लीवर तथा किडनी में रासायनिक विषैले पदार्थों को बाहर निकालता हैै यह
औषधीय गुणों के आधार पर नीम के वृक्ष पर चढ़ी हुई गिलोय को सर्वोत्तम माना जाता है क्योंकि गिलोय की बेल जिस वृक्ष पर भी चढ़ती है वह उस वृक्ष के सारे गुण अपने अंदर समाहित कर लेती है तो नीम के वृक्ष से उतारी गई गिलोय की बेल में नीम के गुण भी शामिल हो जाते हैं अतः नीमगिलोय सर्वोत्तम होती है। आयुर्वेद में गिलोय को अमृत बेल भी कहा जाता है। कारण है, न तो यह खुद मरती है और न ही सेवन करने वाले को कोई रोग होने देती है- श्री दीपक कुमार जी- मशहूर वैदध्य जी कनखल हरिद्वार कहते है कि गिलोय के आयुर्वेदिक गुण-कर्म और प्रभाव-गिलोय त्रिदोष शामक होती है। आप वैदय जी से बात कर सकते हैै मो 9411111121
प्राकृतिक आवास और संरचना
गिलोय, बेल के रूप में देश के लगभग हर कोने में पाई जाती
है। खेतों की मेंड़, घने जंगल, घर के बगीचे, मैदानों
में लगे पेड़ों के सहारे कहीं भी गिलोय की बेल प्राकृतिक रूप से अपना घर बना लेती
है। इसके पत्ते देखने में पान की तरह और हरे रंग के होते हैं। समय होने पर इसमें
गुच्छे में छोटे लाल बेर से कुछ छोटे फल भी लगते हैं।
वैज्ञानिकों
ने गिलोय के पौधे में से विभिन्न प्रकार के तत्वों को प्राप्त किया है। गिलोय में
बरबेरिम, ग्लुकोसाइड गिलाइन आदि रासायनिक तत्व पाए
जाते हैं। इसके काण्ड से एक स्टार्च (गुडूची सत्व) निकलता है, जो त्रिदोषशामक है। गिलोय के 10 इंच का टुकड़ा और तुलसी के 8-10 पत्ते लेकर पेस्ट बना लें। उसको पानी में उबालकर
काढ़ा बनाएं। इसको दिन में 2 बार लेने से बुखार
उतरता है। बच्चों और बड़ों, दोनों में दृष्टि
कमजोर हो जाना सामान्य दोष है। 10
मिली
गिलोय का रस, शहद या मिश्री के
साथ सेवन करने पर दृष्टि लाभ निश्चित है। रक्त विकार के कारण
पैदा होने वाले रोगों जैसे खाज, खुजली, वातरक्त आदि में शुद्ध गुगुल के साथ लेने से लाभ
होता है। इससे अमृतादि गुग्गलू बनाया जाता है। गिलोय का काढ़ा मूत्र विकरों में भी
लाभदायक है। गिलोय के काढ़े में अरंडी का तेल मिलाकर सेवन करने से जटिल संधिवात
रोग भी दूर होता है। गिलोय के अनेक स्वास्थ्य लाभ हैं।
विशेषज्ञों ने पाया
कि गिलोय में रोग प्रतिरोधक प्रणाली के आलावा कई तरह के बेहतर गुण हैं। इसके
एंटी-स्ट्रेस और टॉनिक गुणों को भी क्लीनिकली प्रमाणित किया जा चुका है। बच्चों
में इसके बहुत अच्छे नतीजे प्राप्त हुए, कुल
मिलाकर कहा जा सकता है कि गिलोय या अमृता पर यथा नाम, तथा गुण सही बैठता है।
गिलोय के आयुर्वेदिक गुण-कर्म और प्रभाव-गिलोय त्रिदोष शामक होती है। स्निग्ध होने से वात, तिक्त-कषाय होने से कफ और पित्त का शमन करती है। गुडूची कुष्ठघ्न, वेदनास्थापन, तृष्णानिग्रह,छर्दिनिग्रह, दीपन-पाचन, पित्तसारक, अनुलोमन और कृमिघ्न है। इससे आमाशयगत अम्लता कम होती है। यह हृदय को बल देने वाली, रक्त विकार तथा पांडुरोग में गुणकारी है। खांसी, दौर्बल्यता, प्रमेह, मधुमेह में, त्वचा के रोगों में तथा कई प्रकार के ज्वर में उत्तम कार्य करती है। गिलोय को घृत के साथ सेवन करने से यह वात शामक, गुड़ के साथ सेवन करने से मलबद्धता नाशक, खांड के साथ सेवन करने से कफ शामक, सौंठ के साथ सेवन करने से आमवात शामक तथा एरण्ड तैल के साथ सेवन करने से वात शामक होती है। गुडुची का पत्र-शाक, कटु, तिक्त मधुर, उष्णवीर्य, लघु, त्रिदोष शामक, रसायन, अग्निदीपक, बलकारक, मलरोधक, चक्षुष्य तथा पथ्य होता है। यह वातरक्त, तृष्णा, दाह, प्रमेह, कुष्ठ, कामला तथा पाण्डु रोग में लाभप्रद है। गिलोय सत्व मधुर, लघु, त्रिदोष शामक, पथ्य, दीपन, नेत्र के लिए हितकरी, धातुवर्धक, मेध्य, और ववयस्थापक होता हैं।गिलोय का प्रयोग वातरक्त, पाण्डु, ज्वर, छर्दि, जीर्णज्वर, कामला, प्रमेह, अरुचि, श्वास, कास, हिक्का, अर्श, दाह, मूत्रकृच्छ, प्रदर तथा सोमरोग की चिकित्सा में किया जाता है। गिलोय के पौधे के सत्व में विषमज्वररोधी क्रिया पाई गयी है। इसके काण्ड स्वरस और चूर्ण में शोथरोधी तथा मष्तिष्क उद्दीपनरोधी क्रियाओ को प्रदर्शित करता है। गिलोय व्याधिक्षमत्व वर्धक क्रियाशीलता प्रदर्शित करता हैं। गिलोय का काण्ड सार ज्वरघ्न क्रियाशीलता प्रदर्शित करता हैं।
