मिशन 2019- सितारे जरा भी प्रतिकूल हुए तो पलट जायेगी बाजी
मिशन 2019 सीधे सीधे सितारो की चाल पर निर्भर है- जरा भी प्रतिकूल हुए- तो पलट जायेगी बाजी- किसकी- हिमालयायूके में शीघ्र- प्रख्यात विद्वानो की राय और भविष्यवाणी- CHANDRA SHEKHAR JOSHI= EDITOR
# राहुल मिशन १०० या उससे पार जाने में सफल होते हैं तो प्रधानमंत्री के लिए उनकी दावेदारी मजबूत हो सकती है। सूबे में दलित समुदाय के साथ-साथ दलित सांसदों की नाराजगी बीजेपी के लिए 2019 में कहीं महंगी न पड़ जाए. सूबे में दलितों की बड़ी आबादी 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ थे. लेकिन अब ये पकड़ कमजोर होने लगी है. बीजेपी दलित और ओबीसी मतों के सहारे ही सत्ता पर विराजमान हुए हैं.# हिमालयायूके न्यूज पोर्टल
राहुल गांधी ने एक तरह से ऐलान कर दिया है कि २०१९ में वे प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार हैं. हालांकि उनके इस बयान का बीजेपी नेता काफी मखौल बना रहे हैं। किसी ने कहा कि यह मुंगेरी लाल के हसीन सपने देखने जैसा है। प्रधानमंत्री ने इसे राहुल गांधी का अहंकार बताया है. मगर सबसे बडा सवाल है कि क्या यह संभव है और यदि यह संभव करना है तो कांग्रेस को अकेले १०० से अधिक सीटें जीतनी होंगी। अब कुछ आंकडों को देखते हैं. २०१४ के बाद १९ विधानसभा के चुनाव हुए हैं. इन १९ राज्यों में ३७१ सीटें हैं लोकसभा की. २०१४ के लोकसभा चुनाव में इन ३७१ सीटों में से बीजेपी ने १९१ सीटें जीती थीं लेकिन अभी इन १९ राज्यों में बीजेपी की सीटें घटकर १४८ रह गई हैं यानि ४३ कम. राजस्थान के उपचुनावों में बीजेपी को झटका लगा है. २०१४ में बीजेपी को जहां ५८ फीसदी वोट मिले थे, उपचुनाव में घटकर ४१ फीसदी रह गए. वहीं कांग्रेस का वोट प्र?तिशत ३७ से बढकर ५३ फीसदी हो गया है। उपचुनाव के बाद राजस्थान में यदि सीटों का अनुमान देखें तो बीजेपी की सीट लोकसभा चुनाव में २५ से घटकर ८ रह जाएंगी और कांग्रेस की सीट शून्य से बढकर १७ हो जाएगी।
उत्तर प्रदेश में दलित समुदाय के साथ-साथ बीजेपी के दलित सांसदों की नाराजगी लगातार बढ़ती जा रही है. एससी/एसटी एक्ट में बदलाव को लेकर जहां दलित समुदाय ने सड़क पर उतरकर गुस्से का इजहार किया. वहीं एक के बाद एक तीन बीजेपी के दलित सांसदों ने अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. पार्टी के तीनों सांसद सूबे की योगी सरकार के खिलाफ बगावत का झंडा इन दिनों उठाए हुए हैं. उत्तर प्रदेश की सियासत में दलित मतदाता किंगमेकर की भूमिका में है. सूबे का 21 फीसदी दलित मतदाता प्रदेश से लेकर देश की सत्ता का फैसला करने में अहम भूमिका निभाता रहा है
राहुल मिशन १०० या उससे पार जाने में सफल होते हैं तो प्रधानमंत्री के लिए उनकी दावेदारी मजबूत हो सकती है। जबकि बीजेपी की सीटे घटी तो बीजेपी को समर्थन मिलना मुश्किल होगा, ऐसे में बीजेपी को अपने प्रधानमंत्री पद का चेहरा भी बदलना पड सकता है, यूपी में बीजेपी नेतृत्व के खिलाफ दलित सांसदों की नाराजगी लगातार बढ़ती जा रही है। बीजेपी सांसद सावित्री बाई फुले से शुरू हुआ सिलसिला चौथे दलित सांसद की नाराजगी तक पहुंच चुका है। अब नगीना से बीजेपी सांसद यशवंत सिंह ने मोदी सरकार से नाराजगी जताई है।
सूबे में दलित समुदाय के साथ-साथ दलित सांसदों की नाराजगी बीजेपी के लिए 2019 में कहीं महंगी न पड़ जाए. सूबे में दलितों की बड़ी आबादी 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ थे. लेकिन अब ये पकड़ कमजोर होने लगी है. बीजेपी दलित और ओबीसी मतों के सहारे ही सत्ता पर विराजमान हुए हैं.
