बीमारी और शत्रु नाश तथा राजसत्ता की अधिष्ठात्री महामाई मॉ पीताम्बरा श्री बगुलामुखी- हे देव शक्तियों,, देहरादून में मंदिर तैयार है- Execlusive

 ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्ववां कीलय बुद्धि विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा # मा दशम विद्या श्री बगुला मुखी – पीतांबरा महामाई मंदिर स्थान नन्दा देवी एंक्लैव बंजारा वाला देहरादून मे प्राण प्रतिष्ठा समारोह में महामाई की स्वर्ण प्रतिमा दान करने का विराट उत्तरदायित्व कौन पूरा करेगा? चंद्रशेखर जोशी मुख्य सेवक का आहवाहन: महामाइ अपने किस भक्त से यह कार्य पूरा करायेगी? क्या आप तो नही?# कथा है कि ब्राह्मणों के शाप से जब श्रीकृष्ण के पुत्र शांब को कुष्ठ रोग हो गया था तब ऋषियों की सलाह पर भगवान श्रीकृष्ण ने यहां पर अन्न और स्वर्ण से तुला दान किया था # ह्रीं बगलामुखी अभिमंत्रित यंत्र को बाढ़ के जल में फेंक देने से बाढ़ रुक जाती है#

बगलामुखी इसके साधक के शत्रु का निश्चय अंत हो जाता है। ये पाप ताप मिटाती है जीवन को सरल बनाती है। भव बाधा सदा हटाती हैए जीवन में सौभाग्य सदा जमाती है।। जो बगला.बगला कहता है निश्चय कृपा को पाता है। अपना वो कल्याण करए भव सागर में तर जाता है।। लोमेशने नारद से कहाए बगला नाम की महिमा को। जो पूजे और चाहे इसेए वो सर्व सिद्ध हो जाता है।। यह बात केवल बात नहीं साधक की ये सच्चाई है। बगला के साधक की जग में होती सदा भलाई है।।

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बगलामुखी मंत्र के बारे में कहा गया है कि यह मंत्र प्रचंड तूफान को भी रोकने में सक्षम है। बगलामुखी यंत्र बगलामुखी यंत्र में मां बगलामुखी का वास होता है। यह एक शक्तिशाली यंत्र हैए  जो मंगल ग्रह की शक्तिशाली ऊर्जा को ग्रहण कर साधक को लाभ पहुंचाता है। कलयुग मंे बगलामुखी यंत्र जीवन के हर मोड़ पर मदद कर सकता है। योगियों व तांत्रिकों का मानना है कि जहां दूसरे सभी उपाय काम नहीं करते वहां बगलामुखी यंत्र की साधना काम आती है। इस साधना से साधक की सभी बाधाएं दूर होती हैं। बगलामुखी यंत्र के बारे में कहा गया है ष्त्रिजगतम् नक्षत्र स्तंभिनिष् अर्थात इसमें नक्षत्रों को रोक देने की भी शक्ति है। इसकी साधना से अश्ुाभ ग्रहों के अशुभ फलों से बचा जा सकता है।

हे,, देव शक्तियों,, मंदिर तैयार हैृ हे, देवात्मा‍ स्वं0 प्रकाश पंत जी, मेरे द्वारा निवेदन किये जाने पर आपके द्वारा श्री बगुलामुखी पीताम्ब रा महामाई नंदा देवी एनक्लेकव बंजारावाला में भूमि पूजन किया था, मंदिर निर्माण कार्य पूर्ण हो गया है जल्द प्राण प्रतिष्ठा समारोह आयोजित होगा, दिव्य रूप में आप पुन- पधारे

श्री बगुला मुखी- पीतांबरा महा माई के भव्य मंदिर निर्माण की प्रेरणा मुझ साधारण इंसान को महामाइ ने दी थी,,, भव्य भूमि पूजन हुआ,, फिर जीवन मे अनेक झंझावात आये और आखिर Nov 22 मे दिव्य, अलौकिक, सुंदर मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण हुआ,, अब देवी देवताओ के साथ महा माई के विराजने और सौंदर्यीकरण का कार्य प्रगति पर है, जल्द 3 दिवसीय प्राण प्रतिष्ठा समारोह घोषित होगा, सादर  चंद्रशेखर जोशी  मुख्य सेवक

भगवान विष्णु के आवाहन पर सरोवर से उत्पन्न होने वाली मां भगवती बगलामुखी की साधना करने से साधक की सभी आध्यात्मिक और भौतिक इच्छाएं मां पूरी करने में देरी नही करती । मां बगलामुखी के पूजन में पीली वस्तुओं का बड़ा महत्व है, माता के वस्त्र पीले रंग के ही होते हैं, यहां तक की इनके मंत्रों का जप करने के लिए भी पीली हल्दी गठान से बनी माला का ही प्रयोग होता है ।

मां पीतांबरा राजसत्ता की देवी —अटल बिहारी वाजपेयी और इंदिरा गांधी, पीवी नरसिम्हा, राजमाता विजयाराजे सिंधिया पूर्व राष्ट्रपति प्रण्ब मुखर्जी से लेकर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह समेत कई बड़े दिग्गज नेताओं सहित देश की कई हस्तियां इनकी भक्त रही हैं.

सन् 1962 में जब भारत और चीन आमने-सामने खड़े हुए थी तो पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने दतिया में स्थित पीतांबरा से मदद मांगी थी जिसके बाद 11वें दिन ही युद्ध पर विराम लग गया था. उस वक्त युद्ध के दौरान मां पीतांबरा के स्वामी जी ने प्रधानमंत्री नेहरू की गुजारिश पर देश की रक्षा को ध्यान में रखते हुए मां बगलामुखी का 51 कुंडीय महायज्ञ कराया था. जिसके बाद 11वें दिन अंतिम आहुति के साथ चीनी सेनाएं वापस लौट गई थीं.

