पिटकुल के एम.डी ने टाटा से करोड़ो रूपये ले लिए

पिटकुल ने टाटा प्रोजेक्ट्स को 150 करोड़ रूपये की बिजली की लाइन बिझाने के तीन ठेके दिए टाटा ने पिटकुल से 15 करोड़ रूपये ले लिए   टाटा प्रोजेक्ट्स ने किसी अन्य ठेकेदार को उप-ठेके (sub-contract) पर दे दिया 

पिटकुल ने उत्तराखंड सरकार को लगाया करोड़ो का चूना    टाटा सिर्फ बिचौलिए की भूमिका में रहा  टाटा ने 15 करोड़ रूपये पिटकुल से ले लिए और पांच साल तक रकम अपने पास रखी 

Lakhpat Negi

देहरादून – पिटकुल के एम.डी ने टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड से करोड़ो रूपये की रिश्वत ली और उत्तराखंड सरकार को करोड़ो रूपये का चूना लगा दिया है। इस पूरे मामले के खुलासे ने पिटकुल की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

क्या है पिटकुल घोटाला

साल 2011 में पिटकुल ने टाटा प्रोजेक्ट्स को 150 करोड़ रूपये की बिजली की लाइन बिझाने के तीन ठेके दिए। ठेके में शर्त रखी गई कि योजना दो वर्ष में पूरी करनी होगी। साथ ही टाटा प्रोजेक्ट्स पिटकुल से मिले इस ठेके को किसी तीसरी पार्टी को उपठेके पर नहीं देगी और निर्माण कार्य खुद करेगी।

इस ठेके के लिए टाटा प्रोजेक्ट्स ने पिटकुल को 32 करोड़ रूपये की बैंक गारंटी दी। ताकि ठेके की शर्तों का पालन न होने की स्थिति में पिटकुल बैंक गारंटी जब्त कर सके।

टाटा प्रोजेक्ट्स ने ठेके की दोनों में से किसी शर्त को नहीं माना। सबसे पहले काम पूरा करने के लिए टाटा ने पिटकुल से 15 करोड़ रूपये ले लिए। उसके साथ ही ये ठेका टाटा प्रोजेक्ट्स ने किसी अन्य ठेकेदार को उप-ठेके (sub-contract) पर दे दिया। यानि टाटा सिर्फ बिचौलिए की भूमिका में रहा। इसके अलावा जिस परियोजना का दो साल में पूरा होना था। उसमें पांच साल लगाए।
कुल नुकसान

पहली बात, टाटा ने 15 करोड़ रूपये पिटकुल से ले लिए और पांच साल तक रकम अपने पास रखी। हर साल सरकार को इस रकम पर मिलने वाले ब्याज का नुकसान हुआ।

दूसरी बात, जिस ट्रान्समिशन लाइन का काम दो साल में पूरा होना था। उस लाइन से श्रीनगर जल विद्युत परियोजना से 12 प्रतिशत बिजली उत्तराखंड सरकार को फ्री मिलनी थी। क्योंकि टाटा प्रोजेक्ट्स ने काम वक्त पर पूरा नहीं किया, इसलिए करोड़ो रूपये की बिजली उत्तराखंड सरकार को मुफ्त में नहीं मिल सकी। आपको बतातें चलें कि श्रीनगर जल विद्युत परियोजना से 12 प्रतिशत राज्य सरकार को मुफ्त मिलती है।

एम.डी की भूमिका

ठेके की शर्तें ना मानने की वजह से पिटकुल के पास ये अधिकार था कि वो टाटा प्रोजेक्ट्स के खिलाफ कार्रवाही करे और उसकी बैंक गारंटी जब्त कर ले। लेकिन पिटकुल के एम.डी ने टाटा से करोड़ो रूपये ले लिए और मामले को रफा दफा करने की कोशिश की।

साल 2014 में पिटकुल ने टाटा से जवाब मांगा और शपथ पत्र दायर करने के कहा जिसमें लिखा हो कि टाटा प्रोजेक्ट्स ने 150 करोड़ के ये ठेके किसी अन्य ठेकेदार को उप – ठेके पर नहीं दिए। टाटा प्रोजेक्ट्स ने ऐसा शपथ पत्र देने से इंकार कर दिया।

सूचना के अधिकार के तहत जब पिटकुल से पूछा गया कि पिटकुल ने टाटा प्रोजेक्ट्स को इस ठेके को अन्य ठेकेदार को उपठेके पर देने का अधिकार क्यों दिया। इस सवाल का जवाब भी पिटकुल ने नहीं दिया।

इस पूरे मामले में पिटकुल के वर्तमान प्रबंध निदेशक एस.एन वर्मा और मुख्य अभियंता अनिल यादव की भूमिका संदिग्ध रही है। दोनों ने अपनी जेबे रिश्वत से भरी और निजी कंपनी के साथ मिलकर उतराखंड सरकार को करोड़ो का चूना लगाया।

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