विश्‍व में देवगुरू बृहस्पति का एक ही मंदिर उत्‍तराखण्‍ड में

बृहस्पति मंदिर धाम बनेगाा #क्‍या आप जानते हैं कि पूरे विश्‍व में  देवगुरू बृहस्पति का एक ही मंदिर है, जो उत्‍तराखण्‍ड में है, जनपद नैनीताल के ओखलकांडा क्षेत्र में स्‍थित देवगुरू बृहस्पति मंदिर को धाम के रूप में विकसित किया जायेगा- उत्‍तराखण्‍ड के पर्यटन मंत्री श्री सतपाल महाराज ने हिमालयायूके न्‍यूज पोर्टल के सम्‍पादक चन्‍द्रशेखर तथा नैनीताल जनपद से आये वरिष्‍ठ पत्रकार रमाकांत पंत से एक भेटवार्ता के दौरान कहा- ज्ञात हो कि बृहस्पति (ग्रह) के स्वामी एवं शिक्षा के स्वामी, देवनागरी बृहस्पति, सहबद्वता- ग्रह एवं देवताओं के गुरू, आवास – बृहस्पति मण्ड्ल या लोक, मंत्र- ॐ बृं बृहस्पतये नमः॥, पत्नी तारा, वाहन हाथी/ आठ घोडो वाले रथ-


देवगुरू वृहस्पति मंदिर ओखलकांडा जनपद नैनीताल .
ओखलकांडा नैनीताल जनपद में कहीं देश के गिने-चुने देवगुरु बृहस्पति के मंदिरों में से एक स्थित है। ओखलकांडा ब्लॉक में शहर फाटक के पास तुशराड, देवली गावों के पास स्थित देवगुरु बृहस्पति मंदिर, देश के गिने-चुने देवगुरु बृहस्पति मंदिर के रूप में ख्याति है। ओखलकांडा ब्लॉक में काठगोदाम से लगभग 90 किमी की दूरी पर स्थित देवगुरू नाम का गांव देश में गिने-चुने देवगुरू बृहस्पति के मंदिर के लिए जाना जाता है