गिलोय या गुडूची जिसे वनस्पतिक भाषा में Tinospora cordifolia के नाम से जाना जाता है गिलोय (अंग्रेज़ी:टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया) की एक बहुवर्षिय लता होती है। इसके पत्ते पान के पत्ते की तरह होते हैं। आयुर्वेद में इसको कई नामों से जाना जाता है यथा अमृता, गुडुची, छिन्नरुहा, चक्रांगी, आदि। ‘बहुवर्षायु तथा अमृत के समान गुणकारी होने से इसका नाम अमृता है।’ आयुर्वेद साहित्य में इसे ज्वर की महान औषधि माना गया है एवं जीवन्तिका नाम दिया गया है। गिलोय की लता जंगलों, खेतों की मेड़ों, पहाड़ों की चट्टानों आदि स्थानों पर सामान्यतः कुण्डलाकार चढ़ती पाई जाती है। नीम, आम्र के वृक्ष के आस-पास भी यह मिलती है। जिस वृक्ष को यह अपना आधार बनाती है, उसके गुण भी इसमें समाहित रहते हैं। इस दृष्टि से नीम पर चढ़ी गिलोय श्रेष्ठ औषधि मानी जाती है। इसका काण्ड छोटी अंगुली से लेकर अंगूठे जितना मोटा होता है। बहुत पुरानी गिलोय में यह बाहु जैसा मोटा भी हो सकता है। इसमें से स्थान-स्थान पर जड़ें निकलकर नीचे की ओर झूलती रहती हैं। चट्टानों अथवा खेतों की मेड़ों पर जड़ें जमीन में घुसकर अन्य लताओं को जन्म देती हैं। गिलोय बहुत ही फायदेमंद मानी जाती है, इसका वैज्ञानिक नाम टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया है और यह एक बहुवर्षिय लता होती है। इसके पत्ते पान के पत्ते कि तरह होते हैं। यह बहुत ही गुणकारी औषधि मानी जाती है। गिलोय की लता जंगलों, खेतों की मेड़ों, पहाड़ों की चट्टानों आदि स्थानों पर आसानी से मिल जाती है। इसकी पत्तियां और रस दोनों ही गुणकारी होते हैं। सामान्य और खतरनाक बीमारी के उपचार में इसका प्रयोग किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं इतने गुण होने के बाद भी कुछ बीमारियों में इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए। कब गिलोय का सेवन न करें।
टिनोस्पोरा कार्डिफोलिया जिसे गुडूची और गिलोय भी कहा जाता है, आयुर्वेद में बहुमूल्य जड़ी-बुटियों में से एक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मौलिक सागर के मंथन के दौरान अमरत्व प्रदान करने वाली अमृत में गिलोय भी समाहित था। आधुनिक अध्ययन इसकी भूमिका एक ऐसी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली जड़ी-बुटी के रूप में करता है जो शरीर से तनाव, चिंता और बीमारी को खत्म करता है। लेकिन इस पौधे का रहस्यमयी गुण यह है कि इसमें खुद को नवीनीकृत करने और पुनर्जीवित करने की क्षमता है। यह अपनी छोटी सी सूखी टहनी तक को भी हरा-भरा कर लेता है। दूसरे शब्दों में यह एक ऐसा पौधा है जो कभी नहीं मरता है।
कौन-कौन से रोग में गिलोय का सेवन कर सकते है और उन रोगों में उसे कैसे लिया जाए ।
1. Swine flu में फायदेमंद
स्वाइन फ़्लू में गुडूची के पत्तों का रस बहुत ही लाभकारी होता है ।
2. बुखार(fever) को ठीक करें
अमृता या गिलोय एक रामबाण रसायन है जो रक्तशोधक, ओजवर्धक, हृदयरोग नाशक ,शोधनाशक और लीवर टोनिक भी है। गिलोय के रस में शहद मिलाकर लेने से बार-बार होने वाला बुखार बिल्कुल ठीक हो जाता है । तेज बुखार तथा खांसी में इसके रस में पीपल का चूर्ण और शहद को मिलाकर लेने से तेज बुखार तथा खांसी भी ठीक हो जाती है।
3. संधिवात गठिया (Rheumatoid Arthritis.) में उपयोगी
गिलोय के पाउडर को अदरक के पाउडर के साथ लेने से संधिवात गठिया में बहुत आराम आता है ।
4. पीलिया(Jaundice) में लाभदायक
ये पीलिया के रोग में भी बहुत लाभदायक होता है। इसके लिए गिलोय का एक चम्मच चूर्ण, काली मिर्च अथवा त्रिफला का एक चम्मच चूर्ण शहद में मिलाकर चाटना चाहिए । या गिलोय के पत्तों को कूटकर उसका रस निकाल लें। अब एक चम्मच रस को एक गिलास मट्ठे में मिलाकर सुबह-सुबह पीने से पीलिया ठीक हो जाता है।
5. हाथ – पैरों के जलन दूर करने मे सहायक
यदि आपके हाथों और पैरो में अचानक जलन होने लगती है और काफी दवा खाने के बाद और उपाय करने के बाद भी ये ठीक नहीं होता तो तो आप गिलोय का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए अमृता के रस को नीम के पत्ते एवं आंवला के साथ मिलाकर काढ़ा बना लें। प्रतिदिन 2 से 3 बार इस काढ़े का सेवन करें इससे हाथ पैरों और शरीर की जलन दूर हो जाती है और भविष्य में भी इससे रक्षा होती है ।
6. आंखों के लिए लाभदायक
आंवले के रस के साथ अमृता का रस मिलाकर लेना आंखों के रोगों के लिए लाभकारी होता है। इसके सेवन से आंखों के रोगों तो दूर होते ही है, साथ ही आंखों की रोशनी भी बढ़ती हैं। इसके लिए गिलोय के रस में त्रिफला को मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े में पीपल का चूर्ण और शहद मिलकर सुबह-शाम सेवन करें।
7. जोड़ों के दर्द(Arthritis) में उपयोगी
अमृता या गिलोय जोड़ों के दर्द में भी बहुत लाभदायक पाया गया है । इसे घी के साथ लेने से जोड़ों के दर्द(arthritis) काफ़ी आराम महसूस होता है ।
8. मोटापा (Overweight) कम करने में मददगार
गिलोय मोटापा कम करने में भी मदद करता है। मोटापा कम करने के लिए गिलोय और त्रिफला चूर्ण को सुबह और शाम शहद के साथ लें। या गिलोय, हरड़, बहेड़ा, और आंवला मिला कर काढ़ा बनाकर इसमें शिलाजीत मिलाकर पकाएं और सेवन करें। इस का नियमित सेवन से मोटापा रुक जाता है।
9. मधुमेह (Diabetes) में बहुत उपयोगी
यदि आपको या आपके किसी संबंधी को मधुमेह(Diabetes ) है तो गिलोय आपके लिए बहुत ही लाभदायक पौधा साबित होगा । ये आपके Blood pressure को कम करता है । टाइप-2 Diabetes के रोगियों के लिए भी ये बहुत उपयोगी है । Diabetic Patients अमृता के जूस को ले जिससे उनका ब्लड शुगर लेवेल कम हो जाएगा ।