मां बगलामुखी देवी समस्त ग्रह, नक्षत्रों व चराचर जगत यानी तीनों लोकों की एकमात्र अधिष्ठात्री देवी हैं। इस माता की उपासना से मनुष्य समस्त पुरुषार्थो को प्राप्त कर सुख पूर्वक तीनों लोकों में विजय प्राप्त कर सकता है।  अग्नि पुराण के अनुसार एक बार सतयुग में त्रिखुर नामक महाबली दैत्य ने अपनी मायावी शक्तियों से सभी देवी देवताओं को पराजित कर दिया था। सम्पूर्ण सृष्टि का विनाश होते देख सृष्टि के रक्षक भगवान विष्णु चिंतित हो उठे। सृष्टि की रक्षा के लिए भगवान विष्णु सौराष्ट्र क्षेत्र में हरिद्रा नामक सरोवर के किनारे अखंड तपस्या में लीन हो गये। इनकी तपस्या के फलस्वरूप बगलामुखी माता अषाढ़ कृष्ण चतुर्दशी दिन मंगलवार की मध्य रात्रि में प्रकट हुई और भगवान विष्णु को सृष्टि की रक्षा का वरदान देते हुए त्रिखुर राक्षस का वध किया। बगलामुखी देवी का एकमात्र सार्वजनिक उपासना केन्द्र दतिया मध्यप्रदेश में है और सार्वजनिक उपासना का दूसरा स्थान होने का गौरव गुरुवलिया को प्राप्त हुआ है। इस मंदिर के प्रति क्षेत्र के श्रद्धालुओं में श्रद्धाभाव देखते ही बनता है।

पीताम्‍बरा देवी के दर्शन से जेल गया इंसान भी जल्‍दी छूटकर बाहर आ सकता है। भयंकर कष्ट में पडा इंसान भी कष्टो से मुक्ति पाता है, ऐसा चमत्‍कार है मां के अद्भुत मंदिर का। माता पीताम्बरा के दर्शन मात्र से कोर्ट कचहरी के चक्कर और कानूनी दांव पेंच से मुक्ति मिल जाती है।  मां पीताम्बरा माता बगलामुखी का ही एक रूप हैं और काफी उग्र मानी जाती हैं। वो तंत्र की देवी हैं। पूरे देश में इनके मंदिर गिनती के हैं।  दस महाविद्याओं में माता पीताम्बरा का आठवां स्थान है। माता के विग्रह को स्पर्श करने की इजाजत नहीं है गुरुवार के दिन मां पीताम्बरा के दर्शन पूजन का विशेष महत्‍व माना जाता है। उन्हें पीला फूल और फल तो चढ़ाया जाता है साथ ही भोग भी पीले मिष्ठान्न का लगाया जाता है। जिस किसी की कुंडली में बृहस्पति खराब चल रहा हो अगर वो मां पीताम्बरा का दर्शन करे तो उसका ग्रह दोष कट जाता है। माता पीताम्बरा सिर्फ कोर्ट कचहरी से ही नहीं बल्‍िक दुश्मनों द्वारा किये गये तंत्र माध्‍यम से मारण, सम्मोहन और उच्चाटन से भी निजात दिलाती हैं। इतना ही नहीं माता अपने दर्शन करने वालों को असाध्य रोगों से निजात भी दिलाती हैं।

सिद्धपुरुष अर्थात साधक अपना जीवन तभी सफल मानते हैं, जब बगलामुखी देवी की असीम कृपा इन पर होती है। हालांकि इस माता का मुख्य मंदिर मध्यप्रदेश के दतिया में है। यहां दुनिया भर से श्रद्धालु दर्शन,पूजन व अनुष्ठान के लिए जाते हैं। यहां तक कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं.जवाहर लाल नेहरु भारत-चीन युद्ध के दौरान देश की विजय की कामना के लिए यहां गये थे

माँ दशम विद्या श्री बगुला मुखी- पीतांबरा महमाइ के सच्चे भक्त श्री विनोद चमोली मान0 विधायक धर्मपुर देहरादून

जो मनुष्य अप्रतिष्ठित देव प्रतिमा का पूजन नहीं करता है, उसके अन्न को देवता ग्रहण नहीं करते। किस नक्षत्र में किस देवता की प्रतिष्ठा श्रेष्ठ होती है इस संबंध में बताया गया है कि रोहिणी, तीनों उत्तरा, रेवती, धनिष्ठा, अनुराधा मृगशिरा, हस्त, पुनर्वसु, अश्विनी और पुष्य नक्षत्र में विष्णु की, पुष्य, श्रवण और अभिजीत में इंद्र, ब्रह्मा, कुबेर एवं कार्तिकेय की, अनुराधा में सूर्य की, रेवती में गणेश व सरस्वती तथा हस्त और मूल में दुर्गा की प्रतिष्ठा करना श्रेष्ठ रहता है। माहों में चैत्र, फाल्गुन, ज्येष्ठ, वैशाख और माघ समस्त देवताओं को प्रतिष्ठा के लिए उपयुक्त रहते हैं तिथियों में द्वादशी तिथि भगवान विष्णु, चतुर्थी गणेश तथा नवमी तिथि दुर्गा की प्रतिष्ठा के लिए विशेष रूप से निर्धारित की गई है।

