बिहार का दलित महिला चेहरा राष्ट्रपति उम्मीदवार
बीएसपी का समर्थन, नीतिश के तोते उडे #राष्ट्रपति उम्मीदवार पद# एनडीए के दलित उम्मीदवार के मुकाबले विपक्ष ने भी दलित चेहरे को चुना # बीएसपी ने भी मीरा कुमार को समर्थन देने का फैसला # 17 विपक्षी दलों ने मीरा कुमार के नाम पर मुहर लगा दी#उनके पति मंजुल कुमार सर्वोच्च न्यायालय में वकील हैं# मीरा कुमार पूर्व उपप्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम की बेटी और राजनीतिक वारिस हैं। वो लोकसभा अध्यक्ष भी रह चुकी हैं #लोकसभाध्यक्ष के पद पर आसीन होने वाली पहली दलित महिला # हिमालय गौरव उत्तराखण्ड की प्रस्तुति
एनडीए के रामनाथ कोविंद के खिलाफ मीरा कुमार राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव मैदान में होंगी. एनसीपी के शरद पवार ने मीरा कुमार के नाम का प्रस्ताव रखा मीरा कुमार को उतारने के पीछे विपक्ष की कोशिश राष्ट्रपति चुनाव को दलित बनाम दलित की लड़ाई बनाने की है. कभी विपक्ष को सहेजकर एनडीए से दो-दो हाथ करने को तैयार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पलटी मार दी है. अब नीतीश कुमार एनडीए उम्मीदवार राम नाथ कोविंद के समर्थन में हैं. आज विपक्ष ने मीरा कुमार को उम्मीदवार बनाकर नीतीश कुमार के सामने कई बड़े सवाल खड़े कर दिये हैं.
राष्ट्रपति चुनाव के लिए आज 17 विपक्षी दलों ने कांग्रेस नेता और पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार के नाम पर मुहर लगा दी. अब एनडीए के रामनाथ कोविंद के खिलाफ मीरा कुमार राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव मैदान में होंगी. मीरा कुमार वकील और पूर्व आईएफएस अधिकारी रह चुकीं है. बिहार की सासाराम लोकसभा सीट से मीरा कुमार सांसद भी रहीं है. मीरा कुमार 5 बार सांसद रह चुकीं है. वर्तमान में मीरा कुमार राज्यसभा सदस्य है. मीरा कुमार कांग्रेस का दलित चेहरा मानी जाती हैं. मीरा कुमार बिहार में दलितों के सबसे बड़े नेता और देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम की बेटी है. मीरा कुमार दिल्ली की करोल बाग लोकसभा सीट से भी सांसद रह चुकीं है. मीरा कुमार साल 2009 से 2014 तक लोकसभा की स्पीकर रहीं हैं. मीरा कुमार लोकसभा की पहली महिला स्पीकर बनीं थी. इससे पहले यूपीए के पहले कार्यकाल 2004 से 2009 के दौरान मीरा कुमार सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री रह चुकीं हैं.
राष्ट्रपति चुनाव के लिए दोनों ही गठबंधन दलों ने दलित नेता का चेहरा बनाया है. दोनों नेता शिक्षा के लिहाज से काबिल व्यक्ति हैं. लोकसभा अध्यक्ष के रूप में मीरा कुमार की सफल पारी को देश की जनता देख चुकी है. मीरा कुमार अगली पीढ़ी की दलित हैं. असल में वे पूर्व उप प्रधानमंत्री जगजीवन राम की पुत्री हैं और उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस जैसे प्रतिष्ठित कॉलेज से पढ़ाई की है. वे 1970 में भारतीय विदेश सेवा के लिए चुनी गई थीं और कई देशों में राजनयिक के रूप में सेवा दे चुकी हैं.
राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि इस चुनाव के लिए कुमार से अच्छा प्रत्याशी नहीं हो सकता। पूर्व उप प्रधानमंत्री स्वर्गीय जगजीवन राम की पुत्री पांच बार सांसद रह चुकी हैं और केंद्र में मंत्री भी रही हैं। वह 2009 से 2014 तक लोकसभा अध्यक्ष रह चुकी हैं। सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन पहले ही बिहार के राज्यपाल रहे श्री रामनाथ कोविंद को अपना प्रत्याशी घोषित कर चुका है और जनता दल यू, बीजू जनता दल और तेलंगाना राष्ट्र समिति जैसे कुछ विपक्षी दल उनके समर्थन की घोषणा कर चुके हैं।
दूसरी तरफ, कोविंद एक कानपुर देहात जिले के एक गांव में साधारण परिवार में पैदा हुए. उन्होंने कानपुर के एक कॉलेज से पढ़ाई की और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ने के बाद राजनीति में प्रवेश किया. उनका प्रशासनिक अनुभव बिहार के राज्यपाल के रूप में है. दोनों ने वकालत की पढ़ाई की है. कोविंद का चयन भी प्रशासनिक सेवा के लिए हो चुका था, लेकिन उन्होंने नौकरी करने की जगह वकालत करना पसंद किया. मीरा कुमार 72 साल की हैं, जबकि रामनाथ कोविंद 71 साल के हैं.
विपक्ष की तरफ से कांग्रेस की मीरा कुमार राष्टपति पद के लिए उम्मीदवार बनाए जाने के बाद राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने कहा, मैं कभी सिद्धांत से समझौता नहीं करता, नीतीश कुमार कोविंद को समर्थन कर ऐतिहासिक भूल कर रहे हैं. नीतीश ने कहा था, जो विपक्ष तय करेगा वही करूंगा. राजद प्रमुख लालू ने कहा, नीतीश कुमार से मिलेंगे और राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए उम्मीदवार कोविंद को समर्थन देने के अपने फैसले को बदलने का आग्रह करेंगे. उन्होंने कहा, व्यक्ति पर नहीं, सिद्धांत पर फैसला होता है. मैं कभी सिद्धांतों के साथ समझौता नहीं करूंगा. नीतीश कुमार ने धोखा किया वो जानें. नीतीश की पार्टी जदयू ने कल कोविंद को समर्थन दे दिया.