10. Remove Toxins शरीर से विषले पदार्थ बाहर निकालने के लिए
गिलोय का रस regular उपयोग करने से आपके Brain के साथ – साथ और आपके पूरे शरीर से सारे विषले पदार्थ बाहर निकाल जायेंगे जिससे आप कम बीमार पड़ेंगे ।
11. याददास्त शक्ति को बढ़ता है गुडूची का सेवन आपके MEMORY POWER को बढ़ाता है ।
12. अनेमिया या खून की कमी को दूर करें । गिलोय में उपस्थित एंटीबायोटिक और एंटीवायरल तत्व शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और शरीर में खून की कमी को दूर करता है। इसके लिए प्रतिदिन सुबह-शाम गिलोय का रस घी या शहद मिलाकर सेवन करने से शरीर में खून की कमी दूर होती है।
अगर आपको पेट की समस्या है तो गिलोय का प्रयोग बिलकुल न करें, क्योंकि इसके कारण अपच की शिकायत हो सकती है। अपच की समस्या होने पर इसका किसी भी तरह से (यानी की कैप्सूल या रस) प्रयोग न करें। इसके कारण पेट में दर्द और मरोड़ की शिकायत भी हो सकती है। गिलोय के सेवन से ब्लड शुगर कम होता है। इसलिए अगर आपका ब्लड शुगर पहले से ही कम है तो इसका सेवन बिलकुल न करें। अगर आप डायबिटीज के मरीज हैं तो ब्लड शुगर कम करते वक्त सावधानी बरतें। डायबिटीज में चिकित्सक की सलाह के बिना इसका सेवन न करें।
- कितना और कितनी बार लें :
यदि डॉक्टर या वैद ने आपको गिलोय को पाउडर बना कर खाने बोला है तो आप सामान्य रूप से 1-3 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन इसका सेवन कर सकते है । और यदि इसे काढ़ा के रूप में सेवन के लिए कहा है तो आप 40-50 मिलीलीटर दिन में एक या दो बार ले सकते है । और इसमे मिलाये गए सहयोगी सामाग्री को 1-3 ग्राम तक लिया जा सकता है ।
- कितने दिनों तक इसका सेवन करें
ऊपर बताये गये सभी बीमारियों में आप इसका सेवन 2-8 सप्ताह तक या डॉक्टर के सलाह के अनुसार कर सकते है ।
- इसे बनाने के बाद कितने दिनों तक रखा जा सकता है ?
यदि आपने गिलोय का पाउडर बनाया है तो आप इसे 6 महीने तक रख सकते हैं । और यदि आपने इसका काढ़ा बनाया है तो आपको इसे 12 घंटे के अंदर ज़रूर उपयोग कर ले । बाज़ार में पतंजलि का गिलोय जूस और tablet दोनों ही मिलते है आप इनका उपयोग भी कर साकती हैं ।
- क्या यह बच्चों के लिए सुरक्षित है ?
हाँ , 5 साल से उपर के बच्चे डॉक्टर की देख-रेख में 1-2 सप्ताह के लिए कर सकते हैं ।
- गर्भावस्था में क्या करें :
अच्छा होगा कि आप माँ बनने के दौरान इसे न ले अथवा आप डॉक्टर से सलाह लें ।
- क्या गिलोय का कोई साइड इफैक्ट (side effects) है ?
मधुमेह के रोगी गुड या चीनी इत्यादि का सेवन न करें । गिलोय ख़ून के शुगर लेवेल को कम करता है इसलिए जो लोग diabetes की दवा पहले से खा रहे है उनसे अनुरोध है कि गिलोय के सेवन से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर परामर्श लें ।
यकीन मानिए जो लोग सप्तहा में एक बार भी गिलोय का सेवन करते है वो शायद ही साल में कभी बिमार पड़ते है । जिसके सेवन के बाद आपको कभी भी डॉक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी । बीमार नहीं होने से आपका समय और पैसा दोनों ही बचेगा । इसके अलावा इसके सेवन से आप हर वक़्त तरोताजा महसूस करेंगे । मगर ध्यान रहे यहाँ दिए गये परामर्श को उपयोग में लाने से पहले किसी जानकार से ज़रूर पूछे या इस आर्टिक्ल के नीचे दिये कमेंट बॉक्स में अपना सवाल पूछे या ईमेल करें ।
इम्यूनिटी का सुचारु होना बहुत जरूरी है, लेकिन अगर इम्यूनिटी बहुत अधिक सक्रिय हो जाये तो भी खतरनाक है। क्योंकि इस स्थिति में ऑटोइम्यून बीमारियों के होने का खतरा बढ़ जाता है। यानी इसके अधिक प्रयोग से ल्यूपस, मल्टीपल स्क्लेरोसिस और रूमेटाइड अर्थराइटिस जैसी बीमारियां हो सकती हैं। अगर आपको ये बीमारियां हैं तो गिलोय का सेवन बिलकुल न करें। गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को गिलोय का सेवन नहीं करना चाहिए। क्योंकि इसके कारण इस दौरान शरीर पर नकारात्मक असर पड़ता है। इसके अलावा अगर आप सर्जरी कराने जा रहे हैं या सर्जरी हुई है तो भी गिलोय का सेवन न करें, क्योंकि यह ब्लड शुगर को को प्रभावित करता है, और इसके कारण सर्जरी के घाव सूखने में समस्या हो सकती है।
. गिलोय बेल के रूप में बढ़ती है और इसकी पत्तियां पान के पत्ते की तरह होती हैं. गिलोय की पत्तियों में कैल्शियम, प्रोटीन, फॉस्फोरस पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है. इसके अलावा इसके तनों में स्टार्च की भी अच्छी मात्रा होती है. गिलोय का इस्तेमाल कई तरह की बीमारियों में किया जाता है. ये एक बेहतरीन पावर ड्रिंक भी है. ये इम्यून सिस्टम को बूस्ट करने का काम करता है, जिसकी वजह से कई तरह की बीमारियों से सुरक्षा मिलती है.
