जी रये जाग रये’ –उत्तराखंड का महान लोक पर्व -दूतिया त्यार के नाम से प्रचलित है लोकपर्व भैया दूज

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भाई दूज का त्योहार 6 नवम्बर शनिवार के दिन मनाया जायेगा. इस दिन भाईयों को तिलक लगाने का शुभ मुहूर्त दोपहर 1.10 बजे से लेकर 3.21 बजे तक रहेगा

जी रये जाग रये’ –उत्तराखंड का महान लोक पर्व — (चंद्रशेखर जोशी केंद्रीय महासचिब कूर्मांचल परिषद)

भाई को च्यूड़े का टीका लगाने और आशीष देने का त्यौहार;- भैया दूज
“जी रये जाग रये
स्याव जस चतुर है जाये, बाग जस बलवान है जाये,
आकाश जस उच्च है जाये, धरती जस चौड़ है जाये
दूब जस हरी जड़ हो, ब्यर जस फइए
हिमाल में ह्यूं छन तक, गंगज्यू में पाणी छन तक
यो दिन यो मास भेटने रये”

उत्तराखंड में भी इस त्यौहार की बड़ी मान्यता है. भाई बहन के प्रेम का प्रतीक यह त्यौहार यम द्वितीया भी कहलाता है.
कुमाऊं में दूतिया त्यार के नाम से प्रचलित है लोकपर्व भैया दूज : च्यूड़ों से टीका करने का अनुष्ठान पर्वतीय समाज की एक अनूठी रस्म है. हाथ में दूब और च्यूड़े पकड़ कर टीका करने वाले के पैर, घुटने और कंधे का क्रमशः स्पर्श कर उन्हें सिर पर धरा जाता है. ऐसा एक से तीन बार किया जाता है. ऐसा करते हुए लम्बी आयु की कामना तथा बार-बार भेंट करने को आने की इच्छा करते हुए आशीष दिया जाता है

भैया दूज (Bhaiya Dooj) को कुमाऊं अंचल में दूतिया त्यार के रूप मनाने की परंपरा है। यम द्वितीया की सुबह पूजा इत्यादि के बाद घर की सबसे सयानी महिला च्यूड़ों को सबसे पहले देवताओं को अर्पित करती हैं। उसके बाद परिवार के हर सदस्य के सिर में चढ़ाती हैं। च्यूड़ों में सरसों का तेल और हरी दूब मिलाई जाती है। ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि दूब गुणकारी है। तमाम संकटों और विपरीत परिस्थितियों में भी दूब अपना विस्तार नहीं छोड़ती। दूब हमें संघर्षों से जूझते हुए अपने उद्देश्य की ओर बढऩे का संदेश देती है।
वही सिर पर च्यूड़े चढ़ाने का संबंध भाई-बहन से नहीं है। विवाहित महिला परिवार में हर एक के सिर पर चढ़ाती हैं। इस दिन पहाड़ी रसोइयों में सूजी से निर्मित होने वाला सिंगल नामक पकवान अवश्य बनाया जाता है.

इस की तैयारी कुछ दिन पहले से ही शुरू हो जाती है। एकादशी, धनतेरस या दीपावली के दिन तौले (एक बर्तन) में धान भिगोकर रख दिए जाते हैं। गोवर्धन पूजा के दिन धान को पानी से अलग कर कढ़ाई में आग पर भूना जाता है। उसके बाद इसे गरम-गरम मूसल से कूटा जाता है। यह धान से चावल को अलग करने का पारंपरिक तरीका है। आग में भूने होने की वजह से चावल स्वादिष्ट होता है। इसे च्यूड़े कहा जाता है।

च्यूड़े देवताओं और सिर पर चढ़ाने के साथ खाए भी जाते हैं। च्यूड़े में अखरोट, भूनी भांग व सोयाबीन मिलाया जाता है। शर्दियों में इसका सेवन गर्माहट देता है। संस्कृति कर्मी जगमोहन रौतेला कहते हैं कि च्यूड़े बनाने से पहले धूप जलाकर ओखल की पूजा की जाती है। ओखल की पूजा का मतलब है कि उसमें कूटा हुआ अनाज पूरे परिवार को साल भर खाने को मिले।

इस त्यौहार के यम द्वितीया के नाम से मनाये जाने के पीछे एक पौराणिक कथा है. इस कथा के अनुसार यमुना ने अपने भाई यमराज को कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया के दिन भोजन पर आमंत्रित किया. माना जाता है कि यम और यमुना भगवान सूर्य और उनकी पत्नी छाया के बच्चे थे. विवाह के बाद यमुना बार-बार अपने भाई को अपने घर आने को कहती है लेकिन अपनी व्यस्तता के चलते यम को अपनी बहन का यह आग्रह बार-बार टाल देना पड़ता है.
अंततः उस दिन यमराज अपनी बहन के घर जाते हैं. इस शुभ कार्य से पहले वे सभी नरक-वासियों को मुक्त कर देते हैं. उनके इस कृत्य के बारे में जानकार बहन यमुना बहुत प्रसन्न होती हैं और कहती हैं कि आज के दिन अपने भाई का टीका करने व उसे भोजन करवाने वाली बहन को कभी भी यम का (अर्थात मृत्यु का) भय नहीं होगा. 

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