महादेव के 5 मुख पंच महाभूतों के सूचक -सावन में शिव पूजा के 8 खास दिन

20 जुलाई को देवशयनी एकादशी से ही चातुर्मास शुरू हो जाएंगे।   इस साल भगवान विष्णु 118 दिन योग निद्रा में रहेंगे। चतुर्मास की शुरुआत हिंदू कैलेंडर के आषाढ़ माह से होती है। चातुर्मास आषाढ़ महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी यानि इस बार मंगलवार, 20 जुलाई 2021 से शुरू होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलेगा। जो कि 15 नवंबर को है। यानि इसकी अवधि 4 महीने की होगी। शिवजी की विशेष पूजा का महीना सावन इस बार 29 दिन का ही होगा। 25 जुलाई से शुरू हो रहे इस हिंदी महीने में कृष्णपक्ष की द्वितीया और शुक्लपक्ष की नवमी तिथि का क्षय हो रहा है। लेकिन कृष्णपक्ष में छठ तिथि दो दिन रहेगी। इससे कृष्णपक्ष तो पूरे 15 दिन का होगा लेकिन शुक्लपक्ष 14 दिन का ही रहेगा। हिंदू कैलेंडर का पांचवां महीना सावन 22 अगस्त तक चलेगा। इस बार सावन महीना रविवार से शुरू होकर रविवार को ही खत्म होगा। .

Presents by Himalayauk Newsportal & Daily Newspaper, publish at Dehradun & Haridwar: Mob 9412932030 ; CHANDRA SHEKHAR JOSHI- EDITOR; Mail; himalayauk@gmail.com

सावन में शिव पूजा के 8 खास दिन  पहला सोमवार: 26 जुलाई  दूसरा सोमवार: 02 अगस्त तीसरा सोमवार: 09 अगस्त  चौथा सोमवार: 16 अगस्त  प्रदोष व्रत: सावन में 5 अगस्त व 20 अगस्त को प्रदोष व्रत रहेगा।  चतुर्दशी तिथि: 7 और 21 अगस्त

महादेव के 5 मुख पंच महाभूतों के सूचक हैं। 10 हाथ 10 दिशाओं के सूचक हैं। हाथों में विद्यमान अस्‍‍त्र-शस्त्र जगतरक्षक शक्तियों के सूचक हैं। 

पौराणिक कथाओं और मान्यताओं में जिक्र है कि इन चार महीनों के दौरन श्रीहरिविष्णु पाताल जाकर निद्रा लेते हैं। चातुर्मास का आरंभ देवशयनी एकादशी और समापन देवउठनी एकादशी से होती है। हिंदू धर्म में चूंकि विष्णु पालनहार माने गए हैं और चार माह शयन करते हैं। इस दौरान मांगलिक कार्य विवाह, मुंडन, जनेऊ आदि नहीं कराया जाता, क्योंकि मांगलिक कार्यों में भगवान विष्णु का आवाहन किया जाता है, मगर पाताल में शयन करने के कारण वे उपस्थित नहीं हो पाते, ऐसे में किसी भी मांगलिक कार्य का फल नहीं मिल पाता है

चातुर्मास के चार महीने – श्रावण: आषाढ़ महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी से श्रावण शुक्ल एकादशी तक (20 जुलाई से 18 अगस्त) भाद्रपद: श्रावण शुक्लपक्ष की एकादशी से भाद्रपद शुक्लपक्ष की एकादशी तक (18 अगस्त से 17 सितंबर)  आश्विन: भाद्रपद शुक्लपक्ष की एकादशी से आश्विन शुक्लपक्ष की एकादशी तक (17 सितंबर से 16 अक्टूबर) कार्तिक: आश्विन शुक्लपक्ष की एकादशी से कार्तिक शुक्लपक्ष की एकादशी तक (16 अक्टूबर से 15 नवंबर)

आषाढ़ महीने के शुक्लपक्ष में दिन छोटे और रातें लंबी होने लगती हैं। फिर श्रावण महीना शुरू होता है। जो कि बारिश के मौसम की शुरुआत माना जाता है। इस तरह आषाढ़ महीने का शुक्लपक्ष मौसमी बदलाव वाला समय होता है। इसलिए हिंदू धर्म में सेहत का ध्यान रखते हुए आषाढ़ महीने के शुक्लपक्ष के तीज-त्योहारों की परंपरा है।