गिलोय के पत्तों का इस्तेमाल करना आपके लिए बहुत फायदेमंद रहेगा. गिलोय खून की कमी दूर करने में सहायक है. इसे घी और शहद के साथ मिलाकर लेने से खून की कमी दूर होती है.
2. पीलिया के मरीजों के लिए गिलोय लेना बहुत ही फायदेमंद है. कुछ लोग इसे चूर्ण के रूप में लेते हैं तो कुछ इसकी पत्तियों को पानी में उबालकर पीते हैं. अगर आप चाहें तो गिलोय की पत्तियों को पीसकर शहद के साथ मिलाकर भी ले सकते हैं. इससे पीलिया में फायदा होता है और मरीज जल्दी स्वस्थ हो जाता है.
3. कुछ लोगों को पैरों में बहुत जलन होती है. कुछ ऐसे भी होते हैं जिनकी हथेलियां हमेशा गर्म बनी रहती हैं. ऐसे लोगों के लिए गिलोय बहुत फायदेमंद है. गिलोय की पत्तियों को पीसकर उसका पेस्ट तैयार कर लें और उसे सुबह-शाम पैरों पर और हथेलियों पर लगाएं. अगर आप चाहें तो गिलोय की पत्तियों का काढ़ा भी पी सकते हैं. इससे भी फायदा होगा.
4. अगर आपके कान में दर्द है तो भी गिलोय की पत्तियों का रस निकाल लें. इसे हल्का गुनगुना कर लें. इसकी एक-दो बूंद कान में डालें. इससे कान का दर्द ठीक हो जाएगा.
5. पेट से जुड़ी कई बीमारियों में गिलोय का इस्तेमाल करना फायदेमंद होता है. इससे कब्ज और गैस की प्रॉब्लम नहीं होती है और पाचन क्रिया भी दुरुस्त रहती है.
6. गिलोय का इस्तेमाल बुखार दूर करने के लिए भी किया जाता है. अगर बहुत दिनों से बुखार है और तापमान कम नहीं हो रहा है तो गिलोय की पत्तियों का काढ़ा पीना फायदेमंद रहेगा. यूं तो गिलोय पूरी तरह सुरक्षित है फिर भी एक बार डॉक्टर से परामर्श जरूर ले लें.
गिलोय से होने वाले
शारीरिक फायदे की ओर देखें :
रोग-प्रतिरोधक
क्षमता बढ़ाता है – गिलोय में हमारे शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढाने का एक
बहुत ही महत्वपूर्ण गुण पाए जाते है। गिलोय में एंटीऑक्सीडंट के विभिन्न गुण पाए
जाते हैं, जिससे
शारीरिक स्वास्थ्य बना रहता है, तथा भिन्न प्रकार की खतरनाक बीमारियाँ दूर रखने में
सहायता मिलती है। गिलोय हमारे लीवर तथा किडनी में पाए जाने वाले रासायनिक विषैले
पदार्थों को बाहर निकालने का कार्य भी करता है। गिलोय हमारे शरीर में होनेवाली
बीमारीयों के कीटाणुओं से लड़कर लीवर तथा मूत्र संक्रमण जैसी समस्याओं से हमारे
शरीर को सुरक्षा प्रदान करता है।
ज्वर से लड़ने के लिए
उत्तम औषधी – गिलोय की वजह से लंबे समय तक चलने वाले बुखार को ठीक होने में
काफी लाभ होता है। गिलोय में ज्वर से लड़ने वाले गुण पाए जाते हैं। गिलोय हमारे
शरीर में होने वाली जानलेवा बीमारियों के लक्षणों को उत्पन्न होने से रोकने में
बहुत ही सहायक होता है। यह हमारे शरीर में रक्त के प्लेटलेट्स की मात्रा को बढ़ाता
है जो कि किसी भी प्रकार के ज्वर से लड़ने में उपयोगी साबित होता है। डेंगु जैसे
ज्वर में भी गिलोय का रस बहुत ही उपयोगी साबित होता है। यदि मलेरिया के इलाज के
लिए गिलोय के रस तथा शहद को बराबर मात्रा में मरीज को दिया जाए तो बडी सफलता से
मलेरिया का इलाज होने में काफी मदद मिलती है।
पाचन क्रिया करता है
दुरुस्त – गिलोय की वजह से शारीरिक पाचन
क्रिया भी संयमित रहती है। विभिन्न प्रकार की पेट संबंधी समस्याओं को दूर करने में
गिलोय बहुत ही प्रचलित है। हमारे पाचनतंत्र को सुनियमित बनाने के लिए यदि एक ग्राम
गिलोय के पावडर को थोडे से आंवला पावडर के साथ नियमित रूप से लिया जाए तो काफी
फायदा होता है।
बवासीर का भी इलाज है
गिलोय – बवासीर से पीडित मरीज को यदि
थोडा सा गिलोय का रस छांछ के साथ मिलाकर देने से मरीज की तकलीफ कम होने लगती है।
डॉयबिटीज का उपचार – अगर आपके शरीर में रक्त में पाए
जाने वाली शुगर की मात्रा अधिक है तो गिलोय के रस को नियमित रूप से पीने से यह
मात्रा भी कम होने लगती है।
उच्च रक्तचाप को करे
नियंत्रित – गिलोय
हमारे शरीर के रक्तचाप को नियमित करता है।
अस्थमा का बेजोड़
इलाज – अस्थमा एक प्रकार की अत्यंत ही
खतरनाक बीमारी है,
जिसकी वजह से मरीज को भिन्न प्रकार की तकलीफों का सामना करना
पडता है, जैसे
छाती में कसाव आना, साँस लेने में तकलीफ होना, अत्याधिक खांसी होना तथा सांसो
का तेज तेज रूप से चलना। कभी कभी ऐसी परिस्थिती को काबू में लाना बहुत मुश्किल हो
जाता है। लेकिन क्या आप जानते है, कि अस्थमा के उपर्युक्त लक्षणों को दूर करने का सबसे
आसान उपाय है, गिलोय
का प्रयोग करना। जी हाँ अक्सर अस्थमा के मरीजों की चिकित्सा के लिए गिलोय का
प्रयोग बडे पैमाने पर किया जाता है, तथा इससे अस्थमा की समस्या से छुटकारा भी मिलने लगता
है।
आंखों की रोशनी
बढ़ाने हेतु – गिलोय
हमारी आंखों के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है। यह
