पितृपक्ष-5 सितंबर; हमारे पूर्वज कौए का रूप धारण कर के आते हैं
पितृपक्ष-5 सितंबर से 20 सितंबर 2017 – श्राद्ध, पूजा, महत्व, श्राद्ध की महिमा एवं विधि का वर्णन विष्णु, वायु, वराह, मत्स्य आदि पुराणों एवं महाभारत, मनुस्मृति आदि शास्त्रों में यथास्थान किया गया है। श्राद्ध का अर्थ अपने देवों, परिवार, वंश परंपरा, संस्कृति और इष्ट के प्रति श्रद्धा रखना है। श्राद्धों के वक्त आपके पूर्वज किसी भी तरह घर आ सकते हैं तो किसी भी आने वाले को घर से बाहर न भगाएं। पितृ पक्ष में पशु पक्षियों को पानी और दाना दे- पितृ पक्ष के दौरान मांस-मदिरा का प्रयोग नहीं करना चाहिए। तर्पण में काले तिल का प्रोयग करें । पितृ पक्ष में ब्राह्मणों को भोजन करवानएं । कुत्ते, बिल्ली, और गाय को भगाना या हानि नहीं पहुंचानी चाहिए। www.himalayauk.org (web & Print Media)
माना जाता है कि अगर आपके पूर्वज या पितर आपसे खुश हैं, तो दुनिया कि कोई ताकत आपका बाल भी बांका नहीं कर सकती और अगर वो नाराज़ हो गए तो पूरे परिवार का सर्वनाश हो जाता है। पितर का मतलब आपके पूर्वज और श्राद्ध का मतलब श्रद्धा। अपने पूर्वजोंं का श्रद्धापूर्वक सम्मान करना ही श्राद्ध होता है। ऐसा कहा जाता है कि मरणोपरांत भी आत्मा भटकती रहती है। उसी आत्मा को तृप्त करने के लिये तर्पण किया जाता है। पितृ पक्ष या श्राद्ध इस बार 5 सितंबर 2017 से 19 सितंबर 2017 तक चलेंगे। पूर्वजों की संतानें जौं और चावल का पिंड देते हैं। कहा जाता है कि इस दौरान हमारे पूर्वज कौए का रूप धारण कर के आते हैं और पिंड लेकर चले जाते हैं। श्राद्ध के वक्त लोग ब्राह्मणों को भोजन कराने के साथ साथ दान और भंडारे भी करते हैं।
सोलह श्राद्ध इस वर्ष 15 दिन के होंगे। अब 16 दिन के श्राद्ध का संयोग वर्ष 2020 में बनेगा। वर्ष 2016 में भी श्राद्ध 15 के दिन के थे। लगातार दूसरे वर्ष तिथि घटने से पितृ पक्ष का एक दिन कम हो गया है। इस बार श्राद्ध 6 सितंबर, बुधवार से से शुरू होंगे। इसी दिन दोपहर में प्रतिपदा का श्राद्ध भी होगा। 15 दिन बाद 20 सितंबर, बुधवार को सर्व पितृ अमावस्या पर श्राद्ध का समापन होगा।
हिंदुओं में श्राद्ध पितरों का सबसे पड़ा पर्व माना जाता है। पूर्णिमा से अमावस्या तक यह 16 दिन का होने से इसे सोलह श्राद्ध कहते हैं। लेकिन तिथियां घटने-बढ़ने के साथ इसके दिन कम-ज्यादा होते हैं। ज्योतिषाचार्य पं. अमर डिब्बावाला के अनुसार 2016 के बाद इस वर्ष 2017 में भी सोलह श्राद्ध 15 दिन के होंगे। 6 सितंबर को सूर्योदय से पूर्णिमा होने से सुबह पूर्णिमा का श्राद्ध होगा। इस दिन दोपहर 12.32 से प्रतिपदा तिथि लग जाएगी इसके चलते कई लोग इस दिन प्रतिपदा का श्राद्ध भी करेंगे। क्योंकि श्राद्ध पूजन व ब्राह्मण भोज का समय दिन का बताया है। पितृ पक्ष का एक दिन कम होगा। वहीं कुछ पंडित बीच में पंचमी तिथि का क्षय होना भी बता रहे हैं। इस तरह पितृ पक्ष का पूरा एक दिन घटने से श्राद्ध के पूरे 16 दिन नहीं होंगे। .
ज्योतिषाचार्य पं. श्यामनारायण व्यास के अनुसार श्राद्ध में पितृ प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। इसमें खरीदी से कोई नुकसान नहीं होता है। पं. डिब्बावाला ने बताया कि श्राद्ध के दौरान 8 सितंबर को दोपहर 12.31 से अमृत सिद्धि योग, 11 सितंबर को सुबह 09.21 से रवि योग, 12 सितंबर को सुबह 06.16 से सर्वार्थसिद्धि योग, 14 सितंबर को रात 2 बजे से सर्वार्थसिद्धि योग लगेगा जो 15 सितंबर तक रहेगा। 17 सितंबर को भी मंगल उदय हो रहा है। इन योग में पूजा, दान, खरीदारी आदि कर सकते हैं।
श्राद्ध में किस दिन कौन सी तिथि, जानिए
6 सितंबर- पूर्णिमा/प्रतिपदा
7 सितंबर- द्वितीया
8 सितंबर- तृतीया
9 सितंबर- चतुर्थी/पंचमी
10 सितंबर- पंचमी
11 सितंबर- छठ
12 सितंबर- सप्तमी
13 सितंबर- अष्टमी
14 सितंबर- नवमी
15 सितंबर- दशमी
16 सितंबर- एकादशी
17 सितंबर- द्वादशी
18 सितंबर- त्रयोदशी
19 सितंबर- चतुर्दशी
20 सितंबर- अमावस्या
(ज्योतिषियों के अनुसार)
श्राद्ध क्या है
व्यक्ति का अपने पितरों के प्रति श्रद्धा के साथ अर्पित किया गया तर्पण अर्थात जलदान पिंडदान पिंड के रूप में पितरों को समर्पित किया गया भोजन यही श्राद्ध कहलाता है। धर्म शास्त्रों की ऐसी मान्यता है सूर्य के कन्या राशि में आने पर परलोक से पितर अपने स्वजनों यानी पुत्र, पौत्रों के साथ रहने आ जाते हैं इसलिए इसे कनागत भी कहा जाता है। देवताओं से तुलना करने पर व्यक्ति के तीन पीढ़ी के पूर्वज गिने जाते हैं । इसमें पिता को वसु के समान, रुद्र दादा के समान तथा आदित्य को परदादा के समान माना गया गया है। श्राद्ध के समय सभी पूर्वजों के प्रतिनिधि माने जाते हैं। श्राद्ध तीन पीढ़ियों तक करने का विधान बताया गया है।
हिंदू शास्त्रों में कहा गया है कि जो स्वजन अपने शरीर को छोड़कर चले गए हैं चाहे वे किसी भी रूप में अथवा किसी भी लोक में हों, उनकी तृप्ति और उन्नति के लिए श्रद्धा के साथ जो शुभ संकल्प और तर्पण किया जाता है, वह श्राद्ध है। माना जाता है कि सावन की पूर्णिमा से ही पितर मृत्यु लोक में आ जाते हैं और नवांकुरित कुशा की नोकों पर विराजमान हो जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष में हम जो भी पितरों के नाम का निकालते हैं, उसे वे सूक्ष्म रूप में आकर ग्रहण करते हैं। केवल तीन पीढ़ियों का श्राद्ध और पिंड दान करने का ही विधान है। पुराणों के अनुसार मुताबिक मृत्यु के देवता यमराज श्राद्ध पक्ष में जीव को मुक्त कर देते हैं, ताकि वे स्वजनों के यहां जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें। श्राद्ध पक्ष में मांसाहार पूरी तरह वर्जित माना गया है। श्राद्ध पक्ष का माहात्म्य उत्तर व उत्तर-पूर्व भारत में ज्यादा है। तमिलनाडु में आदि अमावसाई, केरल में करिकडा वावुबली और महाराष्ट्र में इसे पितृ पंधरवडा नाम से जानते हैं। श्राद्ध स्त्री या पुरुष, कोई भी कर सकता है। श्रद्धा से कराया गया भोजन और पवित्रता से जल का तर्पण ही श्राद्ध का आधार है। ज्यादातर लोग अपने घरों में ही तर्पण करते हैं। श्राद्ध का अनुष्ठान करते समय दिवंगत प्राणी का नाम और उसके गोत्र का उच्चारण किया जाता