पेगासस सॉफ़्टवेयर के ज़रिए जासूसी -खुलासे ने खलबली मचा दी
Pegasus Project: वैश्विक स्तर पर एक इंवेस्टिगेटिव प्रोजेक्ट में अहम खुलासा हुआ है कि इजराइली कंपनी एनएसओ ग्रुप के पेगासस स्पाईवेयर ने भारत के 300 से अधिक मोबाइल फोन नंबर्स को टारगेट किया यानी कि इनकी जासूसी की गई.
एक खुलासे ने दुनियाभर में खलबली मचा दी. पेगासस प्रोजेक्ट (Pegasus software Project) नाम के एक मैलवेयर स्पाइवेयर के जरिए दुनिया भर के उद्योगपतियों, पत्रकारों और विभिन्न क्षेत्रों की हस्तियों के फोन की जासूसी किए जाने की खबर सामने आई.
‘द गार्डियन’ और वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्टों में दावा किया गया है कि दुनियाभर की कई सरकारों ने 50,000 से अधिक नंबरों को ट्रैक करने के लिए इस पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया है। इसमें पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों, विपक्षी दलों के नेताओं, जजों आदि को निशाना बनाया गया है।
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सरकार की ओर से स्पष्टीकरण दिया गया है कि ऐसे किसी भी कारनामें में उनकी संलिप्तता नहीं है.
वाट्सऐप के प्रमुख विल कैथकार्ट ने कहा है कि ‘एनएसओ के ख़तरनाक स्पाइवेयर का इस्तेमाल दुनिया भर में मानवाधिकारों के घोर हनन के लिए किया जाता है और इसे रोका जाना चाहिए।’
द गार्डियन की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि दुनिया भर में 180 पत्रकारों को निशाना बनाया गया है। भारत में ही 40 से ज़्यादा पत्रकारों के फ़ोन को निशाना बनाया गया। इनके अलावा, रोना विल्सन, डिग्री प्रसाद चौहान, उमर खालिद, जैसे मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और सोशल एक्टिविस्टों को निशाना बनाया गया है।
‘एनडीटीवी’ के अनुसार, पेगासस से जिन लोगों की जासूसी की जानी थी, उस सूची में चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर का नाम भी था। प्रशांत किशोर ने एक के बाद कई चुनावों में विपक्षी दलों के लिए काम किया था, उनके लिए रणनीति बनाई थी, योजना बनाई थी, पार्टी को सलाह दी थी। कुछ दलों को कामयाबी भी मिली।
फ्रांस की ग़ैरसरकारी संस्था ‘फ़ोरबिडेन स्टोरीज़’ और ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ ने लीक हुए दस्तावेज़ का पता लगाया है और कई समाचार एजेंसियों और संस्थाओं के साथ साझा किया। इसका नाम रखा गया पेगासस प्रोजेक्ट। इज़रायली कंपनी एनएसओ पेगासस सॉफ़्टवेयर बना कर बेचती है। इस सॉफ़्टवेयर के जरिए टेलीफ़ोन के डेटा चुरा लिए गए, उन्हें हैक कर लिया गया या उन्हें टैप किया गया। ‘द गार्जियन’, ‘वाशिंगटन पोस्ट’, ‘ला मोंद’ ने 10 देशों के 1,571 टेलीफ़ोन नंबरों के मालिकों का पता लगाया और उनकी छानबीन की। उसमें से कुछ की फ़ोरेंसिक जाँच करने से यह निष्कर्ष निकला कि उनके साथ पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया गया था।
पेगासस (Pegasus software Project) एक मैलवेयर है जो आईफोन और एंड्राइड उपकरणों को प्रभावित करता है. यह अपने उपयोगकतार्ओं को संदेश, फोटो और ईमेल खींचने, कॉल रिकॉर्ड करने और माइक्रोफोन सक्रिय करने की अनुमति देता है.
