उत्तराखंड में 300 किमी की सीमा चीन- तिब्बत से मिलती है- गांवों से पलायन रोकने, सीमांत क्षेत्रों में विकास का ढांचा मजबूत करने की आवश्यकता

पिथौरागढ़ जिले की करीब 136 किमी लंबी सीमा चीन से लगती है। पिथौरागढ़ जिले में समुद्र तल से दस हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित रिलकोट, 8,898 फीट की ऊंचाई पर पर स्थित बुगडियार, 16,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित दुंग चौकियां चीन के करीब हैं। समुद्र तल से 14,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित चीन सीमा से लगी दारमा घाटी की अंतिम चौकी दावे और व्यास घाटी के 14,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित नाभीढांग सहित कई अन्य क्षेत्रों में सुरक्षा एजेंसियों ने गश्त बढ़ा दी है। फिलहाल पिथौरागढ़ जिले की चीन सीमा पर शांति है।

Chandra Shekhar Joshi Chief Editor

14 DEC 22 # भारत और चीन के बीच करीब 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा है. यह बॉर्डर अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, उत्तरारखंड और सिक्किम से लगता है, चीन की मंशा यह भी है कि वो तवांग पर कब्जा करके तिब्बती बौद्ध केंद्र को नष्ट कर दे. चीन अगर तवांग पर कंट्रोल कर लेता है तो उसकी तिब्बत पर पकड़ और भी मजबूत होगी, साथ ही वह अरुणाचल पर भी दावा ठोक सकता है. हालांकि, भारत ऐसा किसी भी कीमत पर होने नहीं देगा. 9 दिसंबर को तवांग सेक्टर में चीन के करीब 300 सैनिकों ने फिर से घुसपैठ की कोशिश की थी लेकिन भारतीय सेना के वीर जवानों ने उन्हें करारा जवाब दिया. अरुणाचल प्रदेश का तवांग क्षेत्र भारत के लिए बेहद ही खास माना जाता है और यही वजह है कि भारतीय जवानों ने चीन (China) के करीब 300 से ज्यादा सैनिकों को पीछे खदेड़ दिया. संघर्ष की इस घटना में चीन को भारी नुकसान पहुंचा है.

अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) में भारतीय और चीनी सेना के बीच हुई झड़प की खबरें आने के बाद उत्तराखंड की सरहद पर भी अलर्ट हो गया है। भारत चीन संसदीय समूह के पूर्व अध्यक्ष तरुण विजय ने आशंका जताई है कि चीनी सैनिक राज्य के चमोली जिले के बाड़ाहोती क्षेत्र में फिर अपनी शरारत का निशाना बना सकते हैं। पहले भी चीन बाड़ाहोती एलएसी क्षेत्र में 63 बार घुसपैठ कर चुका है। सीमा सड़क संगठन बीआरओ ने चीन सीमा तक लिपुलेख तक सड़क पहुंचा दी है। इससे टेंशन में आए चीन ने नेपाल को भड़काना शुरू कर दिया है। चीन के भड़कावे में आकर नेपाल कालापानी को अपना बताता है।

उत्तराखंड में 300 किमी की सीमा चीन- तिब्बत से मिलती है। उत्तराखंड से केंद्र सरकार को जो ब्योरा भेजा गया है, उसके मुताबिक, पिछले 10 साल में चीन की बाड़ाहोती क्षेत्र में लगातार घुसपैठ बढ़ी है। जनरल विपिन रावत के प्रयासों से ही अब बाड़ाहोती पक्के मार्ग से जुड़ गया है। चीन मामलों के जानकार तरुण विजय के मुताबिक, सुरक्षा और सामरिक लिहाज से बाड़ाहोती बेहद संवेदनशील क्षेत्र है। चीन ने एलएसी के पार वहां से ल्हासा तक मार्ग बना लिया है। दूसरा संवेदनशील बॉर्डर मिलन ग्लेशियर है, जहां तक सेना की सड़क से पहुंच बनाने के लिए बीआरओ 60 किमी मार्ग बना रहा है।

विकास के ढांचे को सशक्त किए बगैर सुरक्षा की तैयारी अधूरी है। इसलिए गांवों से पलायन रोकने, सीमा दर्शन योजना पर जोर देने, 12 महीने खुली रहने वाली सड़कें तैयार करने, सीमांत क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे को हर हाल में मजबूत करने की योजना पर गंभीरता से काम करना होगा।

उनके मुताबिक, चीन निरंतर इस बात का एहसास दिलाना चाहता है कि भारत के साथ उसकी सीमा का विवाद नहीं सुलझा है। इसी कारण चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सैनिकों की घुसपैठ भारतीय सीमा में होती रहती है। इस बात की आशंका मोदी सरकार को है, इसलिए सरहद तक सामरिक महत्व की सड़कों का नेटवर्क तैयार किया है।

अरुणाचल प्रदेश स्थित तवांग लगभग 17,000 फीट की ऊंचाई पर है. तवांग का इलाका मैकमोहन लाइन के अंदर पड़ता है और यह भारत का अहम हिस्सा है लेकिन चीन की नीयत में खोट दिखता है और वो अब मैकमोहन रेखा को मानने से इनकार करता है. यह इलाका पश्चिम में भूटान और उत्तर में तिब्बत का बॉर्डर भी साझा करता है. रणनीतिक तौर पर यह इलाका भारत के लिए बेहद ही खास है. यह वही स्थान है जहां भारत का विशाल बौद्ध मठ भी है.

