देदून में अवैध बूचड़खानों के खिलाफ अभियान
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उत्तर प्रदेश के बाद अब उत्तराखंड में राजध्ाानी पुलिस ने भी अवैध बूचड़खानों के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया है। शनिवार (8 अप्रैल) सुबह 4 बजे देहरादून शहर में पुलिस ने यहां के अवैध बूचड़खानों में छापा मारा। और कई गोवंश को काटे जाने से बचाया। पुलिस को शहर के कई मुस्लिम बहुत इलाके में जानवरों को काटे जानें की शिकायतें मिल रही थी, पुलिस ने शिकायतों पर कार्रवाई करते हुए शनिवार को कई अवैध कसाईघरों में छापा मारा। पुलिस जब यहां सुबह सुबह पहुंची तो यहां का नज़ारा बेहद हैरान करने वाला था। यहां अवैध बूचड़खाना चलाने वाले लोग अवैध रूप से जानवर काट रहे थे, इन जानवरों का खून खुले रुप से नाली में डाला जा रहा था। यही नहीं यहां जानवरों को काटने के बाद पैदा होने वाले अवशिष्ट पदार्थों के भी उचित निपटान की व्यवस्था नहीं थी।
पुलिस की इस छापेमारी टीम में नगर निगम, जिला प्रशासन, और फूड सेफ्टी डिपार्टमेंट के अधिकारी शामिल थे। पुलिस ने सबसे पहले मुस्लिम बहुल इलाके में स्थित इनामुल्लाह बिल्डिंग में छापा मारा, हिन्दुस्तान टाइम्स के सूत्रों के मुताबिक यहां कई गोवंश को बहुंत ही अस्वास्थ्यकर हालात में काटा जा रहा था। इन जानवरों को काटने से निकलने वाला खून सार्वजनिक नलियों में बह रहा था जो कि पर्यावरण के नियमों का सरासर उल्लंघन है। फूड सेफ्टी डिपार्टमेंट के अधिकारी अनोज कुमार थपलियाल ने बताया कि अंदर हालत बेहद खराब हैं।
पुलिस ने इसके बाद कर्गी चौक और चुखुवाला में अवैध कत्लखानों में छापा मारा। यहां भी हालत ऐसे ही थे।
पुलिस ने इस मामले में 7 लोगों को नोटिस भेजा है। इन लोगों को तीन दिनों के अंदर फूड सेफ्टी को जवाब सौंपने को कहा गया है। पुलिस ने इनके खिलाफ अवैध तरीके से गोवंश को काटने और पर्यावरण नियमों का उल्लंघन करने का मामला दर्ज किया है। सूत्रों के मुताबिक देहरादून जिले में लगभग 50 कसाईखाने अवैध रुप से चल रहे हैं। देहरादून के एसपी अजय सिंह ने कहा कि, अवैध बूचडखानों के खिलाफ पुलिस ने अभी अभियान शुरू ही किया है। आने वाले दिनों में भी ऐसे छापेमारी जारी रहेंगे।
########## एक साथ तीन बार तलाक बोलना सामाजिक मुददा
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) की राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. असमा जोहरा ने कहा कि, एक साथ तीन बार तलाक बोलना सामाजिक मुददा है, धार्मिक नहीं. पिछले ढाई साल से बेवजह तलाक के मुद्दे पर उंगली उठाई जा रही है.
डॉ. जोहरा ने शनिवार को बोर्ड की पांचवीं सालाना बैठक के बाद कहा कि, तलाक को शरीयत के मुताबिक देखा जाना चाहिए. पिछले ढाई साल से इस मुद्दे को बिना वजह तूल दिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि, तीन तलाक का मतलब है कि उस पुरूष से दोबारा शादी नहीं हो सकती. तीन तलाक को सही तरीके से समझने की जरूरत है.
उन्होंने ये भी कहा कि, इस्लाम में महिला सुरक्षित है. उन्हें पूरी सुरक्षा दी गई है. सरकार जानबूझकर इस मुद्दे को हवा दे रही है. सच्चर कमेटी में तीन तलाक का जिक्र तक नहीं है.
सबसे अधिक ईसाई समाज में इस्तेमाल हुआ
जोहरा ने इस मौके पर सूचना के अधिकार कानून के तहत 26 परिवार अदालतों से मांगी गई सूचना के आधार पर बताया कि तलाक का इस्तेमाल सबसे अधिक ईसाई समाज में हुआ है. मुस्लिम समाज में इसकी संख्या कम है. जो मामले हैं उनमें भी महिलाओं द्वारा आगे होकर पुरुषों से ‘खुला’ लेने का मामला है.
उन्होंने देश के 8 जिलों कन्नूर, नासिक, करीमनगर, गुंटुर, सिकंदराबाद, मल्लापुरम, अर्नाकुलम और एक अन्य जिले के आंकड़े का हवाला देते हुए कहा कि, यहां तलाक लेने वाले सबसे अधिक 16,505 हिंदू, 1307 मुस्लिम, 4827 ईसाई और 8 सिख समुदाय से हैं. यह आंकड़े साल 2011 से 2015 के हैं.
