माई पीताम्बरी; तंत्र साधना की जाग्रत देवी
# माई पीताम्बरी पीठ-चीन युद्व केे समय नेहरू जी ने यहां पूजा अर्चना की थी #माई पीताम्बरी ; तंत्र साधना की जाग्रत देवी कही जाती है#सारे ब्रह्माण्ड की शक्ति मिल कर भी इनका मुकाबला नहीं कर सकती #चीन से युद्व में टेंशन में आये भारत के प्रथम प्रधान मंत्री ने यहां आकर माई पीताम्बरी की पूजा अर्चना #चमत्कार हुआ था- नेहरूजी के संकटो के बादल को माई ने पलक झपकते ही दूर कर दिया था, चीन ने युद्व विराम कर दिया; जिससे पूरा विश्व आश्चर्य चकित हो गया# नेहरू जी स्वयं माई के दरबार में पहुचे थे, # माई पीताम्बरी का वह धाम, जहां नेहरू जी ने खुद पहुच कर माई पीताम्बरी की पूजा की थी#श्री पीताम्बरा पीठ- तंत्र साधको के बेहतरीन स्थान# श्री पीताम्बरा पीठ के नाम से विख्यात यह स्थान अब देश के गिने-चुने तीर्थ स्थलों में से एक है#तंत्र साधको के लिये तो इससे अच्छी निझर्णीय विश्व में कही भी उपलब्ध नही है #श्री पीताम्बरा पीठ मध्य भारत के मध्य प्रदेश राज्य में, दतिया के शहर में स्थित है #चन्द्रशेखर जोशी सम्पादक -*एक्सक्लूसिव आलेख- हिमालयायूके डॉट ओआरजी न्यूज पोर्टल की प्रस्तुति-
माता ‘बगलामुखी दसमहाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं। इन्हें माता पीताम्बरा भी कहते हैं। ये स्तम्भन की देवी हैं। सारे ब्रह्माण्ड की शक्ति मिल कर भी इनका मुकाबला नहीं कर सकती. शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है। इनकी उपासना से शत्रुओं का स्तम्भन होता है तथा जातक का जीवन निष्कंटक हो जाता है। किसी छोटे कार्य के लिए १०००० तथा असाध्य से लगाने वाले कार्य के लिए एक लाख मंत्र का जाप करना चाहिए. बगलामुखी मंत्र के जाप से पूर्व बगलामुखी कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए.
स्वतंत्र तंत्र के अनुसार भगवती बगलामुखी के प्रदुभार्व की कथा इस प्रकार है-सतयुग में सम्पूर्ण जगत को नष्ट करने वाला भयंकर तूफान आया। प्राणियो के जीवन पर संकट को देख कर भगवन विष्णु चिंतित हो गये। वे सौराष्ट्र देश में हरिद्रा सरोवर के समीप जाकर भगवती को प्रसन्न करने के लिये तप करने लगे।
श्रीविद्या ने उस सरोवर से वगलामुखी रूप में प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिया तथा विध्वंसकारी तूफान का तुरंत स्तम्भन कर दिया। बगलामुखी महाविद्या भगवन विष्णु के तेज से युक्त होने के कारण वैष्णवी है। मंगलयुक्त चतुर्दशी की अर्धरात्रि में इनका प्रादुर्भाव हुआ था। श्री बगलामुखी को ब्रह्मास्त्र के नाम से भी जाना जाता है
—वही माँ धूमावती दस तांत्रिक देवी के समूह में से एक है । धूमावती देवी, हिंदू देवी मां का डरावना पहलू का प्रतिनिधित्व करता है जिसे अक्सर एक पुराने, बदसूरत विधवा के रूप में चित्रित किया गया है , और इस तरह कौवा और चातुर्मास अवधि के रूप में हिंदू धर्म में अशुभ और बदसूरत मानी हुई चीजों के साथ जुड़ा हुआ है। देवी को अक्सर एक बिना घोडे के रथ पर दर्शाया गया है या आम तौर पर एक श्मशान भूमि में , एक कौवा सवारी कर रहा है ।
धूमावती तंत्र एक पुराने और बदसूरत विधवा के रूप में उसकी वर्णन करता है। वह अस्वस्थ , पतली लम्बी है , और रथ का पीला रंग है। आभूषणों के साथ सादे , वह पुराने , गंदे कपड़े पहनती है और बाल बिखरे हुए है । उनकी आँखें लंबी,कुटिल और डरावनी है , और फेंग की तरह दांत के कुछ अंतराल के साथ उसकी मुस्कान छोड़ रहा है, बाहर गिर गया है। अन्य एक वरदान – प्रदान इशारा ( वरद – मुद्रा ) या ज्ञान देने इशारा बनाता है , जबकि उसके कांपते हाथों से एक में, वह एक सूप टोकरी रखती है। वह एक कौवा और एक बैनर का एक प्रतीक असर एक बिना घोड़ा रथ में सवार है। वह हालांकि , चतुर और चालाक है ।