यह दस महाविद्याओं में अष्टम महाविद्या है

यह दस महाविद्याओं में अष्टम महाविद्या है। पीतांबरा बगलामुखी माता लगाम की भांति दुश्मनों को खींचकर उन्हें घोड़ांे की तरह स्तब्ध कर देती हैं। उनके शिव मृत्युंजय हैं। इसलिए बगला साधना के समय जप या बगला स्तोत्र के पाठ के पूर्व एवं पश्चात् एक माला मृत्यंुजय जप अवश्य करना चाहिए। फिर मृत्युंजय जप के बाद बगला कवच का पाठ करना चहिए। कवच के पश्चात् बगलामुखी देवी के मंत्र का जपए स्तोत्र पाठ आदि करने चाहिए।

मां का 36 अक्षरों वाला मंत्र निम्नांकित है। ष्ष्¬ ींीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्नां कीलय बुद्धिं विनाशय ींीं ¬ स्वाहाष्ष्। मंत्र जप आरंभ करते समय बगलामुखी का इस तरह ध्यान करना चाहिए। मैं स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान त्रिनेत्राए पीेले वस्त्रों से सुशोभितए स्वर्ण जैसी अंग कांति वालीए चंद्रमा को मुकुट रूप में धारण करने वालीए चंपा पुष्पों की माला धारण करने वालीए अपने हाथों में मुद्गरए पाशए वज्र और जिह्ना धारण करने वालीए आभूषणों से अंगों को शोभायमान करने वाली एवं तीनों लोकों को स्तंभित करने वाली श्री बगलामुखी देवी का ध्यान करता हूं। जप.संख्या कार्य के अनुसार बगलामुखी देवी के जप की संख्या निर्धारित कर लेनी चाहिए। यदि कोई कार्य बड़ा या दुःसाध्य हो तो एक लाख जप अवश्य करना चाहिए। इसके विपरीत छोटे या सुसाध्य कार्य के लिए दस हजार जप करना ठीक रहता है। बगला साधना गुरु के सान्निध्य में करना जरूरी है।

गुरु के परामर्शानुसार ही जप संख्या निर्धारित करनी चाहिए। हवन एवं हवन.फल जप के के बाद उसका दशांश हवन करने का विधान है। किस पदार्थ से हवन करने से कौन का फल मिलता है इसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है।

अशोक व कनेर के पुष्पों के हवन से पुत्र की प्राप्ति होती है

वशीकरण के लिए सरसों से हवन करना चाहिए। स तिलों के दुग्ध मिश्रित चावलों के हवन से धन प्राप्ति होती है।   अशोक व कनेर के पुष्पों के हवन से पुत्र की प्राप्ति होती है।   सेंभल के फूलों के हवन से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।   राजवश्यता के लिए गुग्गुल और घृत के हवन का विधान है।   तिल मिश्रित गुग्गुल के हवन से बंदी की रिहाई होती है।

अनुष्ठान का स्थान व समय साधना या अनुष्ठान का स्थान एकांतए निर्जन व शुद्ध हो। साधना घर अथवा पर्वतीय प्रदेशए बीहड़ जंगल या सिद्ध शैल गृह ;पाषाण का बना घरद्ध में अथवा पवित्र महानदियों के संगम के तट पर भी की जा सकती है। किंतु स्थान खुला नहीं होना चाहिए। यदि किसी कारणवश खुले स्थान पर जप आदि करना पड़े तो ऊपर पीले कपड़े का चंदोवा ;चांदनीद्ध तान देना चाहिए। अनुष्ठानए पूजाए जपए स्तुति पाठ आदि टापू पर बैठकर नहीं करने चहिए। स्थान गंदाए अशुभ या गलियारे वाला नहीं हो। बगला साधना के लिए स्थान का चयन करते समय सदैव सावधानी रखनी चाहिए। साधना रात में करनी चाहिए। पीतांबरा देवी बगलामुखी की जप की विधि पीतांबरा साधना में पदार्थों का पीला होना अनिवार्य है। साधक को पीले वस्त्र धारण कर नित्य पीले पुष्पों से बगलामुखी देवी का पूजन करना चाहिए। धोती के साथ दुपट्टा या साफी का प्रयोग करना चाहिएए केवल एक वस्त्र धारण कर साधना करना वर्जित है। जप के लिए हरिद्रा की माला का प्रयोग किया जाता है। जप पीले रंग के आसन पर बैठकर किया जाता है। साधक को सिर खुला रखना चाहिए। परंतु बालों की चोटी खुली नहीं होनी चाहिए। सर्वांग शरीर शुद्ध होना चाहिए। जप पैर पसारकर या उकडं़ू बैठकर कभी न करें। हाथ खुले रखें। जप करते समय किसी से बातचीत नहीं करनी चाहिए।

