मुलायम ने कांग्रेस को उखाडा- अखिलेश ने दी संजीवनी

कटोरा लिए घूम रही है कांग्रेस;  भाजपा ने कहा- कांग्रेस यूपी के प्रभारी ने कहा-* शुक्रिया प्रियका  

कांग्रेस नेता और यूपी के प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कराने के लिए प्रियंका गांधी को शुक्रिया कहा है. गुलाम नबी के मुताबिक सपा-कांग्रेस गठबंधन में प्रियंका की अहम भूमिका है.   कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के बीच सीधी बातचीत होने के बाद इस गठबंधन को मूर्तरूप देने का फैसला किया गया। 

सपा-कांग्रेस गठबंधन से सपा को कम और कांग्रेस को ज्यादा फायदा होगा. मुस्लिम सपा का परमानेंट वोटर है. गठबंधन की स्थिति में ट्रेडिशनल वोटर ही वोट ट्रांसफर करते हैं. सपा के पास यादव और मुस्लिम के तौर पर ये तो हैं लेकिन कांग्रेस के पास फिलवक्त कोई ट्रेडिशनल वोटर नहीं है. ऐसे में सपा को अपनी 298 सीटों पर बहुत फायदा तो नहीं होगा हालांकि कांग्रेस को उसकी सीटों पर जरूर फायदा पहुंचेगा. सपा जिन सीटों पर लड़ेगी वहां कांग्रेस पहले भी मजबूत स्थिति में नहीं रही होगी. कुछ सीटों पर जरूर मतों का अंतर कम करने में यह गठबंधन कारगर साबित होगा.

भाजपा ने हमलावर रुख अख्तियार कर लिया है। भाजपा के राष्‍ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने कांग्रेस की ‘दयनीय’ हालत पर टिप्‍पणी करते हुए ट्वीट किया, ”कभी देश पर एकछत्र राज्य करने वाली पार्टी,आज इतनी बेग़ैरत? 1 क्षेत्रीय पार्टी के आगे सीटों हेतु कटोरा लिए घूम रही है। राहुल जी हद कर दी आपने।” 

अखिलेश यादव के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते ही समाजवादी पार्टी में मुलायम युग का अंत लगभग हो चुका है. अब उनकी पार्टी में भूमिका एक संरक्षक के रूप में ही है जिसे राजनीति में संन्यास के रूप में देखा जाता है. अखिलेश के पार्टी सुप्रीमो बनते ही एक नई परम्परा की भी शुरुआत हुई है जिसे पॉलिटिकल पंडित कांग्रेस के लिए संजीवनी की तरह देख रहे हैं. दरअसल यह वही मुलायम सिंह यादव हैं जिन्होंने करीब 27 साल पहले कांग्रेस को उत्तर प्रदेश से उखाड़ फेंका था. वे मुलायम ही थे जिन्होंने कांग्रेस की परंपरागत वोट बैंक (मुसलमान) में सेंध लगाकर समाजवादी पार्टी को खड़ा किया. इतना ही नहीं उन्होंने मुसलमानों के सामने एक विकल्प भी पेश किया और कई बार सत्ता में पहुंचे.

मुसलमानों में उनकी पैठ यहां तक हो चुकी थी कि उन्हें ‘मुल्ला मुलायम’ का तमगा भी मिला था, लेकिन अब अखिलेश ने कांग्रेस से गठबंधन कर कहीं न कहीं कांग्रेस को प्रदेश में पैर फैलाने का मौका दे दिया है. इतना ही नहीं यह पहली बार है जब सपा प्रदेश में एक राष्ट्रीय पार्टी से गठबंधन कर चुनाव लड़ रही है. जानकारों का कहना है कि इस गठबंधन का फायदा समाजवादी पार्टी को कितना होगा उसका पता तो 11 मार्च को चलेगा लेकिन कांग्रेस इससे सबसे ज्यादा लाभान्वित होगी.

अखिलेश यादव ने कांग्रेस से गठबंधन कर एक बार फिर कांग्रेस को संजीवनी देने का काम किया है. गठबंधन के तहत कांग्रेस 105 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. यह स्थिति कांग्रेस के लिए काफी पॉजिटिव है क्योंकि उसकी निगाहें 2019 के लोकसभा चुनावों पर है. इसके अलावा जिस तरह से देश के अन्य राज्यों से कांग्रेस का सफाया हो रहा है ऐसे में वह अकेले चुनाव लड़ने की स्थिति में नहीं थी. यही वजह था कि कांग्रेस सपा से गठबंधन की आस लगाए बैठी थी. बिहार में भी उसे गठबंधन का फायदा मिला था. पार्टी ने वहां 41 में से 27 सीटों पर जीत मिली थी. जबकि 2010 में कांग्रेस के पास महज चार सीटें थीं.