भारत में भी देश के 40 पत्रकारों की जासूसी पेगासस सॉफ़्टवेयर के ज़रिए की गई है। इसमें ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’, ‘द हिन्दू’, ‘इंडियन एक्सप्रेस’, ‘इंडिया टुडे’, ‘न्यूज़ 18’ और ‘द वायर’ के पत्रकार शामिल हैं। ‘द वायर’ ने एक ख़बर में यह दावा किया है। ‘एनडीटीवी’ ने एक ख़बर में कहा है कि इसके अलावा ‘संवैधानिक पद पर बैठे एक व्यक्ति’ और विपक्ष के तीन नेताओं की जासूसी भी स्पाइवेयर से की गई है।
फ्रांसीसी ग़ैरसरकारी संगठन फ़ोरबिडेन स्टोरीज़ ने जो लीक डाटाबेस हासिल किया है, उसमें गांधी परिवार के इस सदस्य का फ़ोन नंबर भी था। इस सूची में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष के पाँच मित्र भी थे, जिनका राजनीति से कोई सरोकार नहीं था, वे बस राहुल के निजी दोस्त थे। ‘द वायर’ ने यह दावा किया है कि पेगासस बनाने वाली कंपनी एनएसओ के ग्राहकों के डाटाबेस में राहुल का नंबर था। लेकिन उस नंबर की फोरेंसिक जाँच नहीं कराई गई है। राहुल गांधी फिलहाल उस फ़ोन का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, वे उसका प्रयोग 2018-19 में करते थे। राहुल गांधी के अलावा अलंकार सवाई और सचिन राव के भी नाम संभावित जासूसी की सूची में हैं। सवाई राहुल गांधी के निजी सचिव के रूप में काम करते हैं और उनके तमाम ई-मेल भेजने, फ़ोन करने या रिसीव करने या चिट्ठी या मैसेज भेजने का काम वे ही करते हैं। राव कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य हैं और उनकी ज़िम्मेदारी कांग्रेस कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करना है। सवाई के फ़ोन की चोरी 2019 में हो गई और राव का फ़ोन ‘फ्राइड’ हो गया, यानी उससे अब फ़ोन नहीं किया जा सकता है।
पेगासस सॉफ़्टवेअर के ज़रिए पत्रकारों, केंद्रीय मंत्रियों, विपक्ष के नेताओं और दूसरे लोगों की जासूसी की ख़बर सार्वजनिक होने के बाद एक अहम सवाल यह उठता है कि आख़िर यह जासूसी कैसे की गई? मानवाधिकार के लिए काम करने वाली संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल और ‘फोरबिडेन स्टोरीज़’ के साथ 80 पत्रकारों ने मिल कर काम किया और हर फ़ोन नंबर के बारे में पता लगाया। उसके बाद सबकी फ़ोरेंसिक जाँच की गई। सरकार या उसकी एजेंसियों की ओर से वैध तरीके से फ़ोन इंटरसेप्ट करने के लिए इंडियन टेलीग्राफ़ एक्ट और इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट में स्पष्ट प्रावधान हैं। लेकिन किसी का फोन हैक करना ग़ैरक़ानूनी है और ऐसा कोई नहीं कर सकता। जिस तरह पेगासस सॉफ़्टवेअर का इस्तेमाल किया गया पेगासस सॉफ़्टवेअर के ज़रिए पत्रकारों, केंद्रीय मंत्रियों, विपक्ष के नेताओं और दूसरे लोगों की जासूसी की ख़बर सार्वजनिक होने के बाद एक अहम सवाल यह उठता है कि आख़िर यह जासूसी कैसे की गई? मानवाधिकार के लिए काम करने वाली संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल और ‘फोरबिडेन स्टोरीज़’ के साथ 80 पत्रकारों ने मिल कर काम किया और हर फ़ोन नंबर के बारे में पता लगाया। उसके बाद सबकी फ़ोरेंसिक जाँच की गई। सरकार या उसकी एजेंसियों की ओर से वैध तरीके से फ़ोन इंटरसेप्ट करने के लिए इंडियन टेलीग्राफ़ एक्ट और इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट में स्पष्ट प्रावधान हैं। लेकिन किसी का फोन हैक करना ग़ैरक़ानूनी है और ऐसा कोई नहीं कर सकता। जिस तरह पेगासस सॉफ़्टवेअर का इस्तेमाल किया गया यह हैकिंग है।
वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट है कि 189 पत्रकारों, 600 से अधिक राजनेताओं और सरकारी अधिकारियों और 60 से अधिक व्यावसायिक अधिकारियों को एनएसओ समूह के क्लाइंट द्वारा लक्षित किया गया था, जिसका मुख्यालय इजराइल में है.
फ्रांस की ग़ैरसरकारी संस्था ‘फ़ोरबिडेन स्टोरीज़’ और ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ ने लीक हुए दस्तावेज़ का पता लगाया और ‘द वायर’ और 15 दूसरी समाचार संस्थाओं के साथ साझा किया। इसका नाम रखा गया पेगासस प्रोजेक्ट। ‘द गार्जियन’, ‘वाशिंगटन पोस्ट’, ‘ला मोंद’ ने 10 देशों के 1,571 टेलीफ़ोन नंबरों के मालिकों का पता लगाया और उनकी छानबीन की। उसमें से कुछ की फ़ोरेंसिक जाँच करने से यह निष्कर्ष निकला कि उनके साथ पेगासस स्पाइवेअर का इस्तेमाल किया गया था।
फ्रांस की ग़ैरसरकारी संस्था ‘फ़ोरबिडेन स्टोरीज़’ और ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ ने लीक हुए दस्तावेज़ का पता लगाया और ‘द वायर’ और 15 दूसरी समाचार संस्थाओं के साथ साझा किया।
इसका नाम रखा गया पेगासस प्रोजेक्ट। ‘द गार्जियन’, ‘वाशिंगटन पोस्ट’, ‘ला मोंद’ ने 10 देशों के 1,571 टेलीफ़ोन नंबरों के मालिकों का पता लगाया और उनकी छानबीन की। उसमें से कुछ की फ़ोरेंसिक जाँच करने से यह निष्कर्ष निकला कि उनके साथ पेगासस स्पाइवेअर का इस्तेमाल किया गया था।
अमेरिकी खुफिया एजेंसी के पूर्व साइबर सुरक्षा इंजीनियर और अब एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी में आईटी के निदेशक टिमोथी समर्स ने द वाशिंगटन पोस्ट को बताया, यह गंदा सॉफ्टवेयर है. यह लगभग पूरी दुनिया की आबादी पर जासूसी कर सकता है.
