राजनीति संभावनाओं का खेल है, इस खेल में किसी बात पर दावेदारी नहीं- ना ही कथित संभावना को सिरे से खारिज किया जा सकता है और ना ही ताल ठोंककर यह भी कहा जा सकता है कि यह होकर ही रहेगा- Big Quest; मध्यप्रदेश सरकार में आमूलचूल परिवर्तन?
13 DEC 22 # Focus:2023 मे विधान सभा चुनाव प्रस्तावित राज्यो मे कर्नाटक, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में बीजेपी मे जबरदस्त गुटबाजी से कुछ अलग समीकरण बनते दिख रहे है #बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व मध्य प्रदेश में चुनाव से पहले पूरी सरकार बदलने की रणनीति अपना सकता है? #
HIGH LIGHT # राजनीति संभावनाओं का खेल है, इस खेल में किसी बात पर दावेदारी नहीं की जा सकती है। ना ही कथित संभावना को सिरे से खारिज किया जा सकता है और ना ही ताल ठोंककर यह भी कहा जा सकता है कि यह होकर ही रहेगा। # सवाल है कि आखिर किस राज्य में मुख्यमंत्री बदलना है, किस राज्य में मुख्यमंत्री के साथ पूरी कैबिनेट और किस राज्य में कोई छेड़छाड़ नहीं करनी है, बीजेपी के पास इसका कौन सा पैमाना है? राजनीति के जानकार बताते हैं कि बीजेपी ने प्रदेश सरकारों की चुनावी क्षमता परखने के तीन बड़े आधार तय कर रखे हैं। इनमें पहला है- प्रदेश में सरकारी योजनाओं का जमीन तक पहुंचने का अनुपात, पार्टी संगठन के साथ संबंधित प्रदेश सरकार की तालमेल का स्तर और जनता में मुख्यमंत्री की लोकप्रियता। #
#फोकस: चुनाव से पहले पूरी सरकार बदलने की भारतीय जनता पार्टी की रणनीति कारगर साबित हो रही है। एमपी के मैहर से बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी ने पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा को चिट्ठी लिखकर कहा है कि चूंकि अगले वर्ष प्रदेश में विधानसभा चुनाव होना है, इसलिए जरूरी है कि सत्ता विरोधी लहर को रोकने के लिए सरकार में आमूलचूल परिवर्तन किए जाएं।
#मध्यप्रदेश के विधायक नारायण त्रिपाठी ने 11 दिसंबर को नड्डा को लिखे पत्र में लिखा है, मध्यप्रदेश में सत्ता एवं संगठन में पूरी तरह बदलाव के मेरे जैसे तमाम कार्यकर्ताओं के आकलन एवं मंशा पर विचार करने की कृपा करेंगे ताकि यहां फिर से भाजपा की सरकार बन सके और विकास एवं जनकल्याण की गति निर्बाध रूप से जारी रह सके।
#पिछले वर्ष हिमाचल प्रदेश में हुए उप-चुनाव में बीजेपी को चारों सीटों पर मिली हार है। सवाल उठ रहे हैं कि भाजपा हिमाचल प्रदेश में उप-चुनाव के परिणाम से सत्ता विरोधी लहर को भांपने से कैसे चूक गई? यह सवाल इसलिए भी गहरा है क्योंकि खुद बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा हिमाचल प्रदेश से ही हैं। तो क्या नड्डा और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर अपने ही गृह प्रदेश की सरकार और वहां के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के बारे में सही-सही फीडबैक नहीं जुटा पाए थे?
#कई राज्यों में बीजेपी के भीतर गुटबाजी चरम पर #हाईकमान के डर से नेता खामोश #लेकिन…लेकिन जमीन पर पूर्णतया निष्क्रिय #2023 में कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा का चुनाव होना है. इनमें कर्नाटक और मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार है, जबकि छत्तीसगढ़ और राजस्थान में पार्टी विपक्ष की भूमिका में हैं. मिशन 2024 में जुटी बीजेपी के लिए जहां 2 राज्यों में सरकार बचाने की चुनौती है, वही 2 राज्यों में जीत दर्ज करने की भी. मिशन 2024 में जुटी बीजेपी को अगर इन राज्यों में गुटबाजी की वजह से हार का सामना करना पड़ा तो बड़ा नुकसान संभव है. जिन 5 राज्यों में बीजेपी के भीतर गुटबाजी सबसे ज्यादा हावी है, उन राज्यों में लोकसभा की कुल सीटें 135 है. 2019 के चुनाव में बीजेपी ने 135 में से 97 सीटों पर जीत दर्ज की थी. राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में पार्टी की एकतरफा जीत हुई थी.
हिमाचल की हार ने बीजेपी की जीत के जश्न को फीका कर दिया है. पहाड़ी राज्य में सत्ता गंवाने के बाद भगवा पार्टी हार की समीक्षा में जुटी है. शुरुआती रिपोर्ट के मुताबिक संगठन में गुटबाजी की वजह से बीजेपी सत्ता से दूर रह गई. हमीरपुर समेत कई जिलों में पार्टी का खाता तक नहीं खुला. चुनाव परिणाम आने के बाद अमित शाह ने राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और संगठन महासचिव बीएल संतोष के साथ हार को लेकर चर्चा भी की. केंद्र में मजबूत सरकार होने के बावजूद राज्यों में आंतरिक गुटबाजी ने पार्टी हाईकमान की टेंशन बढ़ा दी है.
