न्यायपालिका ही राज्य की शक्तियों से बचाने का एकमात्र कवच;

देश के अगले चीफ जस्टिस जगजीत सिंह खेहर- न्यायपालिका ही लोगों को राज्य की शक्तियों से बचाने का एकमात्र कवच;  

न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच मतभेदों का सिलसिला अभी भी जारी है। भारत के मौजूदा प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने एक बार फिर न्यायपालिका में जजों की कमी का मुद्दा उठाया और कहा कि विभिन्न हाईकोर्ट में जजों के 500 पद खाली पड़े हैं. हालांकि कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने जोरदार तरीके से इससे असहमति व्यक्त की.  देश के अगले चीफ जस्टिस जगजीत सिंह खेहर ने कहा  कि  न्यायपालिका ही लोगों को राज्य की शक्तियों से बचाने का एकमात्र कवच है. ये कवच हटा तो अधिकार अमान्य होंगे और अराजकता हो जाएगी. ये ही लक्ष्मण रेखा है.

अपने एक वक्‍तव्‍य में विधि एवं न्याय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा, ‘हम ससम्मान प्रधान न्यायाधीश से असहमति व्यक्त करते हैं। वही अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर पर पलटवार किया है। प्रधान न्यायाधीश तीरथ सिंह ठाकुर ने एक बार फिर शनिवार को उच्च न्यायालयों और न्यायाधिकरणों में न्यायाधीशों की कमी का मामला उठाया जबकि विधि एवं न्याय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने जोरदार तरीके से इससे असहमति व्यक्त की।

अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर पर पलटवार किया है। रोहतगी ने कहा कि न्यायपालिका समेत सभी को यह अवश्य समझना चाहिए कि एक लक्ष्मण रेखा है और उन्हें आत्मनिरीक्षण के लिए तैयार रहना चाहिए। सीजेआई तीरथ सिंह ठाकुर ने एक बार फिर शनिवार को उच्च न्यायालयों और न्यायाधिकरणों में न्यायाधीशों की कमी का मामला उठाया था। हालांकि, विधि एवं न्याय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने भी जोरदार तरीके से इससे असहमति व्यक्त की। चीफ जस्टिस के दावे से असहमति व्यक्त करते हुए विधि एवं न्याय मंत्री प्रसाद ने कहा कि सरकार ने इस साल 120 नियुक्तियां की हैं जो 1990 के बाद से दूसरी बार सबसे अधिक हैं। इससे पहले 2013 में सबसे अधिक 121 नियुक्तियां की गई थीं।
जस्टिस ठाकुर ने कहा था, ‘उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के पांच सौ पद रिक्त हैं। ये पद आज कार्यशील होने चाहिए थे परंतु ऐसा नहीं है। इस समय भारत में अदालत के अनेक कक्ष खाली हैं और इनके लिये न्यायाधीश उपलब्ध नहीं है। बड़ी संख्या में प्रस्ताव लंबित है और उम्मीद है सरकार इस संकट को खत्म करने के लिये इसमें हस्तक्षेप करेगी।’ न्यायमूर्ति ठाकुर केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के अखिल भारतीय सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे।
प्रसाद ने उनके दावे से असहमति व्यक्त करते हुए कहा था, ‘हम ससम्मान प्रधान न्यायाधीश से असहमति व्यक्त करते हैं। इस साल हमने 120 नियुक्तियां की हैं जो 2013 में 121 नियुक्तियों के बाद सबसे अधिक है। साल 1990 से ही सिर्फ 80 न्यायाधीशों की नियुक्तियां होती रही हैं। अधीनस्थ न्यायपालिका में पांच हजार रिक्तियां हैं जिसमें भारत सरकार की कोई भूमिका नहीं है। यह ऐसा मामला है जिसपर सिर्फ न्यायपालिका को ही ध्यान देना है। जहां तक बुनियादी सुविधाओं का संबंध है तो यह एक सतत् प्रक्रिया है। जहां तक नियुक्तियों का मामला है तो उच्चतम न्यायालय का ही निर्णय है कि प्रक्रिया के प्रतिवेदन को अधिक पारदर्शी, उद्देश्य परक, तर्कसंगत, निष्पक्ष बनाया जाये और सरकार का दृष्टिकोण पिछले तीन महीने से भी अधिक समय से लंबित है और हमें अभी भी उच्चतम न्यायालय का जवाब मिलना शेष है।’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा था कि न्यायाधिकरणों में भी ‘मानवशक्ति का अभाव’ है और वे भी बुनियादी सुविधाओं की कमी का सामना कर रहे हैं जिसकी वजह सें मामले पांच से सात साल तक लंबित हैं।