 16 जुलाई शुक्रवार से श्रावण संक्रान्ति शुरू हो गई है। वहीं अगर सावन माह की बात करें तो यह 25 जुलाई से प्रारंभ होने जा रहा है जो अगले माह 22 अगस्त तक जारी रहेगा। इस सावन मास में कुल चार सोमवार दस्तक देने वाले हैं, जो भगवान शिव की आराधना के लिए बेहद ही खास होते हैं। अगर आप इस माह के चारों सोमवार विधि विधान के साथ पूजा करते हैं तो आपकी सारी मनोकामनाएं पूरी होगीं।

इस दौरान संत और आम लोग धर्म-कर्म, पूजा-पाठ और आराधना में समय बीताएंगे। पिछले साल अधिकमास होने से भगवान विष्णु ने 148 दिन क्षीरसागर में आराम किया था। इस बार वे 20 जुलाई से 14 नवंबर तक योग निद्रा की अवस्था में रहेंगे। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस अवधि में सृष्टि को संभालने और कामकाज संचालन का जिम्मा भगवान भोलेनाथ के पास रहेगा। इस दौरान धार्मिक अनुष्ठान किए जा सकेंगे पर विवाह समेत मांगलिक काम नहीं होंगे।

भगवान शंकर के सामने तिल के तेल का दिया प्रज्वलित करें और फल व फूल अर्पित करें। ऊॅं नमः शिवाय मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान भोलेनाथ को सुपारी, पंच अमृत, नारियल व बेल की पत्तियां चढ़ाएं।

हिंदू कैलेंडर में आषाढ़ साल का चौथा माह है। आषाढ़ सनातन धर्म में धार्मिक माह भी माना गया है। इस माह में भगवान विष्णु, भगवान शिव व मां दुर्गा की गुप्त नवरात्र के दौरान पूजा की जाती है। माना जाता है कि इसी महीने में सभी देवी देवता विश्राम के लिए जाते हैं। वहीं भारत में इस समय काफी बारिश होने के कारण इस माह को वर्षा ऋतु का महीना भी कहा जाता है।

तीनों लोकों की रक्षा के लिए विष्णुजी ने वामन अवतार लिया था। राजा बाली को खुश होकर भगवान ने उसे पाताल लोक में रहने का वरदान दिया। भक्त को दिए वचन और तीनों लोकों की जिम्मेदारी को पूरा करने योग निंद्रा में विष्णु भगवान चार्तुमास में चले जाते हैं। उनकी लम्बी निंद्रा का कारण भी भक्त राजा बाली से स्नेह है। विष्णु की इस निंद्रा के पीछे भी भक्त को प्रसन्न करना है। शास्त्रों के अनुसार राजा बलि ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था तो इंद्र से परेशान हो गए। घबराए इंद्र और तमाम देवताओं ने विष्णुजी से गुहार लगाई. तब भगवान ने वामन अवतार लिया. अपने इस अवतार में विष्णुजी ने राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी। दानी राजा ने वामन को भूमि देने का वचन दे दिया. विष्णुजी ने दो पग में धरती और आकाश नाप लिए और तीसरे पग को रखने की बारी में राजा बाली ने मस्तक आगे कर दिया, जिससे विष्णुजी के पैर सिर पर रखते ही वह पाताल में जा धंसा। राजा की भक्ति और दान वीरता से प्रसन्न होकर विष्णुजी ने वरदान मांगने को कहा। राजा ने भगवान से उनका साथ मांगा और प्रभु से पाताल लोक चलने का आग्रह किया। भगवान भक्त इच्छा से बंधकर गए।

इससे माता लक्ष्मी और देवताओं दोनों की चिंता बढ़ गई। विष्णुजी को पाताल से मुक्ति के लिए माता लक्ष्मी ने युक्ति लगाई। उन्होंने बलि को राखी बांधकर उपहार में विष्णुजी को पाताल से मुक्त करने का वचन ले लिया। भगवान विष्णु भक्त को निराश नहीं करना चाहते थे इसलिए उन्होंने वरदान दिया कि वह हर साल आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक पाताल लोक में निवास करेंगे। इसी कारण हर वर्ष चार महीने विष्णु भगवान योग निंद्रा में रहते हैं।