है। हाथों में कुश की पैंती (उंगली में पहनने के लिए कुश का अंगूठी जैसा आकार बनाना) डालकर काले तिल से मिले हुए जल से पितरों को तर्पण किया जाता है। मान्यता है कि एक तिल का दान बत्तीस सेर स्वर्ण तिलों के बराबर है। परिवार का उत्तराधिकारी या ज्येष्ठ पुत्र ही श्राद्ध करता है। जिसके घर में कोई पुरुष न हो, वहां स्त्रियां ही इस रिवाज को निभाती हैं। परिवार का अंतिम पुरुष सदस्य अपना श्राद्ध जीते जी करने के लिए स्वतंत्र माना गया है। संन्यासी वर्ग अपना श्राद्ध अपने जीवन में कर ही लेते हैं। श्राद्ध पक्ष में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं। श्राद्ध का समय दोपहर साढे़ बारह बजे से एक बजे के बीच उपयुक्त माना गया है। यात्रा में जा रहे व्यक्ति, रोगी या निर्धन व्यक्ति को कच्चे अन्न से श्राद्ध करने की छूट दी गई है। कुछ लोग कौओं, कुत्तों और गायों के लिए भी अंश निकालते हैं। कहते हैं कि ये सभी जीव यम के काफी नजदीकी हैं और गाय वैतरणी पार कराने में सहायक है।
हिंदू धर्म ग्रंथों में मनुष्य के ऊपर तीन तरह के ऋण बताए गए हैं। देव, ऋषि तथा पितृ ऋण और इन सभी में पितृ ऋण के निवारण के लिए 15 दिनों के पितृ पक्ष में पितृ यज्ञ करने यानी श्राद्ध कर्म का वर्णन किया गया है। भाद्रपद शुक्ल पक्ष पूर्णिमा से अश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तक के समय को पितृ पक्ष कहा जाता है और इसी 15 दिनों के अंदर श्राद्ध कर्म कर पितरों को जलदान, पिंड दान की प्रक्रिया की जाती है। श्राद्ध पितृ पक्ष के अंतिम दिन यानी अमावस्या या महालया अमावस्या के रूप में जानी जाती है। महालया अमावस्या पितृ पक्ष का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। जिन लोगों को अपने पूर्वजों या पितरों की पुण्यतिथि का सही दिन ज्ञात नहीं होता है। ऐसे पूर्वजों को इस दिन श्रद्धांजलि और भोजन समर्पित कर याद किया जाता है।
क्यों आवश्यक है श्राद्ध करना
हिंदू धर्म शास्त्रों में इस बात का उल्लेख है कि पितृ पक्ष में तर्पण व श्राद्ध करने से व्यक्ति के पूर्वज प्रसन्न होते हैं और उसे आशीर्वाद प्रदान करते हैं इससे घर के अंदर सुख शांति का वातावरण बनता है। इसके साथ ही समृद्धि भी होती है । इसके साथ यह भी मान्यता है कि अगर पितृ नाराज हो जाएं तो ऐसे व्यक्ति को जीवन में कई तरह की समस्याओं का सामना भी करना होता है। पितरों के रुष्ट होने से धन हानि और संतान पक्ष से समस्याओं का सामना मनुष्य को करना होता है। संतानहीनता के मामलों में यह कहा जाता है कि ज्योतिषी से कुंडली के पितृ पक्ष (घर) को दिखवा लें और उसका समन भी करें। ज्योतिषी पितृदोष को देखकर पितृ दोष शमन की व्यवस्था करा देते हैं। पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध अवश्य करनी चाहिए। माना जाता है कि यमराज 15 दिनों के लिए प्रत्येक वर्ष श्राद्ध पक्ष दौरान सभी जीवो को मुक्त कर देते हैं। जिससे यह सभी जीव अपने स्वजनों के पास पहुंचकर तर्पण, भोजन इत्यादि ग्रहण कर पाते हैं। शास्त्रों में ऐसा वर्णित है कि पितर ही अपने कुल की रक्षा करते हैं।
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