पंचेश्वर बांध ; सारे सम्पर्क मार्ग बन्द हैं, फिर भी जनसुनवाई का नाटक

पंचेश्वर बांध की पहली जनसुनवाई धोखा रही! #जनसुनवाई के लिये न तो पंचेश्वर विकास प्राधिकरण और न ही जिला प्रशासन के पर्याप्त नुमाइंदे थे, वहां की कुर्सियों पर भाजपा के विधायक और नेता विराजमान थे #विधायक डीडीहाट, बिशन सिंह चुफाल   बांध की तरफदारी मेंं  बोल रहे हैं, जिन्हें जनता की ओर से बोलना चाहिये था, उन्‍हें मंंत्री बनना  है इस आशा में वो अपने लोगों को ही उजाडने की रणनीति में लग गये-  

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उत्तराखंड के कुंमाऊ क्षेत्र में 311 मीटर ऊँचे पंचेश्वर बांध की 9 अगस्त को चम्पावत जिले के बाराकोट ब्लाक के हॉल में हुई पहली जनसुनवाई इस नदी घाटी के लोगो व पर्यावरण के साथ धोखा सिद्व हुई।
बिना सही और पूरी जानकारी प्राप्त किये,बिना ये समझे कि बांध से क्या होगा?पर्यावरण पर क्या होने वाला है? विस्थापन क्या होगा? पुर्नवास क्या होगा? सरकारों ने आज तक क्या किया है? मात्र और मात्र बडे़ आकडे़ और बड़ी धनराशि और बड़े सपनों को दिखाने का और जनसुनवाई का कागजी काम पूरा किया गया। प्रभावितों को यह पता ही नही था कि पर्यावरण प्रभाव आकलन,समाजिक प्रभाव आकलन व प्रबंध योजना रिपोर्टे क्या होती है। तो फिर उन्हे पढ़ने का प्रश्न ही नही होता।
जनसुनवाई के मंच पर ये नही मालूम पड़ा की जनसुनवाई का पैनल कौन सा है ? स्थानीय विधायक, ब्लाक प्रमुख लोहाघाट, बाराकोट तथा सांसद प्रतिनिधी मौजूद थे। लोगो की आपत्ति लेने के लिए जनसुनवाई स्थल से पहले ही एक काउंटर बनाया गया था।
जनसुनवाई में प्रभावितों ने पुनर्वास के बहुत सतही प्रश्न उठाये। मात्र कुछ ग्रामीणो द्वारा जमीन, मकान व अन्य मुआवजे़ जैसे ही विषय उठाये गये। मंचासीन लोगो ने बार-बार पुर्नवास के जुड़ी बातों को दोहराया व आश्वासन दिये जिसका जनसुनवाई से कोई मतलब नही था। एक प्रकार से यह लोगो पर एक दवाब लाने की कोशिश थी। पुर्नवास के संदर्भ में भरोसे का भ्रम पैदा करने की कोशिश थी।
जनसुनवाई बन्द हाल में हुई। बाहर टी0वी0लगाकर लोगो को देखने सुनने का मौका तो दिया गया। मगर मंच से यह भी कहॉ गया कि जो बात दे वो बाहर जाए। जो उचित नही था। उस हॉल में एक महिला उपजिलाधिकारी बराबर घूम रहीं थी। बार बार लोगो को विभिन्न निर्देश दे रही थी। 26 गांवों के लोगो के लिये इतनी दूर आना संभव नही था। गांवो से जाकर लोगो से विस्थापन संबधी समस्याओं पर उनके विचार मांगे गये थे। जनसुनवाई के हॉल में सरकारी कर्मचारियों की संख्या भी काफी थी।

 पंचेश्वर बांध की जनसुनवाई मामले में शुक्रवार को नैनीताल हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. पिछली सुनवाई में हाईकोर्ट ने पिथौरागढ़, चंपावत और अल्मोड़ा के ज़िलाधिकारियों को जवाब दाखिल करने को कहा था. तीनों ज़िलाधिकारियों ने हाईकोर्ट में अपने जवाब किए. इसके बाद अदालत ने केंद्र सरकार, राज्य सरकार, पंचेश्वर विकास प्राधिकरण, पल्यूशन कंट्रोल बोर्ड को नोटिस जारी किए. अदालत ने इन सभी से दो हफ़्ते में विस्तृत जवाब  देने को कहा है. पंचेश्वर बांध पर हो रही जनसुनवाई को लेकर पिथौरागढ़ के रोहित जोशी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है. उनका कहना है कि बिना सही सूचना के जन सुनवाई की जा रही है. जोशी का यह भी कहना है कि जनसुनवाई में प्रभावित जनता की बात नहीं सुनी जा रही.

पीएसी की 2 पलाटून यानि लगभग 90 लोग व स्थानीय पुलिस के 60-70 महिला व पुरुष जवान मौके पर थे। ऐसा लग रहा था की किसी बहुमूल्य वस्तु की निलामी हो रही हो। जनसुनवाई के हॉल में भी पुलिस अधिकारी मौजूद रहे। जिन्होने साथी ओंकार सिंह धौनी को बाजू से पकड़ कर रोकने की कोशिश की। ओंकार सिंह धौनी ने जनसुनवाई की प्रक्रिया के बारे में प्रश्न पूछा कि आप ने गॉव के स्तर पर परियोजना संबधी कागजातों का सार-संक्षेप कब दिया? उनके गांव पंचेश्वर में मात्र 4दिन पहले ही ये दिया गया था। दूरस्थ गांवों में अखबार भी नही जाता तो वेब साईट पर कैसे लोग पढ़ेंगे? जनसुनवाई में लोगो को बार-बार ये बताया गया। कि ये अभी शुरुआत है। हम आपकी बात सुनेंगे। जनसुनवाई के जो भी मुददे होंगे उनको अंतिम पर्यावरण प्रभाव आकलन में लिया जायेगा।
पर्यावरण के बारे में चर्चा नाममात्र की हुई। पर्यावरण कार्यकर्ता अरुण सिंह ने जिन प्रश्नों को उठाया उनका भी सही उत्तर वैबकॉस के पास नही था।

#काशी सिंह ऐरी  :- आज पिथौरागढ जिला मुख्यालय में पंचेश्वर बांध की जनसुनवाई का नाटक किया गया था, अपने लोगों की पीड़ा को रखने के लिये मैं भी वहां अपने लोगों के बीच था, लेकिन प्रशासन ने मुझे गेट पर ही रोक लिया और अन्दर नहीं जाने दिया, मैं जान जोखिम में डाल जबरन गेट को फांदकर सभागार में गया। सभागार में जनसुनवाई के लिये न तो पंचेश्वर विकास प्राधिकरण और न ही जिला प्रशासन के पर्याप्त नुमाइंदे थे, वहां की कुर्सियों पर भाजपा के विधायक और नेता विराजमान थे। मैंने इसका भरपूर विरोध किया तो विधायक डीडीहाट, बिशन सिंह चुफाल मेरी बातों का उत्तर देने लगे। मैंने उनसे प्रतिप्रश्न किया कि आप क्या जिला प्रशासन के एजेण्ट हैं या बांध प्राधिकरण के, जनता ने आपको अपना विधायक चुना है, ताकि आप उनके हक की बात करें, आप किस हैसियत से मुझे जबाब दे रहे हैं। सबसे अजीब बात यह है कि आज पिथौरागढ जिले में मौसम विभाग में भारी बारिश का अलर्ट जारी किया है, सारे सम्पर्क मार्ग बन्द हैं, फिर भी जनसुनवाई का नाटक जारी रखा गया। जनता फिर भी आई, लेकिन वह अपनी बात किससे कहे, बांध की ओर से तो भाजपा के विधायक बोल रहे हैं, जिन्हें जनता की ओर से बोलना चाहिये था, इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है। जनता को बांध के कोई तथ्य नही बताये गये हैं, उनको सिर्फ मुआवजे का लालीपाप दिया जा रहा है। DPR, EIK और SIA की उनको कोई जानकारी नहीं दी गई है, लोग इन सबसे अन्जान हैं। हम इस नाटक का विरोध करते हैं और हम मांग करते हैं कि पहले जनता को उनकी भाषा में बांध के हर तकनीकी, समाजिक, आर्थिक, पारिस्थितिक, भौगोलिक और जलवायु विषयक जानकारी दी जाय और फिर प्रभावित क्षेत्र में जाकर जनसुनवाई करे, यदि ऐसा नहीं होगा तो सरकारें उग्र आन्दोलन के लिये तैयार रहें। 

विमल भाई को अन्त तक बोलने से रोका गया। उनका पहला प्रश्न था कि पैनल में कौन है? जिसके उत्तर में जिलाधीश ने कहा कि आप कानूनी बात ना उठाये। जब ये पूछा कि गॉवों में कागजात व जनसुनवाई की सूचना समय पर नही पहुॅची। अंग्रेजी में रखे गये पर्यावरण प्रभाव आकलन, समाजिक प्रभाव आकलन व प्रबंध योजना रिपोर्टे के कागजातांे की तो जानकारी तक गॉवो में नही है। इसका कोई उत्तर नही मिल पाया। पूछा गया की 900 पन्नो के कागजात क्या सभा में उपस्थित कोई अधिकारी या अन्यो ने पढ़े है? यदि नही तो यह कैसे अपेक्षा की जा सकती है कि दूरस्थ गांव के ग्रामीण पढ़ेगे जिनको यह तक नही मालूम की ऐसे कोई कागजात होते भी है। जिस पर भी कोई उत्तर नही था।

