बगुलामुखी शक्तिपीठ मेला प्रारंभ & सत्‍य साधक की 36 दिन की साधना

HIGH LIGHT; बगुलामुखी शक्तिपीठ मेला हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा जिला के कोटला गाँव में  प्रारंभ #प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी हार के बाद पूर्व  मंदिर में तांत्रिक अनुष्ठान करवाया#  उसके बाद वह फिर सत्ता में आईं और 1980 में देश की प्रधानमंत्री बनीं  # वही सत्‍य साधक की 36 दिन की कठोर निराहार साधना 10 अक्टूबर से नैनीताल जनपद के पदमपुरी से बबियाड रोड पर 17 कि0मी0 दूर ग्‍वेलज्‍यूधार स्‍थित प्राचीन श्रीग्‍वेलज्‍यू मंदिर पुटगांव # ऊँ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां, वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्ववां कीलय, बुद्धि विनाशय ह्रीं ओम् स्वाहा ||# कांगड़ा के देहरा से मात्र 8 किलोमीटर कि दूरी पर स्थित मां बगलामुखी का ये मंदिर हजारों साल पुराना है.#- हिमालयायूके-  www.himalayauk.org

मां बगलामुखी को नो देवियों में 8वां स्थान प्राप्त है. मां की उत्पत्ति ब्रह्मा द्वारा आराधना करने की बाद हुई थी. ऐसी मान्यता है कि एक राक्षस ने ब्रह्मा जी का से वरदान प्राप्त किया कि उसे जल में कोई मनुष्य या देवता न मार सके. इसके बाद वह ब्रह्मा जी की पुस्तिका ले कर भाग रहा था. तभी ब्रह्मा ने मां भगवती का जाप किया. मां बगलामुखी ने राक्षस का पीछा किया तो राक्षस पानी मे छिप गया. इसके बाद माता ने बगुले का रूप धारण किया और जल के अंदर ही राक्षस का वध कर दिया.

बगलमुखी शब्द बगल और मुख से आया है जिनका  मतलब क्रमशः लगाम और चेहरा है। इस प्रकार, व्युत्पत्तिशास्त्र द्वारा इस नाम का अर्थ है ‘एक चेहरा जो शासन की शक्ति है’। माँ बगलामुखी मंदिर हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा जिला के कोटला गाँव में स्थित है. ये एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि माता बगलामुखी की आराधना सर्वप्रथम ब्रह्मा एवं विष्णु ने की थी और इसके बाद परशुराम ने माता बगलामुखी की आराधना करके अनेक युद्धों में शत्रुओं को परास्त करके विजय पाई थी. मां बगलामुखी को शत्रुनशिनी भी माना जाता है. मां का प्रिय रंग पीला रंग है. मंदिर की हर चीज पीले रंग की है. यहां तक कि प्रसाद भी पीले रंग का ही चढ़ाया जाता है.

माता पीताम्‍बरी-श्रीबगुलामखी माई के सत्‍य साधक श्रीमन बिजेन्‍द्र पाण्‍डे जी गुरू जी द्वारा 36 दिन की कठोर निराहार साधना 10 अक्टूबर से प्रथम नवरात्रि से नैनीताल जनपद के पदमपुरी से बबियाड रोड पर 17 कि0मी0 दूर ग्‍वेलज्‍यूधार स्‍थित प्राचीन श्रीग्‍वेलज्‍यू मंदिर पुटगांव में   शुरू की जा रही है, 10 OCT. 2018 से 36 दिन तक गुूरूजी निराहार रहकर साधना करेेेेगे, 36वे दिन मॉ पीताम्‍बरी,श्रीबगुलामुखी माई का कई घण्‍टो का विराट हवन होगा, जिसमें देश विदेश से भक्‍तगण हवन तथा गुरूजी का आशीर्वाद ग्रहण कर सकेगे-, नैनीताल से माई के भक्‍त तथा गुरूजी के अनन्‍य भक्‍त हेमन्‍त बोरा ने कहा कि 10 अक्‍टूबर से 36दिन तक भक्‍तगण यहां पधार सकते है, उनके निवास की भी व्‍यवस्‍था करने का भी प्रबन्‍ध किया जा रहा है-

माँ बगलामुखी देवी मन्त्र

ऊँ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां, वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्ववां कीलय
बुद्धि विनाशय ह्रीं ओम् स्वाहा ||

भारत में माँ बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर माने गए हैं जो क्रमश: दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा नलखेड़ा जिला शाजापुर (मध्यप्रदेश) में हैं।   बगुलामुखी का यह मंदिर महाभारत कालीन माना जाता है। पांडुलिपियों में माँ के जिस स्वरूप का वर्णन है, माँ उसी स्वरूप में यहाँ विराजमान हैं। ये पीतवर्ण के वस्त्र, पीत आभूषण तथा पीले रंग के पुष्पों की ही माला धारण करती हैं। ‘बगलामुखी जयंती’ पर यहाँ मेले का आयोजन भी किया जाता है। ‘बगलामुखी जयंती’ पर हर वर्ष हिमाचल प्रदेश के अतिरिक्त देश के विभिन्न राज्यों से लोग आकर अपने कष्टों के निवारण के लिए हवन, पूजा-पाठ करवाकर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। माता बगलामुखी का दस महाविद्याओं में 8वाँ स्थान है तथा इस देवी की आराधना विशेषकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए की जाती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार माता बगलामुखी की आराधना सर्वप्रथम ब्रह्मा एवं विष्णु ने की थी। इसके उपरांत परशुराम ने माता बगलामुखी की आराधना करके अनेक युद्धों में शत्रुओं को परास्त करके विजय पाई थी।

बगलमुखी मंदिर कांगड़ा जिले के एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। कई भक्त यहाँ हर रोज हिंदू देवी बगलमुखी  की पूजा करने आते हैं, जिन्हें हिंदू पौराणिक कथाओं में दस बुद्धि की देवी में एक माना जाता है। बगलामुखी मंदिर हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा जनपद के बनखंडी क़स्बा में स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। यह मंदिर हिन्दू धर्म के लाखों लोगों की आस्था का केन्द्र है। बगुलामुखी का यह मंदिर महाभारत कालीन माना जाता है। पांडुलिपियों में माँ के जिस स्वरूप का वर्णन है, माँ उसी स्वरूप में यहाँ विराजमान हैं। ये पीतवर्ण के वस्त्र, पीत आभूषण तथा पीले रंग के पुष्पों की ही माला धारण करती हैं। ‘बगलामुखी जयंती’ पर यहाँ मेले का आयोजन भी किया जाता है। ‘बगलामुखी जयंती’ पर हर वर्ष हिमाचल प्रदेश के अतिरिक्त देश के विभिन्न राज्यों से लोग आकर अपने कष्टों के निवारण के लिए हवन, पूजा-पाठ करवाकर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।  अटूट विश्वास है कि माता अपने दरबार से किसी को निराश नहीं भेजती हैं। केवल सच्ची श्रद्धा एवं सद्विचार की आवश्यकता है।

यहाँ हर साल माँ बगलामुखी जयंती पर मेले का आयोजन किया जाता है. इस पर्व में अलग – अलग राज्यों के लोग भाग लेते हैं. साथ ही मंदिर में हर साल नवरात्रि भी  धूमधाम से मनाये जाते है. इस समय का नजारा देखने योग्य होता है.

