सबसे कम उम्र के ज्योतिषी- कोरोना वायरस की भविष्यवाणी 2019 में कर दी थी?

अभिज्ञा आनन्द ११ वर्ष का बालक कौन है जिसने कोरोना वायरस की भविष्यवाणी २०१९ में कर दी थी?

अभिज्ञान आनंद, जो दुनिया के सबसे कम उम्र के ज्योतिषी माने जाते हैं, जब से कोरोनोवायरस महामारी से संबंधित उनकी कुछ प्रमुख भविष्यवाणियां सच हुई हैं, तब से यह चर्चा में है। पिछले साल, उदाहरण के लिए, उन्होंने भविष्यवाणी की कि परिवहन उद्योग जल्द ही ढह जाएगा ।

अगर आप ज्योतिष को मानते हैं, : किशोर ज्योतिषी कहते हैं कि कुछ दिन COVID -19 संक्रमण में वृद्धि होगी।

बृहत संहिता के एक अंश को पढ़ते हुए, अभिज्ञा कहते है कि इस अवधि के दौरान आंध्र और ओडिशा जैसे राज्यों की रक्षा होनी चाहिए। वह महत्वपूर्ण ग्रह संरेखण और चंद्र ज्यामिति पर अपनी भविष्यवाणियों को आधार बनाते है। आगे उनका कहना है कि महामारी 29 मई से कम हो जाएगी।

वही दूसरी ओर

यह बात विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोगों से सिद्ध हो चुकी है कि इस धरती पर वायरस और अन्य सूक्ष्मजीव इंसान से पहले ही मौजूद थे तो जब हमारे रचनाकार या ईश्वर जब इंसानी शरीर की रचना कर रहे थे, तो उनको भी इस बात का पता था कि धरती पर मौजूद सूक्ष्मजीव या वायरस इंसानी शरीर को नुकसान पहुंचा सकते हैं । तो क्या ईश्वर ने इंसानी शरीर में वायरसों को रोकने की व्यवस्था नहीं की होगी? जिस इंसानी शरीर को अभी प्रयोगशाला में बनाने में हम इंसानों को हजारों साल भी लग सकते हैं उस विलक्षण इंसानी शरीर में छोटे से वायरस को रोकने की प्रभावी क्षमता नहीं होगी, यह सोचना ईश्वर की दक्षता पर अविश्वास या कहें, हमारी मूर्खता होगी।

आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि मनुष्य के शरीर के अंदर व आसपास के वातावरण में हर समय लाखों करोड़ों की संख्या में सूक्ष्मजीव मौजूद रहते हैं जिनमें वायरस भी है।

अब तक 219 ऐसी वायरस प्रजातियां खोज ली गई है जो मनुष्यों को प्रभावित करती है और हर वर्ष 3-4 नई प्रजातियां सामने आ रही है “

अर्थात आने वाले समय में हमें कई नए वायरसों का सामना करना पड़ सकता है।

तो पहले से मौजूद वायरसों से हम बीमार क्यों नहीं पडते, और नये वायरस हमारे लिए खतरनाक क्यों है ? क्योंकि यह सभी पुराने वायरस पूरे विश्व में फैल चुके हैं जिससे अधिकतर इंसान इनके संपर्क में आ चुके हैं और एक बार संपर्क में आने के बाद शरीर में इनकी एंटीबॉडी बन चुकी है। क्योंकि मानव शरीर पर जब किसी वायरस का अटेक होता है तो हमारा प्रतिरोधी तंत्र उस वायरस को पहचान कर उसकी एंटीबॉडी बना लेता है । अर्थात वायरस एक ऐसी चीज है जिसको पहचान कर नष्ट करने की क्षमता सिर्फ और सिर्फ एक ही स्थान पर है, और वह है हमारा शरीर । जो दवाई कोई वैज्ञानिक नहीं बना पा रहा है उसे हमारा शरीर बनाने में सक्षम है और फिर भी हम डर रहे हैं क्यों?”