बृहस्पति का अनेक जगह उल्लेख मिलता है। ये एक तपस्वी ऋषि थे। इन्हें ‘तीक्ष्णशृंग’ भी कहा गया है। धनुष बाण और सोने का परशु इनके हथियार थे और ताम्र रंग के घोड़े इनके रथ में जोते जाते थे। बृहस्पति का अत्यंत पराक्रमी बताया जाता है। इन्द्र को पराजित कर इन्होंने उनसे गायों को छुड़ाया था। युद्ध में अजय होने के कारण योद्धा लोग इनकी प्रार्थना करते थे। ये अत्यंत परोपकारी थे जो शुद्धाचारणवाले व्यक्ति को संकटों से छुड़ाते थे। इन्हें गृहपुरोहित भी कहा गया है, इनके बिना यज्ञयाग सफल नहीं होते।
गुरुवार का दिन देवगुरु बृहस्पति को समर्पित है। इनकी कृपा से धन-समृद्धि, पुत्र और शिक्षा की प्राप्ति होती है। पीला रंग और पीली वस्तुएं इनको बहुत प्रिय हैं। बृहस्पतिवार के दिन पीले वस्त्र पहनने, पीली वस्तुओं का दान करने और घर पर पीले पकवान बनाने से यह बहुत प्रसन्न होते हैं। बृहस्पतिवार के दिन इनका उपवास रखने अौर पीले वस्त्र पहनकर, केले के वृक्ष को पीले रंग की वस्तुएं अर्पित करके पूजन करनी चाहिए। उसके उपरांत कथा सुननी अौर आरती करें। देवगुरु की पूजा से व्यक्ति के अंदर आध्यात्मिक भावना पैदा होती है।
वेदोत्तर साहित्य में बृहस्पति को देवताओं का पुरोहित माना गया है। ये अंगिरा ऋषि की सुरूपा नाम की पत्नी से पैदा हुए थे। तारा और शुभा इनकी दो पत्नियाँ थीं। एक बार सोम (चंद्रमा) तारा को उठा ले गया। इस पर बृहस्पति और सोम में युद्ध ठन गया। अंत में ब्रह्मा के हस्तक्षेप करने पर सोम ने बृहस्पति की पत्नी को लौटाया। तारा ने बुध को जन्म दिया जो चंद्रवंशी राजाओं के पूर्वज कहलाये।
महाभारत के अनुसार बृहस्पति के संवर्त और उतथ्य नाम के दो भाई थे। संवर्त के साथ बृहस्पति का हमेशा झगड़ा रहता था। पद्मपुराण के अनुसार देवों और दानवों के युद्ध में जब देव पराजित हो गए और दानव देवों को कष्ट देने लगे तो बृहस्पति ने शुक्राचार्य का रूप धारणकर दानवों का मर्दन किया और नास्तिक मत का प्रचार कर उन्हें धर्मभ्रष्ट किया।
बृहस्पति ने धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र और वास्तुशास्त्र पर ग्रंथ लिखे। आजकल ८० श्लोक प्रमाण उनकी एक स्मृति (बृहस्पति स्मृति) उपलब्ध है।
बृहस्पति को देवताओं के गुरु की पदवी प्रदान की गई है। ये स्वर्ण मुकुट तथा गले में सुंदर माला धारण किये रहते हैं। ये पीले वस्त्र पहने हुए कमल आसन पर आसीन रहते हैं तथा चार हाथों वाले हैं। इनके चार हाथों में स्वर्ण निर्मित दण्ड, रुद्राक्ष माला, पात्र और वरदमुद्रा शोभा पाती है। प्राचीन ऋग्वेद में बताया गया है कि बृहस्पति बहुत सुंदर हैं। ये सोने से बने महल में निवास करते है। इनका वाहन स्वर्ण निर्मित रथ है, जो सूर्य के समान दीप्तिमान है एवं जिसमें सभी सुख सुविधाएं संपन्न हैं। उस रथ में वायु वेग वाले पीतवर्णी आठ घोड़े तत्पर रहते हैं।[1]
देवगुरु बृहस्पति की तीन पत्नियाँ हैं जिनमें से ज्येष्ठ पत्नी का नाम शुभा और कनिष्ठ का तारा या तारका तथा तीसरी का नाम ममता है। शुभा से इनके सात कन्याएं उत्पन्न हुईं हैं, जिनके नाम इस प्रकार से हैं – भानुमती, राका, अर्चिष्मती, महामती, महिष्मती, सिनीवाली और हविष्मती। इसके उपरांत तारका से सात पुत्र और एक कन्या उत्पन्न हुईं। उनकी तीसरी पत्नी से भारद्वाज और कच नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए। बृहस्पति के अधिदेवता इंद्र और प्रत्यधि देवता ब्रह्मा हैं। महाभारत के आदिपर्व में उल्लेख के अनुसार, बृहस्पति महर्षि अंगिरा के पुत्र तथा देवताओं के पुरोहित हैं। ये अपने प्रकृष्ट ज्ञान से देवताओं को उनका यज्ञ भाग या हवि प्राप्त करा देते हैं। असुर एवं दैत्य यज्ञ में विघ्न डालकर देवताओं को क्षीण कर हराने का प्रयास करते रहते हैं। इसी का उपाय देवगुरु बृहस्पति रक्षोघ्र मंत्रों का प्रयोग कर देवताओं का पोषण एवं रक्षण करने में करते हैं तथा दैत्यों से देवताओं की रक्षा करते हैं।
विवाह में आ रही रुकावटों को दूर करने के लिए गुरुवार का व्रत अौर देवगुरु बृहस्पति के सामने गाय के घी का दीपक प्रज्वलित करना चाहिए।गुरुवार के दिन बृहस्पति देव को पीले पुष्पों का अर्पण करके पीले चावल, पीला चंदन, पीली मिठाई, गुड़, मक्के का आटा, चना दाल आदि का भोग लगाते हैं। माथे पर हल्दी का तिलक लगाने के पश्चात हल्दी गांठ की माला से इस मंत्र के जाप करना शुभ होता है। यदि कुवांरी कन्या शुक्ल पक्ष से प्रत्येक 11 गुरुवार तक पानी में थोड़ी-सी हल्दी मिलाकर स्नान करे तो विवाह शीघ्र होने की संभावना होती है। अनिद्रा से परेशान व्यक्ति 11 बृहस्पतिवार तक केवांच की जड़ का लेप माथे पर लगाएं। स्त्रियां गुरुवार को हल्दी वाला उबटन शरीर में लगाएं तो उनके दांपत्य जीवन में प्यार बढ़ता है। बृहस्पति देव को प्रसन्न करने के लिए गुरुवार के दिन गाय का घी, शहद, हल्दी, पीले कपड़े, किताबें, गरीब कन्याओं को भोजन का दान अौर गुरुओं की सेवा करें। गुरुवार के दिन केले का दान शुभ होता है। गुरु के अशुभ प्रभाव को कम करने अौर सभी कष्टों से छुटकारा पाने के लिए गुरुवार के दिन चमेली के फूल, गूलर, दमयंती, मुलहठी और पानी में शहद डालकर स्नान करें।

 

Execlusive Report: www.himalayauk.org (HIMALAYA GAURAV UTTRAKHAND)

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