इन पत्रकारों की जासूसी पेगासस के ज़रिए की गई।
सिद्धार्थ वरदराजन- द वायर के संस्थापक संपादक
परंजॉय गुहा ठाकुरता- पत्रकार और लेखक
एमके वेणु- द वायर के संस्थापक संपादक
एलिज़ाबेज रोश- मिंट की फोरेन अफ़ेयर्स एडिटर
संदीप उन्नीथन- इंडिया टुडे के कार्यकारी संपादक
औरंगजेब नक्शबंदी- हिंदुस्तान टाइम्स के राजनीतिक संवाददाता
स्वाति चतुर्वेदी- स्वतंत्र पत्रकार
इफ्तिखार गिलानी- कश्मीर के पत्रकार
सुशांत सिंह- इंडियन एक्सप्रेस के पूर्व एसोसिएट डिप्टी एडिटर
देवीरूपा मित्रा- द वायर की पत्रकार
प्रेम शंकर झा- पत्रकार और अर्थशास्त्री
सैकत दत्ता- राष्ट्रीय सुरक्षा कवर करने वाले रिपोर्टर
प्रशांत झा- हिंदुस्तान टाइम्स के पत्रकार
स्मिता शर्मा- फोरेन अफ़ेयर्स जर्नलिस्ट, इंडिया अहेड की कंट्रीब्यूटिंग एडिटर
एसएनएम अब्दी- पत्रकार, लेखक और स्तंभकार
पारुल मलहोत्रा- पूर्व पत्रकार, राजनीति-आर्थिक सलाहकार
जसपाल सिंह हेरन- पत्रकार, पंजाब में पहरेदार के संस्थापक
ऋतिका चोपड़ा- इंडियन एक्सप्रेस की वरिष्ठ एसिस्टेंट एडिटर
अजित साही- पत्रकार, राजनीतिक विश्लेषक, मानवाधिकार कार्यकर्ता
मनोरंजन गुप्ता- फ्रंटियर टीवी की प्रधान संपादक
जे गोपीकृष्णन- द पायनियर के विशेष संवाददाता
सिद्धांत सिब्बल- WION के मुख्य रक्षा संवाददाता
संतोष भारतीय, वरिष्ठ पत्रकार, पूर्व सांसद
रोहिणी सिंह- द वायर की पत्रकार
विजेता सिंह, द हिंदू की डेपुटी एडिटर
दीपक गिदवानी- उत्तर प्रदेश के पत्रकार
शाबीर हुसेन बुछ- कश्मीर न्यूज़लाइन के संपादक
मुज़मिल जलील- इंडियन एक्सप्रेस में डेपुटी एडिटर
शिशिर गुप्ता- हिंदुस्तान टाइम्स के कार्यकारी संपादक
राहुल सिंह- हिंदुस्तान टाइम्स के रक्षा संवाददाता
मनोज गुप्ता- इंडिया टुडे के पत्रकार
भूपिंदर सिंह सज्जन – एएसपी टीवी के संचालक
रुवा शाह- कश्मीर के स्वतंत्र पत्रकार
केंद्र सरकार ने बयान में कहा है कि इससे पहले भी वाट्सऐप के जरिए पेगासस के प्रयोग के आरोप लगाए गए थे लेकिन उस समय भी रिपोर्ट्स में कुछ तथ्य नहीं था और सुप्रीम कोर्ट में वाट्सऐप समेत सभी पक्षों ने इसका खंडन किया था. केंद्र सरकार ने कहा है कि ये आरोप भारतीय लोकतंत्र और इसकी संस्थाओं को बदनाम करने वाले प्रतीत होते हैं.
वहीं इस मामले को लेकर विपक्ष हमलावर रूख अपनाए हुए है. विपक्षी नेताओं का कहना है कि यह गंभीर मामला है और निजता पर हमला है. विपक्षी नेताओं ने सवाल उठाया है कि क्या भारत अब पुलिस स्टेट में बदल रहा है. इस मसले को मानसून सत्र में उठाए जाने को लेकर विपक्ष अभी विमर्श कर रहा है. राज्यसभा में कांग्रेस के डिप्टी लीडर आनंद शर्मा के मुताबिक सरकार अपनी जिम्मेदारी से नहीं भाग सकती है. कांग्रेस नेता ने सवाल उठाया है कि वे कौन सी एजेंसिया हैं जिन्हें यह मालवेयर मिला और वे कौन सी एजेंसियां है जिन्होंने इसे खरीदा है? सीपीआई के पार्लियामेट्री पार्टी लीडर बिनॉय विश्वम ने आरोप लगाया है कि बीजेपी ने भारत को सर्विलांस स्टेट में बदल दिया है. विश्वम ने संसद में एडजॉर्नमेंट मोशन के लिए नोटिस देने की बात कही है.
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