तवांग 1962 के भारत-चीन युद्ध से भी जुड़ा हुआ है. 1962 के युद्ध में भारत को यहां काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा था. बाद में युद्धविराम के तहत चीन को पीछे हटना पड़ा था. मैकमोहन समझौते के बाद तवांग को भारत का हिस्सा माना गया. समझौते के बाद चीन ने इसे खाली भी कर दिया था क्योंकि यह इलाका मैकमोहन लाइन के भीतर पड़ता है लेकिन ड्रैगन इसे मान्यता देने से अब इनकार करता है.

अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में चीन और भारतीय सैनिकों (India-China) की झड़प पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने चीन समस्या (China Issue) के लिए विपक्षी दल कांग्रेस  पर बड़ा आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के संगठन राजीव गांधी फाउंडेशन (Rajiv Gandhi Foundation) को चीन से मोटी रकम मिली है। अमित शाह ने पंडित जवाहर लाल नेहरू के चीन प्रेम को सीमा विवाद (LAC Clash) की बड़ी वजह करार दिया। संसद के बाहर मीडिया से बात करते हुए गृह मंत्री ने कहा कि भारत की एक इंच जमीन पर भी कोई कब्जा नहीं हुआ है।

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किसकी सेना ताकतवर?

अब भारत और चीन की नौसेना की तुलना (India China Navy Comparison) करें तो भारत के पास सिर्फ एक एयरक्राफ्ट कैरियर (Aircraft Carrier) है, जबकि चीन के पास दो एयरक्राफ्ट कैरियर (China Aircraft Carrier) हैं। इसी तरह भारत के पास 16 सबमरीन (Submarines) है जबकि चीन के पास 74 Submarines हैं। भारत के पास 10 एयरक्राफ्ट डिस्ट्रॉयर (Aircraft Destroyer) हैं, वहीं चीन के पास 36 हैं। भारत के पास 3 माइन वारफेयर (Mine Warfare) हैं, जबकि चाइना के पास 29 हैं। इसी तरह भारत के पास 139 कोस्टल पैट्रोल (Coastal patrol) हैं जबकि चीन के पास 220 हैं। भारत के पास कितने परमाणु हथियार (India’s Total  Nuclear Weapons) हैं, इसका कोई सार्वजनिक डाटा नहीं है। ‘आर्म्ड फोर्सेज डॉट ईयू (armed forces.eu) की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के पास अनुमानित 150 न्यूक्लियर वेपन (Nuclear Weapons) हैं। उधर दूसरी तरफ चीन के पास 280 से ज्यादा न्यूक्लियर वेपन (China Nuclear Weapon) हैं। कई रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया है कि चीन के पास इससे ज्यादा परमाणु हथियार हो सकते हैं। बता दें, चीन अब तक 45 बार परमाणु परीक्षण कर चुका है। 

भारत और चीन की थल सेना (India vs China Army) की तुलना करें तो भारत के पास कुल 3,544,000 जवान (Indian Army Manpower) हैं। इसमें 14,44,000 एक्टिव और 21,00,000 रिजर्व जवान हैं। Global Firepower की रिपोर्ट के मुताबिक चीन की PLA आर्मी (Chinese PLA Army Manpower) में कुल 2,693,000 जवान हैं, जिसमें 21,83,000 एक्टिव और 5,10,000 रिजर्व सैनिक हैं। दोनों देशों के बीच हथियारों की तुलना करें तो टैंक के मामले में भारत, चीन पर भारी पड़ता है। भारत के पास 4292 टैंक हैं, जबकि चीन के 3501 टैंक हैं। इसी तरह चीन के पास 33,000 बख्तरबंद गाड़ियां (Armored Vehicles) हैं, जबकि भारत के पास 8,686 गाड़ियां हैं। चीन के पास 3800 स्वचालित आर्टिलरी है, वहीं भारत के पास महज 235 स्वचालित आर्टिलरी है। इसी तरह भारत के पास 4060 फील्ड आर्टिलरी है, जबकि चीन के पास 3600 है। भारत के पास सिर्फ 266 रॉकेट प्रोजेक्टर हैं, जबकि चीन के पास 2650 रॉकेट प्रोजेक्टर हैं। एयरफोर्स की तुलना करें तो आंकड़ों में चीन हमसे आगे दिखाई देता है। भारत के पास 538 कॉम्बैट एयरक्राफ्ट हैं, जबकि चीन के पास 1,232 हैं। इसी तरह भारत के पास 172 डेडिकेटेड अटैक एयरक्राफ्ट हैं, जबकि चीन के पास इस तरह के 371 एयरक्राफ्ट हैं। Global Firepower के मुताबिक भारत के पास 77 स्पेशल मिशन प्लेन हैं, जबकि चीन के पास 111 हैं। भारत के पास 722 हेलीकॉप्टर है जबकि चीन के पास 911 हेलीकॉप्टर हैं। भारत के पास 23 हेलोज (Helos) हैं, जबकि चीन के पास 281 हैं।

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