किसी भी नए वायरस का संक्रमण जब किसी व्यक्ति पर होता है तो संक्रमण शुरू होते ही हमारा प्रतिरक्षा तंत्र उसकी एंटीबॉडी शरीर में ढूंढता है । यदि उस वायरस का उसके शरीर में पूर्व में संक्रमण हो चुका है तो उसकी एंटीबॉडी का कोड हमारे शरीर में सुरक्षित रहता है और उस स्थिति में शरीर का काम केवल शरीर में घुसने वाले वायरसों की संख्या के आधार पर नई एंटीबॉडी का निर्माण करना है जिससे वायरस हमारे शरीर को नुकसान नहीं पहुंचा पाते है। इसलिए पूर्व में संक्रमित हो चुके किसी वायरस से हम ज्यादा बीमार नहीं पड़ते हैं । परंतु जब वायरस हमारे शरीर के लिए नया होता है तो शरीर को उस वायरस की संरचनात्मक स्थिति को समझकर उसके अनुसार एंटीबॉडी बनाने में कम से कम तीन दिन लग जाते हैं और यह उस व्यक्ति की इम्युनिटी पर भी निर्भर करता है। इस बीच वह वायरस अपनी संख्या शरीर में बड़ा लेता है और हमारे शरीर को नुकसान पहुंचाना शुरू कर देता है। हमारा प्रतिरोधी तंत्र एंटीबॉडी बनाकर और उनका उत्पादन शुरू करके लगभग 7 दिन में वायरसों का शरीर से खात्मा कर देता है। परन्तु इस अवधि में हमारे शरीर का जो नुकसान होता है वह कितना हुआ है इसी पर आगे के जीवन की स्थिति निर्भर करती है । अब इसमें कई स्थितियां बनती है जैसे –

यदि जिस व्यक्ति को संक्रमण हुआ है वह एक सामान्य स्वस्थ व्यक्ति है और संक्रमण भी हल्का यानि शरीर के अंदर जाने वाले वायरसों की संख्या काफी कम है तो उस व्यक्ति को थोड़ा सा सर्दी जुकाम, हल्का सा बुखार, गले में खराश इत्यादि होगा परंतु क्योंकि उसकी इम्यूनिटी अच्छी है तो 3 दिन बाद शरीर वायरसों को नई एंटीबॉडी बनाकर खत्म करना शुरू कर देता है और 3- 7 दिन में संपूर्ण सफाया कर देता है । इस बीच में शरीर को चूंकि बहुत कम नुकसान होता है क्योंकि वायरसों की संख्या कम थी ।इसलिए मनुष्य का शरीर अंदर से ज्यादा डैमेज नहीं होता है और वह व्यक्ति 3 से 7 दिन में वापस पूर्ण स्वस्थ्य हो जाता है।

परंतु अब उसे एक फायदा हो जाता है कि अगर उस पर इसी वायरस का अटेक दोबारा होता है तो वह इतना बीमार नहीं पड़ेगा क्योंकि उसके शरीर में इसकी एंटीबॉडी बन चुकी है

दूसरी स्थिति- यदि संक्रमण की मात्रा ज्यादा है यानि वायरस ज्यादा संख्या में शरीर में प्रवेश कर चुके हैं या जिस व्यक्ति पर संक्रमण हुआ है वह पहले से ही किसी अन्य गंभीर बीमारी बीमारी से ग्रस्त है तो उसकी इम्यूनिटी कमजोर होती है जिससे वायरस की एंटीबॉडी तैयार होने में अधिक समय लगता है। और शरीर को वायरस का खात्मा करने में अधिक समय लगने से उसका शरीर वायरसोंं के खत्म होते-होते काफी क्षतिग्रस्त हो चुका होता है और यदि समुचित चिकित्सा सुविधा ना मिले तो जीवन खतरे में पड़ सकता है। परंतु चिकित्सा सुविधा मिलने पर ज्यादा खतरनाक स्थिति नहीं होती है।

दवाई -वैज्ञानिक जो वैक्सीन बनाने की बात कर रहे हैं वो और कुछ नहीं इसी वायरस का कमजोर रूप है जिससे किसी इंसान को नियंत्रित मात्रा में बहुत हल्का संक्रमित किया जाता है इस संक्रमण से शरीर को ज्यादा नुकसान नहीं होता और शरीर उसकी एंटीबॉडी बना लेता है और व्यक्ति वायरस के प्रति प्रतिरोधी हो जाता है । तो कुल मिलाकर वायरस को खत्म करने की दवा किसके पास है ? हमारे खुद के शरीर के पास।

तो हम क्या करें?