पीठ‘ शब्द साधना स्थली को व्यक्त करता है। जिस साधना स्थली पर एक निश्चित संख्या करोड़ तक मन्त्रो का जप साधकों द्वारा किया गया हो उस स्थान को ही पीठ की संज्ञा दी जाती हैं इस प्रकार स्पष्ट है कि कोई भी पूजा स्थल या मन्दिर पीठ नहीं कहलाता हैं।
तंत्र में मुद्रा पीठ, मण्डल पीठ, विद्यापीठ, मातृका पीठ 51 बताई गयी हैं। संस्कृत वर्णमाला के अनुसार 51 पीठें हैं जो देश के विभिन्न भागों में स्थित है। इनके आधार पर भी शक्ति पीठों की व्याख्या सिद्धि मानी जाती है। 51 पीठ तीन भागों में विभाजित है। जहां देवी के ऊध्र्व अंग गिरे वह सात्विक पीठ कहलाई। अर्थात स्वर की संख्या 16 है वह सात्विक पीठ कहलाई। 25 व्यजंन दक्षिण मार्ग और वाम मार्ग से पूजन क्रम है। शेष 10 विशुद्ध वाम मार्ग की पीठें है।
पुराण की कथा के अनुसार दक्ष की पुत्री तथा महादेव षिव की अद्र्धांगिनी सती जब महादेव शिव का अपमान न सह सकने के कारण दक्ष के यज्ञ में सती हो गयी तब दग्ध शरीर को लेकर शिव ने क्रोध व्यक्त किया, ताण्डव किया। उस समय सती के शरीर के अंग जिन- जिन स्थानों पर गिरे वे सिद्ध स्थान हुए, साधना होने से शक्ति पीठ की संज्ञा मिली। सती के शरीर के अंग 52 स्थानों पर सम्पूर्ण भारत में गिरे अत: 52 शक्ति पीठ प्रमुख है। इस प्रकार 52 प्राकृत शक्ति पीठों में गिनी जाती है। किन्तु साधना व मंत्र जब संख्या के आधार अन्य पीठ भी है जो जाग्रत अवस्था में है।
जो शक्ति के मूल उपासक होते है उनकी उपासना जब चरम पर पहुंचती है तो शरीर का कलेवर जैसे का तैसा रहता है किन्तु उनमें शक्ति का पूर्ण संचरण होने लगता है क्रमश: जब उनका जप सवा छ: करोड हो जाता है तो उन्हे पीठ निर्माण करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। महानिर्वाण तंत्र के अनुसार जिस स्थान पर विधिवत् 1 लाख बलिदान हो जाता है। उस स्थान पर भी पीठ निर्माण का अधिकार प्राप्त हो जाता है। ऐसे साधकों की संज्ञा यतिवत् हो जाती है। ऐसे साधकों के द्वारा स्थापित शक्ति पीठ को स्थापित शक्ति पीठों में माना जाता है।
श्री पीताम्बरा पीठ
श्री पीताम्बरा पीठ मध्य भारत के मध्य प्रदेश राज्य में, दतिया के शहर में स्थित है। यह कई किंवदंतियों तपस्थली कई पौराणिक के (ध्यान की जगह) के रूप में वास्तविक जीवन के लोगों के अनुसार था। श्री वनखण्डेश्वर शिव की शिवलिंगम परीक्षण किया और महाभारत के रूप में एक ही उम्र के होने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने मंजूरी दे दी है। [प्रशस्ति पत्र की जरूरत] यह पूजा (देवी माँ को समर्पित) के मुख्य रूप से एक शकता जगह है।
यह 1920 के दशक में ब्रम्हलीन पूज्यपाद राष्ट्र गुरु अनंत श्री स्वामी जी महाराज द्वारा स्थापित किया गया था जो बगलामुखी के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। उन्होंने यह भी आश्रम के भीतर देवी धूमावती के मंदिर की स्थापना की। धूमावती और बगलामुखी दस महाविद्यास के दो हैं। उन लोगों के लिए इसके अलावा, आश्रम के बड़े क्षेत्र में फैला परशुराम, हनुमान, कल भैरव और अन्य देवता और देवी के मंदिर हैं।