इसी तरह यदि इसी हिसाब से चलें तो २० राज्यों की ३९६ सीटों में जहां २०१४ में बीजेपी को २१६ सीट मिली थीं वे घटकर १५६ रह जाएंगी. यानि ६० सीटों का नुकसान. राहुल गांधी के लिए सबसे महत्वपूर्ण है उत्तरपदेश, जहां सपा-बसपा गठबंधन क्या गुल खिला सकता है. यदि यहां गोरखपुर और फूलपुर के आकडों को आधार बनाया जाए तो बीजेपी की सीट ७१ से घटकर २१ रह जाएगी और इसी को यदि लोकसभा की सभी सीटों पर आधार बनाकर निकाला जाए तो बीजेपी की सीटें २८७ से घटकर १७७ रह जाएंगी. यानि ११० सीटों का नुकसान। अब एक और विश्लेषण है कि ११ राज्यों में कांग्रेस और बीजेपी आमने सामने होती हैं। २०१४ के लोकसभा के आंकडों को देखें तो इन राज्यों की कुल २१४ सीटों में बीजेपी को १६३ मिली थीं और कांग्रेस को १८. और यदि २०१७ के गुजरात चुनाव को आधार बनाकर देखें तो इन २१४ सीटों में से बीजेपी को १५१ सीटें मिलेंगी और कांग्रेस को ३० सीटें. और यदि राजस्थान चुनाव को आधार बनाते हैं तो कुल २१४ सीटों में बीजेपी को १३४ और कांग्रेस को ४७ सीटें मिलेंगी. बाकी बची ३३० सीटों में २०१४ में कांग्रेस को २६ सीटें ही मिली थीं. पंजाब में कांग्रेस की ५ सीटें बढने के आसार हैं. यानि कांग्रेस की मौजूदा हालत हो गई ४७,२६ और ५ यानि ७८ सीटें। अब कांग्रेस को १०० सीटों का आंकडा छूना है तो देखते हैं तीन राज्य कर्नाटक, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ को. यहां कुल सीटें हैं ६८ जिसमें २०१४ में कांग्रेस को मिली थीं १२, जबकि जरूरत है ३४ सीटों की. इसलिए कांग्रेस को आने वाले लोकसभा चुनाव में इन राज्यों में बहुत मेहनत करनी पडेगी. यही वजह है कि कांग्रेस ने मध्य प्रदेश की कमान कमलनाथ को सौंप दी है, जिन्हें कहा गया है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी साथ लेकर चलें जिससे कि सिंधिया की नाराजगी पार्टी को न भुगतना पडे। अब यदि राहुल मिशन १०० या उससे पार जाने में सफल होते हैं तो प्रधानमंत्री के लिए उनकी दावेदारी मजबूत हो सकती है. एक और बात जो राहुल के पक्ष में जा रही है वह है सभी दलों में युवा नेतृत्व का उभरना। सपा में अखिलेश हैं, एनसीपी में सुपिया सुले आ रही हैं, राजद में तेजस्वी हैं, राष्ट्रीय लोकदल में जयंत चौधरी तो डीएमके में स्टालिन हैं. यानि सभी हमउम्र हैं और यही आने वाले वक्त में राहुल की राह आसान कर सकते हैं।
दलित सासंदों की नाराजगी 2019 में बीजेपी के लिए महंगी न पड़ जाए!