किसी भी नए वायरस से डरने की आवश्यकता नहीं है बात केवल कोरोनावायरस की ही नहीं है कोई भी वायरस किसी भी इंसानी शरीर के लिए नया हो सकता है, यदि वह इंसान उस वायरस से पूर्व में कभी भी संक्रमित नहीं हुआ है तो वह वायरस उस इंसान के लिए नए कोरोनावायरस की तरह ही व्यवहार करेगा 

इसलिए यदि आप किसी नए वायरस से हल्के संक्रमित होते हैं तो आपको साधारण सर्दी जुकाम से संबंधित साधारण लक्षण दिखाई देंगे, जिनका इलाज आप घर पर रहकर ही हल्का खाना ,सलाद खाकर और गरम पेय पीकर कर सकते है शरीर में दर्द बुखार होने की अवस्था में पेरासिटामोल ली जा सकती है, बाकी इसका कोई बाहरी इलाज नहीं है क्योंकि इसका इलाज खुद शरीर ही कर सकता है ।बस आपको अपने शरीर का सहयोग करना है और ध्यान रखना है कैसे

1. हो सके जितना आराम करना है ।

2. पेट लगभग खाली रहना चाहिए मतलब जो भी खाएं हल्का-फुल्का खाएं और गरिष्ठ भोजन से दूर रहे वैसे भी जुकाम की स्थिति में हल्का बुखार होने से भूख कम हो जाती है। ज्यादातर पेय पदार्थ लें और जो भी चीज खाए पिए वह थोड़ा गर्म हो तो अच्छा है । सलाद और फ्रूट ज्यादा लें और कुछ नहीं तो कम से कम बार-बार गुनगुना पानी पीते रहें।

3. शरीर में दर्द व बुखार होने पर पेरासिटामोल ली जा सकती है जिससे शरीर में आराम रहेगा।

और सबसे महत्वपूर्ण बात ! समाचार चैनलों और सोशल मीडिया पर आने वाली नकारात्मक खबरों से दूर रहें और मन में भगवान पर सच्चा विश्वास रखें।

किसी भी प्रकार से डरने की कोई आवश्यकता नहीं है । 80 से 90% मामलों में व्यक्ति खुद ही घर पर ठीक हो सकता है । स्थिति अधिक खराब होने पर ही चिकित्सा सुविधा की आवश्यकता होती है।

शरीर में संक्रमण की मात्रा ज्यादा न हो इसके लिए आप सुरक्षा उपायों का प्रयोग कर सकते हैं जैसे हाथों को साबुन से धोना, ज्यादा भीड़ भाड़ में जाने से बचना, मास्क व दस्ताने पहनना इत्यादि।

फिर भी यदि आपको हल्का संक्रमण होता है तो एक तरह से अच्छा ही है कि आप बिना ज्यादा बीमार हुए इस वायरस के प्रति प्रतिरोधी हो चुके हैं ।

वैसे भी यह वायरस लगभग सभी जगह फैल चुका है तो धीरे धीरे चाहे या बिना चाहे लोग इससे संक्रमित होते रहेंगे और उन्हें प्रतिरोधी क्षमता प्राप्त हो जाएगी । यदि हमारे शरीर में प्रवेश करने वाले वायरसों की संख्या अति न्यून होगी तो हमें बिना पता लगे भी हम इस वायरस के प्रति प्रतिरोधी हो सकते हैं । और जिन लोगों को एक बार प्रतिरोधी क्षमता मिल चुकी है वह दोबारा कोरोना से बीमार नहीं पड़ेंगे ।

जब तक वायरस शरीर के अंदर नहीं जाएगा तब तक उसकी एंटीबॉडी बनना भी संभव नहीं है ।”

और इसी प्रकार हम भविष्य में आने वाले नए वायरसों से भी आसानी से निपट सकते हैं। बस डरना नहीं है, और ईश्वर व उसकी रचना पर सच्चा विश्वास रखना है। फिर हमारे लिए कोरोनावायरस या अन्य कोई नया वायरस डरावना नहीं होगा।

मनुष्य के फेफड़े की सफाई किस तरह की जा सकती है ? 

