एनएचआई ग्रहण बना नितीन गडकरी की साफ छवि पर; मौत का हाईवे एनएचआई

निर्माणाधीन ओवरब्रिज ढहा ; मौत का हाईवे बना रहा एनएचआई #

शनिवार, 11 अगस्त 2018,  निवार को आने वाली अमावस्या को शनिश्चरी अमावस्या #श्रावण अमावस्या (शनि अमावस्या)   #Sh. Nitin Gadkari – MINISTER OF ROAD TRANSPORT AND HIGHWAYS – 

11 अगरूत 2018 उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में स्थित नेशनल हाईवे 28 पर एक निर्माणाधीन ओवरब्रिज ढह गया. सुबह 7 बजकर 30 मिनट पर हुए इस हादसे में चार लोगों के जख्मी होने की खबर है. जिनका इलाज अस्पताल में चल रहा है. वहीं दो लोग अभी भी मलबे में दबे हुए हैं. प्रशासन की ओर से रेस्कयू ऑपरेशन जारी है. नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी एनएचआई की ओर से करोड़ों की लागत से बन रहा ये पुल 60 फीसदी ही पूरा हो सका था और आज इसके गिरने के साथ ही एनएचआई की पुल को बनाने में बरती गई लापरवाही उजागर हो गई है.

हिमालयायूके ने दो दिन पूर्व ही स्‍टोरी प्रकाशित की थी- सूर्य ग्रहण 11 अगस्त18- ग्रहण का प्रभाव महत्वपूर्ण व्यक्तियों पर अधिक https://himalayauk.org/11-august-18-surya-grahan-impact/

यूपी के बस्ती जिले के एनएच-28 पर रफ्तार का कहर जारी है. इस हाईवे पर हादसों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. इस हाईवे पर ट्रैफिक नियम और सुरक्षा व्यवस्था को अनदेखा कर चलती गाड़ियां रोजाना हादसे की शिकार हो रही हैं. इस हाईवे पर हो रहे हादसों में हर साल बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है. इस साल के ग्राफ पर नजर डालें तो हादसों में 150 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. जगह-जगह अवैध कट और ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन इसकी बड़ी वजह नजर आ रही है.पिछले पांच सालों में हादसों में 60 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है

नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी एनएचआई  लगातार विवादो में आता जा रहा है- मौत का हाईवे बना रहा है एनएचआई ; नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी एनएचआई की ओर से करोड़ों की लागत से बन रहा ये पुल 60 फीसदी ही पूरा हो सका था और आज इसके गिरने के साथ ही एनएचआई की पुल को बनाने में बरती गई लापरवाही उजागर हो गई है. इससे पूूूर्व  वाराणसी: निर्माणाधीन फ्लाईओवर का 100 टन वजनी बीम गिरने से 18 की मौत हुई थी

समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक ये रेस्क्यू ऑपरेशन अबतक जारी है. सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्थानीय प्रशासन को जल्द से जल्द इस ऑपरेशन को सफल करने के आदेश दिए हैं ताकि यातायात लंबे समय तक प्रभावित ना हो.

उत्तरप्रदेश में सड़के और पुल के ढहने का ये पहला मामला नहीं है. पिछले महीने लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस वे पर एक एसयूवी गाड़ी के सर्विस रोड से 15-20 फीट नीचे फंसने की तस्वीर सामने आई थी. अधिकारियों के मुताबिक इस घटना में किसी के हताहत होने की खबर नहीं थी लेकिन इस तरह रोड के धंस जाने ने राज्य में सड़कों की सच्चाई सबसे सामने उधेड़ कर रख दी थी. इसके अलावा मई महीने में वाराणसी में पुल ढहने के काज्य राज्य में बड़ा हादसा हुआ था. इस हादसे में लगभग 18 से 20 लोगों की मौत और कई लोग इस हादसे में घायल हुए थे.

रोड के धंस जाने ने राज्य में सड़कों की सच्चाई सबसे सामने उधेड़ कर रख दी थी. इसके अलावा मई महीने में वाराणसी में पुल ढहने के काज्य राज्य में बड़ा हादसा हुआ था. इस हादसे में लगभग 18 से 20 लोगों की मौत और कई लोग इस हादसे में घायल हुए थे

एसपी दिलीप श्रीवास्तव ने बताया कि हमें सूचना मिली कि कोई ब्रिज गिरा है. सूचना मिलते ही मैं अपने स्टाफ के साथ यहां आया. हमने मलबे में फंसे शख्स को निकाला है. जिले के 80 किलोमीटर हाईवे पर 13 खतरनाक जोन को चिन्हित किया गया है. जहां सबसे ज्यादा हादसे होते हैं. हाईवे के डिवाइटर को काटकर भी रास्ता बना दिया गया है जो किसी भी खतरे से कम नहीं है. इसके अलावा हाईवे पर पेट्रोल पंप और ढ़ाबों के सामने सड़क पर गाड़ियां भी पार्किंग की जाती है, जो रात के अंधेरे में हादसों को न्यौता देते हैं. इसके अलावा कई जगह ऐसे ओवरब्रिज बनाए गए हैं जिनकी जरूरत भी नहीं है.
पिछले पांच सालों के आंकड़ों पर डालें एक नजर-

