चुनाव बाद; बीजेपी का दामन थाम सरकार में शामिल होगी ?

राजनीतिक गलियारों में कुछ दिनों से यह चर्चा जोरों पर है कि लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद मायावती भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का दामन थाम सकती हैं। अगर ऐसा हुआ तो क्या यह स्वेच्छा से लिया गया निर्णय होगा या फिर किसी दबाव में? इस चर्चा के पीछे कुछ कारण हैं। पहला कारण तो यह कि बहुजन समाज पार्टी, जिसकी राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती हैं, तीन बार – 1995, 1997 और 2002 में बीजेपी के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश में सरकार बना चुकी हैं।

दूसरा कारण यह है कि चुनाव से कुछ माह पहले केंद्र और प्रदेश सरकार ने मायावती के कार्यकाल में स्मारकों और उत्तर प्रदेश सेवा चयन आयोग में हुए तथाकथित घोटालों की सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जाँच शुरू करवा दी थी। ये दोनों जाँचें इस वर्ष के फ़रवरी माह में अचानक शुरू हो गईं। इसीलिये बीजेपी की मंशा पर संशय होता है और कहा जा सकता है कि पार्टी ने बहनजी को कांग्रेस से दूर रहने का इशारा किया हो। हालाँकि, मायावती ने किसी भी तरह के दबाव में आये बिना समाजवादी पार्टी के साथ अपना गठबंधन बनाए रखा।

तीसरा कारण यह है कि समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय लोक दल और बहुजन समाज पार्टी गठबंधन से कांग्रेस को बाहर रखकर प्रदेश में चुनाव को त्रिकोणीय बना देना। सिर्फ़ इतना ही नहीं, कांग्रेस का खुलकर विरोध करना। कांग्रेस विरोधी नीति से होने वाले मुसलिम वोट के विभाजन से बीजेपी को फायदा होने का अनुमान है। ऐसे में यह प्रश्न उठना कि यह गठबंधन बीजेपी के ख़िलाफ़ है या कांग्रेस के, स्वाभाविक है?

यह सही है कि 1999 में सहारनपुर सीट बीएसपी के पास थी, 2004 में यहाँ से एसपी का उम्मीदवार विजयी हुआ और 2009 में यह सीट फिर बीएसपी के खाते में गई। 2014 में इमरान मसूद 4,07,909 वोट लेकर बीजेपी के राघव लखनपाल से हार गए थे। 

तब लखनपाल को 4,72,999 वोट मिले थे। यदि उस चुनाव में कांग्रेस, बीएसपी और एसपी मिलकर चुनाव लड़ रहे होते तो परिणाम कुछ और होता क्योंकि तब 2,35,033 वोट लेकर बीएसपी तीसरे और एसपी 52,765 वोट के साथ चौथे नंबर पर रही थी। 

एक बात और। मायावती ख़ुद तो चुनाव लड़ नहीं रही हैं और उनकी पार्टी भी कुल 38 सीटों पर भाग्य आजमाएगी। 2014 लोक सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से एक भी सीट ना जीतने वाली पार्टी केंद्र में बनने वाली सरकार का नेतृत्व करने या उसमें बड़ी हिस्सेदारी का ख़्वाब देख रही है।

यूँ तो यह तर्क भी दिया जा सकता है कि इस तरह की चर्चा विपक्ष को अलग-थलग रखने के लिए ख़ुद बीजेपी ने फैलाई हो। इस बात से पूरी तरह से इनकार भी नहीं किया जा सकता है क्योंकि एसपी-बीएसपी-आरएलडी गठबंधन के चलते बीजेपी को उत्तर प्रदेश में बड़ी चुनौती दिख रही है। सत्तारूढ़ दल के लिए ज़रूरी है कि किसी भी तरह गठबंधन को कमज़ोर किया जाए। 

जो भी हो, ऐसा लगता है कि उत्तर प्रदेश में गठबंधन और कांग्रेस एक-दूसरे को नुक़सान और बीजेपी को फायदा पहुँचाने में लगे हैं। जहाँ कुछ माह पहले चर्चा थी कि इस बार बीजेपी को प्रदेश में 30 सीट मिलेंगीं। इसके विपरीत आज उसे 50-55 सीट मिलने की बात की जा रही है। देखना है कि कितनी सीटों पर यह त्रिकोणीय संघर्ष होगा।   

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