शिव औढरदानी, कल्याण के देवता माने गए हैं। सृष्टि निर्माण में एक ही शक्ति तीन रूपों में अपना कार्य संपादन करते हुए दिखाई देती है। ब्रह्मा सृष्टि का निर्माण करते हैं, विष्णु पालन-पोषण करते हैं और शिव संहार करते हैं यानी निर्माण से नाश तक जगत का चक्र परम सत्ता द्वारा निरंतर प्रकृति में चलता रहता है।ऋग्वेद के रात्रि सूक्त में रात्रि को नित्य प्रलय और दिन को नित्य सृष्टि कहा गया है। दिन में हमारा मन और हमारी इंद्रियां भीतर से बाहर निकलकर प्रपंच की ओर दौड़ती हैं और रात्रि में फिर बाहर से भीतर जाकर शिव की ओर प्रवृत्त हो जाती हैं। इसीलिए दिन सृष्टि का और रात प्रलय की द्योतक है।शिव अंतरिक्ष के देवता हैं। उनका नाम व्योमकेश है अत: आकाश उनकी जटास्वरूप है। जटाएं वायुमंडल की प्रतीक हैं। वायु आकाश में व्याप्त रहती है। सूर्यमंडल से ऊपर परमेष्ठि मंडल है। इसके अर्थतत्व को गंगा की संज्ञा दी गई है अत: गंगा शिव की जटा में प्रवाहित है। शिव रुद्रस्वरूप उग्र और संहारक रूप धारक भी माने गए हैं।

शिव के ये तीन नेत्र सत्व, रज, तम- तीन गुणों, भूत, भविष्य, वर्तमान- तीन कालों और स्वर्ग, मृत्यु, पाताल- तीन लोकों के प्रतीक हैं अत: शिव को त्र्यंबक भी कहते हैं।

भगवान शंकर के गले और शरीर पर सर्पों का हार है। सर्प तमोगुणी है और संहारक वृत्ति का जीव है। यदि वह मनुष्य को डस ले तो उसका प्राणांत हो जाता है।अत: संहारिकता के प्रतीकस्वरूप शिव उसे धारण किए हुए हैं अर्थात शिव ने तमोगुण को अपने वश में कर रखा है। सर्प जैसा क्रूर और हिंसक जीव महाकाल के अधीन है।शिव के हाथों में एक मारक शस्त्र त्रिशूल है। सृष्टि में मानवमात्र आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक इन तीन तापों से त्रस्त रहता है। शिव का त्रिशूल इन तापों को नष्ट करता है।शिव की शरण में जाकर ही भक्त इन दुखों से छूटकर आनंद की प्राप्ति कर सकता है। शिव का त्रिशूल इच्‍छा, ज्ञान और क्रिया का सूचक है।शिव के हाथ में डमरू है। तांडव नृत्य के समय वे उसे बजाते हैं। पुरुष और प्रकृति के मिलन का नाम ही तांडव नृत्य है। उस समय अणु-अणु में क्रियाशीलता जागृत होती है और सृष्टि का निर्माण होता है।अणुओं के मिलन और संघर्ष से शब्द का जन्म होता है। शास्त्रों में शब्द को ब्रह्म कहा गया है। डमरू का शब्द या नाद ही ब्रह्म रूप है। वही ‘ओंकार’ का व्यंजक है।

प्रलयकाल में सारा ब्रह्मांड श्मशान हो जाता है। हम मृत शरीरों को जिस श्मशान में ले जाते हैं, वह प्रलय का संक्षिप्त रूप है। उसके बीच अल्प उपस्‍थिति और उसके दर्शन से क्षणिक वैराग्य उत्पन्न हो ही जाता है।

शिव अपने शरीर पर भस्म धारण करते हैं। उज्जैन के महाकाल मंदिर में नित्य प्रात: भस्म आरती होती है जिसमें श्मशान के मुर्दे की भस्म से शिव का पूजन-अर्चन होता है। लिंग पर भस्म का लेप किया जाता है। भस्म जगत की निस्सारता का बोध कराती है। प्रलयकाल में समस्त जगत का विनाश हो जाता है, केवल भस्म (राख) शेष रहती है। यही दशा शरीर की भी होती है। भस्म से नश्वरता का स्मरण होता है। वेद में रुद्र को अग्नि का प्रतीक माना गया है। अग्नि का कार्य भस्म करना है अत: भस्म को शिव का श्रृंगार माना गया है।

जनसाधारण को सरलता से समझाने के लिए मूर्ति शिल्प का सहारा लिया गया तथा देवताओं के मुंह, हाथ, पांव, रंग, अवस्था, वाहन, आयुध और आभूषण आदि को धारण करने के पीछे कौन-सा संकेत या रहस्य छिपा है, उसे समझाया गया है।

Yr. Contribution Deposit Here: HIMALAYA GAURAV UTTRAKHAND  Bank: SBI CA
30023706551 (IFS Code SBIN0003137) IFSC CODE: SBIN0003137 Br. Saharanpur Rd Ddun UK 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *