सियासी फिजाएँ बदली हुई हैं
पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ, म0प्रदेश में में इस बार सियासी फिजाएँ बदली हुई हैं।
पंजाब में शिरोमणि अकाली दल (बादल) के दबदबे वाले इस प्रदेश में इस बार कांग्रेस पार्टी सत्ता पर क़ाबिज है। कैप्टन अमरिंदर सिंह के सामने उनकी कैबिनेट के मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू के बढ़ते क़द के बावजूद कांग्रेस पार्टी में कोई ख़ास गुटबाज़ी नहीं है। वहीं, दूसरी ओर न तो अकाली दल (बादल) में सबकुछ ठीक चल रहा है और न ही आम आदमी पार्टी में। HIMALAYAUK BUREAU REPORT
वही दूसरी ओर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी उत्तर प्रदेश की अमेठी लोकसभा सीट के साथ ही केरल की वायनाड सीट से भी चुनाव लड़ने जा रहे हैं। कुछ लोगों को लगता है कि अमेठी सीट से केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से तगड़े मक़ाबले की वजह से ही राहुल गाँधी ने दक्षिण की एक ‘सुरक्षित’ सीट से चुनाव लड़ने का फैसला लिया है। लेकिन राजनीति के जानकारों के मुताबिक़, राहुल गाँधी के वायनाड से चुनाव लड़ने के पीछे कई कारण हैं। राहुल गाँधी दक्षिण से चुनाव लड़कर यह संदेश देना चाहते हैं कि उनकी प्राथमिकताओं में कहीं भी दक्षिण को नज़रअंदाज़ नहीं किया गया है। दूसरा कारण यह कि दक्षिण में बीजेपी सिर्फ़ कर्नाटक को छोड़कर बाक़ी जगह कमजोर है। कांगेस आलाकमान को लगता है कि वायनाड से चुनाव लड़ने की वजह से पार्टी को तीन राज्यों, केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में सीधा फायदा होगा। पाँचवा कारण यह है कि राहुल से पहले उनकी दादी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी भी दक्षिण से चुनाव लड़ चुकी हैं। सियासत के मुश्किल समय में इंदिरा गाँधी ने आंध्र प्रदेश की मेडक सीट से भी चुनाव लड़ा था और शानदार जीत हासिल की थी। इस जीत की वजह से कांग्रेस ने दक्षिण में अपना खोया जनाधार एक बार फिर वापस हासिल किया था और केंद्र में भी कांगेस की शानदार जीत हुई थी। राहुल की माँ सोनिया गाँधी भी दक्षिण से चुनाव लड़ चुकी हैं। सोनिया गाँधी ने 1999 के लोकसभा चुनाव में बेल्लारी सीट से बीजेपी की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज को हराया था।
यही वजह है कि पिछले विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करने के बाद कांग्रेस की नज़र लोकसभा चुनाव 2019 में भी बड़ी जीत हासिल करने पर है। अकाली दल (बादल) की कमान सुखबीर बादल के हाथों में आने के बाद बादल अपने कुनबे को अपने साथ लेकर चलने में पूरी तरह नाकाम साबित हुए हैं तो दूसरी ओर केजरीवाल की पार्टी में भी बग़ावत हो चुकी है। बीजेपी ने पंजाब में अकाली दल (बादल) के साथ मिलकर चुनाव मैदान में उतरने का फ़ैसला किया है। पंजाब की 13 लोकसभा सीटों में से अकाली दल 10 और बीजेपी 3 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
पिछले लोकसभा चुनाव में भी पंजाब में अकाली दल (बादल) 10 और बीजेपी 3 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। तब अकाली दल (बादल) को 4 और बीजेपी को 2 सीटों पर जीत मिली थी, लेकिन बाद में गुरदासपुर लोकसभा सीट पर विनोद खन्ना के निधन के चलते हुए उपचुनाव में कांग्रेस को भारी जीत मिली व कांग्रेस के सुनील जाखड़ सांसद चुने गये। लिहाज़ा, मौजूदा समय में पंजाब में बीजेपी के पास मात्र एक ही सांसद है।
सूत्रों के मुताबिक़, अकाली दल (टकसाली) पंजाब की 3 से 4 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ सकती है जबकि आम आदमी पार्टी 9 से 10 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी। पंजाब में मतदान 19 मई को होगा व मतगणना 23 मई को होगी।
पंजाब में विधानसभा की कुल 117 सीटें हैं। इनमें से कांग्रेस के पास 78, शिरोमणि अकाली दल (बादल) के पास 14, बीजेपी के पास 3, ‘आप’ के पास 20 और लोकसभा इंसाफ पार्टी के पास 2 सीटें हैं। लोकसभा चुनावों में मुद्दों की बात करें तो अकाली दल (बादल)की सरकार में 2015 में गुरु ग्रंथ साहिब का अपमान और इसके विरोध में प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की गोलीबारी, बादल परिवार व अकाली दल (बादल) के साथ-साथ बीजेपी के लिये भी सिरदर्द साबित होगा। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर में 14 फ़रवरी को हुआ पुलवामा आतंकी हमला और जवाबी बालाकोट एयर स्ट्राइक की भी लोगों में चर्चा है। देखना होगा कि केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल इस बार बठिंडा या फिरोजपुर से टिकट मिलने की सूरत में तीसरी बार लोकसभा के लिये चुनी जाती हैं या नहीं। इसी तरह पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के पोते रवनीत सिंह बिट्टू पहली बार आनंदपुर साहिब से तो दूसरी बार लुधियाना से सांसद बन चुके हैं और उन्हें इस बार भी लुधियाना से कांग्रेस का टिकट मिलने की उम्मीद है। अकाली दल (बादल) के शेर सिंह घुबाया ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है। वह दो बार फिरोजपुर लोकसभा सीट से सांसद बन चुके हैं। देखना होगा कि घुबाया तीसरी बार चुने जाते हैं या नहीं।
वही दूसरी ओर
वायनाड को चुनने की एक बड़ी वजह यह भी है यह सीट राहुल के लिए पूरी तरह से ‘सुरक्षित’ मानी जा रही है। वायनाड लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र 2009 में अस्तित्व में आया था। 2009 और 2014, दोनों ही चुनावों में यहाँ से कांगेस की ही जीत हुई थी। दोनों बार कांगेस के उम्मीदवार एमएल शाहनवाज ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी यानी सीपीआई के उम्मीदवार को हराया था। लेफ़्ट फ़्रंट ने यह सीट इस बार भी सीपीआई को दी है। शाहनवाज का नवंबर 2018 में निधन हो गया था। तभी से यह सीट खाली है। चूँकि लोकसभा चुनाव नजदीक थे, इस वजह से यहाँ उपचुनाव नहीं कराया गया। कांगेस को लगता है कि ज़्यादातर मुसलमान और ईसाई मतदाता ही नहीं बल्कि हिंदू वोटर भी उसके साथ हैं। यहाँ से सीपीआई ने सुनीर को अपना उम्मीदवार बनाया है और वह मजबूत प्रत्याशी नहीं हैं। बीजेपी का भी यहाँ जनाधार नहीं है। इन्हीं कारणों से राहुल गाँधी ने माना कि दक्षिण में वायनाड ही सबसे ‘सुरक्षित’ सीट है।