योगी ही मोदी के राजनीतिक उत्तराधिकारी ?
मोदी और योगी के बीच चर्चा शुरू
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नरेन्द्र मोदी ने आदित्यनाथ योगी के नाम पर मोहर लगा कर उन्हें उत्तर प्रदेश की सत्ता सौंप कर ज़्यादातर राजनीतिक विशेषज्ञों को अचरज में डाल दिया था। जब से मोदी लहर ने 2014 में कांग्रेस को केन्द्र की सत्ता से बाहर किया, तब से मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, दोनों ही प्रदेशों में ऐसे मुख्यमंत्री की ताजपोशी कर रहे थे जिनका प्रदेश में जनाधार सीमित होता था। ऐसे संदर्भ में योगी को प्रदेश की कमान देने का कदम साहसी के साथ-साथ पिछले फैसलों से अलग था। योगी ना केवल पांच बार लगातार गोरखपुर से सांसद रहे हैं बल्कि पूर्वांचल में उनकी पकड़ काफी मज़बूत मानी जाती है। अन्य भाजपा मुख्यमंत्रियों के विपरीत योगी का पार्टी के साथ रिश्ता नर्म-गर्म चलता रहा है। मोदी और योगी के बीच की समानतायें कुछ इस तरीके की हैं कि सत्ता के गलियारों में यह चर्चा शुरू हो गयी है कि क्या योगी ही मोदी के राजनीतिक उत्तराधिकारी हैं।
मोदी और योगी दोनों ने अपने परिवार को छोड़ कर क्रमशः आरएसएस और गोरखनाथ मंदिर की ओर कम उम्र में ही रुख कर लिया था। अगर मोदी की देशभर मे हिन्दुत्व ह्रदय सम्राट की छवि है तो योगी को उत्तर प्रदेश में यही रुतबा हासिल है। भाजपा कार्यकर्ताओं में योगी की लोकप्रियता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि अमित शाह के बाद चुनावी अभियान में उन्होंने सबसे ज्यादा सभाओं को संबोधित किया। जैसे मोदी ने जातिवाद के जंजाल से ऊपर उठ कर अपने आप को एक राष्ट्रीय लोकप्रिय नेता के रूप मे स्थापित किया है, वैसे ही योगी भी गोरखनाथ मंदिर के मठाधीश होने के नाते हिन्दुओं के नेता के रूप मे उभरे हैं। पहले के मोदी की तरह योगी भी मुस्लिम विरोधी और विवादास्पद बयान देने की प्रवृत्ति रखते हैं। अपने बचाव मे योगी का मानना है कि वह केवल मुस्लिम वहाबी रीति-रिवाज के खिलाफ हैं और गंगा-जमुनी तहज़ीब के रखवाले हैं।
योगी के राजतिलक के बाद ऐसी अटकलें लगायी जा रही हैं कि उनका इतिहास उनका पीछा नहीं छोड़ेगा। यह धारणा उत्पन्न हो रही है कि उत्तर प्रदेश में ऐसी सरकार की स्थापना हुई है जो ध्रुवीकरण की राजनीति करेगी और मुसलमानों के हितों की रक्षा पर प्रश्नचिन्ह लग जायेगा। योगी के पुराने भाषणों को भी ताबड़तोड़ तरीके से सोशल मीडिया पर डाला जा रहा है ताकि लोग उनके इतिहास को ना भूलें। इस बात से अगर कोई सबसे ज़्यादा सचेत है तो वह स्वयं योगी ही हैं। यही कारण है कि अपनी पहली प्रेस वार्ता में योगी ने बार-बार कहा कि उनकी सरकार का मूलभूत सिद्धांत सबका साथ सबका विकास रहेगा। सरकार की पहली प्राथमिकता कानून व्यवस्था को मज़बूत करने के साथ-साथ किसानों की आय को बढ़ाने की रहेगी। 2011 जनगणना के अनुसार प्रदेश की कुल श्रमिक संख्या 6.58 करोड़ है जिसमें से करीब 3.8 करोड़ जनबल कृषि आधारित क्षेत्र मे काम करता है।
देश के एक विशिष्ट वर्ग ने योगी के विवादास्पद बयानों के कारण उनको पहले ही फेल करार कर दिया है। साथ ही उन्हें इस बात पर भी आपत्ति है कि योगी ने मुख्यमंत्री आवास पर हवन करा कर उसका शुद्धीकरण क्यों किया। ऐसा करने से योगी ने जातिवाद और साम्प्रदायिक मानसिकता का परिचय दिया है क्योंकि उनसे पहले एक ओबीसी (अखिलेश यादव) और दलित (मायावती) ने इस घर में वास किया था। यह वही लोग हैं जो बड़े शान से गृह प्रवेश की परम्परा मानते हैं और हाउस वॉर्मिंग पार्टियों मे जाना पसंद करते हैं। योगी की हालत कुछ उस तरह की है जो मोदी की कुछ वर्षों पहले तक होती थी जब उनके हर फैसले को शक की निगाह से देखा जाता था। अब योगी के लिये सुनहरा मौका है कि वह प्रदेश में सुचारु शासन लागू कर अपने आलोचकों को मुंहतोड़ जवाब दें।