पितरों की विदाई और शाम में माता दुर्गा कैलाश से पृथ्वी के लिए प्रस्‍थान

HIGH LIGHT; #महालया अमावस्या – कैलाश से धरती पर पधारेगी मां दुर्गा #सुबह पितरों की विदाई #शाम में पितर अपने लोक को लौट जातेे हैं #शाम में माता कैलाश से पृथ्वी के लिए प्रस्‍थान # नवरात्रि से ठीक पहले आनेवाली अमावस्या को महालया अमावस्या #इस दिन सर्वपितृ विसर्जन और नवरात्र की शुरुआत# माता दुर्गा की पूजा की शुरुआत# मान्यता है कि महिषासुर से रक्षा के लिए मां भगवती को इसी दिन बुलाया गया था # पूजा की शुरुआत महालया अमावस्या से #मां भगवती 9 दिन भक्तों के घरों में विराजती हैं #2018 में देवी दुर्गा का आगमन नाव पर होने जा रहा है और उनका प्रस्थान हाथी पर होगा। मान्यता है कि यह अत्यंत शुभ संकेत है। #हिमालयायूके- हिमालय गौरव उत्तराखण्ड www.himalayauk.org ####

10 अक्टूबर 2018, बुधवार से नवरात्रि प्रारंभ हो रही है। जो 18 अक्टूबर 2018, शुक्रवार तक रहेगी। कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त: भक्तजन 10 अक्‍टूबर को सुबह 7:25 बजे तक नवरात्रि का कलश स्थापित कर सकते हैं. कलश स्थापना के लिए यह शुभ मुहूर्त है. लेकिन यदि आप किसी कारणवश इस समय कलश स्थापित नहीं कर पाते हैं तो आप 10 अक्‍टूबर को ही सुबह 11:36 बजे से लेकर दोपहर 12:24 बजे तक अभिजीत मुहूर्त में भी कलश की स्‍थापना कर सकते हैं. शास्‍त्रों के अनुसार अमावस्‍यायुक्‍त शुक्‍ल प्रति‍पदा मुहूर्त में कलश स्‍थापित करना वर्जित होता है। इसलिए किसी भी हाल में 9 अक्‍टूबर को कलश स्‍थापना नहीं होगी।

नवरात्रि से ठीक पहले आनेवाली अमावस्या को महालया अमावस्या कहा जाता है। इस बार महालया 8 और 9 अक्टूबर दोनों दिन मनाया जाएगा। इस दिन से नवरात्र की शुरुआत हो जाती है। साथ ही इस दिन सर्वपितृ विसर्जन भी होता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करके पितरों का तर्पण किया जाता है। इस दिन श्राद्ध करने से, पितरों के नाम की धूप देने से मानसिक शांति और समृद्धि मिलती है।

महालया बंगालियों का प्रमुख त्योहार है, लेकिन इसे पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन से माता दुर्गा की पूजा की शुरुआत मानी जाती है। मान्यता है कि महिषासुर से रक्षा के लिए मां भगवती को इसी दिन बुलाया गया था। इसलिए उनकी पूजा की शुरुआत महालया अमावस्या से की जाती है।
सुबह पितरों की विदाई की जाती है शाम में पितर अपने लोक को लौट जातेे हैं और शाम में माता कैलाश से पृथ्वी के लिए विदा होती हैं। मां भगवती 9 दिन भक्तों के घरों में विराजती हैं। मान्यता है कि इस दिन श्राद्ध करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। वह जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाते हैं। अमावस्या के दिन उन पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो या फिर मृत्यु के दिन की सही जानकारी ना हो।

इस दिन सभी पितरों को याद किया जाता है और ब्राह्मणों को घर पर बुलाकर आदर-सत्कार किया जाता है। उन्हें भोजन कराकर उनका आशीर्वाद भी लिया जाता है। इसके बाद उनकी पुन: विदाई करते हैं। महालया अमावस्या के दिन गरीब या जरूरतमंद लोगों को दान करने से आने वाले संकट से मुक्ति मिल जाती है। बता दें कि सर्वपितृ अमवास्या को महालय अमावस्या भी कहा जाता है।
अगर आप पिंडदान कर रहे हैं तो उस समय एकाग्रचित होकर गायत्री मंत्र का जप करें और सोमाय पितृमते स्वाहा का जप करें। शास्त्रों में तीन पींड़ों का विधान है, पहले पिंड को जल में दिया जाता है, दूसरे पिंड को गुरुजनों की पत्नी को दें और तीसरा पिंड अग्नि को दें। इससे मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

10 अक्टूबर से नवरात्रि शुरू – नवरात्रि ही एक ऐसा पर्व है जिसमें माता दुर्गा, महाकाली, महालक्ष्मी और मां सरस्वती की साधना करके जीवन को सार्थक किया जा सकता है और मन्त्रों का जाप कर उन्हें खुश किया जा सकता है
शारदीय नवरात्रि का शुभारम्भ 10 अक्टूबर दिन बुधवार से होने जा रहा है. इस दौरान भक्तजन नौ दिनों तक शक्तिस्वरूपा मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा-अर्चना करते हैं. प्रथमा से शुरू होकर नवमी तक क्रमशः मां दुर्गा के इन रूपों की पूजा की जाती है. मां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और मां सिद्धिदात्री. हिन्दू पंचांग के मुताबिक़, शारदीय नवरात्रि का प्रारम्भ आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होता है तथा विजयादशमी की पहली नवमी तक रहता है. आइए आज हम आपको बताते हैं कि नवरात्रि के दौरान किस दिन कौन से देवी की आराधना करनी है, ताकि आपको मनोवांछित फल मिल सके.
* सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।

