मोदी और शाह इस बीजेपी सीएम के सामने झुकेगे ?
भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से वसुंधरा राजे से दो-दो हाथ करने का मन बना लिया है? : अमित शाह को 14 भाजपा शासित राज्यों में से किसी एक में भी ऐसी स्थिति देखने को नहीं मिली, जहां मुख्यमंत्री उनके पीछे दौड़ते नजर आते हों लेकिन वसुंधरा राजे सिंधिया ने इस संबंध में झुकने से इंकार कर दिया। #पार्टी अध्यक्ष और प्रधानमंत्री ने इतना तो तय कर लिया है कि वसुंधरा राजे को मनमानी करने की इजाजत किसी भी सूरत में नहीं दी जाएगी. यह भी तय है कि अब उनकी किसी भी नाजायज शर्त के सामने पार्टी किसी भी सूरत में आत्मसमर्पण नहीं करेगी #आने वाले दिनों में वसुंधरा राजे और भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के बीच अविश्वसनीय खींचतान देखने को मिल सकती है. प्रदेश अध्यक्ष विवाद का पटाक्षेप निश्चित रूप से इस संघर्ष की दिशा तय करेगा.#जब भाजपा में मोदी-शाह की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता है तब प्रदेश अध्यक्ष पद पर हो रही कशमकश अप्रत्याशित है. दरअसल, वसुंधरा की राजनीति करने की अपनी शैली है. एकदम रजवाड़ों की मानिंद. ना-नुकुर करने और ऑर्डर देने वालों को वे पसंद नहीं करतीं# वसुंधरा सत्ता में तो हैं ही, लेकिन संगठन पर भी वे अपनी पकड़ रखती रही हैं # अब चुनाव नजदीक हैं इसलिए वसुंधरा ऐसा प्रदेशाध्यक्ष नहीं चाहतीं जो उनके वर्चस्व में बंटवारा कर ले. वे कोई ऐसे नेता को भी इस पद पर नहीं चाहती हैं कि जो उन्हें भविष्य में चुनौती दे सके.# वसुंधरा राजस्थान में अपनी पसंद का अध्यक्ष चाहती हैं जिसके पार्टी नेतृत्व फिलहाल तैयार नहीं है.
वसुंधरा राजे और पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के बीच जारी रस्साकशी का अंजाम क्या होगा. झुकना न तो राजे की सियासी तासीर है और न ही अमित शाह की. वसुुंधरा खेमे के एक मंत्री कहते हैं, ‘यदि शाह आर-पार की लड़ाई लडेंगे तो चुप राजे भी नहीं बैठेंगी.’ मोदी और शाह किसी भी कीमत पर वसुंधरा के सामने सरेंडर नहीं करेंगे. होगा तो वही जो वो चाहेंगे.
अप्रैल में राजस्थान के प्रदेश प्रमुख अशोक परनामी के पद से हटने के बाद प्रदेश इकाई का अगला प्रमुख कौन होगा इसको लेकर अटकलों के बीच शाह की अध्यक्षता में राजे, पार्टी के कुछ राष्ट्रीय महासचिव और प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं ने आगामी चुनाव के लिए रणनीति तैयार की. बताया जाता है कि प्रदेश भाजपा प्रमुख के पद को लेकर शाह और राजे के बीच मतभेद है. अमित शाह को 14 भाजपा शासित राज्यों में से किसी एक में भी ऐसी स्थिति देखने को नहीं मिली, जहां मुख्यमंत्री उनके पीछे दौड़ते नजर आते हों लेकिन वसुंधरा राजे सिंधिया ने इस संबंध में झुकने से इंकार कर दिया। विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़े राजस्थान में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के बीच जारी रस्साकशी कौतुहल का विषय बन गई है. पार्टी के भीतर चल रहा यह सियासी संघर्ष अपने विश्वासपात्र को प्रदेशाध्यक्ष बनाने तक सीमित दिखाई दे रहा था, लेकिन केंद्र सरकार का प्रदेश के मुख्य सचिव एनसी गोयल को सेवा विस्तार देने से इंकार करना इसका दायरा बड़ा होने की ओर से साफ संकेत है.
16 अप्रैल को अशोक परनामी के इस्तीफे के बाद से ही यह पद खाली है. लोकसभा की दो और विधानसभा की एक सीट के लिए हुए जनवरी में हुए उपचुनावों में पार्टी की करारी हार के बाद परनामी की छुट्टी तय मानी जा रही थी. यह भी तय माना जा रहा था कि नया प्रदेश अध्यक्ष तय करने में पार्टी को कोई परेशानी नहीं आएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
राज्य और केंद्र सरकार की उपलब्धियों के बारे में लोगों को बताने के लिए सघन अभियान चलाने तथा यात्रा निकालने का भी फैसला किया गया. उन्होंने बताया कि पार्टी के आंध्रप्रदेश के नेताओं के साथ शाह की बैठक में फैसला किया गया कि तीन केंद्रीय मंत्री- नितिन गडकरी, पीयूष गोयल और प्रकाश जावडेकर केंद्र सरकार के कार्यों के प्रचार के लिए राज्य के तीन मुख्य क्षेत्रों का दौरा करेंगे. बैठक में पार्टी के प्रदेश प्रमुख कन्ना लक्ष्मीनारायण भी मौजूद थे.