बगला साधना में कुर्ताए कमीजए पायजामाए टोपीए पगड़ी आदि पहनना वर्जित है। जो साधक अज्ञानतावश जप के पूर्व बगला कवच का पाठ नहीं करता उसका रक्त योगिनी पी जाती हैए ऐसा शास्त्रों का मत है. ष्ष्कवचम् अज्ञात्वा यो जपेद् बगलामुखीम्। पिवन्ति शोणितं तस्य योगिन्यः प्राप्य सादराः।ष्ष् साधना के लिए नियत स्थान पर चैकी या पट्टे के ऊपर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर पीले किए गए चावलों का अष्ट.दल कमल निर्मित कर लेना चाहिए। फिर उस पर पीले कलश की स्थापना कर ध्यानपूर्वक बगला माता का आवाहन कर पूजन करना चाहिए। जप क्रम का नियमन साधना के लिए जप की जितनी संख्या निर्धारित की जाएए उतनी ही संख्या में प्रत्येक दिन जप करना चाहिए। ऐसा न करने पर जप भ्रष्ट हो जाता है। मानस जप सर्वश्रेष्ठ होता है। लिखे हुए मंत्र का जप पढ़कर नहीं करना चाहिए बल्कि जप के पूर्व ही उसे कंठस्थ कर लेना चाहिए। जप करते समय माला को गुप्त रखना चाहिए। इसके लिए पीले कपड़े की सिली हुई थैली या गोमुखी का प्रयोग करना चाहिए। हरिद्रा माला को इतनी तेजी से नहीं घुमाना चाहिए कि उसके मनकों की आवाज दूसरों को सुनाई दे। माला भूमि से भी न टकराने पाए। पूजन.सामग्री केसरिया या पीला चंदनए पीले अक्षतए सूखी पिसी हल्दीए केसरए चम्पक पुष्पए पीले कनेर के फूलए पीला कलावाए पीत यज्ञोपवीतए पीला कपड़ाए पीतांबरा माता के लिए पीले वस्त्रए पीली चुन्नी पीतभूषणए पीले मौसमी फलए अर्थात ऋतुफल अर्थात जिस समय अनुष्ठान कार्य संपन्न कर रहे हों उस अवधि या मौसम में फलने वाले प्राप्य फलए बेसनी मोदकए पानए सुपारीए धूपए दीपए घीए कपूरए पीला आसनए हल्दीगांठ की जपमालाए कुंकुमए अबीरए गुलालए पीतांबरा को चढ़ाने के लिए पीले रंग की पताका आदि। बगला.गायत्री यदि पीतांबरा देवी बगलामुखी के विधि सहित पूजन के उपरांत नित्य एक माला जप बगला गायत्री का भी किया जाएए तो शत्रुओं का शमनए भीषण विघ्नों का नाशए विवादों का शमनए दुख.दारिद्र्य का नाशए मंत्र दोष प्रमोचन एवं ग्रह दोष निवारण हो सकता है।

बगला गायत्री मंत्र का जप भी पीले वस्त्र पहनकरए पीले आसन पर बैठकरए पीली हल्दी की गांठों की माला से करना चाहिए। बगला गायत्री मंत्र इस प्रकार है। ष्ष्¬ ींीं ब्रह्मास्त्राय विद्महे स्तम्भनबाणाय धीमहि तन्नोः बगला प्रचोदयात्।ष्ष् बगला माता के जपानुष्ठान के बाद जप के दशांश होम करने का विधान है। होम का दशांश तर्पण और तर्पण का दशांश मार्जन करना तथा मार्जन का दशांश विप्र भोज कराना चाहिए। भोजन बेसन के पीत वर्ण मोदकए मिष्ठानए पकवान आदि का करना चाहिए। प्रतिदिन पूजा एवं जप के बाद श्री बगलामुखी माता की घी या कर्पूर से आरती करनी चाहिए। ष्ष्पूजाकाले कोऽपि आर्तिक्यं पठतेए धनधान्यादि समृद्धो सान्न्ािध्यं लभते।।ष्ष् माता श्री बगलामुखी का प्रातः स्मरणम् प्रातः स्मरामि मधु पूर्ण सुधा समुद्रम्। तन्मध्य दिव्य मणिद्वीप मनोहरं च। कल्पाटवीममित रत्न विभूष कोटम्। श्रीमण्डपं विशद शोभि हृदि स्फुरुतम्। ;1द्ध प्रातर्नमामि मधुसूदन त्रीक्ष्णाब्जैः नीराजितं ह्राति नतैः मुकुट . प्रदीपै। सौवर्ण वर्णमतुल तं पाद पीठम्ए देव्या निवेषित सदाप्रि द्वयं लालभम् ;2द्ध प्रातर्भजामि भव भूरि भयापहा ताम्। पीताम्बरा कर सु मुद्गर वैरि जिह्नाम। सु स्तम्भिनी सु वदनां करुणाद्र्रा चित्ताम् सृष्ट्युत्पत्ति स्थिति नियामिनी ब्रह्म विद्याम् ;3द्ध माता श्री बगलामुखी जिन्हें त्रैलोकी स्तम्भनी भी कहा जाता है। शत्रु स्तम्भन के लिए सर्वप्रथम माना जाता हैए या स्मरण किया जाता है। वो भगवती बगलामुखी हैं।

शत्रुओं को नष्ट करने की इच्छा रखने वाली व परम पिता परमात्मा की संहार शक्ति ही बगला हैं। बगलामुखी दस महाविद्याओं में आठवीं महाविद्या हैं। इनकी तीन आंखें हैं। इनके एक हाथ में शत्रु की जीभ और दूसरे में मुद्गर है। यह पीले वस्त्र और रत्न पहनती हैं। टोडल तंत्र के अनुसार इनके दायीं ओर महारुद्र बैठते हैं। मां बगलामुखी को ष्ब्रह्मास्त्रष् के नाम से भी जाना जाता है। इन्हें ष्पीतांबरा व ष्स्तंभिनीष् भी कहा जाता है। पौराणिक तथ्य स सर्वप्रथम ब्रह्मा जी ने बगला महाविद्या की उपासना की थी। इसके दूसरे उपासक भगवान विष्णु व तीसरे परशुराम हुए। परशुराम ने ही यह विद्या आचार्य द्रोण को बताई थी। स रावण के पुत्र मेघनाद ने अशोक वाटिका में हनुमान के वेग को श्री बगलामुखी की स्तंभन शक्ति के बल पर ही अवरुद्ध किया था। स इसी शक्ति के बल पर रावण की सभा में अंगद ने अपना पैर जमा दिया था जिसे उठाने में कोई भी सफल नहीं हुआ था। स महारथी वीर अर्जुन ने भी महाभारत के युद्ध में विजय के लिए मां पीतांबरा बगलामुखी की साधना की थी।