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न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच मतभेदों का सिलसिला अभी भी जारी है। प्रधान न्यायाधीश तीरथ सिंह ठाकुर ने एक बार फिर शनिवार को उच्च न्यायालयों और न्यायाधिकरणों में न्यायाधीशों की कमी का मामला उठाया जबकि विधि एवं न्याय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने जोरदार तरीके से इससे असहमति व्यक्त की। प्रधान न्यायाधीश तीरथ सिंह ठाकुर ने कहा, ‘उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के पांच सौ पद रिक्त हैं। ये पद आज कार्यशील होने चाहिए थे परंतु ऐसा नहीं है। इस समय भारत में अदालत के अनेक कक्ष खाली हैं और इनके लिये न्यायाधीश उपलब्ध नहीं है। बड़ी संख्या में प्रस्ताव लंबित है और उम्मीद है सरकार इस संकट को खत्म करने के लिये इसमें हस्तक्षेप करेगी।’ न्यायमूर्ति ठाकुर केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के अखिल भारतीय सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे।
प्रधान न्यायाधीश के इस कथन से असहमति व्यक्त करते हुए विधि एवं न्याय मंत्री ने कहा कि सरकार ने इस साल 120 नियुक्तियां की हैं जो 1990 के बाद से दूसरी बार सबसे अधिक हैं। इससे पहले 2013 में सबसे अधिक 121 नियुक्तियां की गई थीं। रवि शंकर प्रसाद ने कहा, ‘हम ससम्मान प्रधान न्यायाधीश से असहमति व्यक्त करते हैं। इस साल हमने 120 नियुक्तियां की हैं जो 2013 में 121 नियुक्तियों के बाद सबसे अधिक है। साल 1990 से ही सिर्फ 80 न्यायाधीशों की नियुक्तियां होती रही हैं। अधीनस्थ न्यायपालिका में पांच हजार रिक्तियां हैं जिसमें भारत सरकार की कोई भूमिका नहीं है। यह ऐसा मामला है जिसपर सिर्फ न्यायपालिका को ही ध्यान देना है।’
साथ ही कानून मंत्री ने कहा, ‘जहां तक बुनियादी सुविधाओं का संबंध है तो यह एक सतत् प्रक्रिया है। जहां तक नियुक्तियों का मामला है तो उच्चतम न्यायालय का ही निर्णय है कि प्रक्रिया के प्रतिवेदन को अधिक पारदर्शी, उद्देश्य परक, तर्कसंगत, निष्पक्ष बनाया जाये और सरकार का दृष्टिकोण पिछले तीन महीने से भी अधिक समय से लंबित है और हमें अभी भी उच्चतम न्यायालय का जवाब मिलना शेष है।’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि न्यायाधिकरणों में भी ‘मानवशक्ति का अभाव’ है और वे भी बुनियादी सुविधाओं की कमी का सामना कर रहे हैं जिसकी वजह सें मामले पांच से सात साल तक लंबित हैं। इसकी वजह से शीर्ष अदालत के न्यायाधीशों की इन अर्द्धशासी न्यायिक निकायों की अध्यक्षता करने में दिलचस्पी नहीं है। उन्होंने कहा कि न्यायाधिकरणों की स्थिति मुझे आभास दिलाती है कि आप ( न्यायाधिकरण) भी बेहतर नहीं है। आप भी मानवशक्ति की कमी की समस्या से जूझ रहे हैं। आप न्यायाधिकरण की स्थापना नहीं कर सकते, आप कई स्थानों पर इसकी पीठ गठित नहीं कर सकते क्योंकि आपके पास सदस्य ही नहीं है।

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