वाजपेयी के कहने पर यहां कराया गया था।
मां पीतांबरा को राजसत्ता की देवी भी कहा जाता है। पीतांबरा पीठ को बगलामुखी साधना करने वालों के बीच बड़े ही सिद्ध पीठ के तौर पर जाना जाता है। पीतांबरा मां का मंदिर वैसे तो काफी पुराना बताया जाता है। पर इसे 1920 में पूज्यपाद अनंत श्री स्वामी जी महाराज ने भव्य रुप प्रदान करवाया। बाद में 1980 में मंदिर परिसर को और भी भव्य बनवाया गया। कहा जाता है कि मां पीतांबरा ने समुद्र मंथन के दौरान विष्णु की मदद की थी जिससे समुद्र मंथन से अमृत पाने में देवता सफल हो सके। इसलिए शरणागत भक्तों को मां संकट से उबारती हैं। कई बार इस मंदिर में देश पर आए युद्ध के संकट से देश को उबारने के लिए विशेष यज्ञ कराए गए हैं।
मंदिर का मुख्य द्वार काफी भव्य बना है। मंदिर के मुख्य द्वार के अलावा उत्तरी द्वार भी है। मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं के लिए वाहन पार्किंग और शीतल जल आदि का बेहतर इंतजाम है। निःशुल्क जूता घर और बैगेज काउंटर की सुविधा भी उपलब्ध है। हाल में मंदिर में प्रवचन कक्ष भी बनाया गया है। मंदिर परिसर में एक सुंदर सरोवर है जिसका नाम हरिद्रा सरोवरम है। यह सरोवर कूर्म ( कछुआ) के आकार का है।
दतिया शहर को महाभारत काल के दंतवक्त की राजधानी कहा जाता है। पीतांबरा मंदिर के ही परिसर में महाभारतकालीन शिव मंदिर है जिसे वनखंडेश्वर महादेव कहा जाता है। मंदिर परिसर में धूमवती देवी का मंदिर है। यहां से श्रद्धालु भभूत लेकर जाते हैं। पर मां धूमावती के दर्शन सिर्फ आरती के समय होते हैं। बाकी समय उनका कपाट बंद रहता है। यहां भगवान परशुराम का भी मंदिर है।
मंदिर में प्रबंधन की ओर से प्रसाद काउंटर बना हुआ है जहां न्यूनतम 20 रुपये और अधिकतम अपनी श्रद्धा के अनुसार प्रसाद खरीद सकते हैं। मंदिर का बना हुआ बेसन का लड्डू काफी सुस्वादु है। मंदिर का प्रसाद सिर्फ श्रद्धालुओं के लिए ही है। मंदिर की स्वच्छता देखकर दिल खुश हो जाता है। मंदिर के अंदर फोटोग्राफी निषेध है।
बड़ी हस्तियां पहुंचती हैं पूजा करने – यहां तमाम नामचीन हस्तियां पूजा करने आ चुकी हैं। मशहूर फिल्म स्टार संजय दत्त भी पीतांबरा पीठ आकर मां के चरणों में हाजिरी लगा चुके हैं। कहा जाता है पंडित नेहरू, अटल बिहारी वाजपेयी, राजमाता सिंधिया, दिग्विजय सिंह, उमा भारती जैसी तमाम हस्तियां यहां पूजा कर चुकी हैं।
पीतंबरा पीठ दतिया शहर के बीचों बीच स्थित है। दतिया मध्य प्रदेश का जिला है जो ग्वालियर शहर से 70 किलोमीटर और उत्तर प्रदेश के शहर झांसी से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। रेलवे स्टेशन से मां का मंदिर 2.5 किलोमीटर है जबकि बस स्टैंड से मंदिर की दूरी महज आधा किलोमीटर है। दतिया का रेलवे स्टेशन शहर से बाहर है। स्टेशन के बिल्कुल करीब अभी होटल,रेस्टोरेंट आदि नहीं हैं। ग्वालियर से झांसी के मध्य होकर गुजरने वाली कई ट्रेनें यहां रूकती हैं।