हमारी आंखों की दृष्टी को बढाता है, जिसकी वजह से हमे बिना चश्मा पहने भी बेहतर रूप से
दिखने लगता है। यदि गिलोय के कुछ पत्तों को पानी में उबालकर यह पानी ठंडा होने पर
आंखों की पलकों पर नियमित रूप से लगाने से काफी फायदा होता है।
सौंदर्यता के लिए भी
है कारगार – गिलोय
का उपयोग करने से हमारे चेहरे पर से काले धब्बे, कील मुहांसे तथा लकीरें कम होने
लगती हैं। चेहरे पर से झुर्रियाँ भी कम होने में काफी सहायता मिलती है। यह हमारी
त्वचा को युवा बनाए रखने में मदद करता है। गिलोय से हमारी त्वचा का स्वास्थ्य
सौंदर्य बना रहता है। तथा उस में एक प्रकार की चमक आने लगती है।
खून से जुड़ी समस्याओं
को भी करता है दूर – कई
लोगों में खून की मात्रा की कमी पाई जाती है। जिसकी वजह से उन्हें शारीरिक कमजोरी
महसूस होने लगती है। गिलोय का नियमित इस्तेमाल करने से शरीर में खून की मात्रा
बढने लगती है, तथा
गिलोय हमारे खून को भी साफ करने में बहुत ही लाभदायक है।
दांतों में पानी लगना: गिलोय और बबूल की फली समान
मात्रा में मिलाकर पीस लें और सुबह-शाम नियमित रूप से इससे मंजन करें इससे आराम
मिलेगा।
रक्तपित्त (खूनी पित्त): 10-10 ग्राम मुलेठी, गिलोय, और मुनक्का को लेकर 500 मिलीलीटर पानी में
उबालकर काढ़ा बनाएं। इस काढ़े को 1 कप रोजाना 2-3 बार पीने से रक्तपित के रोग में
लाभ मिलता है।
खुजली: हल्दी को गिलोय के पत्तों के रस
के साथ पीसकर खुजली वाले अंगों पर लगाने और 3 चम्मच गिलोय का रस और 1 चम्मच शहद को मिलाकर
सुबह-शाम पीने से खुजली पूरी तरह से खत्म हो जाती है।
मोटापा: नागरमोथा, हरड और गिलोय को बराबर
मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना लें। इसमें से 1-1 चम्मच चूर्ण शहद के साथ दिन में
3 बार
लेने से मोटापे के रोग में लाभ मिलता है। हरड़, बहेड़ा, गिलोय और आंवले के काढ़े
में शुद्ध शिलाजीत पकाकर खाने से मोटापा वृद्धि रुक जाती है। 3 ग्राम गिलोय और 3 ग्राम त्रिफला चूर्ण को
सुबह और शाम शहद के साथ चाटने से मोटापा कम होता जाता है।
हिचकी: सोंठ का चूर्ण और गिलोय का
चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाकर सूंघने से हिचकी आना बंद हो जाती है।
सभी प्रकार के
बुखार: सोंठ, धनियां, गिलोय, चिरायता तथा मिश्री को
बराबर मात्रा में मिलाकर इसे पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को रोजाना दिन में 3 बार 1-1 चम्मच की मात्रा में
लेने से हर प्रकार के बुखार में आराम मिलता है।
कान का मैल साफ करने के
लिए: गिलोय
को पानी में घिसकर और गुनगुना करके कान में 2-2 बूंद दिन में 2 बार डालने से कान का मैल
निकल जाता है और कान साफ हो जाता है।
कान में दर्द: गिलोय के पत्तों के रस को
गुनगुना करके इस रस को कान में बूंद-बूंद करके डालने से कान का दर्द दूर हो जाता
है।
संग्रहणी (पेचिश): अती, सोंठ, मोथा और गिलोय को बराबर
मात्रा में लेकर पानी के साथ मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को 20-30 ग्राम की मात्रा में
सुबह-शाम पीने से मन्दाग्नि (भूख का कम लगना), लगातार कब्ज की समस्या रहना तथा
दस्त के साथ आंव आना आदि प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं।
कब्ज : गिलोय का चूर्ण 2 चम्मच की मात्रा गुड़ के
साथ सेवन करें इससे कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है।
एसीडिटी: गिलोय के रस का सेवन करने से
ऐसीडिटी से उत्पन्न अनेक रोग जैसे- पेचिश, पीलिया, मूत्रविकारों (पेशाब से
सम्बंधित रोग) तथा नेत्र विकारों (आंखों के रोग) से छुटकारा मिल जाता है। गिलोय, नीम के पत्ते और कड़वे
परवल के पत्तों को पीसकर शहद के साथ पीने से अम्लपित्त समाप्त हो जाती है।
खून की कमी (एनीमिया): गिलोय का रस शरीर
में पहुंचकर खून को बढ़ाता है और जिसके फलस्वरूप शरीर में खून की कमी (एनीमिया) दूर
हो जाती है।
हृदय की दुर्बलता : गिलोय के रस का सेवन
करने से हृदय की निर्बलता (दिल की कमजोरी) दूर होती है। इस तरह हृदय (दिल) को
शक्ति मिलने से विभिन्न प्रकार के हृदय संबन्धी रोग ठीक हो जाते हैं।
हृदय के दर्द: गिलोय और काली मिर्च
का चूर्ण 10-10
ग्राम की मात्रा में मिलाकर इसमें से 3 ग्राम की मात्रा में
हल्के गर्म पानी से सेवन करने से हृदय के दर्द में लाभ मिलता है।
बवासीर, कुष्ठ
और पीलिया: 7 से
14 मिलीलीटर
गिलोय के तने का ताजा रस शहद के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से बवासीर, कोढ़ और पीलिया का रोग
ठीक हो जाता है।
बवासीर: मट्ठा (छाछ, तक्र) के साथ गिलोय का
चूर्ण 1 चम्मच