* या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

* या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

* या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

* या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

* या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

* या देवी सर्वभूतेषु शांतिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

* ॐ जयन्ती मङ्गलाकाली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।

कहते हैं अधिक से अधिक नवार्ण मंत्र ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै’ का जाप अवश्यह करना चाहिए क्योंकि इससे ही मां दुर्गा की कृपा सदैव आप पर बनी रहती है.
नवरात्रि (Navratri) में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना की जाती है. देवी के इन 9 स्वरूपों के बारे में शास्त्रों में इस श्लोक में बताया गया है:

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।

तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति. चतुर्थकम्।।

पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।

सप्तमं कालरात्रीति.महागौरीति चाष्टमम्।।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।

उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।
नवरात्रि के पहले दिन करें शैलपुत्री की पूजा

मां दुर्गा पहले स्वरूप में ‘शैलपुत्री’ के नाम से जानी जाती हैं. ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं. पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लेने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा. इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं. इनके दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है. यही सती के नाम से भी जानी जाती हैं. इनका पूजन मंत्र है :
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌। वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥

नवरात्रि के दूसरे दिन करें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा

नवरात्रि पर्व के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है. ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली. इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली. इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी. इस कारण इन्हें ब्रह्मचारिणी नाम से जाना जाता है. इनका पूजन मंत्र है :
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥

नवरात्रि के तीसरे दिन करें मां चंद्रघंटा की पूजा

मां दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है. नवरात्रि में तीसरे दिन इनकी पूजा होती है. इनके मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्र है जिससे इनका यह नाम पड़ा. इनके दस हाथ हैं जिनमें वह अस्त्र-शस्त्र लिए हैं. हालांकि देवी का यह रूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है. इनका पूजन मंत्र है :

पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता। प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥

नवरात्रि के चौथे दिन करें कूष्माण्डा की पूजा

नवरात्रि पूजन के चौथे दिन देवी के कूष्माण्डा स्वरूप की ही उपासना की जाती है. मान्यता है कि उन्होंने अपनी हल्की हंसी से ब्रह्मांड को उत्पन्न किया था. इनकी आठ भुजाएं हैं. अपने सात हाथों में वह कमंडल, धनुष, बाण, कमल का फूल, अमृत से भरा कलश, चक्र और गदा लिए हैं. उनके आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है. इनका पूजन मंत्र है :
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु मे॥

नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की आराधना

नवरात्रि का पांचवां दिन स्कंदमाता की पूजा का दिन होता है. माना जाता है कि इनकी कृपा से मूर्ख भी ज्ञानी हो जाता है. स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से जाना जाता है. यह कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं. इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है. इनका वाहन सिंह है. इनका पूजन मंत्र है :
सिंहसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥

नवरात्रि के छठवें दिन कात्यायनी की पूजा

मां दुर्गा के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी है. इनकी उपासना से भक्तों को आसानी से अर्थ (धन), धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है. महर्षि कात्यायन ने पुत्री प्राप्ति की इच्छा से मां भगवती की कठिन तपस्या की. तब देवी ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया. जिससे इनका यह नाम पड़ा. भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने कालिंदी यमुना के तट पर इनकी पूजा की थी. अच्छे पति की कामना से कुंवारी लड़कियां इनका व्रत रखती हैं. इनका पूजन मंत्र है :
चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥

नवरात्रि के सातवें दिन कालरात्रि की पूजा

दुर्गापूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है. कालरात्रि की पूजा करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुल जाते हैं और सभी असुरी शक्तियों का नाश होता है. देवी के नाम से ही पता चलता है कि इनका रूप भयानक है. इनके तीन नेत्र और शरीर का रंग एकदम काला है. इनकी कृपा से भक्त हर तरह के भय से मुक्त हो जाते हैं. इनका पूजन मंत्र है :
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥ वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा। वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥

नवरात्रि के आठवें दिन महागौरी की पूजा

मां दुर्गा की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है. इनकी आयु आठ साल की मानी गई है. इनके सभी आभूषण और वस्त्र सफेद होने की वजह से इन्हें श्वेताम्बरधरा भी कहा गया है. कहते हैं कि शिव को पति रूप में पाने के लिए महागौरी ने कठोर तपस्या की थी. इस कारण इनका शरीर काला पड़ गया. लेकिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने इनके शरीर को गंगा जल से धोकर कांतिमय बना दिया. तब से मां महागौरी कहलाईं. इनकी उपासना से सभी पापों से मुक्ति मिलती है. इनका पूजन मंत्र है :
श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः। महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोदया॥

नवरात्रि के नौवें दिन सिद्धिदात्री की पूजा

नवरात्रि पूजन के नौवें दिन देवी सिद्धिदात्री की उपासना की जाती है. इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वालों को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है. भगवान शिव ने भी सिद्धिदात्री की कृपा से ये सभी सिद्धियां प्राप्त की थीं. इनकी कृपा से ही महादेव का आधा शरीर देवी का हुआ था और वह अर्द्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए. इनकी साधना से सभी मनोकामनाएं की पूरी हो जाती हैं. इनका पूजन मंत्र है :
या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्‍तस्‍यै नमस्‍तस्‍यै नमस्‍तस्‍यै नमो नम:।।

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