चम्पावत जिले में वन स्वीकृति के लिये भी जल्दबाजी में गांव स्तर की प्रक्रिया चला कर ग्रामीणांे से अनापत्ति ली गयी है। तो जिलाधीश का कहना था कि वो अलग प्रक्रिया है हमने वो काम जल्दी के लिये ऐसा किया। पूछने पर वैबकॉस ने कहा की नेपाल में कागजात तैयार करने व जनसुनवाई की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। विमलभाई ने अंत में कहा कि यह प्रक्रिया पूरी तरह से गलत है। लोगो को अंधेरे में रखा जा रहा है। जनसुनवाई के अघ्यक्ष जिलाधीश जी से निवेदन किया गया कि आप इसे रद्व करें।
इस पर मंच पर बैठे तमाम जनप्रतिनिधि आक्रमक हुये। किन्तु जिलाधीश ने उन्हे रोका। वैबकॉस के प्रतिनिधी ने बार-बार कहा कि लोगो को पूरी जानकारी दी गयी है। पूरी जनसुनवाई में भी वे ही उत्तर देते रहे जबकि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व प्रशासन के अधिकारियों को इसका उत्तर देना चाहिये था।

हमारी पुनः ये मांग है कि इस सब परिस्थितियों में जनहित, पर्यावरण हित और राज्य के दीर्घकालीन हितों के लिये यह आवश्यक है कि सही प्रक्रिया का पालन करते हुये:-
1. चम्पावत में 9-8-2017 की जनसुनवाई स्थगित मानी जाये, पिथौरागढ़ में11.8.2017 व अल्मोड़ा में 17.8.2017 को होने वाली जन सुनवाईयां तुरंत स्थगित की जायें।
2. पर्यावरण प्रभाव आकलन, समाजिक प्रभाव आकलन व प्रबंध योजना रिपोर्टे (EIA, SIA & EMP) सरल हिंदी में प्रभावितों को समझायी जाए जिसके लिए पर्यावरण सामजिक क्षेत्र में काम करने वाली निष्पक्ष संस्था को जिम्मेदारी दी जाए।
3. अगली जन सुनवाईयों के स्थल बाँध प्रभावित क्षेत्रों में ही रखी जाएँ।
4. जन सुनवाईयंो का समय मानसून के बाद का ही होना चाहिए।
5. जनसुनवाईयों में पुलिस का इतना प्रयोग ना हो व पैनल पर सिर्फ पैनल के ही लोग बैठे।

विमलभाई आंेकार सिंह धोनी रविन्द्र सिंह

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 Ganesh Bhatt पंचेश्वर बांध की पहली जनसुनवाई धोखा रही!

उत्तराखंड के कुंमाऊ क्षेत्र में 311 मीटर ऊँचे पंचेश्वर बांध की 9 अगस्त को चम्पावत जिले के बाराकोट ब्लाक के हॉल में हुई पहली जनसुनवाई इस नदी घाटी के लोगो व पर्यावरण के साथ धोखा सिद्व हुई।
बिना सही और पूरी जानकारी प्राप्त किये,बिना ये समझे कि बांध से क्या होगा?पर्यावरण पर क्या होने वाला है? विस्थापन क्या होगा? पुर्नवास क्या होगा? सरकारों ने आज तक क्या किया है? मात्र और मात्र बडे़ आकडे़ और बड़ी धनराशि और बड़े सपनों को दिखाने का और जनसुनवाई का कागजी काम पूरा किया गया। प्रभावितों को यह पता ही नही था कि पर्यावरण प्रभाव आकलन,समाजिक प्रभाव आकलन व प्रबंध योजना रिपोर्टे क्या होती है। तो फिर उन्हे पढ़ने का प्रश्न ही नही होता।
युकेडी केंद्रीय नेतृत्व काे निम्नलिखित माँगाे पर जाेर देना चाहिए –
1. चम्पावत में 9-8-2017 की जनसुनवाई स्थगित मानी जाये, पिथौरागढ़ में11.8.2017 व अल्मोड़ा में 17.8.2017 को होने वाली जन सुनवाईयां तुरंत स्थगित की जायें।
2. पर्यावरण प्रभाव आकलन, समाजिक प्रभाव आकलन व प्रबंध योजना रिपोर्टे (EIA, SIA & EMP) सरल हिंदी में प्रभावितों को समझायी जाए जिसके लिए पर्यावरण सामजिक क्षेत्र में काम करने वाली निष्पक्ष संस्था को जिम्मेदारी दी जाए।
3. अगली जन सुनवाईयों के स्थल बाँध प्रभावित क्षेत्रों में ही रखी जाएँ।
4. जन सुनवाई का समय मानसून के बाद का ही होना चाहिए।
5. जनसुनवाईयों में पुलिस का इतना प्रयोग ना हो व पैनल पर सिर्फ पैनल के ही लोग बैठे।
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गणेश भट्ट
विधानसभा देवप्रयाग
युकेडी

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