  महाबली द्रोण पुत्र अश्वत्थामा ने भी मां के इसी शक्तिशाली रूप की पूजा की थी।   1962 में चीन के भारत पर आक्रमण के समय भी श्रद्धा माता के कहने पर पंडित नेहरू ने मां बगलामुखी के दतिया मंदिर जाकर यज्ञ व पूजा अर्चना की थी और फिर चीन ने आक्रमण रोक दिया था।

36 अक्षरों वाला बगलामुखी मंत्रए जिसके देवता महर्षि नारद हैं  इस प्रकार है। ¬ींीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं। स्तभ्ं ाय जिह्नां कीलय बुिद्धं विनाशय ींीं ¬ स्वाहा।। हवनरू मां बगलामुखी के मंत्रों का जप के पश्चात दशांश हवन भी किया जाता हैए जिसके लाभ इस प्रकार से हैं। स चंपा पुष्प से हवन करने पर साधक सभी देवताओं को अपने वश में कर सकता है। स दूध व तिल की खीर से हवन करने से धन लाभ होता है। स घीए शक्कर और मधु से हवन करने पर आकर्षण बढ़ता है। स अशोक के पत्तों से हवन करने से संतान सुख मिलता है। गुग्गुल व तिल से हवन करने से कारागार से मुक्ति मिलती है। स सेंवल के फलों से हवन करने से शत्रु पर विजय मिलती है। स तालपत्र और नमक युक्त हल्दी की गांठ से हवन करने पर शत्रु स्तंभित होता है। स राईए भैंस के दूध का घी और गुग्गल से हवन करने पर भी शत्रु का शमन होता है। स गुग्गुल व तिल से हवन करने से जेल से छुटकारा मिलता है स लकड़ीए शहद और घी से हवन करने से रोगों से मुक्ति मिलती है स चीनी व मधु मिली दूर्वा व धान के लावा से हवन करने पर रोग से मुक्ति मिलती है। जप के बाद माला गले में धारण कर लें। फिर ब्राह्मणों को भोजन कराएंए यह अत्यावश्यक है। इसके बाद आंखें बंद कर मां बगलामुखी के सामने अपनी मनोकामना निवेदित करेंए पूरी होगी।

मुंडमाल तंत्र में कहा गया है कि इसकी सिद्धि के लिए नक्षत्रादि विचार व कालशोधन की भी आवश्यकता नहीं है। साधना मंे सावधानियां सांख्यायन तंत्र में कहा गया है कि गुरु से विधिवत दीक्षा प्राप्त कर ही इस देवी की उपासना करनी चाहिए।

माता श्री बगलामुखी की स्तुति जयए जयतिए सुखदाए सिद्धिदा स्वार्थ साधक शंकरी। स्वाहाए स्वधाए सिद्धाए शुभाए दुर्गा नमो सर्वेश्वरी।। जय सृष्टिए स्थिति कारिणीए संहारिणी साध्या सुखी। शरणागतोऽहं त्राहिमामए मां त्राहिमाम बगलामुखी।। जय प्रकृति पुरूषात्मक जगतए कारण करणी आनन्दिनी। विद्या.अविद्याए सादिए कादिए अनादि ब्रह्म स्वरूपिणी।। ऐश्वर्य. आत्मा. भाव अष्टकए अंग परमात्मा सखी। शरणागतोऽहं त्राहिमाम्ए मां त्राहिमाम् बगलामुखी। जय पंच प्राण प्रदासुदाए प्रज्ञान ब्रह्म प्रकाशिकाए संज्ञान.धृति.अज्ञानमतिए विज्ञान शक्ति विधायिका। जय सप्त व्याहृति रूप ब्रह्मए विभूति सुंछरी शशिमुखी। शरणोगतोऽहं त्राहिमाम्ए मां त्राहिमाम बगलामुखी।ं आपत्ति . अम्बुधि . अगम. अम्बए अनाथ आश्रयहीन मैं। पतबार. श्वास. पर श्वास क्षीणए सुषुन तन.मन दीन मंै। शरणोगतोऽह त्राहिमामए मां त्राहिमाम बगलामुखी।। जय परम ज्योतिर्मय शुभमए ज्योति परा अपरा परा। नैका.एका.अनजा.अजाए मन बाग बुद्धि अगोचरा। पाशा कुशा की तासनाए पीताम्बर पंकज मुखी। शरणागतोऽहं त्राहिमामए मां त्राहिमाम् बगलामुखी।। भवताप रीतिमति.कुमतिए कर्तव्य कानन अति घनाए अज्ञान दावानल प्रबलए संकट निकल मन अनमना। दुर्भाग्य धन द्वारि पीत पटए विद्युत झरो करुणा अग्नि। शरणागतोऽहं त्राहिमामए मां त्राहिमाम बगलामुखी।। हिय पाप.पीत पयोधि मेए प्रगटो जननी पीताम्बरा। तन.मन सकल व्याकुल विकलए त्रयताप वायु भयंकरा।। अंतःकरण.दस इन्द्रियांए मम देह देवि चतुर्दशी। शरणोगतोऽहं त्राहिमाम् मां त्राहिमाम बगलामुखी।। द्रारिद्र्य दग्ध क्रिया कुटिलए श्रद्धा प्रज्वलित वासनाए अभिमान ग्रंथित भक्ति हारए विकारमय भक्त की साधना। अज्ञान.ध्यान विचार चंवलए वृत्ति वैभव उन्मुखीए शरणोगतोऽहं त्राहिमाम्ए मां त्राहिमाम बगलामुखी।।

वारों के लिए कहा गया है कि-

तेजस्विनी क्षेमकृदग्रिहाद विधायिनी स्याद्वनदा दृढा च। आनंदनकृत कल्पविनाशिनी च सूर्यदिवारेषु भवेत्प्रतिष्ठा।।

अर्थात रविवार को की गई प्रतिष्ठा तेजस्विनी, सोमवार को कल्याण कारिणी, मंगलवार को अग्रिदाह कारिणी, बुधवार को धन दायिनी, वीरवार को बलप्रदायिनी, शुक्रवार को आनंददायिनी, शनिवार को सामर्थ्य विनाशिनी होती है। 

जब भी लोग किसी देवमूर्ति को घर के मंदिर में लाते हैं तो पूरे विधि विधान से इसकी पूजा की जाती है। इस प्रतिमा में जान डालने की विधि को ही प्राण प्रतिष्ठा कहते हैं। यह मूर्ति को जीवंत करती है जिससे की यह व्यक्ति की विनती को स्वीकार कर सके। प्राण-प्रतिष्ठा की यह परंपरा हमारी सांस्कृतिक मान्यता जुड़ी है कि पूजा मूर्ति की नहीं की जाती, दिव्य सत्ता की, महत् चेतना की, की जाती है। सनातन धर्म में प्रारंभ से ही देव मूर्तियां ईश्वर प्राप्ति के साधनों में एक अति महत्वपूर्ण साधन की भूमिका निभाती रही हैं। अपने इष्टदेव की सुंदर सजीली प्रतिमा में भक्त प्रभु का दर्शन करके परमानंद का अनुभव करता है और शनै: शनै: ईश्वरोन्मुख हो जाता है। देवप्रतिमा की पूजा से पहले उनमें प्राण-प्रतिष्ठा करने की पीछे मात्र परंपरा नहीं, परिपूर्ण तत्त्वदर्शन सन्निहित है। 

धन के दान का फल एक ही जीवन भर मिलता है, जबकि स्वर्ण, भूमि और कन्या दान के फल सात जन्मों तक मिलते हैं स्वर्ण दान- स्वर्ण दान करने से व्यक्ति को कर्ज और रोगों से मुक्ति मिलती है.
भारतीय संस्कृति मे दान का महत्व सर्वाधिक बताया गया है, दान का अर्थ सिर्फ किसी चीज को लेना नहीं है। दान को स्वीकार करना प्रतिग्रहण है।

भगवान श्रीकृष्ण पर एकाधिकार पाने की लालच में जब उनकी पटरानी सत्यभामा ने नारद मुनि को श्रीकृष्ण का दान कर दिया तब नारदजी श्रीकृष्ण को अपने साथ लेकर जाने लगे। उस समय सत्यभामा को अपनी भूल का अहसास हुआ और श्रीकृष्ण को वापस पाने का उपाय नारदजी से पूछा।

इस पर नारदजी ने सत्यभामा से श्रीकृष्ण के वजने के बराबर सोना दान करने के लिए कहा। सत्यभामा के मन में यहां भी अहंकार आ गया और वह खुशी-खुशी सोने से कान्हा को तौलने लगीं। लेकिन जल्दी ही उन्हें अपनी भूल का अहसास हो गया क्योंकि खजाने से पूरा सोना तुला पर डालने के बाद भी श्रीकृष्ण का पलड़ा भारी था। इसके बाद देवी रुक्मणी ने सत्यभामा से कहा कि सोने के ऊपर एक तुलसी का पत्ता रखदो। सत्यभामा के ऐसा करते ही चमत्कार हुआ कान्हा के वजन के बराबर सोना हो गया। तुलादान मंदिर उसी कथा को ध्यान में रखकर बनवाया गया है।
कथा है कि ब्राह्मणों के शाप से जब श्रीकृष्ण के पुत्र शांब को कुष्ठ रोग हो गया था तब ऋषियों की सलाह पर भगवान श्रीकृष्ण ने यहां पर अन्न और स्वर्ण से तुला दान किया था।

कथा है कि ब्राह्मणों के शाप से जब श्रीकृष्ण के पुत्र शांब को कुष्ठ रोग हो गया था तब ऋषियों की सलाह पर भगवान श्रीकृष्ण ने यहां पर अन्न और स्वर्ण से तुला दान किया था। महाभारत युद्ध के बाद परिजनों की हत्या के पाप से मुक्ति के लिए तीर्थों में भ्रमण करते हुए पाण्डव भी यहां आए थे और उन्होंने इस स्थान पर तुलादान किया था।

सोना गिफ्ट करना अच्छा माना जाता है। वहीं सोने का दान तो महादान के बराबार होता है, जिसका फल व्यक्ति को सात जन्मों तक मिलता है। सोना दान करने से गुरु ग्रह बृहस्पति भी शुभ फल देते हैं।

आपकी कुंडली में बृहस्पति ग्रह से अच्छे फल की प्राप्ति न हो रही हो। ऐसे में सोना दान या गिफ्ट करना आपके लिए फायदेमंद होगा और बृहस्पति ग्रह से जल्द ही शुभ फलों की प्राप्ति होगी।

सोना-चांदी, गोदान तथा कन्या दान को हमारे शास्त्रों ने दान की श्रेष्ठ श्रेणी में रखा है। सोने के देवता अग्नि है, पुराने जमाने में दक्षिणा सोने के रूप में दी जाती थी, लेकिन अगर सोने का दान किया जा रहा हो तो उसकी दक्षिणा चांदी के रूप में दी जाती है।

समृद्ध भारतीय संस्कृति के सबसे विशिष्ट पहलुओं में से एक है ”दान“, एक उदात्त कर्म जिसे प्राचीन काल से प्रत्येक धार्मिक एवं आध्यात्मिक भारतीय द्वारा अपनाया जाता रहा है। अलग-अलग समाराहों और अनुष्ठानों के अनुसार दान के विभिन्न प्रयोजन होते हैं।

दान के लिए भव्य आयोजन किया जाता है जिसमें परिजनों एवं अतिथियों के भोज के बाद दान संपन्न किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि धन के दान का फल एक ही जीवन भर मिलता है, जबकि स्वर्ण, भूमि और कन्या दान (हिन्दु पाणिग्रहण संस्कार का एक अनुष्ठान जिसमें पुत्री का दान किया जाता है) के फल सात जन्मों तक मिलते हैं।

यह पीला धातु शुद्ध और शुभ माना जाता है। स्वर्ण दान सर्वाधिक दानों में से एक कहा गया है। इm प्राचीन भारतीय ग्रंथों के अनुसार स्वर्णयुक्त विभिन्न प्रकार के दान किये जाते है। ये दान वैदिक ग्रंथों में उल्लिखित सोलह महादान का हिस्सा हैं।

पुराणों में तुलादान को महादान कहा गया है और बताया गया है कि इससे विष्णुलोक की प्राप्ति होती है। पौराणिक काल में समृद्ध लोग सोना से तुलादान किया करते थे। लेकिन अब अनाज और सिक्कों से भी लोग तुलादान किया करते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार में प्रयाग में ब्रह्माजी ने भगवान विष्णु के कहने पर तीर्थों का महत्व तय करने के लिए तुलादान करवाया था। इसमें सभी तीर्थ एक तरफ और प्रयाग को तुला के दूसरी तरफ बैठाया गया था। सभी तीर्थ मिलकर भी प्रयाग के बराबर नहीं हो पाए। इसके बाद से प्रयाग को तीर्थराज कहा जाने लगा। इस कथा के कारण प्रयाग और कई तीर्थों में भी तुला दान की परंपरा है।

श्रीराम के द्वारा अश्वमेघ यज्ञ के समय माता सीता की सोने की मूर्ति बनवाना:-
अयोध्या के राजगुरु महर्षि वशिष्ठ ने श्रीराम के मन की व्यथा को समझा तथा शास्त्रों में इसका उपाय ढूंढ़ कर बताया। उन्होंने कहा कि यदि किसी कारणवश राजा की पत्नी साथ में ना हो तथा यज्ञ का आयोजन करना हो तब वह अपनी पत्नी की स्वर्ण मूर्ति बनाकर यज्ञ आयोजित कर सकते है। इससे यज्ञ पूर्ण माना जाता है।

देवशिल्पी विश्वकर्मा को मिला माता सीता की मूर्ति बनाने का कार्य

इसके पश्चात श्रीराम ने विश्वकर्मा जी को बुलावा भेजा तथा उन्हें माता सीता की स्वर्ण मूर्ति बनाने का आदेश दिया। विश्वकर्मा जी ने कुछ ही दिनों में माता सीता को एक दम मूर्ति में उत्कीर्ण कर दिया जो देखने में एक दम सीता ही प्रतीत होती थी। भगवान श्रीराम भी सीता की स्वर्ण मूर्ति देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए। इसके पश्चात उन्होंने सीता की मूर्ति के साथ ही अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया तथा पूरे विधि-विधान से सब कार्य संपन्न किये।

वैदिक ग्रंथों में उल्लिखित सोलह महादान

तुला पुरुष दान
इस दान में दानकर्ता या व्यक्ति तुला के एक पलड़े पर संपूर्ण शारीरिक कवच और अस्त्र-शस्त्रों के साथ बैठता है, जबकि तुला के दूसरे पलड़े पर शुद्ध स्वर्ण रखा जाता है। इसका भार 125-130 किलोग्राम तक हो सकता है। यह शुद्ध स्वर्ण समारोह में उपस्थित ब्राह्मणों में बाँट दिया जाता है समारोह में प्रयुक्त सोने से बनी तुला भी ब्राह्मणों को दान कर दी जाती है।

हिरण्यगर्भ दान
यह एक स्वर्ण पात्र का दान है जो दैवीय गर्भ का प्रतिनिधित्व करता है। इस पात्र का आकार सोने के ढक्कन के साथ 54 इंच ऊँचा और 36 इंच चौड़ा होना चाहिए। इस पात्र को बनाने में लगभग 40-50 किलोग्राम सोने की आवश्यकता होती है। इसमें घी और दूध भरा रहता है।

ब्रह्माण्ड दान
इसमें हमारे ब्रह्माण्ड की स्वर्ण निर्मित प्रतिकृति का दान किया जाता है। ब्रह्माण्ड के इस लघु प्रतिकृति का भार 1.25 किलोग्राम से 62.2 किलोग्राम तक हो सकता है जो दानकर्ता की क्षमता पर निर्भर करता है। समारोह के बाद लघु प्रतिकृति को दस भागों में विभक्त किया जाता है जिसमें से दो भागों को गुरु को दान किया जाता है और बाकी को ब्राह्मणों में वितरित कर दिया जाता है।