लैंगिग समानता की सबसे बड़ी मिसाल
जोहरा ने मुस्लिम समाज की प्रबुद्व महिलाओं की एक वर्कशॉप को संबोधित करते हुए कहा कि, दुनिया में इस्लाम ही ऐसा मजहब है जो महिलाओं की संपत्ति में अधिकार की बात करता है. यह लैंगिग समानता की सबसे बड़ी मिसाल है. अगर इसे सही ढंग से लागू किया जाए तो महिलाओं की बेहतरी की दिशा में बड़ा कदम साबित होगा. उन्होंने कहा कि, लैंगिग समानता और लैंगिग न्याय हासिल करने के लिए कुरानिक ज्यूरिपूडेंस (इस्लामिक न्याय शास्त्र) को भारतीय कानून का हिस्सा बनाया जाना चाहिए.
##########तरुण विजय का बयान नस्लवाद से प्रेरित
बीजेपी लीडर तरुण विजय ने कहा था, भारतीयों को नस्लवादी कहना गलत है क्योंकि वे दक्षिण भारतीयों के साथ रहते हैं और कुछ नहीं कहते!
ये विचार पूर्वाग्रह में अचानक नहीं आए हैं. यह सोच की पैटर्न का एक हिस्सा है. यह एक सोच का हिस्सा है. भरतीयों के बारे में बीजेपी नेता तरुण विजय का बयान नस्लवाद से प्रेरित है.
देखिए, हम सब दक्षिण भारतीयों के साथ रहते हैं. क्या हम उन पर दया नहीं दिखा रहे हैं. ऐसी टिप्पणियां उस शख्स पर केवल अभियोग नहीं है. यह बयान शख्स को पार्टी से बाहर निकालने के लिए पर्याप्त कदाचार भी है. पार्टी ऐसे व्यक्ति के साथ क्यों जुड़ी रहना चाहती है ?
क्या है मानसिकता?
किसी के लिए यह उनका भूगोल है. मगर, दक्षिण भारतीयों से भारतीय अलग कैसे हैं ? क्या वे देश में रहने वाली एक प्रकार की उप-प्रजाति की तरह हैं.
जिन्हें हम कथित रूप से आर्यन माने जाने वाले उत्तर भारतीयों की कृपा, दया और शिष्टता के रहमोकरम पर निर्भर हैं. गोरी प्रजाति के प्रभुत्व की खुशी के ये गुलाम हैं, क्या यह नात्चेज़ है, मिसिसीपी है ?
और फिर यह रूढ़िवादी ‘नेता’ उन्हें काले लोगों के रूप में ऐसे वर्णित करता है, मानों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और बंगाल के हर लोग त्वचा की खाल को गोरे रंग देने वाले किसी क्रीम में स्नान करता हो.
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देश के प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर ने शनिवार (8 अप्रैल) को कहा कि चुनावी वायदे आमतौर पर पूरे नहीं किये जाते हैं और घोषणा पत्र सिर्फ कागज का एक टुकडा बन कर रह जाता है, इसके लिये राजनीतिक दलों को जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। प्रधान न्यायाधीश ने यहां ‘‘चुनावी मुद्दों के संदर्भ में आर्थिक सुधार’’ विषय पर एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुये यह टिप्पणी की। उन्होंने कहा, ‘‘आजकल चुनावी घोषणा पत्र महज कागज के टुकडे बन कर रहे गये हैं, इसके लिये राजनीतिक दलों को जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।’’
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के सानिध्य में संगोष्ठी को संबोधित करते हुये न्यायमूर्ति खेहर ने कहा कि चुनावी वायदे पूरे नहीं करने को न्यायाचित ठहराते हुये राजनीतिक दलों के सदस्य आमसहमति का अभाव जैसे बहाने बनाते हैं। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि नागरिकों की याददाश्त अल्पकालिक होने की वजह से ये चुनावी घोषणा पत्र कागज के टुकडे बनकर रह जाते हैं परंतु इसके लिये राजनीतिक दलों को जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि इस तरह से रेवड़ियां देने की घोषणाओं के खिलाफ दिशानिर्देश बनाने के लिये निर्वाचन आयोग को उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के बाद से आयोग आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के लिये राजनीतिक दलों के खिलाफ कार्रवाई कर रहा है।
प्रधान न्यायाधीश के बाद दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा ने भी चुनाव सुधारों पर जोर देते हुये कहा कि ‘‘खरीदने की ताकत का चुनावों में कोई स्थान नहीं है’’ और प्रत्याशियों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि ‘‘चुनाव लडना किसी प्रकार का निवेश नहीं है।’’
उन्होंने कहा कि चुनाव अपराधीकरण से मुक्त होने चाहिए और जनता को चाहिए कि प्रत्याशियों की प्रतिस्पर्धात्मक खामियों की बजाये उनके उच्च नैतिक मूल्यों के आधार पर ही उन्हें मत दे।