नीतीश कुमार पर पूरा विपक्ष अब भरोसा करने से कतराएगा. कोविंद के समर्थन के साथ ही नीतीश ने राजनीति में इधर उधर आने जाने की गुंजाइश का रास्ता खुला रखा है. वैसे भी समय समय पर नीतीश के बीजेपी के करीब जाने की खबरें उड़ती रहती हैं. राष्ट्रपति चुनाव के बहाने कांग्रेस की कोशिश 2019 के लिए विपक्षी एकता को मजबूत करने की थी. लेकिन नीतीश की चाल से कांग्रेस की रणनीति चित हो गई है और नीतीश के बीजेपी उम्मीदवार के साथ जाने के साथ ही कांग्रेस का संयुक्त विपक्ष का भी सपना टूट गया.
नीतीश कुमार के सामने कई बड़े सवाल
बिहारी अस्मिता का सवाल-बिहार से दलित चेहरा
72 साल की मीरा कुमार बिहार की रहने वाली हैं. सासाराम से दो बार 2004 से 2014 तक सांसद रही हैं. विदेश सेवा की अधिकारी रह चुकी हैं. सबसे अहम बात ये कि नीतीश कुमार बिहार के उम्मीदवार को राष्ट्रपति बनवाने की कोशिश करते नही बल्कि विरोध करते दिखेंगे. बिहार की जनता के सामने खड़े होकर ये भी नही कह सकते कि भारत के पहले राष्ट्रपति डा राजेंद्र प्रसाद के बाद किसी बिहारी को राष्ट्रपति बनवाने की उन्होंने पुरजोर कोशिश की. मीरा कुमार और पूरा विपक्ष बिहारी अस्मिता का सवाल उठाकर नीतीश को कठघरे में खड़ा करेगा. नीतीश के पास इसका कोई ठोस जवाब भी नहीं होगा. मीरा कुमार कभी बड़े दलित चेहरा रहे पूर्व उप प्रधानमंत्री जगजीवन राम की बेटी हैं. मीरा कुमार ने देश के दो बड़े दलित नेता राम विलास पासवान और मायावती को हरा दिया था. शायद इसी हुनर को देखते हुए सोनिया गांधी ने एनडीए के राष्ट्रपति उम्मीदवार रामनाथ कोविंद के खिलाफ इन्हें मैदान में उतारा है. ऐसे में महादलितों की राजनीति करने वाले नीतीश कुमार के सामने मीरा कुमार का विरोध करना महंगा पड़ सकता है. बिहार विधानसभा चुनाव में महिलाओं ने नीतीश कुमार को अपना भारी समर्थन दिया. अब इस चुनाव की बिहार की बेटी बनाम अन्य चुनाव बनाया जा सकता है. ऐसे में नीतीश कुमार का जवाब देना मुश्किल हो जाएगा.
मीरा कुमार पूर्व उपप्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम की बेटी और राजनीतिक वारिस हैं। वो लोकसभा अध्यक्ष भी रह चुकी हैं और कार्यकाल के दौरान बेहद शांत तरीके से लोकसभा को चलाने के लिए उनकी तारीफ भी होती रही है। मीरा कुमार लोकसभाध्यक्ष के पद पर आसीन होने वाली पहली दलित महिला हैं। वह सासाराम संसदीय क्षेत्र से लगातार दूसरी बार और कुल 5वीं बार संसद में पहुंची हैं। अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर वर्ष 1945 में पटना में जन्मीं और दिल्ली के इंद्रप्रस्थ कालेज व मिरांडा हाउस से शिक्षा ग्रहण करने वाली मीरा कुमार कानून में स्नातक और अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर हैं।
वर्ष 1973 में वह भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) के लिए चुनी गई। इसके बाद स्पेन, ब्रिटेन और मॉरीशस में उच्चायुक्त रहीं लेकिन अफसरशाही उन्हें रास नहीं आई और उन्होंने राजनीति में कदम बढ़ाने का फैसला किया। उन्होंने अपना राजनीतिक सफर उत्तर प्रदेश से प्रारंभ किया। वर्ष 1985 में बिजनौर लोकसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव में उन्होंने उत्तर प्रदेश की वर्तमान मुख्यमंत्री मायावती और कद्दावर दलित नेता रामविलास पासवान को पराजित कर पहली बार संसद में कदम रखा। हालांकि इसके बाद हुए चुनाव में वह बिजनौर से पराजित हुई। इसके बाद उन्होंने अपना क्षेत्र बदला और 11वीं तथा 12 वीं लोकसभा के चुनाव में वह दिल्ली के करोलबाग संसदीय क्षेत्र से विजयी होकर फिर संसद पहुंचीं।
मीरा कुमार ने अपनी जन्मस्थली बिहार को ही अपनी कर्मभूमि बनाने का फैसला किया और अपने पिता की राजनीतिक विरासत संभालने सासाराम जा पहुंचीं। सासाराम संसदीय क्षेत्र में 1998 और 1999 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मुनिलाल ने उन्हें पराजित कर दिया। परंतु 2004 के लोकसभा चुनाव में पासा पलट गया, मीरा कुमार ने मुनिलाल को 2,58,262 मतों से पराजित कर दिया। उस समय इन्हें पहली बार केन्द्र में मंत्री पद भी प्राप्त हुआ और सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया।
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