अमित शाह को 14 भाजपा शासित राज्यों में से किसी एक में भी ऐसी स्थिति देखने को नहीं मिली, जहां मुख्यमंत्री उनके पीछे दौड़ते नजर आते हों लेकिन वसुंधरा राजे सिंधिया ने इस संबंध में झुकने से इंकार कर दिया।
राजस्थान में विधानसभा चुनाव में अब ज्यादा समय नहीं रह गया है, लेकिन राज्य में सत्तारूढ़ बीजेपी सत्ता बचाए रखने के लिए अपनी चुनावी कसरत शुरू नहीं कर सकी है क्योंकि वहां पर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का मामला सुलझने का नाम ही नहीं ले रहा. और इसकी वजह है केंद्रीय और राज्यस्तरीय नेतृत्व के बीच इस मुद्दे पर खींचतान.
केंद्र सरकार का वसुंधरा की इच्छा के बावजूद तत्कालीन मुख्य सचिव एनसी गोयल को सेवा विस्तार देने से इंकार करना इस ओर संकेत है कि पार्टी नेतृत्व फिलहाल आत्मसमर्पण के मूड में नहीं है. गोयल का कार्यकाल 30 अप्रैल को समाप्त हुआ था. सूत्रों के अनुसार वसुंधरा चाहती थीं कि केंद्र सरकार गोयल को छह महीने का सेवा विस्तार दे दे. इसके लिए उन्होंने आखिर तक काफी प्रयास किए, लेकिन वे कामयाब नहीं हुईं. अंतत: सरकार को देर रात डीबी गुप्ता को नया मुख्य सचिव बनाने के आदेश निकालने की पड़े.
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और राज्य की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बीच हुई बैठक के बावजूद राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष को लेकर कोई फैसला नहीं हो पाया. राजस्थान के 10 बड़े नेताओं को लेकर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अमित शाह से मुलाकात की थी.
दूसरी ओर, बीजेपी सूत्रों का कहना है कि बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने यह साफ कर दिया है कि वो राजस्थान बीजेपी के प्रदेशअध्यक्ष पर केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह को बैठाने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के मूड में नहीं है. वसुंधरा इस फैसले को मानने में भले ही और वक्त ले लें. पार्टी की सार्वजनिक बैठक में राजस्थान में चुनाव जीतने के तरीकों पर चर्चा हुई और उसके बाद वसुंधरा राजे और अमित शाह ने बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के पद पर नाम तय करने को लेकर लंबी बैठक की.
हालांकि बताया जा रहा है कि अभी तक दोनों ही नेता किसी एक नाम पर सहमत नहीं हो पा रहे हैं. वसुंधरा राजे और उनके समर्थक राजस्थान सरकार में शामिल मंत्री आज भी दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं.
वसुंधरा गुट के लोग बीजेपी के दूसरे बड़े राष्ट्रीय नेताओं से मिलकर यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसंद गजेंद्र सिंह बीजेपी के राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए सही नहीं हैं. केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह भी राजपूत हैं और वसुंधरा राजे भी जाट और राजपूत समाज दोनों से आती हैं. ऐसे में इस पद के लिए किसी दूसरी बिरादरी का नेता होना जरूरी हैं.
बैठक में शामिल नेताओं का कहना है कि बीजेपी के राष्ट्रीय नेताओं ने साफ कर दिया है कि मोदी के पसंद केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह का विरोध करने की हिम्मत किसी में नहीं है, लिहाजा वह अपनी लड़ाई खुद लड़ें. राज्य में विधानसभा चुनाव नवंबर में हैं और ऐसे में 60 दिन से ज्यादा हो गए राजस्थान में बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष का पद खाली पड़ा हुआ है. अब तक किसी के भी प्रदेश अध्यक्ष पद पर नियुक्त नहीं होने से चुनावी रणनीति की तैयारी भी शुरू नहीं हो पाई है और अब अमित शाह के साथ हुई मुलाकात के बाद भी फैसला नहीं होने से पार्टी के कार्यकर्ताओं में बेचैनी है.
गजेंद्र सिंह किसी भी तरह से आगे जाकर उनके लिए कोई खतरा न बन जाएं ये बात वसुंधरा राजे के मन में बैठी हुई है. वसुंधरा गुट को लगता है कि हो सकता है कि पार्टी का शीर्ष कमान गजेंद्र सिंह को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश कर दे, लिहाजा वह कभी नहीं चाहेंगी कि केंद्र की तरफ से कोई थोपा हुआ व्यक्ति राजस्थान में बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बने.
केंद्रीय नेताओं के साथ मुश्किल यह है कि वह जानते हैं कि राज्य में बीजेपी की ओर से वसुंधरा राजे से ज्यादा लोकप्रिय कोई नेता नहीं है. अगर चुनाव जीतना है तो वसुंधरा ही बीजेपी की नैया पार लगा सकती हैं. दोनों ही एक-दूसरे की कमियों और खूबियों को जानते हैं ऐसे में मामला बराबरी का है और कोई भी एक-दूसरे पर भारी नहीं हो पा रहा है.