कांग्रेस से गठबंधन के बाद सपा ने 30 प्रत्याशियों के नामों में संशोधन किया है. कुछ उम्मीदवारों की सीट बदली गई है. लखीमपुर खीरी से मीरा बानो इलेक्शन लड़ रही हैं.  समाजवादी पार्टी की तीसरी लिस्ट सोमवार को जारी हुई. इस लिस्ट में मुलायम की छोटी बहू अपर्णा यादव को टिकट दिया गया है. वे लखनऊ में कैंट से चुनाव लड़ेंगी. सोमवार को इसका ऐलान प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में किया. अपर्णा यादव लखनऊ कैंट से लड़ेंगे. टेरवा से विजयबहादुर पाल, कन्नुज्ज से अनिल दोहरे, लखनऊ पश्चिम से रेहान, उत्तरी से अभिषेक मिश्र, मध्य से रविदास मल्होत्रा, मेहरवार से पप्पू निषाद, घनघटा से अनुभूति चौहाण. बता दें कि कांग्रेस के साथ गठबंधन के बाद यूपी विधानसभा में कांग्रेस 298 सीटों पर चुनाव लड़ रही है.  समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन के दूसरे दिन यानी 23 जनवरी को सपा के प्रमुख प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने पार्टी दफ्तर में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बची हुई सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए. इस सम्मेलन में बताया गया कि सपा और कांग्रेस 2019 में होने वाले लोक सभा चुनाव भी साथ लड़ेंगे. 

सपा और कांग्रेस के बीच चुनाव पूर्व गठबंधन हो जाने के बाद अब यूपी में लड़ाई के त्रिकोणीय होने की उम्मीद है. अभी तक असल लड़ाई में सपा, बीएसपी, बीजेपी और कांग्रेस थी. अब नए सियासी समीकरण में वोटर के सामने मुख्य रूप से तीन विकल्प होंगे सपा कांग्रेस गठबंधन, बीएसपी और बीजेपी. चुनाव पूर्व गठबंधन करना समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के लिए बहुत जरूरी हो गया था. ऐसा नहीं है कि 27 साल से सत्ता से बाहर कांग्रेस के लिए दोबारा खड़ा होने के लिए किसी सहारे की जरूरत थी बल्कि इस बार बहुमत के आंकड़े को पार करने के लिए सपा को भी ठोस आधार की जरूरत थी. 

2012 में रालोद से गठबंधन की वजह से मिली थी 28 सीटें

2012 के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस ने रालोद से गठबंधन कर चुनाव लड़ा था जिसकी वजह से उसकी झोली में 28 सीटें आईं थीं. इतना ही नहीं उसका वोट शेयर 11.63 फ़ीसदी रहा. इसके अलावा उसके 31 उम्मीदवार दूसरे नंबर पर थे जबकि तीसरे स्थान पर 87 और चौथे नंबर पर 122 उम्मीदवार थे. पांचवे स्थान पर 62 और छठे स्थान पर 22 उम्मीदवार थे.

इन आंकड़ों को अगर देखें तो कांग्रेस कहीं से भी 403 सीटों पर चुनाव लड़ने की स्थिति में नहीं थी. ऐसे में उसे समाजवादी पार्टी का सहारा चाहिए था. इतना ही नहीं कांग्रेस की हालत ऐसी थी कि अगर गठबंधन नहीं होता तो उसके पास कई सीटों के लिए उम्मीदवार तक नहीं थे.

अब अगर 2014 लोकसभा चुनावों की बात करें तो कांग्रेस को 7.5 फ़ीसदी वोट ही मिले थे और पार्टी सिर्फ दो सीट ही जीत सकी थी. ऐसे में कांग्रेस को यह लग रहा था कि अगर वह अकेले चुनाव लड़ती है तो उसके लिए दहाई का आंकड़ा भी पार करना मुश्किल होगा.

अखिलेश की बैसाखी से कांग्रेस जीतना चाहती है ज्यादा सीटें

दरअसल अखिलेश यादव के साथ गठबंधन कर कांग्रेस पार्टी तकरीबन 70-80 सीटों पर जीत दर्ज करना चाहती है. जिससे उसे 2019 के लोकसभा में चुनाव में अपनी संख्या बढ़ाने में मदद मिले. यही वजह है कि उसने अपनी पहली लिस्ट में उसने पूर्व सांसदों को टिकट दिया है. पहली लिस्ट में पूर्व सांसद जितिन प्रसाद को तिलहर से टिकट दिया है जबकि मुरादनगर से पूर्व सांसद सुरेन्द्र गोयल को भी टिकट दिया गया है. उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाली लिस्ट में भी कई दिग्गजों को टिकट मिल सकता है.

 

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