कल्प-पादप दान
इस दान में दानकर्ता व्यक्ति कल्पवृक्ष (मनोकामना पूरा करने वाला दैवीय वृक्ष) की एक स्वर्ण लघु प्रतिकृति का दान करता है। इस वृक्ष को फलों, फूलों, पक्षियों, आभूषणों और परिधानों से सजाया जाता है। इस स्वर्णिम वृक्ष को गुरु एवं उनके शिष्यों को दान किया जाता है। इसी प्रकार, कल्पलता दान में कल्पवृक्ष सहित दस दैवीय लताओं का दान किया जाता है, जो फलों एवं आभूषणों से सजे होते हैं।

हिरण्य कामधेनु दान
कामधेनु दिव्य गाय है जिसे समृद्धि की गाय तथा सभी गायों की माता माना जाता है। इस दान समारोह में कामधेनु गाय की सोने से बनी लघु प्रतिकृति के साथ दुधमुँहे बछड़ा का दान किया जाता है। गाय स्वर्ण आभूषणों से सुशोभित रहती है।

हिरण्य अश्व रथ दान
इन दान के लिए दानकर्ता दो से आठ अश्वों के साथ एक रथ की स्वर्णिम प्रतिकृति तैयार करता है। अश्वों को स्वर्ण आभूषण पहनाए जाते हैं। इसी प्रकार, चार हाथियों से जुते रथ के दान को हेम हस्ती रथ दान कहते हैं।

धरा दान
धरा का अभिप्राय धरती माता से है। इस दान में पावन नदियों, पर्वतों एवं महासागरों से परिपूर्ण पृथ्वी की सोने से बनी प्रतिकृति का दान किया जाता है।

सप्त सागर दान
इसमें शर्करा, लवण, दुग्ध, घी, दही, गुड़ और पवित्र जल से भरे स्वर्ण पात्र दान किए जाते हैं। ये पात्र सात महासागरों का सांकेतिक प्रतिनिधित्व करते हैं।

वेदानुसार यज्ञ पांच प्रकार के होते हैं-1.

ब्रह्मयज्ञ : जड़ और प्राणी जगत से बढ़कर है मनुष्‍य। …

देवयज्ञ : देवयज्ञ जो सत्संग तथा अग्निहोत्र कर्म से सम्पन्न होता है। …

पितृयज्ञ : सत्य और श्रद्धा से किए गए कर्म श्राद्ध और जिस कर्म से माता, पिता और आचार्य तृप्त हो वह तर्पण है। …

वैश्वदेवयज्ञ : इसे भूत यज्ञ भी कहते हैं

ईश्वर ने हमे नित्य प्रति 5 यज्ञ करने की आज्ञा दी है कि नित्य प्रति हर गृहस्थी को 5 यज्ञ करने चाहिये।

1 ब्रह्म यज्ञ . संध्या उपासना व ईश्वर का ध्यान करना सुबह व सांय।

2 देव यज्ञ . हवन आदी करना सुबह व सांय।

3 पितृ यज्ञ . जीते जी माता पिता की सेवा करना ,आदर सत्कार करना।

4 अतिथी यज्ञ . कोई भी अतिथी आये तो उनका प्रेमपुर्वक आदर सत्कार करना,भोजन करवाना।

5 बलिवैश्वदेव यज्ञ . पशु पक्षि ,किड़े मकोड़े, चींटी, आदी को आटा ,डालना ,व रोटी खिलाना व चारा डालना व पानी पिलाना ,उनका ध्यान रखना होता है।

ये नित्य प्रति होने चाहिये। क्योंकि अनजाने मे हम बहुत से पाप करते है और हिंसा करते है।

जितने भी देवी देवता इस ब्रह्मांड में हैं वह सूक्ष्म रूप से शरीर में है- सृष्टि की समस्त शक्तियों के केंद्र हैं शरीर के सात चक्र— वर्तमान समय कुदरत कोई संकेत दे रही है, जिसको समझना आमजन की समझ से परे है, ज्ञानियो के अनुसार यह भक्‍तिकाल का दुर्लभ समय भी कहा सकता है- क्‍यो और कैसे- इस पर हम आलेख पुन- प्रसारित करेग, फिलहाल तो यह समझ लीजिये- कि

पृथ्वी पर ‘समय’ समाप्त होने के बाद कोई न कोई कारण बनता है- श्रीराम से काल देव कहते हैं कि आपका राम अवतार खत्म होने वाला है; और यही लक्ष्‍मण जी के भी जाने का कारण बन जाता है-श्रीराम के लिए हिंसक मृत्यु उनके इस अवतार के लिए उचित नहीं थी, इसलिए उन्होंने नदी में समाकर इस अवतार को खत्म किया.
उसी तरह काल देव ने जब गणना करके बताया कि विष्णु के वराह अवतार तथा नरसिंह अवतार का भी जब समय पूर्ण हो गया है तो उस स्थिति में वराह ने स्वयं अपना जीवन समाप्त नहीं किया, बल्कि देवताओं ने शिव की मदद लेने के लिए कैलाश का रुख किया. देवताओं की विनती के बाद शिव पक्षी-जानवर से बना शरभ अवतार लेते हैं जो वराह से युद्ध करके विष्णु अवतार को मुक्त कराते हैं. इसी तरह भगवान शिव के शरभ अवतार ने नरसिंह अवतार को भी नष्ट किया था.

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