की मात्रा में दिन में सुबह और शाम लेने से बवासीर में लाभ मिलता है। 20 ग्राम हरड़, गिलोय, धनिया को लेकर मिला लें
तथा इसे 5 किलोग्राम
पानी में पकाएं जब इसका चौथाई भाग बाकी रह तब इसमें गुड़ डालकर मिला दें और फिर इसे
सुबह-शाम सेवन करें इससे सभी प्रकार की बवासीर ठीक हो जाती है।
मूत्रकृच्छ (पेशाब
करने में कष्ट या जलन): गिलोय
का रस वृक्कों (गुर्दे) क्रिया को तेज करके पेशाब की मात्रा को बढ़ाकर इसकी रुकावट
को दूर करता है। वात विकृति से उत्पन्न मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) रोग में भी
गिलोय का रस लाभकारी है।
रक्तप्रदर: गिलोय के रस का सेवन
करने से रक्तप्रदर में बहुत लाभ मिलता है।
चेहरे के दाग-धब्बे: गिलोय की बेल पर लगे फलों को
पीसकर चेहरे पर मलने से चेहरे के मुंहासे, फोड़े-फुंसियां और झाइयां दूर हो
जाती है।
सफेद दाग : सफेद दाग के रोग में 10 से 20 मिलीलीटर गिलोय के रस को
रोजाना 2-3 बार
कुछ महीनों तक सफेद दाग के स्थान पर लगाने से लाभ मिलता है।
पेट के रोग : 18 ग्राम ताजी गिलोय, 2 ग्राम अजमोद और छोटी
पीपल, 2 नीम
की सींकों को पीसकर 250 मिलीलीटर पानी के साथ मिट्टी के बर्तन में फूलने के
लिए रात के समय रख दें तथा सुबह उसे छानकर रोगी को रोजाना 15 से 30 दिन तक पिलाने से पेट के
सभी रोगों में आराम मिलता है।
जोड़ों के दर्द (गठिया) : गिलोय के 2-4 ग्राम का चूर्ण, दूध के साथ दिन में 2 से 3 बार सेवन करने से गठिया
रोग ठीक हो जाता है।
वातज्वर: गम्भारी, बिल्व, अरणी, श्योनाक (सोनापाठा), तथा पाढ़ल इनके जड़ की छाल
तथा गिलोय, आंवला, धनियां ये सभी बराबर मात्रा
में लेकर काढ़ा बना लें। इसमें से 20-30 ग्राम काढ़े को दिन में 2 बार सेवन करने से
वातज्वर ठीक हो जाता है।
शीतपित्त (खूनी
पित्त): 10 से
20 ग्राम
गिलोय के रस में बावची को पीसकर लेप बना लें। इस लेप को खूनी पित्त के दानों पर
लगाने तथा मालिश करने से शीतपित्त का रोग ठीक हो जाता है।
जीर्णज्वर (पुराने
बुखार): जीर्ण ज्वर या 6 दिन से भी अधिक समय से
चला आ रहा बुखार व न ठीक होने वाले बुखार की अवस्था में उपचार करने के लिए 40 ग्राम गिलोय को अच्छी
तरह से पीसकर, मिटटी
के बर्तन में 250
मिलीलीटर पानी में मिलाकर रात भर ढककर रख दें और सुबह के समय
इसे मसलकर छानकर पी लें। इस रस को रोजाना दिन में 3 बार लगभग 20 ग्राम की मात्रा में
पीने से लाभ मिलता है। 20 मिलीलीटर गिलोय के रस में 1 ग्राम पिप्पली तथा 1 चम्मच शहद मिलाकर
सुबह-शाम सेवन करने से जीर्णज्वर, कफ, प्लीहारोग (तिल्ली), खांसी और अरुचि (भोजन का अच्छा
न लगना) आदि रोग ठीक हो जाते हैं।
वमन: गिलोय का रस और मिश्री को
मिलाकर 2-2 चम्मच
रोजाना 3 बार
पीने से वमन (उल्टी) आना बंद हो जाती है। गिलोय का काढ़ा बनाकर ठण्डा करके पीने से
उल्टी होना बंद हो जाती है।
पेचिश (संग्रहणी): 20 ग्राम पुनर्नवा, कटुकी, गिलोय, नीम की छाल, पटोलपत्र, सोंठ, दारुहल्दी, हरड़ आदि को 320 मिलीलीटर पानी में
मिलाकर इसे उबाले जब यह 80 ग्राम बच जाए तो इस काढ़े को 20 ग्राम की मात्रा में
सुबह-शाम पीने से पेचिश ठीक हो जाती है। 1 लीटर गिलोय रस का, तना 250 ग्राम इसके चूर्ण को 4 लीटर दूध और 1 किलोग्राम भैंस के घी
में मिलाकर इसे हल्की आग पर पकाएं जब यह 1 किलोग्राम के बराबर बच जाए तब
इसे छान लें। इसमें से 10 ग्राम की मात्रा को 4 गुने गाय के दूध में मिलाकर
सुबह-शाम पीने से पेचिश रोग ठीक हो जाता है तथा इससे पीलिया एवं हलीमक रोग ठीक हो
सकता है।
नेत्रविकार (आंखों की
बीमारी): लगभग
11 ग्राम
गिलोय के रस में 1-1
ग्राम शहद और सेंधानमक मिलाकर, इसे खूब अच्छी तरह से गर्म करें
और फिर इसे ठण्डा करके आंखो में लगाने से आंखों के कई प्रकार के रोग ठीक हो जाते
हैं। इसके प्रयोग से पिल्ल, बवासीर, खुजली, लिंगनाश एवं शुक्ल तथा
कृष्ण पटल आदि रोग भी ठीक हो जाते हैं। गिलोय के रस में त्रिफला को मिलाकर काढ़ा
बना लें। इसे पीपल के चूर्ण और शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से आंखों की रोशनी
बढ़ जाती है तथा और भी आंखों से सम्बंधित कई प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं।
क्षय (टी.बी.): गिलोय, कालीमिर्च, वंशलोचन, इलायची आदि को बराबर
मात्रा में लेकर मिला लें। इसमें से 1-1 चम्मच की मात्रा में 1 कप दूध के साथ कुछ
हफ्तों तक रोजाना सेवन करने से क्षय रोग दूर हो जाता है। कालीमिर्च, गिलोय का बारीक चूर्ण, छोटी इलायची के दाने, असली वंशलोचन और भिलावा
समान भाग कूट-पीसकर कपड़े से छान लें। इसमें से 130 मिलीग्राम की मात्रा मक्खन या
मलाई में मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से टी.बी. रोग ठीक हो जाता है।
वातरक्त: गिलोय के 5-10 मिलीमीटर रस अथवा 3-6 ग्राम चूर्ण या 10-20 ग्राम कल्क अथवा 40-60 ग्राम काढ़े को प्रतिदिन
निरन्तर कुछ समय तक सेवन करने से रोगी वातरक्त से मुक्त हो जाता है।
खूनी कैंसर: रक्त कैंसर से पीड़ित रोगी को
गिलोय के रस में जवाखार मिलाकर सेवन कराने से उसका रक्तकैंसर ठीक हो जाता है।
गिलोय लगभग 2 फुट
लम्बी तथा एक अंगुली जितनी मोटी, 10 ग्राम गेहूं की हरी पत्तियां लेकर थोड़ा सा पानी
मिलाकर पीस लें फिर इसे कपड़े में रखकर निचोड़कर रस निकला लें। इस रस की एक कप की
मात्रा खाली पेट सेवन करें इससे लाभ मिलेगा।
आन्त्रिक (आंतों) के
बुखार: 5 ग्राम
गिलोय का रस को थोड़े से शहद के साथ मिलाकर चाटने से आन्त्रिक बुखार ठीक हो जाता
है। गिलोय का काढ़ा भी शहद के साथ मिलाकर पीना लाभकारी है।
अजीर्ण (असाध्य) ज्वर: गिलोय, छोटी पीपल, सोंठ, नागरमोथा तथा चिरायता इन
सबा को पीसकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को पीने से अजीर्णजनित बुखार कम होता है।
पौरुष शक्ति : गिलोय, बड़ा गोखरू और आंवला सभी
बराबर मात्रा में लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें से 5 ग्राम चूर्ण प्रतिदिन
मिश्री और घी के साथ खाने से पौरूष शक्ति में वृद्धि होती है।
वात-कफ ज्वर: वात के बुखार होने के 7 वें दिन की अवस्था में
गिलोय, पीपरामूल, सोंठ और इन्द्रजौ को
मिलाकर काढ़ा बनाकर पीने से लाभ मिलता है।
दमा (श्वास का रोग): गिलोय की जड़ की छाल को पीसकर
मट्ठे के साथ लेने से श्वास-रोग ठीक हो जाता है। 6 ग्राम गिलोय का रस, 2 ग्राम इलायची और 1 ग्राम की मात्रा में
वंशलोचन शहद में मिलाकर खाने से क्षय और श्वास-रोग ठीक हो जाता है।
मलेरिया बुखार: गिलोय 5 अंगुल लम्बा टुकड़ा और 15 कालीमिर्च को मिलाकर
कुटकर 250 मिलीलीटर
पानी में डालकर उबाल लें। जब यह 58 ग्राम बच जाए तो इसका सेवन करें इससे मलेरिया बुखार
की अवस्था में लाभ मिलेगा।
बुखार: गिलोय 6 ग्राम, धनिया 6 ग्राम, नीम की छाल 6 ग्राम, पद्याख 6 ग्राम और लाल चंदन 6 ग्राम इन सब को मिलाकर
काढ़ा बना लें। इस बने हुए काढ़े को सुबह और शाम पीते रहने से हर प्रकार का बुखार
ठीक हो जाता है।
कफ व खांसी: गिलोय को शहद के साथ चाटने से
कफ विकार दूर हो जाता है।
जीभ और मुंख का सूखापन:- गिलोय (गुरुच) का रस 10 मिलीलीटर से 20 मिलीलीटर की मात्रा शहद
के साथ मिलाकर खायें फिर जीरा तथा मिश्री का शर्बत पीयें। इससे गले में जलन के
कारण होने वाले मुंह का सूखापन दूर होता है।
जीभ की प्रदाह और
सूजन: गिलोय, पीपल, तथा रसौत का काढ़ा बनाकर
इससे गरारे करने से जीभ की जलन तथा सूजन दूर हो जाती है।
मुंह के अन्दर के
छालें (मुखपाक): धमासा, हरड़, जावित्री, दाख, गिलोय, बहेड़ा एवं आंवला इन सब
को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। ठण्डा होने पर इसमें शहद मिलाकर पीने से
मुखपाक दूर होते हैं।
शारीरिक कमजोरी: 100 ग्राम गिलोय का लई (कल्क), 100 ग्राम अनन्तमूल का चूर्ण, दोनों को एक साथ 1 लीटर उबलते पानी में
मिलाकर किसी बंद पत्ते में रख दें। 2 घंटे के बाद मसल-छान कर रख लें।
इसे 50-100 ग्राम
रोजाना 2-3 बार
सेवन करने से बुखार से आयी शारीरिक कमजोरी मिट जाती है।
एड्स (एच.आई.वी.): गुरुच (गिलोय) का रस 7 से 10 मिलीलीटर, शहद या कड़वे नीम का रस
अथवा दाल चूर्ण या हरिद्रा, खदिर एवं आंवला एक साथ प्रतिदिन 3 बार खाने से एड्स में
लाभ होता है। यह उभरते घाव, प्रमेह जनित मूत्रसंस्थान के रोग नाशक एवं जीर्ण
पूति केन्द्र जनित विकार नाशक में लाभदायक होता है।
भगन्दर: गिलोय, सोंठ, पुनर्ववा, बरगद के पत्ते तथा पानी
के भीतर की ईट- इन सब को बराबर मात्रा में लें, और पीसकर भगन्दर पर लेप करने से
यदि भगन्दर की फुंसी पकी न हो तो वे फुंसी बैठ जाती है। गिलोय, सांठी की जड़, सोंठ, मुलहठी तथा बेरी के कोमल
पत्ते इनको महीन पीसकर इसे हल्का गर्म करके भगन्दर पर लेप करें इससे लाभ मिलेगा।
यकृत या जिगर का रोग: गिलोय, अतीस, नागरमोथा, छोटी पीपल, सोंठ, चिरायता, कालमेघ, यवाक्षार, हराकसीस शुद्ध और चम्पा
की छाल बराबर मात्रा में लेकर इसे कूटकर बरीक पीस लें और कपड़े से छानकर इसका चूर्ण
बना लें। इस चूर्ण को 3-6 ग्राम की मात्रा में लेने से जिगर से सम्बंधित अनेक
रोग जैसे- प्लीहा,
पीलिया रोग, अग्निमान्द्य (अपच), भूख का न लगना, पुराना बुखार, और पानी के परिवर्तन के
कारण से होने वाले रोग ठीक हो जाते हैं।
प्यास अधिक लगना: गिलोय का रस 6 से 10 मिलीलीटर की मात्रा में
दिन में कई बार लेने से प्यास शांत हो जाती है।
पित्त बढ़ना : गिलोय का रस 7 से 10 मिलीलीटर रोज 3 बार शहद में मिलाकर
खायें इससे लाभ मिलेगा।
मधुमेह: 40 ग्राम हरी गिलोय का रस, 6 ग्राम पाषाण भेद, और 6 ग्राम शहद को मिलाकर 1 महीने तक पीने से मधुमेह
रोग ठीक हो जाता है। या 20-50 मिलीलीटर गिलोय का रस सुबह-शाम
बराबर मात्रा में पानी के साथ मधुमेह रोगी को सेवन करायें या रोग को जब-जब प्यास
लगे तो इसका सेवन कराएं इससे लाभ मिलेगा। या 15 ग्राम गिलोय का बारीक चूर्ण और 5 ग्राम घी को मिलाकर दिन
में 3 बार
रोगी को सेवन कराऐं इससे मधुमेह (शूगर) रोग दूर हो जाता है।
जोड़ों के दर्द (गठिया): गिलोय और सोंठ को एक
ही मात्रा में लेकर उसका काढ़ा बनाकर पीने से पुराने से पुराना गठिया रोग
में फायदा मिलता है। या गिलोय, हरड़ की छाल, भिलावां, देवदारू, सोंठ और साठी की जड़ इन
सब को 10-10 ग्राम
की मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें तथा छोटी बोतल में भर लें। इसका आधा चम्मच
चूर्ण आधा कप पानी में पकाकर ठण्डा होने पर पी जायें। इससे रोगी के घुटनों का दर्द
ठीक हो जाता है। या घुटने के दर्द दूर करने के गिलोय का रस तथा त्रिफुला का रस आधा
कप पानी में मिलाकर सुबह-शाम भोजन के बाद पीने से लाभ मिलता है।
पेट में दर्द : गिलोय का रास 7 मिलीलीटर से लेकर 10 मिलीलीटर की मात्रा में
शहद के साथ मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से पेट का दर्द ठीक हो जाता है।
पीलिया रोग: गिलोय अथवा काली मिर्च अथवा
त्रिफला का 5 ग्राम
चूर्ण शहद में मिलाकर प्रतिदिन सुबह और शाम चाटने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
या गिलोय का 5 ग्राम
चूर्ण शहद में मिलाकर चाटने से पीलिया रोग में लाभ होता है। या गिलोय की लता गले
में लपेटने से कामला रोग या पीलिया में लाभ होता है। या गिलोय का रस 1 चम्मच की मात्रा में दिन
में सुबह और शाम सेवन करें।
सूखा रोग (रिकेटस): हरी गिलोय के रस में बालक का
कुर्त्ता रंगकर सुखा लें और यह कुर्त्ता सूखा रोग से पीड़ित बच्चे को पहनाकर रखें।
इससे बच्चा कुछ ही दिनों में सही हो जायेगा।
मानसिक उन्माद (पागलपन): गिलोय के काढ़े को ब्राह्मी के
साथ पीने से उन्माद या पागलपन दूर हो जाता है।
शरीर की जलन: शरीर की जलन या हाथ पैरों की
जलन में 7 से
10 मिलीलीटर
गिलोय के रस को गुग्गुल या कड़वी नीम या हरिद्र, खादिर एवं आंवला के साथ मिलाकर
काढ़ा बना लें। प्रतिदिन 2 से 3 बार इस काढ़े का सेवन करने से शरीर में होने वाली जलन
दूर हो जाती है।
कुष्ठ (कोढ़): 100 मिलीलीटर बिल्कुल साफ गिलोय का
रस और 10 ग्राम
अनन्तमूल का चूर्ण 1 लीटर उबलते हुए पानी में मिलाकर किसी बंद बर्तन में 2 घंटे के लिये रखकर छोड़
दें। 2 घंटे
के बाद इसे बर्तन में से निकालकर मसलकर छान लें। इसमें से 50 से 100 ग्राम की मात्रा
प्रतिदिन दिन में 3 बार सेवन करने से खून साफ होकर कुष्ठ (कोढ़) रोग ठीक हो जाता है।
खून की कमी: 360 मिलीलीटर गिलोय के रस में घी
मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से शरीर में खून की वृद्धि होती है। या गिलोय
(गुर्च) 24 से
36 मिलीग्राम
सुबह-शाम शहद एवं गुड़ के साथ सेवन करने से शरीर में खून की कमी दूर हो जाती है।
सिर का दर्द: मलेरिया के कारण होने वाले सिर
के दर्द को ठीक करने के लिए गिलोय का काढ़ा सेवन करें।
ज्यादा पसीना या
दुर्गन्ध आना : 20 से
40 मिलीलीटर
गिलोय का शर्बत 4
गुने पानी में मिलाकर सुबह-शाम के समय में पीने से बदबू वाला
पसीना निकलना बंद हो जाता है।
शरीर को ताकतवर और
शक्तिशाली बनाना : लगभग
4 साल
पुरानी गिलोय जो कि नीम या आम के पेड़ पर अच्छी तरह से पक गई हो। अब इस गिलोय के 4-4 टुकड़े उंगली के जितने कर
लें। अब इसको जल में साफ करके कूट लें और फिर इसे स्टील के बर्तन में लगभग 6 घंटे तक भिगोकर रख दें।
इसके बाद इसे हाथ से खूब मसलकर मिक्सी में डालकर पीसें और इसे छानकर इसका रस अलग
कर लें और इसको धीरे से दूसरे बर्तन में निथार दें और ऐसा करने से बर्तन में नीचे
बारीक चूर्ण जम जाएगा फिर इसमें दूसरा जल डालकर छोड़ दें। इसके बाद इस जल को भी ऊपर
से निथार लें। ऐसा 2 या 3 बार करने से एक चमकदार सफेद रंग का बारीक पिसा हुआ चूर्ण
मिलेगा। इसको सुखाकर कांच बर्तन में भरकर रख लें। इसके बाद लगभग 10 ग्राम की मात्रा में गाय
के ताजे दूध के साथ इसमें चीनी डालकर लगभग 1 या 2 ग्राम की मात्रा में
गिलोय का रस डाल दें। हल्का बुखार होने पर घी और चीनी के साथ या शहद और पीपल के
साथ या गुड़ और काले जीरे के साथ सेवन करने से शरीर में होने वाली विभिन्न प्रकार
की बीमारियां ठीक हो जाती हैं तथा शरीर में ताकत की वृद्धि होती है।