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बीजेपी राजस्थान में गुटबाजी जारी है. पूर्व सीएम वसुंधरा राजे और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र शेखावत के बीच अब भी अदावतें की खबरें आती रहती है. प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के खिलाफ भी वसुंधरा गुट लगातार मोर्चा खोले रहता है. जुलाई 2021 में शेखावत-पूनिया के खिलाफ बयान देने की वजह से बीजेपी ने वसुंधरा के करीबी और पूर्व मंत्री रोहिताश्व शर्मा को पार्टी से निकाल दिया था. हालांकि, गतिरोध तब भी नहीं रूका. इसी साल राज्यसभा चुनाव मे वसुंधरा के करीबी विधायक शोभारानी ने पार्टी के खिलाफ जाकर क्रॉस वोटिंग कर दिया. वसुंधरा राजस्थान की दो बार सीएम रह चुकी हैं. जनता के बीच उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है. वसुंधरा के बेटे दुष्यंत अभी झालवाड़ से सांसद भी हैं. राजस्थान में चुनाव के अब एक साल से भी कम का वक्त बचा है. ऐसे में अगर वहां गुटबाजी जारी रही तो पार्टी को चुनाव में नुकसान उठाना पड़ सकता है.
ऑपरेशन लोटस के तहत 2019 में सरकार बनाने के बाद बीजेपी ने येद्दियुरप्पा को सीएम बनाया था
कर्नाटक में फरवरी 2023 में चुनाव होने हैं. ऐसे में अगर येद्दियुरप्पा को नहीं साधा गया तो पार्टी की हाथ से कर्नाटक की सत्ता निकल जाएगी. येद्दियुरप्पा जिस लिंगायत समुदाय से आते हैं, कर्नाटक में उनकी आबादी करीब 18 फीसदी है कर्नाटक में भी पार्टी के भीतर गुटबाजी चरम पर है. यहां पूर्व सीएम येद्दियुरप्पा और वर्तमान सीएम बीएस बोम्मई गुट आमने-सामने है. ऑपरेशन लोटस के तहत 2019 में सरकार बनाने के बाद बीजेपी ने येद्दियुरप्पा को सीएम बनाया था. जुलाई 2021 में पार्टी ने येद्दियुरप्पा को हटाकर बीएस बोम्मई को राज्य का सीएम बनवाया. इसके बाद से ही येद्दियुरप्पा गुट हाईकमान और सीएम के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है. पिछले महीने डैमेज कंट्रोल करने के लिए पार्टी ने येद्दियुरप्पा को केंद्रीय पार्लियामेंट बोर्ड का सदस्य भी नियुक्त किया था.
ऑपरेशन लोटस के तहत बीजेपी मध्य प्रदेश में सरकार बनाने में कामयाब रही
2018 के चुनाव में हारने के बावजूद ऑपरेशन लोटस के तहत बीजेपी मध्य प्रदेश में सरकार बनाने में कामयाब रही. पार्टी ने फिर से शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाया. साथ ही हाईकमान ने नरोत्तम मिश्रा का कद भी बढ़ा दिया. नरोत्तम के कद बढ़ने के बाद से ही शिवराज खेमे को कुर्सी जाने का डर सताने लगा. इसके बाद से ही एमपी में दोनों गुट एक-दूसरे के खिलाफ अंदरुनी तौर पर हमलावर है. मई में सीएम हाउस में एक कार्यक्रम के दौरान नरोत्तम को जब बोलने का मौका नहीं मिला, तो उन्होंने मंच छोड़ दिया. नरोत्तम-शिवराज गुट के अलावा कांग्रेस से आए सिंधिया गुट भी पार्टी के भीतर हावी है टिकट से लेकर पोर्टफोलियों बंटवारे तक में सिंधिया गुट की सक्रियता कई बार पार्टी के लिए परेशानी खड़ी कर रही है. एमपी में भी चुनाव के एक साल से कम वक्त बचा है. ऐसे में अगर वहां गुटबाजी जारी रही तो पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है.
पश्चिम बंगाल में पांव जमाने में जुटी बीजेपी को वहां भी गुटबाजी का सामना करना पड़ रहा है. पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष और वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजमूदार गुट आमने-सामने हैं. दोनों गुटों की लड़ाई को देखते हुए बीजेपी हाईकमान ने मार्च 2022 में लेटर जारी किया था, जिसमें दिलीप घोष को सार्वजनिक तौर पर बयान नहीं देने के लिए कहा गया था. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बंगाल में 18 सीटों पर जीत मिली थी. 2021 के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने ममता को कड़ी टक्कर देते हुए 73 सीटो पर जीत दर्ज की थी, लेकिन 15 महीने में ही 7 विधायक अब तक पार्टी छोड़ चुके हैं. बंगाल में भी अगर बीजेपी हाईकमान ने गुटबाजी पर रोक नहीं लगाई तो मिशन 2024 को बड़ा झटका पार्टी को लग सकता है.
2018 में छत्तीसगढ़ में भी बीजेपी को करारी हार का सामना करना
2018 में छत्तीसगढ़ में भी बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा था. पार्टी ने संगठन को फिर से मजबूत करने के लिए कई प्रयोग किए, लेकिन गुटबाजी की वजह से सब फेल हो गया. यहां पूर्व सीएम रमन सिंह, पूर्व नेता प्रतिपक्ष धर्मलाल कौशिक, पूर्व अध्यक्ष विष्णुदेव साय गुट सक्रिय है. गुटबाजी को देखते हुए बीजेपी ने इस साल की शुरुआत में छत्तीसगढ़ में बड़ी सर्जरी की थी. प्रदेश प्रभारी से लेकर अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष तक को हटाया गया था, लेकिन पार्टी के परफॉर्मेंस पर इसका असर नहीं दिखा है. छत्तीसगढ़ में भी अगले साल चुनाव होने हैं. ऐसे में अगर पार्टी के भीतर गुटबाजी जारी रहती है तो भूपेश बघेल को टक्कर देना मुश्किल होगा.
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