साल 2013 में 149 हादसे हुए, जिसमे 85 की मौत और 83 लोग घायल हुए
साल 2014 में 116 हादसे हुए, जिसमे 81 की मौत और 79 लोग घायल हुए
साल 2015 में 172 हादसे हुए, जिसमे 105 की मौत और 107 लोग घायल हुए
साल 2016 में 198 हादसे हुए, जिसमे 135 की मौत और 132 लोग घायल हुए
साल 2017 में 218 हादसे हुए, जिसमे 150 की मौत और 133 लोग घायल हुए हैं.
हैरानी की बात ये है कि हादसों में सबसे ज्यादा मरने वालों की उम्र 25 से 40 के बीच है. जब हादसा होता है तो प्रशासनिक स्तर पर पुलिस, आरटीओ और एनएचआई को निर्देश दिए जाते हैं लेकिन कुछ दिन बीत जाने के बाद फिर से पुराना सिस्टम लागू हो जाता है.

भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (भाराराप्रा) भारत का सरकारिक का उपक्रम है। इसका कार्य इसे सौंपे गए राष्ट्रीय राजमार्गों का विकास, रखरखाव और प्रबन्धन करना और इससे जुड़े हुए अथवा आनुषंगिक मामलों को देखना है। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण का गठन संसद के एक अधिनियम, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण अधिनियम, 1988 के द्वारा किया गया था। प्राधिकरण ने फरवरी, 1995 में पूर्णकालिक अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति के साथ कार्य करना शुरू किया।

नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी एनएचआई की ओर से करोड़ों की लागत से बन रहा ये पुल 60 फीसदी ही पूरा हो सका था और आज इसके गिरने के साथ ही एनएचआई की पुल को बनाने में बरती गई लापरवाही उजागर हो गई है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक ये रेस्क्यू ऑपरेशन अबतक जारी है। सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्थानीय प्रशासन को जल्द से जल्द इस ऑपरेशन को सफल करने के आदेश दिए हैं ताकि यातायात लंबे समय तक प्रभावित ना हो। उत्तरप्रदेश में सड़के और पुल के ढहने का ये पहला मामला नहीं है। पिछले महीने लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस वे पर एक एसयूवी गाड़ी के सर्विस रोड से 15-20 फीट नीचे फंसने की तस्वीर सामने आई थी। अधिकारियों के मुताबिक इस घटना में किसी के हताहत होने की खबर नहीं थी लेकिन इस तरह रोड के धंस जाने ने राज्य में सड़कों की सच्चाई सबसे सामने उधेड़ कर रख दी थी। इसके अलावा मई महीने में वाराणसी में पुल ढहने के काज्य राज्य में बड़ा हादसा हुआ था। इस हादसे में लगभग 18 से 20 लोगों की मौत और कई लोग इस हादसे में घायल हुए थे।

वही इसके अलावा 

धानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में बीते मई महीने में दर्जनों जिंदगियां लील लेने वाले निर्माणाधीन फ्लाईओवर हादसे के बाद 2 महीने से ज्यादा समय बीत जाने पर भी अभी तक प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ और उनकी अगुआई में चल रही सूबे की बीजेपी सरकार अब तक महज दुःख जताने, हादसे की जांच के लिए विभिन्न जांच समितियां गठित करने, कुछेक लोकसेवकों को निलंबित करने जैसे दिखावटी उपक्रम करने तक ही सीमित रहे हैं और अभी तक इस मामले में न तो कोई जांच पूरी हो पाई है, न हादसे के लिए उत्तरदायित्व का निर्धारण हो पाया है और न ही अभी तक हादसे के लिए जिम्मेवार लोकसेवकों, कंपनियों और ठेकेदारों के नाम ही चिन्हित किये जा सके हैं और अब तक न ही कोई दोषी जेल ही भेजा गया है।

सवा 2 किलोमीटर लम्बे पुल की 130 करोड़ की कुल लागत

रूपया 130 करोड़ की कुल लागत वाले सवा 2 किलोमीटर लम्बे इस पुल के लिए 95 करोड़ रुपये जनता के खजाने से खर्चे जा चुके हैं। लेकिन बीजेपी सरकार पुल बनाने के काम में लगे ठेकेदारों के नाम सार्वजनिक करने के नाम पर बगलें झांकती नज़र आ रही है और आरटीआई में गोल-मोल जबाब दे रही है। और तो और सरकारी तंत्र की संवेदनहीनता का आलम यह है कि शासन से लेकर सेतु निगम तक किसी को भी हादसे में मारे गए व्यक्तियों की संख्या और उनको दिए गए सरकारी मुआवजे या पुल बनाने वाले ठेकेदारों द्वारा दिए गए मुआवजे की कोई भी जानकारी नहीं है।

    

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