फेफड़ों का काम शरीर को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन पहुंचाने से लेकर कार्बनडाईऑक्‍साइड को बाहर न‍िकालना होता है। सांस लेते वक्त ऑक्सीजन के साथ वायु में मौजूद प्रदूषित कण और माइक्रोब्स हमारे शरीर में चले जाते हैं। जिससे फेफड़ों को नुकसान होने लगते है। इसके अलावा स्‍मोकिंग से भी इसमें मौजूद टॉक्सिन्स फेफडों में जाते रहते हैं।इससे सांस की बीमारी, एलर्जी समेत कई समस्याएं होने लगती है। कई बार तो समस्या जानलेवा भी हो जाती है। इनसे बचाव रखने के लिए फेफड़ों को डिटॉक्स रखना बहुत जरूरी है। आइए जानते है आखिर किन चीजों का सेवन करके हम अपने फेफड़ों को साफ रख सकते हैं।

-लहुसन

लहुसन में कई तरह के एंटी-इनफ्लेमटरी तत्व मौजूद होते हैं। ये हर तरह के इंफेक्‍शन से लड़ने में मददगार साबित होते हैं। आयुर्वेद चिकित्सकों की माने तो लहुसन का सेवन करने से अस्‍थमा जैसी गंभीर बीमारी तक से निजात मिल सकती है। इसके सेवन से फेफड़ों के कैंसर की सम्‍भावना भी घटती है।

पिपरमेंट

पिपरमेंट में मौजूद एंटी-ऑक्सीडेंट फेंफड़ों को स्वस्थ रखता है। यह मसल्स को रिलेक्स करके श्वास प्रणाली के रास्ते को साफ करता है। इससे फेफड़े साफ और स्वस्थ रहते हैं।

मुलेठी

मुलेठी के एंटी-इंफ्लेमेंटरी गुण फेफड़ों की इंफैक्शन को दूर करने में बहुत लाभकारी है। गला खराब, सांस लेने में परेशानी आदि में मुलेठी चूसने से श्वसन तंत्र साफ हो जाता है। जिससे फेफड़े आसानी से अपना काम करने लगते हैं।

अदरक

दिन में एक बार गर्म पानी में अदरक का रस और थोड़ा-सा शहद मिलाकर पीने से फेफड़े आसानी से डिटॉक्स हो जाते हैं। इस बात का ध्यान रखें कि, गर्मी के मौसम में इसका इस्तेमाल नुकसान भी पहुंचा सकता है।

अनार

अनार के एंटीऑक्सीडेंट फेफड़ों में फैले विषाक्त पदार्थों को आसानी से साफ करता है। दिन में 1 कटोरी अनार जरूर खाना फेफड़ो के लिए तो लाभकारी है ही, इससे शरीर में खून की कमी भी दूर होती है।

 ओरिगैनो

हर्ब्स का सेवन फेफड़ों को स्वस्थ रखने में बहुत कारगर होता है। ओरिगैनो इनमें से एक है, इसमे विटामिन और पोषक तत्व हिस्टामिन को कम करते हैं जिससे फेफड़ों के जरिए ऑक्सीजन का प्रवाह आसानी से होता है।

 जितना हो सके पीएं पानी

फेफड़ों से टॉक्सिन्स जैसे निकोटीन को बाहर निकालने के लिए पानी की पर्याप्त मात्रा का सेवन करना बहुत फायदेमंद होता है। ज्यादा मात्रा में पानी-पीने से शरीर से टॉक्सिन्स बाहर होते हैं।

ईश्वर आपको ईश्वर पर विश्वास करने की शक्ति देंं !

गूगल ने अपने सर्च इंजन में रखा वरियता क्रम में- BY: www.himalayauk.org (Uttrakhand Leading Newsportal & Daily Newspaper) Publish at Dehradun & Hariwar Mail us; himalayauk@gmail.com Mob. 9412932030## Special Report

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