उत्तर प्रदेश में दलित समुदाय के साथ-साथ बीजेपी के दलित सांसदों की नाराजगी लगातार बढ़ती जा रही है. एससी/एसटी एक्ट में बदलाव को लेकर जहां दलित समुदाय ने सड़क पर उतरकर गुस्से का इजहार किया. वहीं एक के बाद एक तीन बीजेपी के दलित सांसदों ने अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. पार्टी के तीनों सांसद सूबे की योगी सरकार के खिलाफ बगावत का झंडा इन दिनों उठाए हुए हैं. उत्तर प्रदेश की सियासत में दलित मतदाता किंगमेकर की भूमिका में है. सूबे का 21 फीसदी दलित मतदाता प्रदेश से लेकर देश की सत्ता का फैसला करने में अहम भूमिका निभाता रहा है. 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी दलित मतों में सेंधमारी करके ही देश और प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुई थी. सूबे की 80 लोकसभा सीटों में से 17 सीटें दलित समाज के लिए आरक्षित हैं. बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में सभी 17 आरक्षित सीटों पर जीत दर्ज की थी. इसी तरह विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी कामयाब रही. सूबे की 403 विधानसभा सीटों में से 86 सीटें आरक्षित हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में 86 आरक्षित सीटों में से 76 सीटें बीजेपी ने जीती थीं. बहराइच लोकसभा सीट से बीजेपी सांसद सावित्री बाई फुले अपनी ही सरकार के खिलाफ बागी तेवर अख्तियार किए हुए हैं. फूले अपनी ही सरकार से नाराज होने वाली पहली सांसद हैं. सावित्री बाई फुले ने एक अप्रैल को लखनऊ में ‘भारतीय संविधान और आरक्षण बचाओ रैली’ किया. इस दौरान उन्होंने कहा, ‘कभी कहा जा रहा है कि संविधान बदलने के लिए आए हैं. कभी कहा जा रहा है कि आरक्षण को ख़त्म करेंगे. बाबा साहेब का संविधान सुरक्षित नहीं है.’ उन्होंने कहा था कि आरक्षण कोई भीख नहीं, बल्कि प्रतिनिधित्व का मामला है. अगर आरक्षण को खत्म करने का दुस्साहस किया गया तो भारत की धरती पर खून की नदियां बहेंगी. छोटेलाल खरवार दूसरे दलित सांसद हैं, जिनकी नाराजगी खुलकर सामने आई है. रॉबर्ट्सगंज लोकसभा क्षेत्र से बीजेपी के सांसद हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के रवैये के खिलाफ उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर अपना दर्द बयान किया था. खरवार की चिट्ठी में यूपी प्रशासन द्वारा उनके घर पर जबरन कब्जे और उसे जंगल की मान्यता देने की शिकायत की गई है.
मोदी को लिखे पत्र में बीजेपी सांसद ने कहा था कि जिले के आला अधिकारी उनका उत्पीड़न कर रहे हैं. मामले में बीजेपी सांसद ने दो बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की, लेकिन सीएम ने उन्हें डांटकर भगा दिया. सांसद ने पीएम से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र पांडेय और संगठन मंत्री सुनील बंसल की शिकायत की है.
इटावा के बीजेपी सांसद अशोक दोहरे तीसरे दलित सांसद हैं जो अपनी ही पार्टी की सरकार से नाराज हैं. 2 अप्रैल को भारत बंद को लेकर दलितों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए जाने के मामले में अशोक दोहरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से शिकायत की है. पीएम मोदी से की गई शिकायत में सांसद अशोक दोहरे ने कहा कि भारत बंद के बाद दलित और अनुसूचित जाति के लोगों को यूपी समेत दूसरे राज्यों में प्रदेश सरकार व स्थानीय पुलिस झूठे मुकदमें में फंसा रही है. दलितों पर अत्याचार हो रहे हैं. पुलिस निर्दोष लोगों को जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए घरों से निकालकर मार रही है. पुलिस के रवैये से अनुसूचित जाति और जनजाति के समुदाय में रोष और असुरक्षा की भावना बढ़ती जा रही है.
सूबे में दलित समुदाय के साथ-साथ दलित सांसदों की नाराजगी बीजेपी के लिए 2019 में कहीं महंगी न पड़ जाए. सूबे में दलितों की बड़ी आबादी 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ थे. लेकिन अब ये पकड़ कमजोर होने लगी है. बीजेपी दलित और ओबीसी मतों के सहारे ही सत्ता पर विराजमान हुए हैं.
उपचुनाव में दलित और ओबीसी की नाराजगी का खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा है. वहीं दूसरी ओर सपा-बसपा गठबंधन करके चुनावी मैदान में उतरने की जुगत में है. इन दोनों पार्टियों का टारगेट भी दलित-ओबीसी समुदाय के वोटबैंक है. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ट्वीट करके कहा था, ‘बीजेपी सरकार की ये कैसी ‘दलित-नीति’ है कि न तो वो दलितों की मूर्तियां तोड़ने से लोगों को रोक रही है न उनकी हत्याएं करने से और ऊपर से नाम व एक्ट बदलने की भी साज़िश हो रही है. ये सब क्यों हो रहा है और किसके इशारे पर, ये बड़ा सवाल है. क्या दलितों को सरकार से मोहभंग की सज़ा दी जा रही है?
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