पूज्यपाद को भक्तों द्वारा स्वामीजी या ‘महाराज’ कहा जाता था। कोई नहीं जानता था कि वो कहाँ से आए है, और ना ही उन्होंने इस बात का खुलासा किआ।
दतिया नगर के दक्षिण में स्थित श्री वनखण्डेश्वर प्राचीन सिद्ध स्थाना में ब्रम्हनील पूज्यपाद राष्ट्रगुरू अनन्त श्री विभूषित स्वामी जी महाराज का पदार्पण लगभग 78 वर्ष पूर्व 6 जुलाई 1929 को हुआ था। पूज्यपाद ने इस स्थान को अपनी साधना स्थली के रूप मे चुना तथा अन्त तक इसी स्थान में साधनालीन रहे उस समय का श्री वनखण्डेश्वर स्थान आज भव्य आकार ले चुका है जो देखते ही बनता है।
श्री पीताम्बरा पीठ के नाम से विख्यात यह स्थान अब देश के गिने-चुने तीर्थ स्थलों में से एक है, तंत्र विशेषकर शाक्त मत के साधको के लिये तो इससे अच्छी निझर्णीय विश्व में कही भी उपलब्ध नही है पूज्यपाद श्री स्वामी जी श्री सिद्ध साधक एवं विदवत्ता के अद्भुत संगम थे, उनका, दिनचर्या, साधना पद्धति, साधना काल, सत्य के प्रति आग्रह, भारतीय संस्कृति प्रति अनुराग राष्ट्रप्रेम कोटि-कोटि अनुयागियों के लिये आज भी प्रेरणा श्रोत बना हुआ हैे। प्रारंभ से ही पूज्यपाद बगलामुखि के उपासक रहे है परन्तु उन्होने सभी सभी दशमहा विद्याआ की साधना अनवरत की है। स्वामी द्वारा तंत्र शास्त्र से संबंधित गूढ़, दुर्घम्भ, अल्उपलब्ध ग्रन्थों का प्रकाशन सार्वजनिक करने के उद्देश्य से टीका/अनुवाद कर प्रकाशन कराया।
इस प्रकार के प्रकाशन का कार्य अब तक देश भर में किसी भी पीठ अथवा संस्था द्वारा नही कराया गया है। तथा अधिकांश प्रकाशन हिन्दी भाषा में हुआ था सर्व साधारण को सरलता से उपलब्ध है। पूज्यपाद श्री स्वामी द्वारा तंत्रोत्प पूजा पद्धति का विधिवत पालन किया गया जिसका निर्वहन आज परियन्त किया जा रहा है, यद्पि पूज्यपाद का निर्माण दिवस 3 जून 1979 है किन्तु पूज्यपाद के सभी भक्तों में यह धारण विद्धवान है कि, स्वामी जी पूर्व की तरह आज भी सूक्ष्म स्वरूप में पीठ में पूर्वत है। तथा पीठ का संचालन वे स्वंय कर रहे है, और भक्तों की समस्याओं का निराकरण कर मार्गदर्शन कर रहे है।
—दतिया प्राचीन साधना स्थली हैं यहां पर महाभारत कालीन शिवलिंग वनखण्डेश्वर के नाम से स्थित है जो आज भी वनखंडी के नाम से जाना जाता है। महाभारत कालीन अष्वत्थामा इस शिवलिंग की पूजा करते थे ऐसा विख्यात है कि इसी स्थान पर सन् 1929 में एक तपस्वी सन्यासी युवक पधारे और अपनी साधना स्थली बनायी। तत्कालीन समय में यह शिव लिंग स्थान, नगर की बस्ती से दूर निर्जन वन में था। इस लिये सम्भवत: इसे वनखण्डेश्वर शिव का नाम दिया गया। व्यक्ति यहां आने से भयभीत होते थे किन्तु इन सन्यासी के आने से व्यक्तियों का भय समाप्त हुआ, श्रद्धा विष्वास बढ़ा व मात्र पांच वर्षों में ही पीताम्बरा माता की दिव्य मूर्ति तथा छोटा सा मन्दिर निर्मित हुआ। क्रमश: समयानुसार इन सन्यासी की जिन्होने अपने नाम का भी त्याग किया वे केवल स्वामी जी महाराज के नाम से जाने गये तथा इस सिद्ध पीठ की लोक प्रियता बढ़ती गयी तथा देष के उच्च श्रेणी के साधक हों या साहित्यकार विद्वान अथवा राजनीतिज्ञ हों सब इनके शिष्यत्व सान्निध्य को पाकर स्वयं को धन्य व सम्मानित मानने लगे
कुछ विद्वानों के अनुसार साधना के दो मार्ग होते है – वाम मार्ग तथा दक्षिण मार्ग। किन्तु मध्य मार्ग दिव्यमार्ग भी कहा जाता हैं जिस पर स्थित होकर दोनो मार्गो पर नियंत्रण किया जाता हैं दतिया पीताम्बरा पीठ के स्वामी जी दिव्य मार्ग पर स्थित थे। (www.himalayauk.org) Leading Digital Newsportal