 द्रोणाचार्य, रावण, मेघनाद इत्यादि सभी महायोद्धाओं द्वारा माता बगलामुखी की आराधना करके अनेक युद्ध लड़े गए।  भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बगलामुखी आने के साथ ही इसके इतिहास में एक नया पन्ना जुड़ गया। मुखर्जी देश के पहले राष्ट्रपति बने, जो इस मंदिर में आए हैं। राष्ट्रपति 40 मिनट तक माता बगलामुखी परिसर में रुके रहे। इस दौरान उन्होंने लगभग आधे घंटे तक मंदिर के गर्भ गृह में पूर्ण विधि-विधान से मां बगलामुखी की पूजा-अर्चना की। मंदिर के पुजारी पंडित दिनेश शर्मा तथा मनोहर शर्मा ने राष्ट्रपति से हवन यज्ञ संपूर्ण करवाया। हालांकि इससे पहले यहां सन् 1977 में चुनावों में हार के बाद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी मंदिर में तांत्रिक अनुष्ठान करवाया। उसके बाद वह फिर सत्ता में आईं और 1980 में देश की प्रधानमंत्री बनीं।

कांगड़ा जनपद के कोटला क़स्बे में स्थित माँ श्री बगलामुखी का सिद्ध शक्तिपीठ है। वर्ष भर यहाँ श्रद्धालु मन्नत माँगने व मनोरथ पूर्ण होने पर आते-जाते रहते हैं। माँ बगलामुखी का मंदिर ज्वालामुखी से 22 किलोमीटर दूर ‘वनखंडी’ नामक स्थान पर स्थित है। मंदिर का नाम ‘श्री 1008 बगलामुखी वनखंडी मंदिर’ है। सडक मार्ग से आप अगर दिल्ली से आ रहे है तो आपको देहरा से  १० किलोमीटर आगे चलना होगा ,रेल मार्ग से आपको जवालामुखी रोड उतरना होगा और वहाँ से बस या टैक्सी से १५-20 मिनट में पहुच सकते है ,सबसे नजदीक एअरपोर्ट कांगड़ा (गग्गल है ),जहाँ से आपको फिर से टैक्सी या बस में अआना होगा

बगलमुखी शब्द बगल और मुख से आया है जिनका  मतलब क्रमशः लगाम और चेहरा है। इस प्रकार, व्युत्पत्तिशास्त्र द्वारा इस नाम का अर्थ है ‘एक चेहरा जो शासन की शक्ति है’।  इस मंदिर की स्थापना द्वापर युग में पांडवों द्वारा अज्ञातवास के दौरान एक ही रात में की गई थी, जिसमें सर्वप्रथम अर्जुन एवं भीम द्वारा युद्ध में शक्ति प्राप्त करने तथा माता बगलामुखी की कृपा पाने के लिए विशेष पूजा की गई थी। कालांतर से ही यह मंदिर लोगों की आस्था व श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। वर्ष भर असंख्य श्रद्धालु, जो ज्वालामुखी, चिंतापूर्णी, नगरकोट इत्यादि के दर्शन के लिए आते हैं, वे सभी इस मंदिर में आकर माता का आशीर्वाद भी प्राप्त करते हैं। इसके अतिरिक्त मंदिर के साथ प्राचीन शिवालय में आदमकद शिवलिंग स्थापित है, जहाँ लोग माता के दर्शन के उपरांत शिवलिंग पर अभिषेक करते हैं।

#############################
Presented by- हिमालयायूके- हिमालय गौरव उत्तराखण्ड www.himalayauk.org
Leading Digital Newsportal & DAILY NEWSPAPER)

उत्तराखण्ड का पहला वेब मीडिया-2005 से
CHANDRA SHEKHAR JOSHI- EDITOR
Publish at Dehradun & Haridwar, Available in FB, Twitter, whatsup Groups & All Social Media ;
Mail; himalayauk@gmail.com (Mail us)
Mob. 9412932030; ;
H.O. NANDA DEVI ENCLAVE, BANJARAWALA, DEHRADUN (UTTRAKHAND)

हिमालयायूके एक गैर-लाभकारी मीडिया हैं. हमारी पत्रकारिता को दबाव से मुक्त रखने के लिए आर्थिक सहयोग करें.
Yr. Contribution:
HIMALAYA GAURAV UTTRAKHAND
A/C NO. 30023706551 STATE BANK OF INDIA; IFS Code; SBIN0003137
###########################################################

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *